मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:18 PM,
#83
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैं अमोल के पास गयी और उसके हाथ को पकड़कर पलंग के पास ले आयी.

"अमोल, सब बातें खड़े-खड़े ही करेगा? आ जा बिस्तर पर लेटकर बातें करते हैं." मैने कहा.
"दीदी मेरे कपड़े दे." उसने कहा.
"अरे कपड़ों का क्या करेगा? रोज़ तो गुलाबी के साथ नंगा ही सोता है!" मैने कहा, "मै भी अपने कपड़े उतारकर ही सो*ऊंगी. तु एक काम कर. बत्ती बुझा दे और नाइट बल्ब जला दे."

अमोल ने बत्ती बुझा दी और नाइट बल्ब की हलकी नीली रोशनी कमरे मे छा गयी. फिर वह पलंग पर मेरे पास आकर बैठ गया.

"भाई, लेट जा इधर." मैने कहा तो अमोल मेरे बगल मे लेट गया और बोला, "पर दीदी, मुझे हाथ नही लगाना."
"क्यों रे? देख, मैं तो नंगा मर्द देखती हूँ तो खुद को रोक नही पाती हूँ. खासकर जब उसका ऐसा मोटा, मस्त लौड़ा हो." मैने कहा और उससे लिपट गयी. मेरी नंगी चूचियां उसके नंगे बदन से चिपक गयी.

अमोल ने कुछ नही कहा. बस गहरी सांसें लेने लगा. धुंधली रोशनी मे उसका लन्ड खड़ा होकर ठुमक रहा था.

मैने अमोल के नंगे सीने पर हाथ फेरते हुए कहा, "अमोल, अपनी दीदी को प्यार नही करेगा?"
"दीदी, मैं तेरा भाई हूँ!" अमोल ने कहा.
"तो क्या हुआ?" मैने पूछा और अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके खड़े लन्ड को पकड़ लिया. मुझ पर शराब का अच्छा नशा चढ़ चुका था और मुझे अमोल के साथ खिलवाड़ करने मे बहुत मज़ा आ रहा था.

"भाई है तो क्या तु मर्द नही है? और मैं बहन हूँ तो क्या औरत नही हूँ?" मैने पूछा, "मैं तो भई बहुत गरम हो चुकी हूँ - और कहते हैं ना, गीली चूत का कोई इमान-धरम नही होता है. और तेरा औज़ार जैसे खड़ा है...उससे तो लग रहा है तेरा इमान-धरम भी डांवा-डोल हो रहा है! आजा, भाई. मौका भी है और घर के सबकी अनुमति भी है. जी भर के प्यार कर अपनी दीदी को! लूट अपनी दीदी की जवानी को!"

अमोल चुप रहा तो मैने उसके निप्पलों को मुंह मे लेकर चूसना शुरु किया. एक हाथ से उसके गरम लन्ड को हिलाना जारी रखा.

मैने उसके कान को जीभ से चाटकर कहा, "क्यों भाई, अपने लन्ड पर दीदी का कोमल हाथ कैसा लग रहा है?"

अमोल भारी आवाज़ मे बोला, "ओह, दीदी!"

अचानक वह मेरी तरफ़ मुड़ा और मुझे पीठ के बल लिटाकर मेरे ऊपर टूट पड़ा. अपने होंठ मेरे होठों पर रखकर मुझे आवेग मे चूमने लगा. उसके हाथ मेरी नंगी चूचियों को मसलने लगे. उसने अपना एक पाँव मेरी जांघ पर चढ़ा दिया और उसका खड़ा लन्ड मेरी जांघ पर रगड़ खाने लगा.

"बहुत जोश मे आ गया, अमोल?" मैने छेड़कर कहा.
"दीदी, तु एक रंडी है." उसने भारी चुंबनों के बीच कहा, "तेरे और गुलाबी जैसी लड़की मैने कभी नही देखी."
"और हमारे जैसा मज़ा भी कोई और औरत नही दे सकती." मैने कहा.

"गुलाबी को तो देख लिया." अमोल बोला, "अब तुझे चोदकर देखुंगा तु कितना मज़ा देती है."
"हाँ, भाई! चोद अपनी दीदी को!" मैने भी उसके लन्ड को पकड़कर हिलाते हुए कहा, "बहुत प्यासी है तेरी दीदी...चोद डाल उसे अपने लन्ड से! आह!! और दबा मेरी चूचियों को...मसल दे अपनी रंडी दीदी की चूचियों को! आह!! भाई, तु नही जानता तेरी दीदी की इन चूचियों को...कितने मर्दों मे पिया है और दबाया है! आह!! उम्म!! चूस मेरी चूचियों को!"

अमोल मेरी चूचियों को बेरहमी से दबाने और चूसने लगा. मैं अपने ही छोटे भाई के साथ संभोग मे डूबी, मस्ती के सातवें आसमान पर थी. उसके मोटे लन्ड को पकड़कर मैं हिलाने लगी और उसके बड़े बड़े गोटियों को उंगलियों से छेड़ने लगी. न जाने कितनी मलाई थी उसके गोटियों मे. मैं पहले से गर्भवती नही होती तो अमोल का वीर्य चूत मे लेकर ज़रूर गर्भवती हो जाती.

अमोल और मैं कुछ देर एक दूसरे के नंगे जिस्मों से खेलते रहे.

जब मुझसे और नही रहा गया मैने कहा, "भाई, अब चोद मुझे. मेरी चूत मे अपना लन्ड पेल दे!"

अमोल उठा और उसने मेरी कमर पर से पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया. फिर मेरी पेटीकोट को बलपूर्वक खींचकर मेरे पाँव से अलग कर दिया. अब मैं नीचे से नंगी हो गई. ऊपर मैने सिर्फ़ ब्लाउज़ पहन रखी थी जो सामने से खुली हुई थी.

अमोल बहुत जोश मे था. वह मेरे पैरों के बीच बैठ गया और उसने मेरे जांघों को चौड़ा कर दिया. फिर अपना खड़ा लन्ड मेरी फैली हुई चूत के बीच रखकर सुपाड़े को रगड़ने लगा.

वीणा, तब मैं सोचने लगी, यह मेरे सगे छोटे भाई का लन्ड है. अब तक जो हुआ सो हुआ. पर अब वह मेरी चूत मे अपना लन्ड पेलने वाला है. भाई बहन के बीच यह सब बहुत गलत है. ऐसा अनाचार करने पर हम दोनो को ही नरक मे जाना पड़ेगा! पर उस वक्त मुझे शराब का भी बहुत नशा चढ़ा हुआ था. और अमोल जैसे सुन्दर नौजवान के साथ चुम्मा-चाटी करके मैं बहुत चुदासी हो गयी थी. अपने ही भाई से चुदवाने की कल्पना करके मैं बहुत उत्तेजित भी हो रही थी.

जैसा कि हमेशा होता है, आखिर चुदास की ही जीत हुई. मैं अमोल से विनती करके बोली, "भाई, और मत सता अपने दीदी को! पेल दे मेरी चूत मे अपना लन्ड!"

अमोल भारी आवाज़ मे बोला, "दीदी!" और एक जोरदार धक्के से अपना लन्ड लगभग पूरा मेरी चूत मे पेल दिया.

वह मेरे ऊपर लेटकर मुझे चूमने लगा. मैं भी उसके नंगे बदन से लिपटकर उसे चूमने लगी. उसके पीठ पर और बालों मे अपने हाथ फेरने लगी.

मेरी चूत मे अपने ही भाई का लन्ड घुसा हुआ था. ऐसे कुकर्म की कल्पना मैने नही की थी. अपनी कमर उचका उचका कर मे उसका लन्ड अपने चूत के अन्दर बाहर करने लगी. अमोल भी कमर उठाकर मुझे चोदने लगा.

"कैसा लग रहा है अपनी दीदी को चोदकर, अमोल?" मैने पूछा.
"बहुत मज़ा आ रहा है, दीदी!" अमोल मुझे चूमकर बोला.
"मेरी चूत ज़्यादा मस्त है कि गुलाबी की?" मैने पूछा.
"सच कहूं?"
"हाँ. मैं बुरा नही मानुंगी."
"तेरी चूत गुलाबी से ढीली है. लगता है तु बहुत ज़्यादा चुदी हुई है."
"हाँ रे. तेरी दीदी बहुत चुदी हुई है." मैने उसका ठाप लेते हुए कहा, "एक तो तेरे जीजाजी बहुत चोदू हैं. ऊपर से तुने तो देखा, घर के सब मर्दों के लन्ड कितने मोटे है. सबके लन्ड ले लेकर मेरी यह हालत हुई है. गुलाबी तो अभी बच्ची है. ज़्यादा चुदी नही है."

अमोल सुनकर और उत्तेजित हो गया और जोर जोर से मुझे चोदने लगा.

कुछ देर चोदकर उसने पूछा, "दीदी, तु शादी के पहले से ही...चुदी हुई थी क्या?"
"नही रे, पर चुदवाने का बहुत मन करता था!" मैने कहा, "आनंद भैया के कमरे से...स्नेहा भाभी की मस्ती की आवाज़ें आती थी...तो मेरी चुदास से हालत खराब हो जाती थी...चूत मे उंगली कर कर के ठंडी होती थी."

अमोल चुप होकर कुछ देर मुझे चोदता रहा, तो मैने पूछा, "क्या रे अमोल, तु स्नेहा भाभी के बारे मे सोचने लगा क्या?"
"नहीं, दीदी." अमोल बोला और अपनी कमर हिलाता रहा.

"वैसे स्नेहा भाभी है बहुत सुन्दर. कैसी गदरायी हुई है. और कितनी सुन्दर, भरी भरी चूचियां है उसकी!" मैने उसे छेड़कर कहा, "आनन्द भैया को बहुत मज़ा देती होगी."
"दीदी, छोड़ यह सब." अमोल मुझे काटकर बोला, "तु घर के बाहर भी चुदवाई है क्या?"
"हाँ रे."
"बाहर किस किससे चुदवाती है तु?"
"अब नही चुदवाती...मौका नही मिलता." मैने अपनी कमर उचकाते हुए कहा, "पर सोनपुर मे चार-पांच लोगों से बहुत चुदवाई थी."
"क्या! चार पांच से?" अमोल चौंक कर बोला, "दीदी, तु तो बिलकुल ही गिरी हुई है!"

"अरे मेरा कसुर नही था." मैने सफ़ाई दी, "वीणा और मैं सोनपुर मे मेला देखने गये थे...मेले से चार बदमाशों ने हम दोनो को उठा लिया...और जंगल मे ले जाकर हमारा बलात्कार किया था."
"बलात्कार!"
"हाँ. पर हमें बहुत मज़ा आया था...जबरदस्ती की चुदाई मे." मैने कहा, "वहीं से यह सब शुरु हुआ."
"क्या सब?"
"यही...चुदाई की लत." मैने कहा. "अगले दिन उन बदमाशों ने घर पर आकर...हमारी फिर जम के चुदाई की...सासुमाँ भी उस रात चुदी थी. हमे इतना मज़ा आया कि अब बिना चुदवाये एक दिन भी नही रहा जाता."

अमोल कुछ देर मुझे चोदता रहा, फिर बोला, "दीदी, और किससे चुदाई है तु?"
"सोनपुर मे जिसके घर रुके थे...विश्वनाथजी...मै उनसे भी बहुत चुदवाती थी." मैने अमोल का ठाप लेते हुए कहा, "9-10 इंच का लौड़ा था उनका...उफ़्फ़! वीणा और मैं तो दिवाने थे उनके लन्ड के!"

"दीदी, यह वीणा कौन है?" अमोल ने पूछा.
"तु उसे नही जानता...रिश्ते मे मेरी ननद लगती है." मैने कहा, "तेरे जीजाजी की बुआ जो रतनपुर मे रहती है...उनकी बड़ी बेटी है."
"शादी-शुदा है?"
"नही, अभी शादी नही हुई है." मैने कहा, "क्यों, तुझे उससे शादी करनी है क्या?"
"नही तो." अमोल बोला, "मैने तो उसे देखा भी नही है."
"तुने वीणा को देखा होगा...मेरी शादी मे आयी थी." मैने अमोल का ठाप खाते हुए कहा, "लंबी, गोरी, दुबले बदन की लड़की है...बड़ी, बड़ी, काली आंखें हैं...उठी हुई कसी कसी चूचियां हैं...बहुत ही सुन्दर लड़की है...हर कोई मर्द नज़र भर भर के देखता है उसे."
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