मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:12 PM,
#54
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
गुलाबी शरमा गई. फिर धीरे से बोली, "अब हमको बड़े भैया, किसन भैया, या मालिक से करवाना हो...तो बिना छुपाये कर सकते हैं."
"छिनाल कहीं की! तीन तीन मर्दों से चुदवाने के सपने देख रही है!" सासुमाँ ने कहा, "इतनी जल्दी मत कर. बलराम और किशन को पता नही कि तु, बहु, और मैं सब से चुदा रहे हैं."
"तो उनको भी बता दीजिये ना, मालकिन!" गुलाबी बोली, "हाय कितना मजा आयेगा जब सबको पता चल जायेगा! हम सब कभी भी, किसी के भी साथ खुलकर चुदाई कर सकेंगे!"

ससुरजी, जो गुलाबी के नंगे बदन पर नंगे लेटे थे, उसके होठों को चूमकर बोले, "पूरी रंडी हो गयी है तु, गुलाबी!"

सासुमाँ मुस्कुराकर बोली, "बस थोड़ा इंतज़ार कर. बलराम और किशन भी खेल मे पूरी तरह शामिल हो जायेंगे."

"पर मालकिन, आप बड़े भैया और किसन भैया के सामने कैसे चुदायेंगी?" गुलाबी ने पूछा, "आप तो उनकी माँ हो?"
"हूं. यह तो सोचने वाली बात है." सासुमाँ ने कहा. गुलाबी और रामु को पता नही था कि सासुमाँ पहले से ही मेरे पति से चुदवा रही है.

"छोटी मुंह बड़ी बात, मालकिन." गुलाबी ने सकुचा के कहा, "आप अपने दोनो बेटों से चुदवा क्यों नही लेतीं?"

तुम्हारे मामा और मामी सुनकर हंस पड़े और गुलाबी हैरान होकर उन्हे देखने लगी.

बाहर रामु मुझे बोला, "ई ससुरी गुलाबी का अनाप-सनाप बक रही है? चूत मरा मरा के उसका दिमाग ही खराब हो गया है. भला कोई माँ अपने बेटों से चुदवाती है?"
मैने कहा, "गुलाबी की चिंता छोड़ो, रामु. पहले तुम मेरा कुछ इलाज करो. मुझे अपने कमरे मे ले चलो और मेरी चूत को चोद चोदकर भोसड़ा बना दो! मेरे बदन मे जैसे आग लग गयी है!"


रामु और मैं उसके कमरे मे आ गये और हमने तुरंत अपने कपड़े उतार दिये. रामु मुझ पर चढ़ गया और मुझे गंदी गंदी गालियाँ दे दे कर मेरी चुदाई करने लगा.

हम दोनो चुदाई मे ही डूबे थे जब गुलाबी खुशी से उछलते हुए कमरे मे दाखिल हुई.

वह एक कुर्सी पर बैठ गयी और एक कपड़े से अपनी वीर्य से भरी चूत को पोछने लगी और हमारी चुदाई देखने लगी. 15-20 मिनट की चुदाई के बाद रामु और मैं झड़ कर शांत हुए.

दिन की शुरुआत बहुत अच्छी रही थी इसलिये बाकी का दिन भी अच्छा गया. नाश्ते के बाद रामु ने छत पर सासुमाँ को चोदकर ठंडा किया. दोपहर को किशन ने गुलाबी को एक बार और चोदा. रात को मैं फिर तुम्हारे मामाजी के साथ सोई और एक पानी चुदाई. तुम्हारी मामीजी अपने बड़े बेटे के साथ सोयी और उससे एक बार चुदवाई.

इस तरह हमारा वह दिन खतम हुआ, वीणा. आशा है तुम्हे हमारे घर की दशा बहुत उत्तेजक लग रही है. मैं तो आने वाले दिनो के मज़े मे खो गयी हूँ! अपना जवाब जल्दी देना.

तुम्हारी मीना भाभी

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पाठकगणों को अगर मीना भाभी की कहानी पर विश्वास न हो रहा हो तो कोई हैरत की बात नही. मुझे भी कभी कभी लगता था कहीं भाभी मेरे मनोरंजन के लिये यह सब कहानियाँ बना बनाकर तो नही लिख रही?

पर मैने सोनपुर मे अपने मामा, मामी, और भाभी को जिस तरह भोग-विलास और काम-वासना का आनंद उठाते देखा था उसके बाद मुझे विश्वास था कि अपने गाँव जाकर वह ऐसा ही अनाचार का खेल खेल रहे होंगे. चुदाई की लत को तो मैं खुद भी बहुत पहचानती हूँ. एक बार कोई भ्रष्ट हो जाये तो उसका मन एक से बढ़कर एक भ्रष्ट काम करने के लिये ललचाता है.

मेरे पास मौका नही था, तभी मैं एक सुचरित्र बेटी बनकर घर पर बैठी थी. मेरे माँ-बाप को अगर पता चलता कि सोनपुर मे मैं किस तरह शराब पीकर अलग अलग मर्दों से चुदवाती थी, तो वह मुझे तुरंत घर से निकाल देते.

मैने भाभी को चिट्ठी लिखी.


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मेरी प्यारी भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी मिली. अब तो मुझे लग रहा है मामा, मामी, और तुम्हारा घर पर खुले आम चुदाई का सपना पूरा होने वाला है. बस अब मामीजी किशन से चुदवा ले तो तुम्हारी योजना पूरी हो जाये.

तुम लोग मिलकर गुलाबी को किस तरह बर्बाद कर रहे हो पढ़कर मुझे तो उस बेचारी पर दया आ रही है! पर बर्बाद होने मे मज़ा भी कितना है, गुलाबी खूब समझ रही होगी.

तुम्हारी आगे की क्या योजना है? जल्दी लिखकर भेजो!

तुम्हारी प्यासी ननद

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मीना भाभी की अगली चिट्ठी की प्रतीक्षा मे मैं आंगन के फाटक पर खड़ी थी. तभी मैने अपनी छोटी बहन नीतु को स्कूल से आते हुए देखा. उसके हाथ मे एक लिफ़ाफ़ा था. मुझे देखकर वह बोली, "दीदी, बता तो मेरे हाथ मे क्या है?"

मै तो देखकर समझ गयी उसके हाथ मे मीना भाभी की चिट्ठी थी. मेरा तो दिल कांप उठा! जिस तरह की अश्लील बातें भाभी अपनी चिट्ठी मे लिखती थी, अगर नीतु उसे पड़ ले तो शायद उसका अविकसित दिमाग खराब ही हो जाये. पर फिर मैने सोचा, नीतु अभी 18 की है. और इसी उम्र मे गुलाबी चार-चार मर्दों से चुदवा रही है! हो सकता है नीतु उतनी बच्ची नही है जितनी दिखती है.

"कहाँ मिली तुझे यह चिट्ठी?" मैने पूछा.
"डाकिया मुझे शिव मंदिर के पास मिला था." नीतु ने कहा, "मुझे बोला अपनी दीदी को दे देना."

मैने झट से वह चिट्ठी उसके हाथ से ले ली.

नीतु गुस्से से बोली, "मीना भाभी की चिट्ठी तु अकेले अकेले क्यों पढ़ती है? मुझे कभी पढ़ने क्यों नही देती? मैं माँ और पिताजी से शिकायत करूंगी!"

मैं अपने कमरे मे जाते हुए बोली, "जब तु बड़ी हो जायेगी तब तु बड़े लोगों की चिट्ठियां पढ़ना! अभी तु अपनी स्कूल की किताबें पढ़!"
"मैं अब बड़ी हो गयी हूँ!" नीतु चिल्लायी, "और बड़े लोगों की सब बातें समझती हूँ!"

अपने कमरे मे जाकर मैने अपनी साड़ी और पेटीकोट उठायी और अपने प्यासी चूत मे एक बैंगन घुसा के भाभी की चिट्ठी पढ़ने लगी.


**********************************************************************

मेरी प्यारी ननद,

तुम्हारा ख़त मिला. तुम ठीक कहती हो - हम घर पर बहुत से कुकर्म कर रहे हैं जिसका गाँव के लोग कल्पना भी नही कर सकते. पर क्या करें, चुदाई का जो मज़ा हमने सोनपुर मे लिया था, हमे घर पर वैसा ही मज़ा लेने का मन करता है. यह तो अच्छा है कि तुम्हारे मामाजी का घर गाँव से थोड़ा हटकर उनके खेतों के बीच है. और यहाँ ज़्यादातर कोई आता-जाता नही है. इससे हमे खुलकर चोदा-चोदी करने मे बहुत सुविधा होती है.

वीणा, तुम्हारे मामाजी से गुलाबी के चुदने के बाद काफ़ी राज़ सबके सामने खुल कर बाहर आ गये. गुलाबी और रामु को मालूम हो गया कि मैं ससुरजी से चुदवा रही हूँ. उन्हे बस यह नही पता था कि सासुमाँ अपने बड़े बेटे से चुदवा रही है.

कुछ भी हो, हम सब को चुदाई मे काफ़ी सुविधा हो गयी. गुलाबी जब चाहे किशन, मेरे पति, या ससुरजी से चुदवा सकती थी. मैं जब चाहूं रामु, किशन, या ससुरजी से चुदवा सकती थी. सासुमाँ भी अपने बड़े बेटे और रामु से चुदवा सकती थी. पर मुझे एक बात खटक रही थी.

दो दिन पहले की बात है. तुम्हारे बलराम भैया गुलाबी को लेके खेत मे गये थे - खेत का काम देखने और गुलाबी को थोड़ी खुली हवा मे चोदने. किशन और रामु किसी काम से हाज़िपुर के बाज़ार को गये थे. मै और तुम्हारे मामा-मामी उनके पलंग पर नंगे होकर थोड़ी चुदाई का मज़ा ले रहे थे. मैं सासुमाँ की सफ़ा की हुई मोटी बुर को चाट रही थी और ससुरजी मुझे कुतिये बना के पीछे से चोद रहे थे.

सासुमाँ बोली "क्यों जी, आजकल चुदाई मे बहुत मज़ा आ रहा है क्यों?"
"हाँ, कौशल्या." ससुरजी धीरे धीरे मेरी चूत मे अपना मोटा लन्ड पेलते हुए बोले, "तुम सास-बहु को मैं मान गया! तुम्हारी योजना से छुपने छुपाने की जरूरत बहुत कम हो गयी है. मैं तो इस माहौल मे बहुत आनंद उठा रहा हूँ. क्यों बहु? तु मज़ा ले रही है ना?"

मैने सासुमाँ के बुर से अपना मुंह उठाया और कहा, "हाँ बाबूजी, मज़ा तो बहुत ले रही हूँ. पर एक बात मुझे खटक रही है."
"वो क्या बहु?" ससुरजी ने पूछा.
"मै अपने पति के सामने खुलकर चुदवा नही पा रही हूँ." मैने ससुरजी का लन्ड चूत मे लेते हुए कहा. "जब मैं उनके के सामने रामु, किशन, और आपसे रंडी की तरह चुदवा पाऊंगी, तब मुझे जन्नत का मज़ा आयेगा."

"वह दिन भी जल्दी आयेगा, बहु. थोड़ा इंतज़ार कर." सासुमाँ बोली.
"कब आयेगा, माँ!" मैं झुंझलाकर बोली, "अब मुझसे सब्र नही होता! मेरे उनको पटा दो न मेरे लिये. वह तो आपको रोज़ रात को चोदते हैं."

"हाँ, कौशल्या," ससुरजी पीछे से मुझे ठोकते हुए बोले, "तुम बलराम को बोल दो कि बहु रामु, किशन और मुझसे चुदवा रही है."
"पता नही वह विश्वास करेगा कि नही." सासुमाँ बोली.
"तो फिर जब रामु या मैं बहु को चोद रहे होंगे, तब उसे हमारे पास ले आना." ससुरजी बोले, "अपनी आंखों से देख लेगा तो पूरा विश्वास हो जायेगा."
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