मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:15 PM,
#66
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
ससुरजी अब अपने आपको और नही रोक पा रहे थे. उन्होने गुलाबी की गांड को जोर जोर से मारना शुरु कर दिया.

"अरे फाड़ोगे क्या लड़की की कच्ची गांड को?" सासुमाँ ने कहा.
"अब रहा नही जा रहा, कौशल्या!" ससुरजी बोले, "ऐसी कसी गांड मैने कभी नही मारी है. जी कर रहा है फाड़ ही दूं! आह!!"

लन्ड को पेलड़ तक निकाल निकालकर वह गुलाबी की गांड को बजाने लगे. उनके पेट और गुलाबी के चूतड़ों के टकराने से "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" की आवाज़ हो रही थी.

गुलाबी अगर शराब के नशे मे धुत्त नही होती तो शायद उसे काफ़ी तकलीफ़ होती. पर वह नशे मे बड़बड़ाये जा रही थी, "हाय, कितना मजा आ रहा है! आह!! आह!! आह!! कितना मजा है! आह!! उम्म!! उम्म!! मारो हमरी गांड को और मारो!! आह!! आह!! आह!! हाय, हम झड़ रहे है!! हमरा पानी छूट रहा है!! आह!! आह!!"

गुलाबी अपने गांड के मांस पेशियों को कसने लगी जिससे ससुरजी खुद को और नही रोक पाये. उसकी गांड मे अपना लन्ड पेलड़ तक पेलकर वह अपना वीर्य गिराने लगे और जोर जोर से कराहने लगे. वह काफ़ी देर तक झड़ते रहे फिर गुलाबी के ऊपर थक कर लेट गये. उनका मोटा लन्ड गुलाबी की गांड मे ही फंसा रहा.

कुछ देर बाद ससुरजी गुलाबी के ऊपर से उतर गये और बगल मे लेट गये.

किशन ने भी गुलाबी को अपने ऊपर से उतार दिया और उठ गया. "बहुत ही मज़ा आया आज चुदाई मे!" वह बोला.

"सचमुच!" मेरे वह बोले, "सामुहिक चुदाई मे कितना मज़ा है. हमने यह सब पहले क्यों नही किया!"
"यह विश्वनाथजी और उनके दोस्तों का कमाल है जो सासुमाँ और मुझे चोद चोदकर उन्होने ऐसा छिनाल बना दिया." मैने कहा.
मेरे पति ने मुझे बाहों मे ले लिया और प्यार करके बोले, "तुम्हारे विश्वनाथजी को एक बार यहाँ बुलाना पड़ेगा. जिस आदमी ने मेरी प्यारी पत्नी को इतनी चुदक्कड़ बना दिया है उसे धन्यवाद तो कहना चाहिये!"

"बाबूजी, आप विश्वनाथजी को हाज़िपुर आने का निमंत्रण दीजिये ना!" मैने कहा, "उनका गधे जैसा लन्ड लेने का मुझे बहुत मन करता है!"
"हाँ बुला दूंगा, बहु." ससुरजी बोले, "पर आज की चुदाई यहीं समाप्त करते हैं. तु और गुलाबी रसोई मे जाकर खाने का इंतज़ाम कर. रात के बारह बज गये हैं."
"बहु, मैं चलती हूँ तेरे साथ." सासुमाँ बोली, "गुलाबी अब कल ही उठेगी जब उसका नशा उतरेगा."

गुलाबी कालीन के ऊपर गांड फैलाये नंगी नशे मे धुत्त पड़ी थी. उसकी गांड से ससुरजी का वीर्य रिस कर बह रहा था.

सासुमाँ और मैं नंगे ही रसोई मे गये और सबके लिये खाना लेकर बैठक मे आये.

हम सब नंगे होकर कालीन पर बैठकर ही खाये. शराब का नशा तो सबको पहले ही था. हमने बाकी बची हुई शराब भी पीकर खतम कर दी.

हाथ मुंह धोकर सब अपने अपने कमरों मे चले गये. मैं और मेरे पति एक दूसरे को पकड़कर, किसी तरह डगमगाते हुए अपने कमरे मे पहुंचे. दरवाज़ा खुला ही रह गया. हम नंगे ही एक दूसरे से लिपटकर सो गये.

गुलाबी रात भर कालीन पर नंगी पड़ी रही.


अगले दिन सुबह हम सब बहुत देर से उठे.

मै कमरे से नंगी ही निकली और बैठक मे गयी. गुलाबी अब भी कालीन पर नंग-धड़ंग पड़ी हुई थी.

बैठक मे शराब की खाली बोतलें, गिलासें, प्लेटें, और सबके कपड़े बिखरे हुए थे.

मैने अपनी साड़ी उठायी और अपने नंगे जिस्म पर लपेट ली. फिर गुलाबी को हिला हिलाकर जगाया.

काफ़ी हिलाने के बाद वह उठ बैठी. कुछ देर तक तो उसे समझ मे नही आया कि वह है कहाँ.

वह बोली, "भाभी, हमरे कपड़े कहाँ हैं? हम नंगे क्यों हैं?"
"चूतमरानी, तुने रात को कितनी शराब पी थी तुझे खबर है?" मैने उसके गालों को एक चपत लगाकर कहा.
"हाँ, हम बहुत सराब पीये थे." वह याद करके बोली, "मालकिन हमको बहुत पिलाई थी."
"और तु बहुत चुदवाई भी थी." मैने कहा, "अब उठ जा और जाकर नहा ले. तेरे पूरे शरीर से शराब और वीर्य की महक आ रही है."

गुलाबी ने उठने की कोशिश की और बोली, "भाभी, हमरा सर काहे फटा जा रहा है?"
"ज़्यादा पीने से होता है." मैने कहा और उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया.

वह लड़खड़ा कर चलने लगी तो मैने पूछा, "तेरी गांड का क्या हाल है?"
गुलाबी ने अपनी गांड पर हाथ रखा और कहा, "चलने से बहुत दुख रहा है, भाभी!"
"दुखेगा नही? बाबूजी ने अपने मोटे मूसल से कल तेरी गांड खोली थी." मैने कहा, "पर कल तो तु बहुत मज़े ले रही थी. एक दो दिन मे दर्द ठीक हो जायेगा. मैं सेंक लगा दूंगी. फिर तु जितनी मर्ज़ी अपनी गांड मरवाना."

मैने गुलाबी को उसकी घाघरा चोली पकड़ा दी जिसे चूची पर दबाकर वह नंगी ही अपने कमरे मे चली गयी.

उस दिन किसी ने और चुदाई नही की. एक तो शराब का खुमार ही नही उतर रहा था. मेरा तो सर फटा जा रहा था. दूसरे हम सब बहुत थके हुए थे. बस खाना खाकर सब ने आराम किया.

वीणा, उम्मीद है तुम्हे हमारे अतिरेक अनाचार और व्यभिचार की यह कहानी पसंद आयी! अपना जवाब जल्दी देना.

और हाँ, मुझे बताना तुम्हे सुबह उलटी चक्कर वगैरह आते हैं या नही.

सदा प्रसन्न रहो!
तुम्हारी चुदक्कड़ भाभी

**********************************************************************


मैने भाभी की चिट्ठी पढ़कर समाप्त की ही थी कि मैने सीड़ियों से किसी को छत पर आते सुना. मैने झट से अपनी साड़ी मे से अपना हाथ निकाल लिया. मेरी उंगली मेरे चूत के रस से गीली हो चुकी थी. मैने अपनी उंगलियों को अपनी साड़ी पर पोछा और चिट्ठी को लिफ़ाफ़े मे छुपा दिया.

नीतु छत पर आयी और आते ही बोली, "अरे दीदी, तु यहाँ छुपी बैठी है! उधर माँ परेशान हो रही है तु कहाँ है."
"मै कहीं नही गयी हूँ." मैने खीजकर जवाब दिया, "किसी दिन किसी के साथ भाग जाऊंगी, तब सब लोग परेशान हो लेना!"
"दीदी, सोनपुर से आने के बाद तु बहुत चिड़चिड़ी हो गयी है."
"हाँ, हो गयी हूँ!" मैने जवाब दिया.

अब मैं उसे क्या बताती. किसी चुदक्कड़ लड़की को एक महीने से लन्ड न मिला हो तो वह चिड़चिड़ी न हो तो क्या हो.

अपने कमरे मे आकर मैने मीना भाभी की चिट्ठी का जवाब लिखा.


**********************************************************************

प्यारी मीना भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर मुझे सोनपुर के उस दावत की याद आ गयी जब मामाजी, विश्वनाथजी, रमेश और उसके तीन दोस्तों ने मिलकर मेरी, तुम्हारी, और मामीजी की सामुहिक चुदाई की थी. हाय क्या दिन थे वह भी!

सच कहूं भाभी, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर मैं ईर्ष्या से जल उठी! उफ़्फ़, कैसे कैसे मज़े तुम अपने घर पर ले रही हो. भगवान ऐसा घोर अन्याय कैसे कर सकता है! उधर तुम अपने ससुराल मे शराब पी रही हो और सबसे चुदवा रही हो. और मैं यहाँ अपनी चूत मे बैंगन पेल रही हूँ! भाभी, तुम जल्दी से मेरा कुछ इंतज़ाम करो!

तुम्हारी प्यासी वीणा

************************************
अगले दो-तीन दिन मैं भाभी की चिट्ठी की प्रतीक्षा करती रही, पर कोई चिट्ठी नही आयी. न जाने भाभी को क्या हुआ था! भाभी की चिट्ठियां मेरे मनोरंजन की एक मात्र साधन थी. उनके बिना मुझे पूरा दिन सूना-सूना लगता था.

डाकिया घर के सामने से गुज़रता और मुझे देखकर कहता, "अरे बिटिया, तेरी चिट्ठी होगी तो ज़रूर दे जाऊंगा!"

खैर, तीन-चार दिन बाद भाभी की चिट्ठी आयी. मैं खुश होकर उसे अपने कमरे मे ले गयी.

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RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग - by sexstories - 10-08-2018, 01:15 PM

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