RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
"हाय राम! और मैं मस्ती मे जाने क्या अनाप-शनाप बक रही थी! मैने कहा मैं उससे ही नही अपने पिताजी से चुदवा सकती हूँ!!" मैने कहा, "हाय, क्या सोच रहा होगा वह अपनी बहन के बारे मे! मुझे कितनी घिनौनी औरत समझ रहा होगा! एक कोठे की रंडी से भी गिरा हुआ समझ रहा होगा!"
"कुछ नही सोच रहा है वह, मीना. अमोल काफ़ी चोदू किसम का लड़का है. मौका मिले तो तुम्हे भी चोद देगा." मेरे वह बोले, "हमारी तो योजना ही है कि तुम एक दिन अपने भाई से चुदवाओगी. फिर इतनी परेशान क्यों हो रही हो? तुम्हे अमोल को वीणा के लिया तैयार करना है कि नही?"
मै चुप हो गई. हम चारों घर की तरफ़ चल पड़े.
अमोल कुछ दूर खड़ा था. मुझे देखकर वह सर झुकाकर खड़ा रहा. मैं भी उससे नज़रें नही मिला पा रही थी. हम दोनो ही कुछ नही बोले. अब बोलने को बचा भी क्या था! हम दोनो ने एक दूसरे को हवस की पूजा करते हुए देख लिया था. लाज शरम का पर्दा दोनो के आंखों से उठ चुका था.
हम सब साथ साथ खेतों मे से होते हुए घर की तरफ़ चलने लगे.
अमोल कनखियों से मेरी चूचियों को देख रहा था और पकड़े जाने पर नज़रें नीचे कर ले रहा था. वीणा, तभी मैं समझ गयी. यह लड़का अब अपनी प्यारी दीदी को फिर कभी इज़्ज़त की नज़रों से नही देख पायेगा. उसे मुझमे अपनी बहन नही एक चुदक्कड़ छिनाल दिखाई देगी. उसकी आंखों के सामने बस मेरा नंगा जवान जिस्म ही तैरेगा जो गुलाबी की चूत से उसके वीर्य को चाट का खा रही थी.
और मैं भी अब कभी उसे अपने भोले-भाले छोटे भाई की तरह नही देख पाऊंगी. मुझे उसमे एक कामुक और चोदू मर्द दिखाई देगा. मेरी आंखों के सामने उसका कमोत्तेजक बलिष्ठ नंगी गांड तैरेगी जिसे हिला हिलाकर वह गुलाबी को चोद रहा था. मेरी नज़र बार-बार उसके पैंट की तरफ़ जायेगी जिसमे उसका मोटा लन्ड छुपा होगा.
एक ही दिन मे हम दोनो के बीच भाई-बहन का रिश्ता हमेशा के लिये बर्बाद हो गया था. सोचकर मुझे दुख हुआ पर एक अजीब से रोमांच से मेरी चूत कुलबुलाने भी लगी.
उस रात से सब की मौन सहमति से अमोल गुलाबी को लेकर सोने लगा. रात के खाने का बाद गुलाबी एक शराब की बोतल लेकर उसके कमरे मे चली जाती थी. फिर शराब पीकर दोनो देर रात तक पति-पत्नी की तरह चुदाई करते थे. सुबह अमोल देर से उठने लगा जिससे हम सबको काफ़ी सुविधा हो गयी. तुम्हारी मामीजी फिर से अपने बड़े बेटे के साथ सोने लगी और उससे चुदवाने लगी. मैं कभी ससुरजी, तो कभी किशन, तो कभी रामु के बिस्तर मे सोती थी और उनसे चुदवाती थी. जब तक अमोल उठता था तब तक हम सब उठकर तैयार भी हो जाते थे.
अमोल और मेरे बीच बातचीत लगभग बंद ही हो चुकी थी. हम दोनो को एक दूसरे की सच्चाई मालूम थी पर संकोच के मारे हम दोनो ही एक दूसरे से नज़रें नही मिला पाते थे.
एक दिन सासुमाँ बोली, "बहु, तुम दोनो भाई-बहन के झिझक के चलते मेरी पूरी योजना धरी की धरी रह गयी है. और उधर वीणा बेचारी का पेट तो फुलने लगा होगा."
"पर मैं क्या करुं, माँ?" मैने लाचारी जताकर कहा.
"अमोल की झिझक दूर कर! उसे खुलने का मौका दे!" सासुमाँ बोली, "उसे जता कि हमारे घर मे नौकरानी को चोदना एक आम बात है."
सासुमाँ की हिदायत के मुताबिक सुबह मैं अमोल के कमरे मे चाय देने जाने लगी. किशन ने पहले ही उसके कमरे की छिटकनी खराब कर दी थी जिससे वह दरवाज़े को अन्दर से बंद ना कर सके.
अकसर अन्दर जाकर देखती थी अमोल और गुलाबी शराब पीकर, एक दूसरे से लिपटे नंग-धड़ंग पड़े है. अपने भाई के नंगे जिस्म और उसके मुर्झाये लन्ड को देखकर मेरी चूत मे पानी आने लगता था. जी करता था उसके लन्ड को मुंह मे लेकर चूसने लगूं. मुश्किल से खुद को रोक पाती थी.
मैं गुलाबी को हिलाकर जगाती थी, "गुलाबी! बेहया, उठकर कपड़े पहन! तुझे बोला था ना रात को इतनी शराब मत पिया कर? सब लोग उठ गये हैं और तु यहाँ चूत फैलाये पड़ी है!"
मेरी आवाज़ सुनकर अमोल उठकर जल्दी से अपने नंगेपन को चादर से ढक लेता था. मैं उसे यूं ही बोलती जैसे उसे नौकरानी के साथ नंगा सोते देखना कोई बड़ी बात नही है, "अमोल, चाय पीकर तैयार हो जा. सब लोग नाश्ता भी कर चुके हैं."
जल्दी ही अमोल की झिझक कम हो गयी और वह मुझसे यहाँ वहाँ की बातें भी करने लगा. पर बात करते समय उसकी नज़र हमेशा मेरी चूचियों पर ही टिकी रहती थी.
एक दिन मैं सुबह अमोल के कमरे मे चाय देने घुसी तो देखी वह सुबह-सुबह गुलाबी को चोद रहा था. गुलाबी बिस्तर पर पाँव फैलाये पड़ी थी और अमोल उस पर चढ़कर उसकी चूत मे अपना लन्ड पेल रहा था. उसका गोरा, मोटा लन्ड गुलाबी की सांवली चूत के अन्दर बाहर हो रहा था. यह अश्लील नज़ारा देखकर मैं चुदास से कांप उठी.
"अरे तुम दोनो सुबह-सुबह फिर शुरु हो गये! रात भर करके भी प्यास नही बुझी क्या?" मैने हंसकर कहा.
मेरी आवाज़ सुनकर अमोल झट से उछला और गुलाबी की चूत से अपना लन्ड निकलकर चादर के नीचे हो गया. उसका लन्ड चादर के अन्दर तंबू बनाये खड़ा रहा. मैने मुस्कुराकर उसके चादर मे ठुमकते लन्ड को देखा और चाय की कप को मेज पर रख दिया.
मैने कहा, "अमोल, तुम दोनो का हो जाये तो चाय पी लेना. मैं इधर मेज पर रख दी हूँ. और देर मत करना! गुलाबी को रसोई मे बहुत काम है."
अमोल मुझे हवस भरी नज़रों से देख रहा था. उसकी सांसें फूली हुई थी और आंखें वासना से लाल थी. मुझे लगा कहीं मुझे पटककर चोद ही न दे. हालांकि मैं पिछले रात रामु से खूब चुदी थी, अपने भाई के खड़े लन्ड को देखकर मेरी चूत फिर से पनिया गयी थी.
अमोल मेरी चूचियों पर आंखें गाड़कर बोला, "दीदी, तु रोज़ सुबह-सुबह चाय देने क्यों आ जाती है?"
"अरे नही आऊंगी तो तुम दोनो उठोगे क्या? सारा दिन बिस्तर मे लगे रहोगे." मैने कहा.
अमोल मुझे चुपचाप देखता रहा.
मुझे एक शरारत सूझी. मैने अचानक उसके शरीर के ऊपर से चादर खींच लिया और समेटने लगी. उसका नंगा जवान बदन खुलकर सामने आ गया.
"दीदी! यह क्या कर रही है!" अमोल चिल्लाया और अपने पाँव मोड़ कर अपने खड़े लन्ड को छुपाने लगा.
"बिस्तर जंचा रही हूँ, और क्या?" मैने उसके खड़े लन्ड को देखते हुए कहा, "पुरा दिन घर ऐसे ही पड़ा रहेगा क्या? गुलाबी, उठ और कपड़े पहन!"
गुलाबी बेशर्मी से अमोल के नंगे बदन से लिपट गयी और उसके खड़े लन्ड को मुट्ठी मे लेकर बोली, "भाभी, अभी तो हमरी चुदास ही नही मिटी है!"
"तेरी बाकी की चुदास अमोल भैया रात को मिटा देंगे." मैने कहा, "छिनाल, कभी कभी अपने पति के साथ भी एक रात सो लिया कर!"
"अपने मरद से चुदाके हमको उतना मजा नही आता." गुलाबी बोली और अमोल ने एक निप्पलों को चूसने लगी और एक हाथ से उसके लन्ड को हिलाने लगी.
अमोल एक तरफ़ शरम से पानी-पानी हो रहा था और दूसरी तरफ़ अपनी दीदी के सामने ऐसा कामुक काम करके उत्तेजित भी हो रहा था.
"बस, बातें बहुत बना ली." मैने कहा, "अमोल, चाय ठंडी हो रही है, भाई! तुझे गुलाबी के साथ कुछ करना है तो कर ले. पर उसे जल्दी से छोड़ दे. उधर सासुमाँ पूछ रही है कि गुलाबी कहाँ है."
बोलकर अपने हैरान भाई को गुलाबी के साथ चुदाई करने की अनुमति देकर बाहर आ गयी.
अपने पीछे दरवाज़ा बंद करते ही मैं एक छेद से अन्दर देखने लगी. मेरे निकलते ही अमोल गुलाबी पर चढ़ गया और उसे जोर जोर से चोदने लगा था.
"का अमोल भैया, बहुत जोस मे आ गये आप?" गुलाबी उसका लन्ड अपनी चूत मे लेती हुई बोली, "अपनी दीदी को देखकर गरम हो गये का?"
"चुप कर लड़की!" अमोल बोला और जोरों का ठाप लगाने लगा.
"आप जैसे अपना लौड़ा खड़ा कर रखे थे, हम तो सोचे आप भाभी को पटककर चोद ही देंगे." गुलाबी हंसकर बोली.
"तुझे कहा ना चुप कर!" अमोल बोला और गुलाबी को चोदना जारी रखा.
दोनो 10-15 मिनट और चुदाई करते रहे. गुलाबी गरम होकर झड़ने के करीब आ चुकी थी और अमोल भी. अमोल गुलाबी के ऊपर लेटकर उसके होठों को चूसते हुए अपनी कमर चला रहा था.
अचानक गुलाबी बदमाशी कर के बोली, "अमोल...चोद मुझे अच्छे से, भाई! आह!! अपनी दीदी को चोद चोदकर ठंडी कर! उम्म!! बहुत गरम हो गयी है तेरी दीदी! उफ़्फ़!!"
अमोल ने सुना पर उसने कोई प्रतिकिर्या नही की. चुपचाप गुलाबी को हुमच हुमचकर चोदता रहा.
10-15 ठापों के बाद वह अचानक जोर से कराह उठा और झड़ने लगा. गुलाबी के कंधे मे अपना सर छुपाकर बोला, "दीदी! मैं झड़ रहा हूँ, दीदी!"
गुलाबी भी झड़ रही थी. उसने जवाब दिया, "हाँ भाई...अपनी रंडी दीदी की चूत मे...अपना पानी भर दे...आह!! उस दिन मैने गुलाबी की चूत से....तेरी मलाई खायी थी ना...आज मुझे चोदकर मेरा गर्भ बना दे, भाई! ओह!! उम्म!! मैं झड़ रही हूँ, अमोल! तुने अपनी दीदी को चोदकर झड़ा दिया है रे! आह!!"
अमोल झड़कर चुपचाप गुलाबी के नंगे बदन पर थक कर पड़ा रहा.
गुलाबी और अमोल की बातों से मैं बहुत हैरान भी हुई और उत्तेजित भी. यानी मेरा भाई भी मुझे चोदने के लिये बेकरार है. सासुमाँ का काम तो समझो बन ही गया है.
मैने बाद मे तुम्हारे भैया को यह सब बताया तो वह बोले, "बहुत अच्छे! मीना, बस अब एक दो काम और बचे हैं. अमोल तुम्हे चोदना चाहता है. उसने तुम्हे गुलाबी की चूत चाटते हुए देखा है. पर किसी और मर्द से चुदवाते नही देखा है. तुम कल रामु से चुदवाना, तब मैं उसे लेकर आऊंगा. वह तुम्हे घर के नौकर से चुदवाते देखेगा तो तुम्हारे बारे मे उसका बचा कुचा भ्रम भी दूर हो जायेगा."
"हाय, मुझे तो बहुत शरम आयेगी जी!" मैने कहा.
"अरे तुम्हे बहुत मज़ा आयेगा अपने भाई को दिखाकर चुदवाने मे." मेरे वह बोले, "शरम आये तो थोड़ी शराब पी लेना."
"ठीक है. मुझे बाज़ार से एक बोतल ला के देना." मैने कहा, "और उसके बाद क्या होगा?"
"उसके बाद कुछ करने की ज़रूरत नही पड़नी चाहिये." तुम्हारे भैया बोले, "या तो अमोल खुद ही तुम्हे पकड़कर चोद देगा. या फिर तुम उसे पटाकर चुदवा लेना. फिर घर की सारी पोल उसके सामने खोल देंगे. माँ तो अमोल से चुदवाने के लिये पागल हो रही है."
अगले दिन मैं रसोई मे सासुमाँ और गुलाबी के साथ काम कर रही थी जब तुम्हारे बलराम भैया वहाँ एक शराब की बोतल लेकर आये.
"मीना, चलो अब तुम्हारा नाटक शुरु होना है." वह बोले.
"कैसा नाटक, बड़े भैया?" गुलाबी ने उत्सुक होकर पूछा.
"अभी अमोल के सामने तेरी भाभी चुदेगी." सासुमाँ बोली, "जा बहु, अच्छे से नज़ारा करा अपने भाई को अपनी चुदती हुई चूत का."
"हाँ, मीना!" मेरे वह शरारत से बोले, "जल्दी से पटाओ अमोल को. इधर माँ कबसे आस लगाये बैठी है उसका लन्ड लेने के लिये!"
"चुप कर, मादरचोद!" सासुमाँ डांटकर बोली.
सुनकर गुलाबी खिलखिला कर हंस दी.
मै उठी और अपनी साड़ी ठीक करने लगी. मेरे अन्दर उत्तेजना और बेचैनी उफ़ान लेने लगी थी. रात को मैं ससुरजी के साथ सोई थी, पर मेरी चूत तुरंत गीली हो गयी.
"मुझे क्या करना होगा?" मैने पूछा.
"तुम्हे पिताजी के कमरे मे जाकर उनसे चुदवाना है." मेरे वह बोले, "मै किशन और रामु को भी उधर भेजता हूँ. अमोल और मैं बाहर खड़े होकर खिड़की से देखेंगे."
"हाय, यह क्या कह रहे हो जी?" मैने चौंकर कहा, "कल तो तुम कह रहे थे सिर्फ़ रामु से चुदवाना है? आज तुम बाबूजी और किशन से भी चुदवाने को कह रहे हो!"
"तो क्या हुआ? तुम एक साथ तीनो को नही सम्भाल सकती क्या?" मेरे वह बोले, "गुलाबी से पूछो कितना मज़ा ली थी उस दिन तीन तीन लन्ड लेकर."
"अरे सम्भाल क्यों नही सकेगी?" सासुमाँ बोली, "बहु सोनपुर मे एक साथ छह छह लन्ड सम्भाल चुकी है. बहु, क्या चिंता है तुझे?"
"माँ, मेरा भाई मुझे अपने देवर और ससुर से चुदवाते देखेगा तो क्या सोचेगा?" मैने कहा, "हमारे परिवार के बारे मे क्या सोचेगा?"
"वही सोचेगा जो हम चाहते हैं, बहु! यही कि तु एक छटी हुई चुदैल है और हमारा एक बहुत ही चुदक्कड़ परिवार है." सासुमाँ बोली, "बहु, अब समय आ गया है सारे राज़ों पर से पर्दा उठाने का."
उत्तेजना से मेरा शरीर कांप रहा था पर मुझे बहुत डर भी लग रहा था.
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