मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:15 PM,
#68
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
उसके बाद 4-5 दिन तक मीना भाभी की कोई चिट्ठी नही आयी. मैने एक चिट्ठी भेजी भी, पर उसका भी कोई जवाब नही आया.

मेरा मासिक भी शुरु नही हुआ और मुझे पूरा यकीन हो गया कि मेरा गर्भ ठहर गया है. मैं बहुत ही डर गयी.

कुंवारी उम्र मे हवस के बस मे होकर मैने अपना मुंह काला कर लिया था. अब मेरे पास दो ही रास्ते बचे थे. कुएं मे कूदकर जान दे दूं - पर मुझे मरने से बहुत डर लगता था. दूसरे घर से भाग जाऊं. पर मुझे पता था जो लड़कियाँ गर्भवती होकर घर से भाग जाती है उनको बस रंडीखाने मे ही जगह मिलती है. हालांकि मुझे यह सोचकर बहुत चुदास चढ़ती थी कि रंडीखाने मे मुझे दिन रात नये नये मर्दों से चुदवाने को मिलेगा, मुझे यह रास्ता भी ठीक नही लगता था. मैं अपने माँ-बाप को कोई चोट नही पहुंचाना चाहती थी.

मै बहुत ही उदास हो गयी और कभी कभी अकेले मे रोती थी. पर फिर सोचती थी न जाने मीना भाभी और मामाजी क्या योजना बना रहे हैं मेरे लिये.
एक दिन सुबह मेरे पिताजी मेरी माँ को बोले, "नीतु की माँ! सुनो एक अच्छी खबर है."
"क्या हुआ जी, क्यों चिल्ला रहे हो?" मेरी माँ आंचल मे हाथ पोछती हुई रसोई से निकली.
"गिरिधर की चिट्ठी आयी है." मेरे पिताजी बोले और जेब से एक चिट्ठी निकालने लगे.

मामाजी की चिट्ठी? सुनकर ही मेरे कान खड़े हो गये. मैं भागकर बैठक के दरवाज़े के पास गयी और पिताजी और माँ की बातें सुनने लगी.

"क्या लिखा है मेरे भाई ने?" माँ ने पूछा.
"तुम्हारा भाई लिखता है...प्रणाम जीजाजी....कुशल मंगल है....दीदी कैसी हैं...हाँ, यह सुनो," पिताजी चिट्ठी पढ़ने लगे, "वीणा बिटिया के लिये एक बहुत अच्छा रिश्ता मिला है. मेरे समधी का एक बहुत सुशील, सुन्दर बेटा है. पढ़ा-लिखा है. व्यापार मे पैसे भी अच्छे कमा लेता है. उम्र कुछ कम है - अभी 22 का हुआ है. मेरे यहाँ आकर कुछ दिन ठहरा हुआ था तो मुझे लगा अपनी वीणा बिटिया के साथ बहुत जंचेगा. आप और दीदी राज़ी हों तो अपने समधी-समधन को आपके यहाँ भेज दूं वीणा को देखने के लिये. वैसे मैने वीणा की तस्वीर अपने समधीजी को भेज दी है. लड़के ने तो वीणा की तस्वीर को बहुत पसंद भी की है. और क्यों न करे! अपनी वीणा बिटिया है भी तो बहुत ही सुन्दर....अमोल की एक तस्वीर भेज रहा हूँ....प्रणाम...वगैरह वगैरह."

"तो बोलो नीतु की माँ, क्या खयाल है तुम्हारा?" पिताजी ने पूछा.
"दिखाओ तो लड़का कैसा है देखने मे." मेरी माँ ने कहा.

पिताजी ने उन्हे तस्वीर दिखाई तो वह बोली, "लड़का देखने मे तो बहुत सुन्दर है. मेरे भाई ने रिश्ता पसंद किया है तो देख समझकर ही किया होगा. पर हमारी वीणा भी तो 22 की है. वर-वधु एक उम्र के हो मुझे ठीक नही लगता."
"यह बात तो है, पर गिरिधर के समधी बहुत पैसे वाले हैं. बहुत बड़ा करोबार है उनका. शहर मे रहते हैं. अपनी वीणा बहुत ऐश से रह सकेगी." पिताजी बोले.
"तुम जो ठीक समझो करो." माँ बोली, "मेरे भाई को लिख दो कि तस्वीर तो अच्छी है पर लड़के को भी यहाँ भेज दे. हम भी देखें लड़का हमारी बिटिया के लायक है या नही. वीणा अपने रूप का बहुत घमंड करती है. आज तक तो उसे कोई लड़का पसंद आया नही है."

माँ-पिताजी की बातें सुनकर मैं खुशी से उछल पड़ी. तो मीना भाभी ने मेरे लिये यह योजना बनाई है! अपने ही छोटे भाई से मेरी शादी करवाना चाहती है!

मेरे दिल से एक बोझ हलका हो गया. अगर अमोल से मेरी शादी हो गयी तो मुझे मेरे पेट मे पल रहे नाजायज़ बच्चे का एक बाप मिल जायेगा.

पर मैं यह भी सोचने लगी कि मीना भाभी जान बुझकर अपने भाई के साथ यह धोखा क्यों कर रही है? एक बदचलन, गर्भवती लड़की से उसका रिश्ता क्यों बांध रही है? मुझे कुछ मे समझ नही आया.

मै खड़ी खड़ी यह सब सोच रही थी कि पीछे से मेरी छोटी बहन नीतु आ गयी और अचानक जोर से बोली, "दीदी! तु छुप छुपके क्या सुन रही है रे!" और उसने मुझे धक्का देकर बैठक मे धकेल दिया.

मुझे देखकर मेरी माँ बोली, "अरे वीणा, तु यहीं है? देख तो यह तस्वीर तुझे पसंद है कि नही?"

मैने अमोल की तस्वीर देखी. वह एक बहुत ही सुन्दर नौजवान लग रहा था. सुंदर शरारती आंखें थी. चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ नही था. उसने एक रंगीन कमीज पहन रखी थी जिसके ऊपर का बटन खुला हुआ था. गले मे सोने की चेन और उसके बलिष्ठ छाती की झलक मिल रही थी. मुझे याद आया कि मैने शायद उसे बलराम भैया की शादी मे देखा था. उसके बाद मैं उससे कभी मिली नही थी. उसे भी मेरी सूरत याद नही होगी.

"अच्छी है." मैने कहा.
"चल तुझे कोई अच्छा तो लगा!" मेरी माँ बोली, "तुझे यह लड़का और उसका परिवार देखने आने वाले हैं. देख तु और नखरा मत करना. अच्छे अच्छे रिश्ते हाथ से चले गये हैं तेरे नखरों के चलते. तेरे मामाजी को लड़का और उनका परिवार बहुत पसंद है. तु इन लोगों को पसंद आ जाये तो तेरी शादी यहीं कर देंगे."
"ठीक है, माँ." मैने चुपचाप कहा.

मेरे पिताजी मुझे संदेह की नज़रों से देखने लगे. वह बोले, "वीणा, सब ठीक तो है ना? तु तो शादी के लिये कभी राज़ी ही नही होती!"

मैं झेंपकर वहाँ से भाग गयी. क्या कहती? कि मेरे पेट मे न जाने किसका बच्चा है और इस वक्त मुझे किसी लंगड़े-बहरे से भी शादी करना मंज़ूर है?


अगले दिन शाम को अमोल और उसके माँ-बाप हमारे घर आये.

मै एक सुन्दर लहंगे मे सज-धजकर अपने कमरे मे बैठी थी. नीतु नीचे से खबर लायी कि अमोल अपनी तस्वीर से भी ज़्यादा सुन्दर है. "एक दम आमिर खान लगता है, दीदी! ऊंचा कद, गोरा गोरा चेहरा, गठा हुआ शरीर! तु तो उसके सामने बिलकुल फीकी लगेगी."
"चुप कर, मुंहफट!" मैने कहा.
"तो खुद ही देख ले जाकर. माँ ने तुझे नीचे बुलाया है." नीतु बोली.

सुनकर मेरा दिल धड़क उठा.

नीतु का हाथ पकड़कर मैं सीड़ियों से नीचे उतरी और बैठक मे गयी. वहाँ से मेरी माँ मेरा हाथ पकड़कर अन्दर ले गयी.

मैने सोफ़े पर बैठे अमोल के माँ और पिताजी के चरण छुये. फिर मैं उनके सामने एक सोफ़े पर बैठ गयी.

अमोल सोफ़े के एक कोने मे बैठा हुआ था. देखने मे सचमुच बहुत सुन्दर था, पर उम्र कम होने का कारण मासूम सा लग रहा था.

अमोल की माँ ने मेरा सबसे परिचय करवाया, "बेटी, यह मेरा बेटा अमोल है. इसकी फोटो तो तुम देख ही चुकी हो."

अमोल ने मुझे नमस्ते किया. वह तो आंखे भर भर के मुझे देखे जा रहा था. मैने शरमा के अपनी आंखें झुका ली.

"...यह मेरा बड़ा बेटा आनंद है...." अमोल की माँ ने उसके पास बैठे एक बहुत सुन्दर आदमी की तरफ़ इशारा किया. देखने मे वह अमोल से बहुत अलग दिखता था. कद अमोल से थोड़ा ऊंचा और शरीर थोड़ा भारी. रंग भी सांवला था. चेहरे पर उसकी सुन्दर मूंछें थी. उसकी उम्र अमोल से काफ़ी ज़्यादा लग रही थी. न जाने क्यों मुझे लगा मैं उससे पहले कहीं मिल चुकी हूं.

"...और यह मेरी बहु स्नेहा है, आनंद की पत्नी." अमोल की माँ ने कहा.
स्नेहा एक सुन्दर हंसमुख औरत थी. थोड़ी गदरा गयी थी, पर शायद उसकी उम्र ज़्यादा नही थी. मुझे देखकर वह मुसकुराई तो उसका चेहरा खिल उठा.

उन लोगों ने मुझसे से कुछ बातचीत की फिर मैं अपने कमरे मे चली आयी.


रात को खाने की मेज पर पिताजी ने पूछा, "तो बता वीणा, कैसा लगा तुझे अमोल?"
"आप लोगों को कैसा लगा?" मैने कहा.
"मुझे तो लड़का बहुत पसंद आया." मेरी माँ ने कहा.
"मुझे भी जीजाजी बहुत पसंद आये!" नीतु ने चहक के कहा.
"माँ तुम इसे कुछ कहती क्यों नही!" मैने ने गुस्से से बोला, "कुछ भी बोलती रहती है."

"भई मुझे तो अमोल बहुत पसंद आया है. और उन्हे भी वीणा बहुत पसंद आयी है." मेरे पिताजी खाना खाते हुए बोले, "कह रहे थे गिरिधर ने वीणा की जितनी तारीफ़ की थी कम थी. दहेज की उन्हे कोई लालच नही है. अब अगर वीणा को आपत्ती न हो तो मैं बात आगे बढ़ाऊं?"
"देखो जी, मुझे तो लड़का पसंद है. वीणा को आपत्ती हो तो हो. पढ़ लिखकर खुद को शहर की मेम समझने लगी है." मेरी माँ ने कहा, "अब लड़की के लिये वर क्या उससे पूछ पूछकर पसंद करेंगे?"
"अरी भाग्यवान, उसकी ज़िन्दगी का सवाल है. उससे पूछ तो लेते हैं!" पिताजी बोले.

"मुझे लड़का पसंद है." मैने कहा, "आप लोग मुझे लेकर झगड़ा मत कीजिये."
"फिर ठीक है, भई." पिताजी बोले, "कल मैं उनको हमारा फ़ैसला बता देता हूँ. वह लोग रतनपुर मे एक होटल मे रुके हैं. सुबह ही किसी के हाथों खबर भिजवाता हूँ."


अगले दिन शाम की तरफ़ अमोल और उसके पिताजी हमारे घर आये. उनका बहुत स्वागत सत्कार किया गया. मैं अपने कमरे मे थी जब नीतु मुझे बुलाने आयी.

अमोल के पिताजी चाय पी रहे थे. मुझे देखते ही बोले, "आओ बेटी, आओ! भई तुम लोग नयी पीढ़ी के पढ़े-लिखे नौजवान हो. मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूँ तुम्हे अमोल पसंद है कि नही."
"जी, पसंद हैं." मैने सर झुकाकर जवाब दिया.
"बहुत अच्छे! बहुत अच्छे! अमोल को भी तुम बहुत पसंद आयी हो." वह बोले, "बेटी, अमोल को बहुत मन है तुम लोगों का गाँव देखने का. अगर तुम्हारे माँ और पिताजी को आपत्ति न हो तो तुम अमोल को ज़रा अपना गाँव दिखा लाओ."
"नही भाईसाहब, हमे क्या आपत्ती होगी!" मेरी माँ झट से बोली, "अब हमारा ज़माना थोड़े ही रहा है!"

वैसे तो मेरी माँ मुझे गाँव के किसी लड़के की तरफ़ देखने भी नही देती थी, पर यहाँ शहर का मालदार मुर्गा फंसा था. उनकी बात तो माननी ही थी!

"और फिर अब वीणा की शादी शहर मे होने वाली है..." मेरे पिताजी बोले, "...उसे अब शहर के कायदे सीखने चाहिये."
"हाँ हाँ, क्यों नही!" मेरी माँ बनावटी उदारता दिखाकर बोली, "भाईसाहब, वीणा अमोल को गाँव दिखा लायेगी. जा बेटी, पर जल्दी आ जाना."

मै और अमोल घर के बाहर निकल आये और कुछ देर सड़क पर चलते रहे. आते जाते लोग अर्थ भरी नज़रों से हमे देख रहे थे जिससे मुझे बहुत झेंप हो रही थी. यह मेहसाना गाँव था. यहाँ लड़कियाँ किसी पराये आदमी के साथ बाहर नही निकलती थी.

अमोल ने मुझे पूछा, "वीणा जी, आपके गाँव मे देखने लायक क्या है?"
"ज़्यादा कुछ तो नही है." मैने कहा, "पर उस तरफ़ हमारी खेती है."
"तो फिर आप लोगों के खेत ही देखते हैं." अमोल ने कहा. शायद वह भी लोगों की नज़रों से दूर हटना चाहता था.

हम लोग हमारे खेतों के पास पहुंचे तो अमोल फ़सलों को देखकर बहुत खुश हुआ. यहाँ एक दम सुनसान था. यहाँ हमे देखकर गाँव भर मे टिप्पणी करने वाला भी कोई नही था.

अमोल कुछ देर हवा मे लहराती फ़सलों को देखता रहा, फिर मुझे बोला, "वीणा जी, मीना दीदी ने आपके लिये मेरे हाथों एक ख़त भेजा है. मैं कल आपको दे नही सका."

मैने हैरान होकर उससे चिट्ठी ली और पढ़ने लगी.

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