RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
प्रिय ननद वीणा,
तुम्हारा ख़त मिला. हमारे घर पर सब अच्छे से हैं. एक-दो दिन से मैने कोई ख़त नही भेजी है क्योंकि बताने को ज़्यादा कुछ नही है. मुझे याद है कि मुझे तुम्हारी चूत के लिये कुछ इंतज़ाम करना है. थोड़ा सब्र रखो, मेरी जान! मेरी योजना मे देर है, अंधेर नही है. तुम्हारे मामाजी भी तुम्हारे लिये सोच रहे हैं. हम जल्दी ही तुम्हे कोई अच्छी खबर देने की कोशिश करेंगे.
हमारी दावत और सामुहिक चुदाई के बाद मेरी उम्मीद थी कि अब हम खुलकर चोदा-चोदी कर सकेंगे. पर ऐसा नही हो सका. क्योंकि अगले ही दिन मेरे पिताजी का ख़त आया कि वह हाज़िपुर आ रहे हैं - माँ और मेरे छोटे भाई अमोल को लेकर.
अमोल को तुम ने मेरी शादी मे देखा होगा, पर तुम्हे शायद याद नही है. मुझसे एक ही साल का छोटा है - अब 22 का हो गया है. पढ़ाई-लिखाई खत्म करके अब मेरे पिताजी और मेरे आनंद भैया के साथ व्यापार चलाता है. मेरी माँ उसकी जल्दी शादी करके घर पर बहु लाना चाहती है. इसलिये तीनो हाज़िपुर आ रहे थे एक रिश्ता देखने के लिये.
मैं बहुत दिनो बाद अपने माँ, बाप, और छोटे भाई से मिल रही थी. मुझे बहुत खुशी हो रही थी.
तुम्हारे मामा और मामीजी अपने समधी और समधन से मिलकर बहुत खुश हुए और मेरी तारीफ़ों के पुल बांधने लगे. सुनकर मेरे माँ और पिताजी गर्व से फूले नही समा रहे थे. वीणा, अगर उन्हे पता होता कि मैं इतनी अच्छी बहु ससुरजी से चुदवा-चुदवा कर बनी हूँ तो वह न जाने क्या कर बैठते!
मेरी माँ कह रही थी मैं कितनी तंदुरुस्त और खुश लग रही हूँ ससुराल मे. और मैं सोच रही थी, जिस औरत को चार-चार लन्ड और उनकी मलाई पीनो को मिल रही हो वह तंदुरुस्त और खुश क्यों नही रहेगी!
खैर, दोपहर के खाने के बाद माँ, पिताजी, और अमोल रिश्ता देखने के लिये हाज़िपुर मे एक दूसरे गाँव के लिये रवाना हो गये.
वह लोग शाम को लौटे. माँ और पिताजी को लड़की बहुत पसंद आयी थी, और वह बात को आगे बढ़ाना चाहते थे.
पर आमोल आना-कानी कर रहा था. "दीदी, वो लड़की अभी 19 साल की है और पूजा-पाठ मे ऐसी डूबी रहती है जैसे कोई जोगन हो. और बस दसवीं तक पढ़ी है. माँ को पता नही ऐसा क्या पसंद आया उसमे! लड़की देखने मे ठीक-ठाक है, पर हमे घर के लिये बहु चाहिये कोई पुजारन नही! मुझे नही शादी करनी ऐसी लड़की से!"
"घर की बात छोड़." मैने कहा, "तुझे कैसी लड़की चाहिये, यह बता."
"पता नही, दीदी..." अमोल सोचकर बोला, "देखने मे अच्छी हो. पड़ी लिखी हो. खुले विचारों की हो - मतलब थोड़ी आधुनिक हो. यह लड़की तो एक दम गंवार लग रही थी."
"मतलब तुझे अपनी स्नेहा भाभी जैसी बीवी चाहिये." मैने मुस्कुराकर कहा. स्नेहा भाभी मेरे आनंद भैया की पत्नी है. वह पढ़ी-लिखी और बहुत हंसमुख औरत है, जो मेरी माँ को पसंद नही है.
"तेरे जैसी होने पर भी चलेगी!" अमोल हंसकर बोला.
"चुप, बदमाश!" मैने कहा, "मै पिताजी से बात करती हूँ. माँ को तो घर मे बहु नही नौकरानी चाहिये. इसलिये ऐसी गंवारन को पसंद कर रही है. पर तु तो पढ़ा-लिखा है और शहर मे रहता है. तु क्या करेगा ऐसी उबाऊ बीवी लेकर?"
"वही तो!" अमोल बोला, "पर दीदी, शहर की लड़कियाँ बहुत चालु होती है. इसलिये डर भी लगता है."
"मतलब तुझे एक गाँव की ही लड़की चाहिये, पर जो पढ़ी-लिखी हो और खुले विचारों की हो?" मैने पूछा.
"हाँ, दीदी." अमोल ने जवाब दिया.
"भाई, ऐसी लड़की तो कहीं मिलती नही है!" मैने मजबूरी जताकर कहा, "गाँव की लड़कियाँ अगर पढ़ी-लिखी हो भी, वह शहर की लड़कियों की तरह खुले विचारों की नही होतीं."
उधर बैठक मे तुम्हारे मामाजी कह रहे थे, "चलिये अच्छा है, भाईसाहब. छोटे बेटे की जल्दी से शादी करा दीजिये. फिर सुख चैन की ज़िन्दगी गुज़ारिये."
"हम भी यही उम्मीद कर रहे हैं, चौधरी जी." मेरे पिताजी बोले, "बड़े बेटे और मीना बिटिया की शादी तो अच्छे घरों मे हो गयी है. अब अमोल की शादी भी यहाँ हो जाये तो बहुत अच्छा हो. इनका परिवार बहुत अच्छा है."
"समधीजी, शुभ काम ठीक-ठाक ही निपट जायेगा." ससुरजी बोले, "अब आप लोग यहाँ आये हैं तो दो-चार दिन हमारे गाँव की ताज़ा हवा का मज़ा लीजिये. आपके शहर मे ऐसा वातावरण नही मिलता होगा!"
सासुमाँ ससुरजी को गुस्से से देखने लगी. मैं उनका मतलब समझ रही थी. अपने घरवालों के आने से मैं बहुत खुश तो थी, पर माँ-बाप के रहते अपनी जो चुदाई की लत थी उसे कैसे पूरी करती? और यहाँ ससुरजी उन्हे दो-चार दिन ठहरने को कह रहे थे!
मेरी माँ बोली, "नही भाईसाहब! हम तो कल सुबह ही निकल पड़ेंगे."
"क्यों समधन?" ससुरजी बोले, "आपके घर को सम्भालने के लिये आपकी बहु जो है."
"स्नेहा किसी तरह सम्भाल तो लेगी घर को." मेरी माँ ऐसे बोली जैसे स्नेहा भाभी के कार्य-कुशलता पर उन्हे ज़रा भी भरोसा नही था, "पर यह आखिर बेटी का घर है. ज़्यादा दिन ठहरना हमे ठीक नही लगता."
"अरे आप ऐसा क्यों सोच रही हैं! आपकी बेटी तो हमारी भी बेटी है. इसे अपना ही घर समझीये." ससुरजी बोले.
"नही, भाईसाहब. आप कृपया ज़ोर मत दीजिये!" मेरी माँ बोली, "हमारी बेटी आपके घर की शोभा बनी रहे, हम इसी से खुश हैं."
"अच्छा तो फिर अमोल को यहाँ कुछ दिनो के लिये छोड़ जाईये." तुम्हारे मामाजी बोले, "क्यों अमोल बेटा? अब तो तुम्हारी शादी हाज़िपुर में ही होने वाली है. यहाँ कुछ दिन रहकर देखो यह कैसी जगह है."
सासुमाँ अपने पति को आंखों से इशारा किये जा रही थी और ससुरजी थे कि कुछ समझ ही नही रहे थे! मैं मुंह दबाकर हंस रही थी.
"क्यों अमोल, तु रहेगा यहाँ अपनी दीदी के पास कुछ दिन?" मेरे पिताजी ने पूछा.
"हाँ, पिताजी." अमोल खुश होकर बोला.
मैने अपना माथा पीट लिया.
खैर, रात को खाना पीना और गप-शप हुआ. फिर माँ, पिताजी और अमोल मेहमानों के कमरों मे सो गये.
पिछले रात की अतिरेक अनाचार और मद्यपान के बाद किसी मे चुदाई की इच्छा नही थी और सब अपने कमरों मे जाकर सो गये.
अगली सुबह मैं ससुरजी को चाय देने गयी तो देखी सासुमाँ उन्हे डांट रही है. "तुम तो जी अब सठियाने लगे हो. क्या ज़रूरत थी अमोल को कहने की, कि वह यहाँ कुछ दिन रहे?"
मुझे देखकर वह बोली, "बहु, तु बुरा मत मानना पर हमारे घर की जो हालत है उसमे तेरे भाई को कुछ पता लग गया तो कितना अनर्थ हो जायेगा!"
"कौशल्या, मैं समझ रहा हूँ तुम्हारी बात." ससुरजी बोले, "पर समधी होने के नाते मेरा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है कि नही? और अमोल कुछ ही दिन रहकर चला जायेगा. इन कुछ दिनो मे हम दरवाज़े के पीछे चुदाई कर लेंगे तो क्या हो जायेगा? बस थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ेगी."
"हम और तुम तो सावधानी बरत लेंगे." सासुमाँ बोली, "पर बच्चों का क्या करेंगे? कम उम्र मे ठरक बहुत ज़्यादा होती है. गुलाबी तो एक दम बेवकुफ़ ही है. जोश मे अमोल के सामने किसी से चुदवा ली तो देखना कैसा बखेड़ा खड़ा हो जायेगा!"
"तुम डरो मत, कौशल्या. कुछ नही होगा." ससुरजी बोले, "अरे बहु, तु चाय लेकर क्यों खड़ी है. बैठ इधर."
"नही, बाबूजी. मैं रसोई मे जाती हूँ नाश्ता बनाने के लिये." मैने कहा और ससुरजी को चाय देकर बाहर निकल आयी.
नाश्ते के बाद मेरे माँ और पिताजी वापस घर लौट गये और अमोल को मेरे पास छोड़ गये.
पूरे दिन अमोल मेरे पीछे पीछे घूमता रहा. बार-बार मिन्नत करता रहा कि मैं पिताजी से बात करूं और उस गंवार लड़की से उसे बचा लूं. मैने पिताजी से सुबह ही बात कर ली थी और वह मेरी माँ से घर जाकर बात करने वाले थे.
मेरी चूत मे खलबली तो पूरे दिन मची हुई थी, पर अपने भाई के होने के कारण मैने खुद पर काबू रखा. उस रात भी हम सब शरीफ़ों की तरह अपने अपने पतियों के साथ ही सोये.
तो ननद रानी, यह है हमारे घर की आज तक की खबर. जब तक अमोल यहाँ है, और कुछ होने वाला नही है. जब वह यहाँ से जायेगा मैं अपना अगला ख़त लिखूंगी.
बहुत सारा प्यार,
तुम्हारी मीना भाभी
एक बात और: तुम ने अपने ख़त मे बताया नही तुम्हे सुबह उलटीयां और चक्कर आते हैं या नही. यह गर्भ ठहरने के लक्षण है. अगर तुम्हे लगता है तुम्हारा गर्भ ठहर गया है तो मुझे बिना देर किये ख़त लिखना.
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भाभी की चिट्ठी बहुत ही छोटी सी थी. पर उसे पढ़कर मैं चिंता मे पड़ गयी. कुछ देर सोचकर मैने उसे जवाब लिखा.
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प्रिय मीना भाभी,
तुम्हे बिना लौड़ों के कितना कष्ट हो रहा है मैं समझ सकती हूँ! जब से मामाजी हाज़िपुर लौटे हैं मेरी चूत को एक भी लौड़ा नसीब नही हुआ है. तुम तो बलराम भाईया से चुदवा सकती हो, पर मेरे पास तो कोई चारा ही नही है! ऊपर से तुम्हारे घर के किस्से पढ़कर तो मेरी हालत बहुत ही खराब हो जाती है. हर समय सोचती हूँ काश मैं तुम्हारे पास आ जाती. या फिर सोनपुर चली जाती और रमेश और उसके दोस्तों की रखैल बनके रहती! मेरी जवानी मुझे बहुत सताती है, भाभी! जल्दी कुछ करो मेरे लिये!
तुम ने पूछा के मुझे चक्कर या उलटीयां आती है या नही. नही, ऐसा तो कुछ नही होता है. पर मेरा मासिक हफ़्ते भर पहले शुरु होना था, पर अब तक हुआ नही है. इस वजह से मैं काफ़ी चिंता मे पड़ गयी हूँ. मेरा गर्भ ठहर गया होगा तो मैं क्या करूंगी, भाभी? माँ और पिताजी कहीं मुंह दिखने लायक नही रहेंगे. मुझसे कोई शादी भी नही करेगा. चुदास के मारे मैने सोनपुर मे अपनी चूत जी भरके मरवाई थी. पर अब मैं क्या करुं, भाभी?
चिट्ठी का जवाब जल्दी देना.
तुम्हारी वीणा
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मेरा मासिक रुकने की वजह से मैं सच मे बहुत डर गयी थी. चिंता से मुझे रात को नींद भी नही आती थी. क्या मैं सच मे गर्भवती हो गयी थी? कौन हो सकता है मेरे बच्चे का बाप? रमेश और उसके तीन बदमाश दोस्तों मे से ही कोई होगा. क्या मैं उनमे से किसी को मुझसे शादी करने को कह सकती हूँ? वह तो जैसे बदमाश हैं, उन्होने तो न जाने कितनी लड़कियों का बलात्कार करके उन्हे गर्भवती बनाया होगा!
और यह भी तो हो सकता है मेरा पेट मामाजी या विश्वनाथजी से चुदवा कर ठहर गया हो? क्या जवाब दूंगी कोई पूछेगा तो? मैं सारा दिन इसी उधेड़बुन मे रहती थी.
दो दिन बाद मीना भाभी का जवाब आया.
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प्रिय वीणा,
तुम्हारा ख़त मिला. तुम्हारा मासिक नही हो रहा है यह बहुत चिंता की बात है. हो सकता है तुम्हारा गर्भ ठहर गया है. गुलाबी का भी मासिक रुक गया है और मुझे पूरा यकीन है वह गर्भवती हो गयी है. मेरे और सासुमाँ का भी मासिक नही हो रहा है. ऊपर से हम दोनो को ही कुछ दिनो से सुबह चक्कर आते हैं. यकीनन सासुमाँ और मेरा भी गर्भ ठहर गया है. मुश्किल यह है कि हम तीनो को कोई अंदाज़ा नही कि बच्चे का बाप कौन हो सकता है.
पर गुलाबी, सासुमाँ, और मेरे लिया यह बहुत चिंता की बात नही है क्योंकि हम तीनो शादी-शुदा हैं. मेरे पति तो उत्तेजित हो रहे हैं सोचकर की उनके पत्नी के गर्भ मे किसी पराये मर्द का बच्चा है. वह हर रात मुझे बहुत जोश मे चोदते हैं. रामु यह सोचकर खुश है कि शायद मैं उसके बच्चे की माँ बनूंगी. इसलिये वह गुलाबी को लेके परवाह नही कर रहा है.
पर वीणा, तुम तो कुंवारी हो. सोनपुर मे तुम रमेश और उसके दोस्तों से बहुत चुदी थी. बाद मे तुम विश्वनाथजी और अपने मामाजी से भी बहुत चुदवाई थी. तुम्हारे पेट मे इन मे से किसी का भी बच्चा हो सकता है. तुम्हारे मामाजी कह रहे थे तुम्हारी किसी से शादी करवाने का इंतज़ाम करना पड़ेगा. मुश्किल यह है कि इतनी जल्दी एक अच्छा लड़का कहाँ से मिलेगा!
और लड़का तुम्हे पसंद भी तो आना चाहिये. आखिर तुम्हे उसके साथ पूरी ज़िन्दगी रहना है. और मुझे अच्छी तरह पता है तुम कितनी चुदक्कड़ हो. मैं चाहती थी तुम एक ऐसे लड़के से शादी करो जो खुले विचारों का हो - ताकि वह भी तुम्हारे साथ तुम्हारे व्यभिचारों मे शामिल हो. तभी तो तुम्हे जवानी का पूरा मज़ा मिलेगा. पर अब जल्दी मे ऐसा लड़का कहाँ से मिलेगा?
खैर, तुम घबराओ नही और जल्दबाज़ी मे कोई गलत कदम मत उठाओ. अपने माँ-पिताजी को कुछ मत बताओ. मैं और तुम्हारे मामाजी कुछ योजना बनाते हैं. तुम्हे जल्दी ही कुछ अच्छी खबर भेजुंगी. मुझ पर भरोसा रखो.
तुम्हारी मीना भाभी
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