RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
वीणा, सोनपुर मे जब रमेश और उसके दोस्तों ने हम दोनो का बलात्कार किया था, तब से अब तक, अलग अलग मर्दों से, अपने गर्भ मे मैने ना जाने कितना वीर्य भरवाया था. मुझे पता था कि चुदवाने से पेट ठहरने का खतरा रहता है. पर चुदाई के हवस मे मैं इस खतरे को नज़र अंदाज़ कर देती थी. बल्कि मुझे सोचकर ही बहुत चुदास चढ़ती थी कि जिस आदमी से मैं चुदवा रही हूँ उसके बच्चे की माँ भी बन सकती हूँ.
अब मैं रामु के नीचे लेटे सोच रही थी कि अगर सचमुच मेरा पेट ठहर गया है तो? किसका बच्चा होगा मेरे पेट मे? रमेश का? या उसके तीन दोस्तों मे से एक का? या फिर विश्वनाथजी का? या ससुरजी का. मैं तो उनसे रोज़ रात एक बीवी की तरह चुदवाती हूँ. या फिर किशन या रामु का?
बच्चा मेरे पति का नही होगा यह तो मुझे पूरा यकीन था. हाय, कैसी गिरी हुई छिनाल हूँ मै, मैने सोचा, और डरने की बजाय मैं एक विक्रित वासना से भर गयी. रामु को जोर से पकड़कर बोली, "रामु, जोर जोर से चोद मुझे! आह!! पेल दे अपना लौड़ा मेरे गर्भ तक!"
रामु मुझे दम लगाकर चोदने लगा.
उधर तुम्हारे मामाजी उठ गये थे और बोले, "किशन, तु गुलाबी के नीचे आ, और नीचे से उसकी चूत मे लन्ड दे."
"काहे, मालिक?" गुलाबी बोली, "हमको कितना मजा आ रहा था किसन भैया से चुदवाने मे और आपका लन्ड चूसने मे!"
"अब तेरी गांड खोलने का समय आ गया है, इसलिये." ससुरजी बोले.
शराब के नशे मे होने के कारण गुलाबी डरने के बजाय उत्साहित होने लगी.
किशन कालीन पर लेट गया तो गुलाबी भुखे जानवर की तरह उस पर टूट पड़ी. उसके होठों को पीते हुए उसने अपनी चूत किशन के लन्ड पर रखी, और फिर लन्ड को पकड़कर अपने चूत के मुंह पर सेट की. फिर एक कमर के धक्के से पूरा लन्ड अपनी चूत मे ले ली.
ससुरजी अपने कमरे से एक कोल्ड क्रीम की शीशि लेकर आये और गुलाबी की गांड के पीछे घुटने टेक कर बैठ गये.
पहले उन्होने उसके नरम, सुडौल चूतड़ो को सहलाया और पूछा, "गुलाबी, तुझे डर तो नही लग रहा है?"
"थोड़ा थोड़ा, मालिक." गुलाबी बोली, "पर हम गांड मरवायेंगे. भाभी हमरे मरद से कितने मजे से अपनी गांड मरवायी."
"मीना की गांड बहुत चुदी हुई है, गुलाबी." मेरे वह अपनी माँ को पेलते हुए बोले, "मैने मार मारकर चौड़ी कर दी है."
"बलराम, क्यों डरा रहा है बच्ची को?" सासुमाँ बोली, "तेरे पिताजी बहुत प्यार से अपना लन्ड डालेंगे उसकी गांड मे."
गुलाबी किशन का लन्ड अपनी चूत मे डाले उस पर पड़ी रही और ससुरजी के लन्ड का इंतज़ार करने लगी.
ससुरजी ने उसके चूतड़ों को अलग किया और उसकी गांड के छेद पर खूब सारी क्रीम मली. ठंडे क्रीम के छुअन से गुलाबी चिहुक उठी. फिर ससुरजी ने अपने खड़े लन्ड पर खूब सारा क्रीम लगाया. फिर अपने सुपाड़े को गुलाबी की गांड के छेद मे घुसाने की कोशिश की. पर पकोड़े जैसा मोटा सुपाड़ा बार-बार फिसल रहा था.
"अरी छोकरी!" ससुरजी बोले, "गांड को इतना कसकर रखेगी तो लन्ड अन्दर कैसे घुसेगा?"
"गुलाबी, अपनी गांड को ढीला छोड़ दे." मैने रामु का ठाप लेते हुए कहा, "जितना कसकर रखेगी उतनी तकलीफ़ होगी."
"हम ढीला छोड़ दिये हैं, मालिक!" गुलाबी ने कहा.
ससुरजी ने फिर कोशिश की और अब की बार जोर लगाकर अपना सुपाड़ा गुलाबी की गांड मे घुसाने मे सफ़ल हो गये.
पर गुलाबी जोर से चिल्ला उठी. "हाय, मालिक, बहुत लग रहा है. हमरी गांड तो फट रही है! बाहर निकालिये अपना लन्ड!"
रामु हंसकर बोला, "साली गांड मरायेगी तो फटेगा नही?"
"चुप कर, रामु!" सासुमाँ बोली, "गुलाबी, पहली बार गांड मराने से थोड़ा लगता है. पहली बार तु रामु से चुदी थी तो लगा था कि नही."
"बहुत लगा था, मालकिन!" गुलाबी बोली, "सुहागरात को ऊ हमरी चूत फाड़कर खून निकाल दिये थे!"
"मूरख, चूत फटने से खून नही निकलता है." रामु मुझे पेलते हुए बोला, "ऊ तो तेरे चूत की झिल्ली थी जो फट गयी थी."
"पर हमको दर्द तो बहुत हुआ था ना!" गुलाबी बोली, "ऊपर से तुम उस रात हमको चार-चार बार चोदे थे."
"पर गुलाबी, बाद मे तुझे मज़ा भी तो आया था ना?" मैने पूछा.
"हाँ, भाभी."
"और अब तु कितने आराम से मोटे से मोटा लन्ड चूत मे ले लेती है!" मैने कहा. "दो चार बार गांड मरा लेगी तो तेरी गांड खुल जायेगी. फिर तु मोटे से मोटे लन्ड गांड मे ले पायेगी."
मेरी बात सुनकर गुलाबी का ध्यान फिर अपनी गांड पर गया. वह फिर चिल्लाने लगी, "हाय, मालिक! निकाल दीजिये अपना लन्ड!" वह लन्ड को बाहर निकालने के लिये अपनी कमर को हिलाने लगी.
"कुछ नही होगा, पगली." ससुरजी बोले. उन्होने गुलाबी के कमर को जोर से पकड़ रखा था. "अब तु अपनी कमर मत हिला. मेरा लन्ड बाहर आ गया तो अब की बार पूरे 8 इंच एक साथ तेरी गांड मे पेल दूंगा. फिर तुझे समझ मे आयेगा गांड फटना किसे कहते हैं."
"नही, मालिक!" गुलाबी चिल्लायी, "हम दर्द से मर जायेंगे!"
सासुमाँ ने मेरे पति को खुद से अलग किया और कहा, "देखो जी, गुलाबी के साथ जबरदस्ती मत करो. बच्ची है अभी."
"अरे मैं कहाँ जबरदस्ती कर रहा हूँ?" ससुरजी बोले, "पर उसे गांड मराने का मज़ा लेना है तो कभी तो अन्दर लन्ड लेना पड़ेगा? और उसकी गांड मारने के लिये मैं उसके सुहगरात से इंतज़ार कर रहा हूँ!"
तुम्हारी मामी उठी और गुलाबी के पास गयी.
एक गिलास मे खूब सारी दारु डालकर गुलाबी को बोली, "मुंह खोल और गटक जा."
गुलाबी ने एक बड़ी घूंट ली और आंख-मुंह भिचका कर बोली, "हाय, मालकिन, हमरा तो गला जल रहा है!"
"इसमे कोकाकोला नही मिलाया है, इसलिये." सासुमाँ बोली, "बस किसी तरह पी जा. थोड़ी चढ़ जायेगी तो दर्द कम होगा."
उन्होने फिर ससुरजी को अपना लन्ड पेलने का इशारा किया.
गुलाबी ने अगली घूंट ली तो ससुरजी ने उसकी कमर पकड़कर एक धक्का लगाया. उनका लन्ड दो इंच गुलाबी की गांड मे चला गया.
गुलाबी चिहुक उठी तो सासुमाँ ने उसे और एक घूंट लेने को कहा. अगले घूंट मे लन्ड और दो इंच अन्दर चला गया.
ससुरजी का लन्ड अब पांच इंच गुलाबी की गांड मे घुस चुका था. वह गुलाबी की कमर पकड़कर खड़े रहे. नीट रम पेट मे जाने से गुलाबी को बहुत जल्दी ही बहुत चढ़ गयी. उसने अपनी गांड को भी ढीला छोड़ दिया. अब उसे दर्द कम हो रहा था.
"अब दर्द हो रहा है?" सासुमाँ ने पूछा.
"कम हो रहा है, म-मालकिन." गुलाबी ने लड़खड़ाती आवाज़ मे मुश्किल से जवाब दिया.
अब ससुरजी ने एक जोर का धक्का लगाया और अपना लन्ड पेलड़ तक गुलाबी की कसी गांड मे पेल दिया. फिर वह लन्ड को गांड मे डाले गुलाबी के पीठ पर लेट गये. बेचारा किशन गुलाबी और अपने पिताजी के नंगे बदन के नीचे दब गया.
ससुरजी कुछ देर गुलाबी के ऊपर लेटे रहे. गुलाबी शराब के नशे मे धुत्त हो चुकी थी. अपनी चूत मे किशन का लन्ड और गांड मे ससुरजी का लन्ड लिये वह पड़ी रही.
सासुमाँ बोली, "अब चोद लो लड़की की गांड जितनी चोदनी हो." और वह मेरे पास आकर लेट गयी.
मेरे पति जो अपनी प्यारी गुलाबी की गांड खुलाई देख रहे थे अपनी माँ पर टूट पड़े और जोर जोर से चोदने लगे.
ससुरजी अपने हाथों के सहारे उठे और उन्होने अपना लन्ड गुलाबी की गांड से सुपाड़े तक निकाला.
गुलाबी आंखें बंद किये बोली, "ऊं!!"
फिर उन्होने लन्ड को धीरे से पेलड़ तक घुसा दिया. फिर निकाला और फिर धीरे से घुसा दिया. ऐसा उन्होने 10-15 बार किया.
"दर्द हो रहा है, बेटी?" ससुरजी ने पूछा.
"पता नही, मालिक!" गुलाबी बोली.
"साली इतनी पी ली है कि उसे पता ही नही की उसकी गांड मारी जा रही है!" रामु हंसकर बोला.
अपनी बीवी की यह हालत देखकर वह काफ़ी उत्तेजित हो चुका था. उसकी चुदाई की रफ़्तार भी बढ़ गयी थी.
ससुरजी अब अपने घुटने के बल बैठ गये और गुलाबी के कमर को पकड़कर उसकी गांड मे अपना लन्ड पेलने लगे. हर एक ठाप के साथ वह मज़े मे आह भर रहे थे. और गुलाबी एक कपड़े के पुतले की तरह किशन के नंगे बदन पर पड़ी उनके धक्कों से हिल रही थी.
"क्यों जी, बहुत मज़ा आ रहा है?" सासुमाँ ने अपने बेटे का ठाप खाते हुए पूछा.
"हाँ, भाग्यवान!" ससुरजी बोले, "अनचुदी, कोरी गांड है. मारकर जन्नत का मज़ा आ रहा है! मुझे नही लगता मैं ज़्यादा देर चोद सकूंगा!"
"इससे पहले की उसका नशा उतर जाये, मार मारकर चौड़ी कर दो." सासुमाँ बोली, "जब मैने पहली बार गांड मरवाई थी, दो दिन तक मैं ठीक से चल भी नही पायी थी."
"नही तो!" ससुरजी अपनी कमर चलाते हुए बोले, "मैने पहली बार तुम्हारी गांड तब मारी थी जब बलराम तुम्हारे पेट मे था. अगले दिन तुम तो आराम से चल रही थी!"
"मेरे भोले सईयाँ, पहली बार अपनी गांड मैने तुमसे नही मरवाई थी." सासुमाँ शरारती हंसी के साथ बोली, "वह काम मैने शादी से पहले ही निपटा लिया था."
"तुम कभी बताई नही मुझे?" ससुरजी गुलाबी की गांड को धीरे धीरे पेलते हुए बोले, "कौन था वह हरामी?"
"वह किस्मत वाले मेरे मझले काका थे." सासुमाँ बोली.
"फिर उनसे चुदवा भी ली होती?"
"चुदवाकर क्या कुंवारेपन मे अपना पेट बना लेना था? तब मैं स्कूल मे पढ़ती थी और तुमसे शादी की बात चल रही थी." सासुमाँ ने कहा, "इसलिये मैं सिर्फ़ उनसे अपनी गांड मरवाया करती थी."
अपने माँ के कुकर्मो की गाथा सुनकर मेरे वह और जोर जोर से चोदने लगे. रामु भी अपनी बीवी को देख देखकर मुझे चोद रहा था.
"अच्छा होता तुम अपनी भांजी की चूत न मारकर उसकी गांड मारते." सासुमाँ अपने बेटे के धक्के लेते हुए बोली, "बेचारी की शादी भी नही हुई है. सोनपुर मे वह जितनी चुदी है, उसका भी गर्भ ठहर गया होगा."
"क्या फ़ायदा माँ?" मैने कहा, "रमेश और उसके दोस्तों ने विश्वनाथजी के साथ मिलकर वीणा को पहले ही चोद लिया था. पेट ठहरना होता तो तब ही ठहर जाता."
"तुम्हे क्या लगता है वीणा सुनने वाली थी?" तुम्हारे मामाजी बोले, "वैसी चुदक्कड़ लड़की मैने कम ही देखी है. वह ऐसे लौड़े ले रही थी उसे जैसे गर्भ ठहरने की परवाह ही नही थी."
"चुदास चढ़ने पर दिमाग थोड़े काम करता है! पर अब क्या होगा?" सासुमाँ ने पूछा "कुंवारी लड़की है. गर्भ ठहर गया होगा तो क्या करेगी बेचारी?"
"तब की तब देखेंगे. किसी से शादी करा देंगे." ससुरजी बोले, "बहु, तु वीणा बिटिया को चिट्ठी लिख और पूछ उसका पेट-वेट तो नही ठहर गया!"
"जी बाबूजी." मैने कहा, "पर हमारा क्या होगा?"
"तुम लोगों का क्या होना है?" ससुरजी बोले, "तीनो शादी-शुदा हो. बच्चा दे देना. कोई पूछने नही आयेगा बच्चे का बाप कौन है."
"अगली बार कंडोम लगाकर चुदवायेंगे." सासुमाँ बोली.
"नही माँ!" मैने कहा, "आपके बेटे पहले मुझे कंडोम लगाकर चोदते थे. उससे मुझे बिलकुल मज़ा नही आता है."
"अरे तुम लोग भी किस बखेड़े मे पड़ गये!" ससुरजी बोले, "जो होना था हो चुका है. अभी तो दिल खोलकर चूत मराओ."
हम सब चुप हो गये और अपनी चुदाई पर ध्यान देने लगे. अपने अपने मर्द को सीने से लगाकर सासुमाँ और मैं कमर उठा उठाकर चुदवाने लगे.
सब का जोश बहुत चढ़ गया था. हमारी गरम सांसें बहुत जोरों से चल रही थी. चूत मे लन्ड के गमन-आगमन से हम मस्ती के आसमान मे उड़ रहे थे. मेरे पति मुझे रामु से चुदते देखकर अपनी माँ को चोद रहे थे. मैं उनकी आंखों मे देखते हुए रामु से चुदवा रही थी.
जल्दी ही हम चारों झड़ने के करीब आ गये.
सासुमाँ बोली, "बेटा बलराम! उफ़्फ़!! अब और जोर से ठोक मुझे! मैं बस झड़ने ही वाली हूँ!"
मैने भी रामु को अपनी गती बढ़ाने को कहा. हम दोनो औरतों की जमकर चुदाई होने लगी.
बहुत मज़ा आ रहा था अपनी सास के बगल मे लेटकर चुदाने मे. हमारे नंगे शरीर आपस मे टकरा भी रहे थे. इस मज़े मे डूबे हुए मैं उस शाम तीसरी बार झड़ने लगी. रामु को जोर से पकड़कर मैं उसके लन्ड को अपनी चूत के स्नायु से जकड़ ली. इससे रामु भी खुद को रोक नही पाया और मेरी चूत मे अपना पानी छोड़ने लगा.
पास मे सासुमाँ भी झड़ गयी और मेरे पति ने भी अपनी माँ की चूत को अपने वीर्य से भर दिया.
जब हम लोगों की सांसें काबू मे आयी हम चारों उठे और गुलाबी के पास गये और उसकी चुदाई देखने लगे.
बेचारी गुलाबी शराब के नशे मे धुत्त हुई पड़ी थी. ससुरजी उसकी गांड को धीरे धीरे मार रहे थे. गांड अब काफ़ी ढीली हो चुकी थी जिससे उन्हे घुसाने और निकालने मे मुश्किल नही हो रही थी. किशन नीचे से गुलाबी की चूत को धीरे धीरे पेल रहा था. गुलाबी नंगी होकर दोनो मर्दों के बीच मे पड़ी थी और मस्ती मे बड़बड़ा रही थी.
"गांड खुल गयी है क्या?" सासुमाँ ने पूछा.
"हाँ, अब खुल गयी है." ससुरजी पेलते हुए बोले, "दो चार दिन और मरवायेगी तो बिलकुल खुल जायेगी."
"तो फिर थोड़ा जोर से बजाओ उसकी गांड को." सासुमाँ ने कहा.
ससुरजी ने अपनी पत्नी की बात मान ली और थोड़ी रफ़्तार से गुलाबी की गांड को मारने लगे.
गुलाबी आंखें बंद किये बड़बड़ाने लगी, "हाय, भाभी! आह!! कितना मजा आ रहा है! आह!! गांड मराने मे कितना मजा है!! आह!! ऊंह!! किसन भैया, मेरी चूत जोर से मारो!! आह!! मालिक, मेरी गांड और मारिये!! उम्म!! हाय, बहुत मजा आ रहा है!! उफ़्फ़!! दोनो मेरी गांड और चूत फाड़ दो!! आह!! ऊह!! ऊंह!!"
इतने मे किशन से और रहा नही गया. गुलाबी की गांड और चूत के बीच की दीवार के इस पार और उस पार बाप-बेटे के लन्ड चल रहे थे.
वह बोला, "पिताजी, आपका लन्ड मेरे लन्ड पर रगड़ रहा है!! आह!! मेरा पानी निकल जायेगा!! आह!!"
"मेरे लन्ड भी तेरे लन्ड पर घिस रहा है, किशन!" ससुरजी बोले, "बहुत मज़े का अहसास होता है यह. निकाल दे पानी अगर रोक नही सकता है तो."
किशन ने अपनी कमर उचकाकर अपना लन्ड गुलाबी की चूत मे पूरा पेल दिया और झड़ने लगा.
पुरा झड़कर वह गुलाबी के नीचे लेटा रहा. उसका लन्ड नरम नही हुआ था और चूत मे ही फंसा था. पर ससुरजी ने धक्कों से उसका लन्ड थोड़ा थोड़ा अन्दर बाहर हो रहा था. साथ ही उसका वीर्य गुलाबी की चूत से बाहर निकलने लगा. सफ़ेद वीर्य मे उसका पेलड़ नहा गया और कालीन गीली होने लगी.
"किसन भैया, हमरी चूत से का बह रहा है?" गुलाबी किशन के सीने पर लेटी हुई बोली, "आप झड़ गये का? हम भी झड़ने वाले है."
|