RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
सासुमाँ अपने बेटे के करीब जाकर बैठी और बोली, "ले थोड़ा दबा दे. चूची मसलवाने मे मुझे बहुत मज़ा आता है. अब तो ढीली हो गयी है मेरी चूचियां - बहु और गुलाबी की तरह कसी नही है. पता नही तुझे मज़ा आयेगा के नही."
तुम्हारे भैया ने तुरंत अपनी माँ की चूचियों को अपने हाथों से दबाना शुरु किया और बोले, "नही माँ. बहुत मज़ेदार हैं तुम्हारे मम्में."
"तो फिर मेरी निप्पलों को चुटकी मे लेके मींज." सासुमाँ बोली.
बेटे ने ऐसा ही किया तो वह बोल उठी, "हाय! कितना अच्छे से मींज रहा है रे! बहु के साथ भी ऐसा ही करता है क्या? उफ़्फ़!! बेटे थोड़ा चूस भी दे मेरी चूचियों को!"
तुम्हारे भैया ने बिस्तर से उठने की कोशिश की तो सासुमाँ बोली, "अरे तु मत उठ. पाँव मे लग सकता है. तु लेटे रह. मैं ही तुझे अपनी चूचियां पिलाती हूँ."
बोलकर सासुमाँ बिस्तर पर चढ़ गयी और अपने दोनो पैर तुम्हारे भैया के दोनो तरफ़ रखकर उनके सीने पर बैठ गयी. फिर अपनी नंगी चूचियों को पकड़कर अपने बेटे के मुंह मे देने लगी. मेरे वह भी अपनी माँ की चूचियों को दबाने लगी और बारी-बारी चूसने लगे. उनका लौड़ा फिर ताव मे आकर फनफनाने लगा.
"हाय, बेटा! चूस अपनी माँ की चूचियों को!" सासुमाँ सित्कारी भरकर बोली, "आह!! कितना मज़ा है तेरे जीभ मे. उफ़्फ़!! मीना बहु कितनी सौभाग्यवति है जिसे तेरे जैसा लौड़ा मिला है. मैं उसकी जगह होती तो तेरा लौड़ा दिन-रात अपनी चूत मे डाले पड़ी रहती. आह!! और जोर से मसल बेटे! उम्म!!"
इधर मुझे और ससुरजी को भी बहुत जोश चढ़ गया था. घर पर कोई नही था. गुलाबी खेत से अब तक आयी नही थी. मैने ससुरजी के लुंगी को खोल दिया और उनके लौड़े को पकड़कर हिलाने लगी. वह मेरी चूचियों को मसल रहे थे और मेरे कंधों को चूम रहे थे. मुझे बोले, "बहु ब्लाउज़ और ब्रा उतार दे तो मैं ठीक से मसल सकूंगा."
मैने अपनी ब्लाउज़ और ब्रा उतार दी और ऊपर से पूरी नंगी हो गयी. अब ससुरजी मेरी चूचियों को दो हाथों से पकड़कर खूब मसलने लगे और मुझे मज़ा देने लगे. साथ ही मेरे कंधे और गले को चूमने लगे.
बेटे के सीने पर बैठे होने के कारण सासुमाँ की साड़ी और पेटीकोट कमर तक चढ़ गयी थी और उनकी नंगी जांघें नज़र आ रही थी. अपने बेटे के हाथ मे अपनी चूचियां देकर उन्होने अपना हाथ पीछे किया और बेटे का खड़ा लन्ड पकड़ लिया.
"हाय, बलराम! तेरा लौड़ा तो फिर से पूरा खड़ा हो गया रे!" सासुमाँ बोली, "तुझे अपनी माँ की चूचियां इतनी पसंद आयी!" वह बेटे का लन्ड पकड़कर हिलाने लगी.
"हाँ, माँ! तुम बहुत ही मस्त हो!" मेरे वह बोले, "तुम्हारे साथ इतना मज़ा आयेगा मैं कभी सोचा नही था."
"हाय! अगर सोचा होता तो क्या करता?" सासुमाँ बोली, "गुलाबी की तरह मुझे पटककर चोद देता?"
मेरे वह कुछ नही बोले. बस माँ की चूचियों को मसलते रहे और उनके निप्पलों को चूसते रहे.
सासुमाँ अब बेटे के सीने से थोड़ा नीचे सरक आयी और फिर अपने गरम होंठ अपने बेटे के होठों पर रख दी. फिर बहुत प्यार से अपने बेटे के होठों को पीने लगी. मेरे वह भी अपनी माँ के मुंह मे जीभ ठेलकर उन्हे चुसने लगे जैसे के दोनो कोई नयी दंपति हो.
देखकर मेरे ससुरजी गनगना उठे. मेरी चूतड़ मे अपना खड़ा लन्ड जोर से दबाकर, चूचियों को भींचकर बोले, "उफ़्फ़! क्या कर रही है कौशल्या अपने ही बेटे के साथ!"
"मुझे तो देखने मे बहुत मज़ा आ रहा है, बाबूजी!" मैने कहा.
"बलराम तेरा पति है, बहु!" ससुरजी बोले, "तुझे ज़रा भी बुरा नही लग रहा?"
"नही बाबूजी!" मैने कहा, "मै भी तो आपसे चुदवाती हूँ. हाय, और जोर से मसलिये, बाबूजी!"
"अपनी साड़ी उतार दे बहु." ससुरजी बोले.
मैने जल्दी से साड़ी उतार दी. अब मैं सिर्फ़ पेटीकोट मे थी. मेरे नंगे बदन को सहलाते हुए ससुरजी बोले, "पेटीकोट भी उतार दे ना! पूरी नंगी हो जा. तुझे पीछे से चोदता हूँ."
"कोई आ जायेगा, बाबूजी." मैने कहा.
"कौन आयेगा?" ससुरजी बोले, "गुलाबी को आने मे अभी देर है. गाँव मे सब से बतियाकर ही लौटेगी."
मैने अपनी पेटीकोट उतार दी और नंगी हो गयी. ससुरजी ने मुझे बाहों मे भर लिया और मेरे होठों को चूमने लगे. कमरे के बाहर खुले मे नंगे होने मे मुझे बहुत रोमांच हो रहा था.
"बाबूजी, आप भी अपनी बनियान उतार दीजिये." मैने कहा.
तुम्हारे मामाजी ने अपनी बनियान उतार दी और वह भी पूरी तरह नंगे हो गये. कमरे के अन्दर क्या हो रहा है देखने के लिये मैं मुड़ी तो उन्होने मुझे आगे की तरफ़ झुका दिया और अपना सुपाड़ा मेरी गीली चूत पर रख दिया.
"हाय, पेल दीजिये, बाबूजी!" मैने कहा तो, ससुरजी ने मेरी कमर पकड़कर अपना मोटा लौड़ा मेरी चूत मे पीछे से घुसा दिया. फिर मेरी चूचियों को मसलते हुए मुझे कुतिया बनाके चोदने लगे.
अन्दर सासुमाँ अब भी अपने बेटे के होठों को पीये जा रही थी. पर अब उनकी साड़ी कमर के एक दम ऊपर चढ़ चुकी थी और उनकी नंगे चूतड़ दिख रहे थे. वह अपनी चूत अपने बेटे के पेट पर रगड़ रही थी और कराह रही थी.
थोड़ा और नीचे सरक कर सासुमाँ ने अपनी मोटी बुर अपने बेटे के खड़े लन्ड पर रखा. बुर के फांक के बीच लौड़े को रखकर वह बुर को लौड़े के ऊपर-नीचे घिसने लगी.
"आह!! बेटे, क्या लौड़ा बनाया है तुने!" सासुमाँ बोली.
मेरे वह अपनी कमर उठाकर अपना लन्ड अपनी माँ की बुर पर दबाने लगे और बोले, "हाय माँ, यह क्या कर रही हो तुम?"
"तेरे लन्ड पे अपनी चूत घिस रही हूँ, और क्या. आह!!" सासुमाँ मज़ा लेते हुए बोली.
"पर माँ-बेटे की चोदाई गलत बात है, माँ!" वह बोले.
"पता है गलत बात है." सासुमाँ बोली, "पर मैं अभी इतनी गरम हूँ कि किसी का भी लौड़ा ले सकती हूँ! आह!! हाय क्या मज़ा आ रहा है, हाय!!"
"हमे यह सब नही करना चाहिये, माँ!" वह बोले.
"अरे चुप भी कर भड़ुये!" सासुमाँ खीजकर बोली, "चूत चूत होती है और लन्ड लन्ड होता है! चूत चोदने के लिये होती है और लन्ड चुदाने के लिये होता है. आह!! क्या लौड़ा है रे तेरा! डाल दे बेटे, अपनी माँ की चूत मे अपना लौड़ा डाल दे! ओह!!"
तुम्हारे भैया को मज़ा तो आ रहा था, पर वह चुप रहे.
सासुमाँ ने अपना हाथ पीछे लेकर बेटे के लन्ड को पकड़ा और उसके सुपाड़े पर अपनी बुर सेट किया. फिर दबाव डालकर बेटे के लन्ड को अपनी चुत मे लेने लगी.
इधर अन्दर का नज़ारा देखकर ससुरजी बोले, "अरे कौशल्या ने अपने बेटे का लन्ड अपनी चूत मे ले ही लिया!" उन्हे बहुत जोश आ रहा था यह सब देखकर. मेरी कमर को पकड़कर जोर जोर से मुझे ठोकने लगे.
उधर सासुमाँ अपने बेटे के लन्ड पर ऊपर-नीचे होकर चुद रही थी. बेटा भी माँ के नंगे चूचियों को पकड़कर मसल रहा था और कमर उठा उठाकर अपनी माँ की चूत मे लन्ड पेल रहा था. दोनो की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी. माँ-बेटे के पवित्र रिश्ते को भूलकर दोनो अपनी घिनौनी हवस मे डूबे हुए थे. सासुमाँ कमर उठा उठाकर ठाप दे रही थी तो उनकी बुर को चौड़ी कर के मेरे उनका मोटा लौड़ा अन्दर बाहर हो रहा था.
"हाय, क्या मज़ा है रे तेरे लन्ड मे, बलराम!" सासुमाँ बोली, "आह!! कितनी जलन हो रही है मुझे जो बहु तेरा यह लौड़ा रोज़ चूत मे लेती है! ऊम्म!! चोद बेटा, अपनी रंडी माँ को चोद अच्छे से!! कितने दिन हो गये ऐसे जवान लन्ड से नही चुदी हूँ! चोद मुझे और जोर से चोद!! आह!!"
उधर सासुमाँ कमर उठा उठाकर चुद रही थी और इधर ससुरजी मुझे कुतिये की तरह चोदे जा रहे थे. मुझे इतना मज़ा आ रहा था, पर मैं अपने मुंह कस के बंद करके चुदाये जा रही थी. बाहर का दरवाज़ा खुला ही था. किशन अचानक आ जाता तो देखता उसकी प्यारी भाभी नंगी होकर उसके बाप से खुले आम चुदवा रही है.
"ओह माँ!! ऊंघ!! कमर धीरे चलाओ!" मेरे वह अन्दर बोल रहे थे, "मेरे पानी निकल जायेगा!"
"अरे निकाल दे ना!" सासुमाँ बोली, "भर दे अपनी माँ का गर्भ! आह!! मैं भी झड़ने वाली हूँ, बेटे!! आह!! ओह!! ऊह!! चोद बेटे, चोद मुझे!! चोद अपनी चुदैल माँ को! आह!! आह!!"
दोने माँ-बेटे वासना मे डूबे हुए और 10-12 मिनट चुदाई करते रहे. सासुमाँ बीच-बीच मे झड़ रही थी, पर चुदाई जारी रख रही थी. पर इतने मे तुम्हारे भैया ने अपनी माँ के कमर को पकड़ा और अपना लन्ड उनकी बुर मे पूरा घुसाकर झड़ने लगे. "ऊंघ!! ऊंघ!! आह!! ले साली रंडी!! ले अपने बेटे का वीर्य अपने गर्भ मे!! आह!! आह!! आह!! आह!!"
झड़ने के बाद सासुमाँ बेटे का लन्ड चूत मे डाले उसके सीने पर लेट गयी.
इधर मैं दो बार झड़ चुकी थी. ससुरजी और खुद को सम्भाल नही पाये. अपनी बीवी को अपने बेटे के साथ चुदाई करते देखकर वह बहुत गरम हो गये और मेरी चूचियों को जोर से दबाते हुए मुझे बेरहमी से ठोकने लगे.
अचानक, दूर से गुलाबी और किशन के हंसने की आवाज़ आयी. वह दोनो खेत से घर लौट रहे थे.
"हाय बाबूजी, देवरजी और गुलाबी वापस आ गये हैं!" मैने डर कर कहा.
पर ससुरजी इतने जोश मे थे कि उन्होने मुझे चोदना बंद नही किया. मेरी कमर पकड़कर मेरी चूत मे अपना लन्ड पेलते रहे.
"छोड़िये बाबूजी!" मैने छुटने की कोशिश करके कहा, "वह दोनो आ जायेंगे तो गज़ब हो जायेगा!"
"होने दे गज़ब!" ससुरजी हांफ़ते हुए बोले, "किशन से तु चुद ही चुकी है. गुलाबी भी देख ले के ससुर-बहु की चुदाई कैसी होती है."
"नही बाबूजी! उन्होने देख लिया तो सारी योजना खराब हो जायेगी!" मैने विनती करके कहा.
"ठहर ना बहु, अब बस एक मिनट ही लगेगा. मैं बस झड़ने ही वाला हूँ." बोलकर ससुरजी बहुत जोर जोर से मुझे ठोकने लगे. उनके लौड़े का सुपाड़ा मेरे गर्भ के मुंह पर जाकर टकराने लगा.
किशन और गुलाबी की आवाज़ और पास आ रही थी. मुझे डर लग रहा था और चुदाई मे एक अलग आनंद भी आ रहा था यह सोचकर की किशन और गुलाबी अगर मुझे और ससुरजी को इस हालत मे देख ले तो क्या सोचेंगे!
चार-पांच ठाप और लगाकर ससुरजी ने मुझे अपने सीने से चिपका लिया और अपना लौड़ा मेरे चूत की गहरायी मे पेलकर वह अपना पानी छोड़ने लगे. उधर किशन और गुलाबी आंगन मे आ गये थे. वीर्य का आखरी बून्द मेरी चूत मे गिराकर ससुरजी ने अपना नरम हो चुका लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया. मेरी चूत से ससुरजी का वीर्य निकलकर मेरी जांघों पर बहने लगा और कुछ बूंदें ज़मीन पर गिर गयी. मैं ससुरजी के हाथों से छूटकर सासुमाँ के कमरे मे भागी और पलंग पर पस्त होकर लेट गई. ससुरजी भी मेरे पीछे पीछे कमरे मे आ गये और दरवाज़ा बंद करके मेरे बगल मे लेट गये.
इतने मे किशन और गुलाबी अन्दर आ गये.
"माँ! माँ, कहाँ हो तुम!" किशन बोला, "भाभी! कहाँ हो सब लोग?"
उसकी माँ तो उसके बड़े भाई से चुदवा कर नंगी पड़ी थी. उसकी भाभी उसके बाप से चुदवाकर यहाँ पड़ी थी.
गुलाबी की आवाज़ आयी, "अरे यहाँ जमीन पर कौन इतना सारा कपड़ा रख दिया है? ई तो मालिक की लुंगी और बनियान है. और ई भाभी के साड़ी ब्लाउज़ हैं! और यहाँ बून्द बून्द जाने का गिरा हुआ है!"
मैं चुद कर इतनी थक गयी थी कि ससुरजी के नंगे बदन से लिपट का सो गयी.
जब मेरी आंख खुली, तो देखा सासुमाँ मुझे जगा रही थी. उनके चेहरे पर खुशी की चमक थी.
ससुरजी बोले, "क्यों कौशल्या, आ गयी अपने बेटे के साथ मुंह काला करके? अब अपने दूसरे बेटे को भी मादरचोद बना लो फिर तुम्हारे पापों का घड़ा भर जाये."
"तुम चुप रहो जी." सासुमाँ बोली, "जब बलराम को कोई आपत्ती नही है अपनी माँ को चोदने मे तो तुम्हे क्यों जलन हो रही है? अब से तो मैं उससे रोज़ चुदुंगी. उफ़्फ़! ऐसा मज़ा मुझे ज़िन्दगी मे नही आया!"
"माँ, वह मेरे पति हैं!" मैने कहा, "आप उनको अकेले ही भोगेंगी क्या?"
"अरे बहु, तेरे लिये किशन और तेरे ससुरजी हैं ना!" सासुमाँ बोली, "रामु एक बार आ जाये तो उसे भी पटा लेना. बलराम को बस मेरी प्यास बुझाने के लिये छोड़ दे."
"माँ, आपके लिये किशन और रामु को भी तैयार करती हूँ." मैने कहा, "मेरे पति को मुझसे मत छीनिये!"
"अच्छा बहुत हो गया मज़ाक." सासुमाँ बोली, "अब तु उठकर कपड़े पहन."
उस रात मैं तुम्हारे भैया के साथ ही सोयी, मगर हम दोनो को ही चुदाई का कोई मन नही था. वह बोले उनके सर मे दर्द है. मैने भी कहा मैं काम करके बहुत थक गयी हूँ.
वीणा, जल्दी बताना तुम्हे आज के कहानी की किश्त कैसी लगी. मुझे पूरी उम्मीद है तुम ठरक कर पागल हो गयी होगी. देखो कहीं अपने पिताजी से चुदवा न बैठो!
ढेर सारा प्यार,
तुम्हारी मीना भाभी
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