मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:07 PM,
#31
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने अपने नरम होंठ उसके तपते होठों पर रख दिये और उसे चूमने लगी. उसके हाथ मेरी चूचियों को मसलने लगे. मेरी चूत बहुत गीली हो गयी थी और मैं मस्ती मे आहें भरने लगी.

चारपायी पर एक दरी बिछी हुई थी जिस पर किशन ने मुझे लिटा दिया. मैने अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठा दी और अपनी चूत उसके सामने नंगी कर दी. चड्डी पहननी तो मैने कब की बंद कर दी थी.

किशन मेरे खुले पैरों के बीच बैठा. अपना लन्ड मेरी गरम चूत पर रखकर अन्दर ठेलने लगा. उसका लन्ड बहुत आराम से मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर घुस गया. मैने उसे अपने ऊपर खींच लिया और उसके होठों को पीने लगी. उसका मुंह से बैंगन भर्ते की खुशबु अब भी आ रही थी. उसके मुंह मे अपनी जीभ घुसाकर मैं उससे जीभ लड़ाने लगी.

किशन कुछ देर मेरी चूत मे अपना लन्ड डाले पड़ा रहा. फिर वह अपनी कमर चलाने लगा और मुझे चोदने लगा. मैं भी उसका साथ देने लगी. खुले आसमान के तले चुदाई करने का अलग ही मज़ा आ रहा था. वीणा, सोनपुर मे रमेश और उसके तीन दोस्तों जब तुम्हारा और मेरा सुनसान मे बलात्कार किया था उसके बाद खुले मे चुदवाने का मेरे पहला अनुभव था. बहुत मज़ा आ रहा था. तुम्हे भी मौका मिले तो खेत मे किसी से ज़रूर चुदवा कर देखो. एक अलग ही लुत्फ़ पाओगी.

किशन और मैं चारपायी पर चुदाई मे व्यस्त थे. वह काफ़ी संयम के साथ मुझे चोद रहा था, जब के मैं बहुत गरम हो गयी थी. "ओह!! आह!!" करके मैं चूत मे उसका लन्ड ले रही थी.

अचानक मुझे लगा कि कोई हमारी तरफ़ आ रहा है. सरसों के फ़सलों के ऊपर से शायद किसी का सर दिखाई दिया था.

मैने किशन को रुकने को कहा. उसने ठाप लगना जारी रखा और अपना सर उठाकर पीछे देखा.

"कोई नही है, भाभी!" उसने कहा और चोदना जारी रखा.

सुनकर मैं फिर मस्ती मे डूब गयी और चुदवाने मे वस्त हो गयी. "उम्म!! हाय, देवरजी! बहुत अच्छा पेल रहे हो आज! आह!! उफ़्फ़!! अपनी माँ की चूत समझकर...मेरी चूत मार रहे हो क्या?" मैने कहा, "आह!! उम्म!! और जोर से देवरजी! आह!! जल्दी ही तुम अपने भैया की तरह...पूरे चोदू बन जाओगे! ओह!! हाय क्या मज़ा दे रहे हो! आह!! आह!! आह!!"

मेरे सर पर नीला आसमान था. सुबह की हलकी धूप हम दोनो के नंगे शरीर पर पड़ रही थी. खेत के सन्नाटे मे बस किशन के ठापों के ताल पर मेरी चूड़ीयों के खनकने की और पायल के छनकने की आवाज़ आ रही थी.

किशन अपनी सांसों पर काबू रखकर "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" करके मुझे चोद रहा था. अब की बार वह मुझे 10-15 मिनट तक चोदता रहा और मैं दो बार झड़ भी गयी.

जब किशन ने मेरे गर्भ मे अपना वीर्य भरना शुरु किया तब मैं एक और बार झड़ी और जोर जोर से बड़बड़ाने लगी, "और जोर से ठोको, देवरजी! हाय, मैं झड़ी!! आह!! उम्म!! उम्म!! हाय तुम्हारा पानी मेरी चूत मे भर रहा है! बहुत मज़ा आ रहा है! आह!!"

झड़ने के बाद हम देवर भाभी एक-दूसरे से लिपटकर चारपायी के ऊपर कुछ देर नंगे पड़े रहे.

हम दोनो शांत हुए तो किशन मेरे ऊपर से उठा और उसने अपनी चड्डी और पजामा पहन लिया. मैने उठकर अपनी साड़ी और पेटीकोट अपने कमर से उतारी. दोनो मे बुरी तरह सिलवटें पड़ गयी थी. ब्लाउज़ चुदाई के समय मेरी पीठ के नीचे आ गयी थी और उसमे भी बहुत सिलवटें पड़ गयी थी. मैने सोचा, मेरा सिंदूर ज़रूर फैल गया होगा. कोई भी देखकर सोचेगा के मैं बुरी तरह चुद कर आ रही हूँ. वीणा, अपनी हालत पर मुझे शरम भी आ रही थी और रोमांच भी हो रहा था!

मैने ब्लाउज़ और ब्रा पहनी और खाने की प्लेट और खाली डिब्बा लेकर घर की तरफ़ चल दी. किशन वहीं खेत मे रुक गया.
जब मैं आधे रास्ते पहुंची तब मैने देखा कि रामु एक पेड़ के नीचे खड़ा है. मुझे वह आखें फाड़-फाड़कर देखने लगा.

मैने शरम से पानी-पानी हो गयी. मेरे कपड़ों की हालत को देखकर उसे जैसे अनुभवी आदमी के लिये समझना मुश्किल नही था कि मैं किसी के से मुंह काला करवा कर आ रही हूँ.

"कहाँ से आ रही हो, भाभी?" रामु ने पूछा.
"देवरजी को खाना देने गयी थी." मैने कहा और घर की तरफ़ जाने लगी.

रामु ने मेरे सामने आकर मेरा रस्ता रोक लिया और बोला, "खाना देने मे बहुत देर लगा दी आपने? घर पर सब लोग परेसान हो रहे हैं. हमे भेजा है आपकी खबर लेने के लिये."

उसके अंदाज़ मे एक बदतमीज़ी थी जो मैने पहले कभी नही देखी थी. एक नौकर के मुंह से यह बदतमीज़ी मुझे बिलकुल पसंद नही आयी.

"मैं देवरजी को अपने हाथों से खाना खिला रही थी. बस?" मैने कहा, "अब मेरे रास्ते से हटो!"

रामु सामने से हट गया, और मेरे साथ साथ चलने लगा. वह बोला, "हमे तो लगा आपको कुछ हो गया है."
"कुछ नही हुआ है मुझे." मैने सख्ती से जवाब दिया.
"आपके कपड़ों का जो हाल है, उसे देखकर कोई समझे तो का समझे?" रामु ने कहा.

मैने उसके बात का जवाब नही दिया क्योंकि मैं किशन के साथ वही करके आ रही थी जो वह समझ रहा था.

हम दो मिनट साथ चले, फिर रामु बोला, "भाभी, आप गुलाबी को बहुत सिक्सा दे रही हैं. बहुत कुछ सिखाया है उसे."

मैं समझ गयी वह किस शिक्षा की बात कर रहा है.

"हूं. गंवार लड़की है. कुछ सीख लेगी तो बुरा क्या है?" मैने जवाब दिया.
"गंवार तो हम भी हैं, भाभी!" रामु तेड़ी नज़र से मेरी चूचियों को देखते हुए बोला, "कुछ हमे भी सिखाये दो!"
"क्या सीखोगे तुम?" मैने बात टालने के लिये पूछा.
"वही जो सब आप गुलाबी को सिखायी हैं." रामु ने कहा. फिर अचानक मेरा हाथ पकड़कर बोला, "पियार करना."

मैने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और चिल्लाकर कहा, "रामु! तुम्हे हो क्या गया है? तुम्हे होश है तुम किससे बात कर रहे हो? मैने तुम्हारे मालिक की बहु हूँ! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा हाथ पकड़ने की?"

सुनकर रामु डरा नही. बल्कि उसने दोनो हाथों से मेरे कंधों को पकड़ा और और मुझे अपने करीब खींच लिया. मेरे होठों पर अपने होंठ रखकर उन्हे जबरदस्ती पीने लगा. उसके मुंह से बीड़ी और देसी शराब की महक आ रही थी.

मैने किसी तरह अपना मुंह हटाया तो वह बोला, "भाभी, हम बहुत पियार करते हैं आपसे! एक बार हमको पियार करने दो! बहुत मजा पाओगी!"

वीणा, तुम्हे तो पता है मेरा रामु से चुदवाने का इरादा था, पर उस वक्त उसकी बदतमीज़ी और मुंह से आती बीड़ी और शराब की बदबू से मैं उचट गयी. एक नौकर को नौकर की तरह रहना चाहिये. मैं घर की बहु हूँ. मैं उसे पटाती तो और बात थी. वह मेरा बलात्कार करे यह मुझे स्वीकार नही था. मैने रामु के मुंह पर कसकर एक थप्पड़ लगा दिया.

थप्पड़ लगते ही रामु के सर पर जैसे खून सवार हो गया.

मेरे कंधों को जोर से दबाकर बोला, "ई आप अच्छा नही की, भाभी! हम आपकी बहुत इज्जत करते थे. पर आप इज्जत के लायक ही नही है."
"क्या मतलब?" मैने हिम्मत करके कहा. मुझे रामु से अब डर लगने लगा था.
"आप गुलाबी को ऐसी चीजें सिखाई हैं, जो कोई सरीफ औरत किसी को नही सिखाती." रामु बोला, "और आप सोनपुर के मेले मे ऐसा काम की हैं जो हम सोच भी नही सकते थे."
"क्या किया मैने सोनपुर मे?" मैने पूछा. मैं जानती थी गुलाबी ने उसे बता सब दिया है.
"आप वहाँ चार-चार मर्दों से चुदवाई हैं!" रामु मेरे कंधों को झकोर कर बोला. उसका एक हाथ अब मेरी चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से बेदर्दी से मसलने लगा.

मैने उसके "चुदाई" शब्द के प्रयोग को नज़र अंदाज़ करना उचित समझा और पूछा, "तुम्हे कैसे पता? तुमने देखा था मुझे सोनपुर मे यह सब करते हुए?"
"नही," रामु बोला, "पर हम जो अपनी आंखों से देखे ऊ तो गलत नही है?"
"क्या देखा तुमने, रामु?" मैने हैरान होकर पूछा.
"आप अभी किसन भैया से चुदवाकर आ रही हैं." रामु बोला, "हम अपनी आंखों से देखे, कैसे चारपायी पर साड़ी कमर तक उठाकर, आप किसन भैया से मजे लेकर चुदवा रही थी."

मेरी तो बोलती ही बंद हो गयी. चुदाई करते समय मुझे जो भ्रम हुआ था कि कोई आ रहा है ठीक ही था.

"भाभी, तुम एक बहुत गिरी हुई औरत हो! बड़े भैया बिस्तर से उठ नही पा रहें हैं, और तुम देवर के साथ खेत मे मुंह काला कर रही हो!" रामु बोला और फिर से जबरदस्ती मेरे होंठ पीने लगा. उसके हाथ मेरी चूचियों को दबाये जा रहे थे. उसका लन्ड उसकी पैंट मे बिलकुल खड़ा था और मेरे पेट पर गड़ रहा था.

एक अजीब सी मस्ती मुझ पर छाने लगी. मैने इस आदमी के वश मे थी. यह मेरा यहाँ बलात्कार करेगा तो किसी को मेरी आवाज़ सुनाई नही देगी. वीणा, मुझे सोनपुर के उस दिन की याद आने लगी जब रमेश और उसके दोस्तों मे मिलकर हम दोनो को लूटा था.

"अब तुम क्या चाहते हो, रामु?" मैने पूछा.
"तेरे को चोदना!" रामु एक भेड़िये की तरह मुझे नोचता हुआ बोला, "और नही चोदने देगी तो हम बड़े भैया को सब बता देंगे. जब जब हमरा मन करेगा हम तेरी मस्त चूचियों को पीयेंगे, तेरी चूत को मारेंगे, तेरी गांड को मारेंगे, और तु चुपचाप हमसे चुदवायेगी. समझी?"

"यह कैसे बात कर रहे हो मुझसे, रामु?" उसकी तु-तमारी सुनकर मैने उसे टोका.
"जैसे तेरे जैसी रंडी से बात करनी चाहिये." रामु ने कहा, "जो अपने देवर से खुले खेत मे चुदवा सकती है, वह सोनपुर मे ज़रूर चार-चार से एक साथ चुदवाई होगी."

मुझे समझ नही आ रहा था यह ममला कहाँ जा रहा है. अगर यह तुम्हारे मामाजी या मामीजी को बताये तो मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता क्योंकि दोनो मेरी योजना मे शामिल थे. पर तुम्हारे बलराम भैया अगर सुने तो न जाने क्या कर बैठें.

मैने अपनी जवानी को रामु के सामने समर्पण कर दी. "ठीक है, रामु. तुम्हे जो मन हो कर लो. पर मेरे उनको कुछ मत बताओ." मैने कहा.
रामु खुश हो गया और मुझे कुछ पेडों के पीछे एक झुरमुट मे ले गया.

"चल नंगी हो!" रामु ने मुझे हुकुम दिया और अपने कपड़े उतारने लगा. जल्दी से अपनी कमीज, बनियान, पैंट और चड्डी उतारकर नंगा वह हो गया.

वीणा, रामु का रंग काला है पर वह देखने मे बुरा नही है. उसका शरीर बहुत गठीला और ताकतवर है. सपाट पेट के नीचे उसका 7 इंच का बिलकुल काला लन्ड तनकर खड़ा था और थोड़ा थोड़ा ठुमक रहा था. लन्ड के नीचे एक आलू की तरह बड़ा पेलड़ लटक रहा था.
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