मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:19 PM,
#86
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैं बहुत दिनो बाद घर से अकेली निकली थी. और वह लड़का देखने मे ठीक-ठाक था. उसे देखकर मेरा मन मचलने लगा. पर मैने बनावटी गुस्से से कहा "चुप करो! और हटो मेरे पास से!" 

वह हटा नही और उसका दुबला दोस्त मेरे दूसरी तरफ़ आकर बैठ गया. मैं उन दोनो के बीच फंस गयी.

मै चिल्ला सकती थी, पर मुझे एक रोमांच भी हो रहा था. घर से दूर अकेली, यहाँ मुझे कोई नही जानता था. मैं यहाँ कुछ ऐसा वैसा कर भी लूं तो किसी को क्या पता चलेगा? सोचकर मैं गुदगुदी से भर उठी.

"बोलो, छमिया. हमे अपना यार बनाओगी?" दुबला लड़का बोला.
"अपनी शकल देखी है आइने मे?" मैने जवाब दिया.
"गुरु, यह तो मेरी बेइज्जती कर रही है!" वह अपने दोस्त को बोला.
"चेले, तुझे तो तेरी भैंस भी अपना यार नही बनायेगी!" उसके दोस्त ने हंसकर कहा. फिर मेरे कमर मे हाथ डालकर बोला, "मै तो इतना बुरा नही हूँ देखने मे! मुझे अपना यार बना लो. बहुत मज़ा पाओगी."

"कौन सा मज़ा दोगे तुम?" मैने छिनाली करके पूछा. उसका हाथ अब मेरी बायें चूची को हलके से छू रहा था.
"जवानी का, मेरी जान. जवानी का मज़ा!" उसने खुश होकर कहा.
"तुम्हे कुछ आता भी है?" मैने छेड़कर पूछा, "शकल से तो भोंदू लगते हो."

"छमिया, गुरु अपने गाँव के हीरो हैं, हीरो! बहुत लड़कियों और भाभीयों को मज़ा दे चुके हैं." दुबला लड़का बोला, "गाँव के आधे बच्चों का बाप तो यही है."

सुनकर मैं हंस दी.

"गुरु" नाम का लड़का मेरी चूची तो थोड़ा सा दबाकर बोला, "तुम्हारी बातों से लगता है तुम काफ़ी खेल खायी हो. क्या कहती हो, थोड़ा मज़ा लोगी अभी?"
"अभी, यहाँ?" मैने पूछा.
"डिब्बे मे बहुत कम लोग हैं. कोई नही आयेगा यहाँ." गुरु बोला.
"देखो मुझे कोई जोखिम नही लेनी है." मैने कहा, "जो करना है ऊपर ऊपर से कर लो."

गुरु खुश हो गया और मेरी कमीज़ के ऊपर से मेरी दोनो चूचियों को दबाने लगा.

मै तो पहले से ही बहुत कामुक स्थिती मे थी. एक अनजान मर्द के सख्त हाथों से अपनी चूची दबवा कर मुझे बहुत सुख मिलने लगा. जल्दी ही मैं मस्ती की आवाज़ें निकालने लगी.

गुरु ने अपने होंठ मेरे होठों पर रखा तो मैं मज़े लेकर उसे चूमने लगी. उसके मुंह से बीड़ी की महक आ रही थी, पर उस वक्त मर्द का साथ पाने के लिये मैं पागल होने लगी थी.

गुरु ने थोड़ी हिम्मत करके मेरे कमीज़ के अन्दर हाथ डाल दी. मैने उसे मना नही किया. उसने मेरे ब्रा को खींचकर ऊपर उठाया और मेरे चूचियों को अपने हाथों से मसलने लगा. मेरा मज़ा दुगुना हो गया. मैं उससे चूची मिसवाते हुए उसके होंठ पीने लगी.

तभी मुझे लगा कोई मेरी सलवार के नाड़े को खींच रहा है. मुड़कर देखा तो पाया वह दुबला लड़का मेरी सलवार को उतारने की कोशिश कर रहा है.

"यह क्या कर रहे हो तुम!" मैने उसका हाथ हटाकर पूछा.
"छमिया, तुम्हारी चूत देखने की कोशिश कर रहा हूँ." वह बोला.
"हाथ मत लगाओ मुझे!" मैने उसे डांटकर कहा.

"अरे छोड़ो न उसे! बेचारे को भी थोड़ा मज़ा लेने दो ना!" गुरु बोला और मुझे फिर से चूमने लगा. उसने मुझे इतना कसकर पकड़ रखा था कि मैं हिल भी नही पा रही थी.

दुबले लड़के ने मेरी सलवार मेरे पाँव तक उतार दी और मेरी चड्डी भी मेरे घुटनों तक उतार दी. फिर मेरे जांघों को फैलाकर मेरी नंगी चूत को सहलाने लगा.

"गुरु! क्या मस्त चूत है छमिया की!" वह बोला, "एक भी बाल नही है. बिदेसी रंडी की तरह सफ़ा चट चूत है इसकी."
"क्यों लड़की, किसी से चुदवाने जा रही हो?" उसका दोस्त बोला, "चूत तो वही लड़कियाँ साफ़ रखती हैं जो बहुत चुदवाती हैं."

मैने जवाब नही दिया, पर अपना हाथ उसके पैंट पर रखकर उसके लन्ड को दबाने लगी.

उसने अपने पैंट की ज़िप खोली और अपना लन्ड बाहर निकाल लिया. मैने उसके लन्ड को पकड़ा और हिलाने लगी.

उसका लन्ड बहुत बड़ा नही था. शायद 6 इंच का रहा होगा. मोटाई ठीक-ठाक थी. पर उस वक्त मुझे बहुत ही चुदास चढ़ चुकी थी.

दुबला लड़का मेरी गीली चूत को सहलाये जा रहा था. अचानक उसने मेरा दूसरा हाथ पकड़ा और अपने लन्ड पर रखा. मैने मुड़कर देखा, तो हैरान रह गयी. देखने मे वह दुबला था पर उसका लन्ड 7-8 इंच का था और काफ़ी मोटा था.

"क्यों लड़की, मेरे दोस्त का लन्ड पसंद आया?" गुरु ने पूछा. उसका हाथ अब भी मेरी कमीज़ के अन्दर मेरी चूचियों को दबा रहा था. "देखने मे मेरा दोस्त बहुत सुन्दर नही है. पर गाँव की भाभीयाँ उसके लन्ड पर मरती है. गाँव के आधे बच्चो का बाप यह है, मैं नही."

मैं दोनो के गरम लन्डों को पकड़कर हिलाने लगी. मेरी मुट्ठी मे उनके लन्ड ताव खा रहे थे. जी कर रहा था बारी-बारी उनके लन्डो को चूसूं.

तभी दो गाँव के किसान हमारे कुपे के पास से गुज़रे.

हम तीनो को व्यभिचार मे लगे देखकर एक बोला, "क्या ज़माना आ गया है, यार! यह लड़के रंडियां लेकर ट्रेन मे चढ़ते हैं और यहीं मुंह काला करते हैं."
दूसरा किसान गुस्से से बोला, "हरामज़ादों! रंडीबाज़ी करने की और कोई जगह नही मिली? उतरो ट्रेन से वर्ना अभी पुलिस बुलाता हूँ!"

"काका, अभी चलती ट्रेन से कैसे उतरें?" दुबल लड़का बोला, "अगले स्टेशन पर उतर जायेंगे!"
"मै कहता हूँ अभी उठो यहाँ से!" वह किसान अपनी लाठी दिखाकर बोला, "अपनी गंदी रंडी को लेकर दरावाज़े के पास जाओ! और स्टेशन आते ही उतर जाओ!"

किसान के गुस्से को देखकर दोनो दोस्त चुप हो गये. उन्होने अपनी पैंटों के ज़िप लगा लिये और मैने भी अपनी सलवार उठाकर पहन ली. यह दोनो किसान मुझे एक वेश्या समझ रहे थे. सोचकर मुझे बहुत उत्तेजना होने लगी.

हम तीनो ट्रेन के सिरे पर टॉयलेट के पास चले गये और दरवाज़े के पास खड़े हो गये. वहाँ कोई नही था. दरवाज़ा खुला था और उससे तेज़ हवा आ रही थी.

गुरु फिर से मेरी कमीज़ के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगा. मुझे अब उससे चुदवाने का बहुत मन कर रहा था, पर यहाँ तो चुदाई सम्भव नही था.

"अब क्या फ़ायदा!" मैने कहा, "अगले स्टेशन पर वह किसान आ जायेगा और हमे ट्रेन से उतार देगा!"
"कोई बात नही, लड़की." गुरु बोला, "हम तुझे किसी खेत मे ले जायेंगे और मज़ा देंगे."
"मै नही जा सकती." मैने कहा, "हाज़िपुर मे कोई मेरी प्रतीक्षा कर रहा है. जो करना है अभी कर लो."

तभी ट्रेन धीमी होकर रुक गयी.

दुबला लड़का बोला, "गुरु, वह किसान इधर आ रहा है. लगता है हमे उतरना ही पड़ेगा! चल दूसरे डिब्बे मे चलते हैं."
"यह तो कोई स्टेशन भी नही है." मैने कहा, "तुम लोग उतर जाओ. मैं यहाँ नही उतर सकती!"
"तुझे चोदे बिना हम नही उतर रहे हैं!" गुरु दृड़ता से बोला.

पीछे से उस किसान की आवाज़ आयी, "हराम के जनों! अभी तक नही उतरे ट्रेन से! ठहरो दिखता हूँ!"

मै डरकर एक टॉयलेट मे घुस गयी.

मै दरवाज़ा बंद कर ही रही थी कि दुबला लड़का भी टॉयलेट मे घुस आया. और उसके बाद उसका दोस्त भी अन्दर आ गया. उसने टॉयलेट का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया.

टॉयलेट के अन्दर जगह बहुत कम थी. हम तीनो एक दूसरे से चिपक कर सांस रोके खड़े रहे.

वह किसान टॉयलेट के पास आया और हमे न देखकर बड़बड़ाने लगा. ट्रेन फिर से चल पड़ी.

मुझे डर के साथ हंसी भी आ रही थी. मैं दोनो लड़कों के बीच पिचक कर खड़ी थी.

तभी पीछे से गुरु ने मेरी चूची को कमीज़ के ऊपर से मसलना शुरु कर दिया और अपना खड़ा लन्ड मेरी चूतड़ पर दबाना शुरु किया. दुबले लड़के ने मुझे पकड़कर मेरे होंठ पीने शुरु कर दिये. अब मैं भी आवेग मे उसको चूमने लगी.

"छमिया, बहुत मस्त होंठ है रे तेरे!" दुबला लड़का बोला.
"और क्या चूचियां हैं, भगवान कसम!" उसके दोस्त ने कहा.
"तो खोलकर देख लो!" मैने जवाब दिया. मुझे बहुत ही मस्ती चढ़ रही थी इन दो मर्दों के बीच फंसकर.

गुरु ने मेरी कमीज़ ऊपर उठायी और मेरे हाथों से अलग कर दी. फिर उसने मेरी छोटी शमीज उतारी. मैने अपने हाथ पीछे ले लिये और अपनी ब्रा भी उतार दी. अब मैं ऊपर से पूरी नंगी हो गयी.

अब गुरु मेरे कंधों और गले को चूमने लगा और पीछे से मेरी नंगी चूचियों को जोर जोर से मसलने लगा. मैं मस्ती मे सित्कारने लगी. दुबला लड़का मेरी कमर को पकड़कर मेरे होठों को पी रहा था.

"हाय राजा! और जोर से मसलो मेरी चूची को!" मैं सित्कार के बोली, "उफ़्फ़! क्या मस्ती चढ़ी है!"
"अभी तो तुझे हम दोनो चोदेंगे." गुरु बोला, "तब देखना कैसा मज़ा मिलता है."
"तो चोद डालो ना! देर क्यों कर रहे हो?" मैं बोली, "अब रहा नही जा रहा!"

दुबले लड़के ने मेरी सलवार खोल दी और मेरे पैरों से अलग कर दी. फिर मेरी चड्डी उतार दी जिससे मैं पूरी नंगी हो गयी.

मै अपने नंगे चूतड़ गुरु के पैंट पर रगड़ने लगी. "अरे, तुम अपना लौड़ा तो निकालो!" मैं बोली.

गुरु ने अपनी पैंट खोलकर लटका दी. उसने चड्डी नही पहनी थी. उसने मुझे सामने की तरफ़ अपने दोस्त के सहारे झुका दिया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत पर रगड़ने लगा.

"उफ़्फ़! और सताओ मत! पेल दो अन्दर!" मैं अधीर होकर बोली.

उसने मेरी कमर पकड़कर मेरी चूत मे अपना लन्ड घुसा दिया. लन्ड बहुत लंबा या मोटा नही था, पर मुझे बहुत ही सुखद अनुभूति हो रही थी. वह मेरे पीठ को अपने सीने से लगाकर मुझे चोदने लगा.
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