RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
भाभी की यह चिट्ठी बहुत लंबी नही थी. पर पढ़कर मुझे बहुत आनंद आया.
मै रामु से पहले कई बार मिल चुकी थी क्योंकि वह मामाजी के घर पर बहुत सालों से नौकर है. मुझे कभी लगा नही के वह मीना भाभी के बारे मे ऐसे बुरे विचार रखता होगा. मैं सोचने लगी, क्या वह मेरे बारे मे भी ऐसी लंपट बातें सोचता है?
मैने भाभी की चिट्ठी का जवाब भेजा.
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मेरी प्यारी मीना भाभी,
तुम्हारी चिट्ठी मिली. तुमने बहुत ज़्यादा तो नही लिखा है, पर अब जब रामु गाँव से वापस आ गया है, मुझे लगता है तुम्हारी कहानी कोई नयी करवट लेने वाली है. वैसे तुम्हारा यह नौकर तुम्हारे बारे मे कैसी गंदी गंदी बातें अपनी बीवी से करता है! सुनकर तुम्हे बुरा नही लगा? उसके मन मे तो तुम्हारे लिये बहुत ही बुरे विचार हैं.
वैसे तो मैं एक घर के नौकर से चुदवाने के पक्ष मे नही हूँ - घर के नौकर नौकरानीयों को अपनी जगह पर रहना चाहिये. पर मेरी वर्तमान हालत ऐसी है कि हमारे घर मे कोई नौकर होता तो मैं उससे ज़रूर चुदवा लेती.
अपनी अगली चिट्ठी जल्दी भेजना!
तुम्हारी वीणा
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अगले दिन जब डाकिया आया तब मैं अपने कमरे मे थी. मेरी माँ ने मेरे लिये भाभी की चिट्ठी ली और मेरे कमरे मे ले आयी.
"वीणा, मीना ने चिट्ठी भेजी है तेरे लिये." माँ ने कहा, "कितना भारी लिफ़ाफ़ा है - न जाने क्या लिखा है! पढ़कर बता तो क्या कहती है? मेरे भाई के घर पर सब ठीक तो है?"
मैने जल्दी से माँ के हाथ से भाभी की चिट्ठी ले ली. अब माँ को क्या बताती भाभी चिट्ठीयों मे क्या लिखती है?
"सब ठीक ही होगा, माँ." मैने से कहा, "भाभी को तो आदत है बहुत बोलने की और बहुत लिखने की."
मेरी माँ चली गयी तो मैं अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करके बैठ गयी भाभी की चिट्ठी पढ़ने, जैसे कि वह कोई रोचक जासूसी उपन्यास हो. जैसा कि पाठक गण देखेंगे, भाभी की यह चिट्ठी बहुत ही धमाकेदार थी.
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मेरी प्रिय वीणा,
तुम्हारा ख़त मिला. जानकर मुझे बहुत खुशी हुई कि तुम्हे हमारे घर की कहानी पढ़कर बहुत मज़ा आ रहा है.
कल तुम्हारे मामा, मामी, और मेरी योजना दो कदम और आगे बढ़ गई. अगर तुम्हे मेरा पिछला ख़त छोटा लगा हो तो मैं दावे के साथ कहती हूँ तुम यह किश्त पढ़कर बहुत संतुष्ट होगी!
तुम्हारे बलराम भैया का पैर अब ठीक ही हो गया है, पर वह खेत मे नही जा रहे हैं.
कल सुबह की बात है. नाश्ते से पहले किशन खेत मे फसल देखने चला गया.
जब नाश्ता तैयार हुआ सासुमाँ ने किशन के लिये नाश्ता एक डिब्बे मे भरा और गुलाबी को कहा, "गुलाबी, जा यह डिब्बा किशन भैया को दे आ. और सुन, बहुत काम है आज रसोई मे. जल्दी आ जाना!"
गुलाबी जाने को हुई तो मैने कहा, "माँ, गुलाबी काम मे व्यस्त है तो मैं दे आती हूँ देवरजी को खाना."
सासुमाँ ने मेरी तरफ़ एक अर्थ भरी मुसकान फेंकी और कहा, "ठीक है, बहु. तु ही जा. पर तु भी देर नही करना. बहुत काम है आज."
"मै जल्दी आ जाऊंगी, माँ." बोलकर टिफिन का डिब्बा लेकर मैं घर से निकल पड़ी.
किशन को खाना देने जाने का मेरा एक ही उद्देश्य था. पिछली रात मैं ससुरजी के साथ ही सोयी थी, पर सुबह से चूत मे खलबली होने लगी थी. क्या बताऊं, वीणा! सोनपुर मे चुदने के बाद से मेरी यौन भूख हद से ज़्यादा बढ़ गयी है. सारा दिन बस चुदाई करते रहने का मन करता है. मैने सोचा किशन खेत मे अकेला होगा. वहीं कहीं उससे एक पानी चुदवा लुंगी.
वीणा, तुम तो जानती हो तुम्हारे मामाजी की कितनी बड़ी खेती है. किशन के पास पहुंचते पहुंचते मुझे आधा घंटा लग गया. सरसों के खेत के बीच जो कुटिया बनी है उसके बाहर एक चारपायी पर किशन बैठे हुए नाश्ते की राह देख रहा था. आस-पास दूर दूर तक कोई नही था.
मुझे देखते ही किशन बोला, "अरे भाभी, तुम खाना देने आयी हो? गुलाबी नही आयी?"
"क्यों, तुम्हे गुलाबी का इंतज़ार था? कुछ चल रहा है क्या गुलाबी और तुम्हारे बीच?" मैने पूछा, "बहुत जल्दी पक गये, देवरजी! अब कामवाली पर भी मुंह मारने लगे हो!"
"नही भाभी! ऐसा कुछ नही है!" किशन बोला, "वह रोज़ मुझे खेत मे खाना देने आती है ना. बस इसलिये. आपने क्यों कष्ट किया."
मैने टिफिन का डिब्बा चारपायी पर रखा और किशन के बगल मे बैठ गयी.
मैने कहा, "देवरजी, मुझे कष्ट तो बहुत हो रहा है. अब तुम ही कुछ इलाज करो."
मेरा इशारा न समझ के किशन ने पूछा, "क्या कष्ट है आपको, भाभी?"
"हाय, इतना भी नही समझते, देवरजी?" मैने टिफिन का डिब्बा खोलते हुए कहा, "औरत को जवानी मे एक ही तो कष्ट होता है."
किशन मेरी मुंह की तरफ़ देखता रहा. छोकरा अभी तक अनाड़ी ही था.
मैने टिफिन से रोटी और सबजी निकालकर एक थाली मे रखी और कहा, "देवरजी, जवानी मे लड़की एक बार जब चुद जाती है, उसके बाद वह हर वक्त बस चुदवाना ही चाहती है. और समय पर लौड़ा न मिलने पर उसे बहुत कष्ट होता है."
सुनकर किशन मुस्कुरा दिया और मेरी जांघ पर हाथ रखकर सहलाने लगा. उसने एक तंग कुर्ता पजामा पहना हुआ था. पजामे मे उसका लन्ड सर उठाने लगा.
मैने रोटी तोड़कर, थोड़ी सब्जी लेकर एक कौर किशन के मुंह मे डाली और कहा, "देवरजी, तुम तो कल रात 10 मिनट मे ही खलास हो गये थे. मैं तो सारी रात तड़पती रही."
"क्यों भैया कुछ नही किये आपके साथ?" किशन ने पूछा, "आपके कमरे से देर रात तक भैया और आपकी मस्ती की आवाज़ें आ रही थी."
सुनकर मैं डर गई. पिछली रात मैं तो ससुरजी से चुदवाई थी. तुम्हारे बलराम भैया मेरे कमरे मे मुझे नही अपनी माँ को चोद रहे थे. कहीं किशन ने देख तो नही लिया?
"तुमने देखा हम दोनो को चुदाई करते हुए?" मैने पूछा.
"नही भाभी. जब मैं वहाँ गया तब अन्दर की बत्ती बंद थी. कुछ दिखाई नही दिया." किशन बोला.
मेरी जान मे जान आयी. मैने कहा, "हाँ, तुम्हारे भैया ने बहुत देर रात तक चोदा मुझे. पर क्या करूं, मेरी बेदर्द जवानी है ऐसी बला! सुबह उठी नही कि फिर मुझे तड़पाने लगी!"
किशन ने आवाज़ नीची करके कहा, "और जानती हो भाभी, कल रात माँ और पिताजी के कमरे से भी बहुत आवाज़ें आ रही थी."
"कैसे आवाज़ें?" मैने पूछा.
"वैसी आवाज़ें जो आपके कमरे से आ रही थी. मस्ती की आवाज़ें." किशन बोला, "बोलना तो नही चाहिये, पर लगता है पिताजी माँ की बहुत जोरदार ठुकाई कर रहे थे!"
अब मैं उसे क्या बताती की उसके पिताजी उसकी माँ को नही मुझे ठोक रहे थे.
मैने मुस्कुरा के उसके गाल को चूमा और एक हाथ उसके पजामे मे खड़े लन्ड पर ले गयी. उसका लन्ड पूरी तरह खड़ा हो चुका था. उसके पजामे के नाड़े को खोलकर मैने पजामे को नीचे उतार दिया. फिर खींचकर उसके चड्डी को भी उतार दिया. अब उसके नंगे लन्ड को मुट्ठी मे लेकर मैं हिलाने लगी. हाथ मे गरम लन्ड के छुअन से मैं गनगना उठी.
मैने एक रोटी की कौर उसके मुंह मे दी और पूछा, "किशन तुम्हे अपने माँ-पिताजी की चुदाई की आवाज़ें सुनकर अच्छा लगा?"
"भाभी, आप बुरा तो नही मानेंगी?" किशन ने पूछा.
"नही, क्यों?"
"बत्ती बंद होने के कारण मुझे कुछ दिखाई तो नही दे रहा था, पर मैं कल्पना कर रहा था कि माँ किस तरह पिताजी से चुद रही होगी." किशन बोला, "सोचकर मैं बहुत गरम हो गया था."
"यह तो गरम होने वाली ही बात है. सासुमाँ अभी भी बहुत सुन्दर हैं देखने मे. और उनकी चूचियां तो मेरी चूचियों से दुगुनी है.", मैने कहा. "देवरजी, तुम अपनी माँ को चुदते हुए देखना चाहोगे?"
"हाँ भाभी." किशन थोड़ा शरमा के बोला. उसका लन्ड मेरे हाथ मे फुंफकार रहा था.
"क्या तुम अपनी माँ को चोदना पसंद करोगे?" मैने पूछा.
किशन चुप रहा, पर उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी.
"देवरजी, तुम्हे अपनी माँ को चोदने का मन करता है तो इसमे शरमाने की कोई बात नही है." मैने कहा, "बहुत से लड़के अपनी माँ को चोदना चाहते हैं. और बहुत सी मायें अपने बेटों से चुदवाकर अपनी हवस मिटाती हैं."
"भाभी, क्या ऐसा भी होता है?" किशन ने आश्चर्य से पूछा.
"बहुत कुछ होता है दुनिया मे, मेरे भोले देवरजी!" मैने कहा.
"पर मेरी माँ ऐसी औरत लगती नही है." किशन बोला.
"तो मैं क्या ऐसी औरत लगती हूँ जो अपने देवर से खेत मे आ के चुदवाती है?" मैने कहा, "सासुमाँ भी एक औरत है और उसे भी दूसरी औरतों की तरह बहुत चुदवाने का मन करता होगा. तभी तो वह बाबूजी से मज़े ले लेकर चुदवाती है. उन्होने अपनी जवानी मे क्या क्या कुकर्म किये हैं हमे क्या पता. अगर वह तुम्हारे भैया से चुदी हो तो हैरत की कोई बात नही है."
मेरी बात सुनकर किशन गनगना उठा.
मैने किशन को एक और कौर रोटी खिलायी. उसके हाथ मेरी जांघों से हटकर मेरे नंगे, सपाट पेट को सहलाने लगे थे. मेरे आंचल को उसने गिरा दिया था और मेरी छोटी ब्लाउज़ मे कैद मेरे चूचियों को बीच-बीच मे दबा रहा था.
किशन ने मेरी ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और मेरी ब्लाउज़ उतार दी. फिर ब्रा का हुक खोलकर मेरी ब्रा भी उतार दी. अब मैं उसके सामने अध-नंगी बैठी थी. सुबह की धूप मेरी नंगी चूचियों पर पड़ रही थी और ठंडी ठंडी हवा से मुझे सिहरन हो रही थी. दूर दूर तक कोई भी नही था, पर इस तरह खुले मे नंगे होने के कारण मुझे डर भी लग रहा था और रोमांच भी हो रहा था.
मैने किशन के मुंह मे एक और कौर रोटी डाली और दूसरे हाथ से उसके लन्ड को हिलाने लगी. वह मेरे पास बैठकर खाना खा रहा था और मेरी चूचियों को मसल रहा था और मेरी निप्पलों को चुटकी मे लेकर मींज रहा था. चारो तरफ़ सन्नाटा था. सिर्फ़ किशन का लन्ड हिलाने के कारण मेरे हाथ की चूड़ियाँ खनक रही थी.
बीच-बीच मे झुककर किशन मेरी चूचियों को पी भी रहा था जिससे सब्जी मेरे निप्पलों पर लग जा रही थी.
"हाय देवरजी, क्या कर रहे हो!" मैने मज़ा लेते हुए कहा, "मेरी चूचियों को तो जूठा कर दिया तुमने."
"बहुत स्वाद आ रहा है, भाभी!" किशन हंसकर बोला, "बैंगन के भर्ते से कभी मैने चूची नही खाई है."
इस तरह हंसी मज़ाक करते हुए किशन का खाना खतम हुआ. उसने मुंह धोया, पानी पिया और कहा, "भाभी, मेरी भूख तो आपने मिटा दी. अब मेरी बारी है आपकी भूख मिटाने की."
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