मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:06 PM,
#20
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने अपना पल्लु गिरा दिया और अपने ब्लाउज़ मे ढके चूचियों को उसके सामने कर दिये. "क्यों देवरजी, देखोगे अपनी भाभी के जलवे?" मैने पूछा.

किशन मेरे चूचियों को देखकर बार बार थूक गटकने लगा.
किशन की आंखों मे देखते हुए मैने अपने ब्लाउज़ के हुक धीरे धीरे खोल दिये और ब्लाउज़ उतार दी. कुछ देर वह मेरी ब्रा मे कसी चूचियों को आंखों से भोगता रहा. मेरी गोरी, गोल चूचियां मेरे छोटे से ब्रा मे समा ही नही रही थी. फिर मैने अपने हाथ पीछे कर के अपनी ब्रा खोल दी. अब मैं कमर के ऊपर पूरी नंगी थी. मेरी नंगी, गोरी, चूचियां उसके सामने थिरक रही थी. मेरे भूरे रंग के निप्पल अकड़कर खड़े थे.

मैने अपने दोनो हाथों से अपनी चूचियों को पकड़ा और अपने निप्पल को चुटकी मे लेकर मीसा. मैं खुद मस्ती मे सिहर उठी और जोर की आह भरी, "आह!!" मेरी चूत बहुत गरम और गीली हो गयी थी. मैने मन मे सोचा, "बस और कुछ देर सब्र कर, मीना! यह लड़का जल्दी ही तेरे ऊपर होगा और इसका लौड़ा तेरी चूत को पेल रहा होगा." सोचकर ही मैं गनगना उठी.

"देवरजी, मेरी चूचियां कैसी लग रही है पास से देखने मे?" मैने अपने निप्पलों को मीसते हुए पूछा, "तुम्हारे भैया इन्हे बहुत बेदर्दी से मसलते हैं. और मेरे निप्पलों को अपने मुंह मे लेकर बहुत चूसते हैं. आओ, थोड़ा हाथ लगाकर देखो!"

किशन मेरे करीब आया और उसने एक कांपता हाथ मेरी एक चूची पर रखा. उफ़्फ़! क्या सनसनी हुई मेरे पूरे जिस्म मे! फिर वह धीरे धीरे मेरी दोनो चूचियों को दोनो हाथों से दबाने लगा.

"ओह!! देवरजी! उम्म!! थोड़ा और जोर से दबाओ." मैने कहा.

किशन ने वैसा ही किया. मैने कुछ देर उसके किशोर हाथों से अपनी चूची मसलवाने का मज़ा लिया.

फिर मैने हाथ बढ़ाकर पजामे मे कैद उसके लौड़े को पकड़ा और पूछा, "देवरजी, कितना बड़ा है तुम्हारा लौड़ा?"
"जी पता नही." उसने दबी हुई आवाज़ मे कहा, "कभी नापे नही." उसने अपनी आंखें बंद कर ली थी.
"तुम्हारे भैया का लन्ड बहुत बड़ा है." मैने उसके लन्ड को सहालते हुए कहा, "मुझे बड़े लन्ड बहुत पसंद हैं, देवरजी!"

किशन का पूरा शरीर अकड़ गया और वह इतना कांपने लगा के मुझे लगा वह पजामे ही पानी छोड़ देगा. मैने अपना हाथ हटाना चाहा, पर बहुत देर हो चुकी थी.

किशन ने एक हाथ से मेरी एक चूची को जोर से भींच दिया और दूसरे हाथ से मेरे हाथ को अपने लन्ड पर दबाकर रगड़ने लगा. "ओह!! ओह!! भाभी!! ओह!! आह!!" वह भारी आवाज़ मे बड़बड़ाने लगा और अपने चड्डी मे ही झड़ने लगा. उसका पजामा और मेरा हाथ उसके वीर्य से चिपचिपे हो गये.

"यह क्या किया तुमने, देवरजी?" मैने खीजकर पूछा.
"भाभी, पता नही कैसे हो गया!" किशन बहुत लज्जित होकर बोला.
"उफ़्फ़! कभी लड़की नही चोदे हो क्या?" मैने गुस्से से पूछा, "गाँव मे इतनी भाभीयाँ हैं. घर पर गुलाबी है. कभी किसी की चूत नही मारे हो?"
"नही भाभी."

"हे इश्वर!" मैने ठंडी आह भरी. लगा मेरी किस्मत मे आज लौड़ा लिखा ही नही था.
"कोई बात नही, देवरजी." मैने दिलासा देकर कहा, "नौजवानो के साथ ऐसा होता है. अभी फिर से खड़ा कर देती हूँ."

पर मुझे कुछ और करने का मौका नही मिला, वीणा! बाहर से तुम्हारे मामाजी के चिल्लाने की आवाज़ आयी, "मीना बहु! किशन! रामु! गुलाबी! कहाँ हो सब लोग? कोई दरवाज़ा तो खोलो!"

"पिताजी आ गये वीणा दीदी को घर छोड़कर." किशन बोला, "भाभी, तुम जाकर दरवाज़ा खोलो ना! मुझे अपना पजामा बदलना है."

मैने हारकर अपनी ब्रा और ब्लाउज़ पहनी और ससुरजी के लिये दरवाज़ा खोलने गई.


तुम्हरे मामाजी ने आते ही दोपहर का भोजन किया और तुरंत खेत मे मज़दूरों को काम समझाने चले गये. रात को लौटे और खाना खाकर सीधे अपने कमरे मे चले गये.

जब मैं रसोई का काम समेट रही थी, सासुमाँ बोली, "बहु, काम खतम हो जाये तो सोने के लिये मेरे कमरे मे आ जाना. बलराम को आज अकेले ही सोने दे."

वीणा, मैने तुम्हारे भैया को जब कहा कि मैं आज फिर मेहमानों के कमरे मे सो रही हूँ, तो उनका गुस्सा देखने लायक था! बहुत दया आयी बेचारे पर. पर क्या करती? सासुमाँ का कहना भी तो मानना था!

मैं सासुमाँ के कमरे मे पहुंची तो देखी वह ससुरजी के साथ पलंग पर बैठे बतिया रही थीं. मैने दरवाज़ा बंद किया और ससुरजी के पास जा बैठी. बैठते ही ससुरजी ने मुझे पकड़कर बिस्तर पर लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर चढ़ गये. मेरे नरम होठों पर अपने मर्दाने होंठ रखकर मुझे चूमने लगे. अपनी जीभ उन्होने मेरे मुंह मे डाल दी और मेरे होठों को चूसने लगे.

सासुमाँ हंस के बोली, "क्यों जी, बहु को देखकर तो तुम नये दूल्हे की तरह ठरक गये हो!"
"अपनी मीना बहु, माल ही कुछ ऐसी है!" ससुरजी बोले और अपने हाथों से ब्लाउज़ के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगे. "बुड्ढों के भी लन्ड खड़ा कर देती है!"

मैने भी प्यार से ससुरजी के होठों को पिया और पूछा, "वीणा, कैसी है, बाबूजी?"
"वीणा अच्छी है. तेरे लिये एक चिट्ठी भेजी है." ससुरजी बोले, "कल रात आयी थी मेरे कमरे मे. एक बार अच्छे से चोद दिया उसे. मेरे छोटी भांजी नीतु भी काफ़ी खिल गयी है. हो न हो चुदवा रही है किसी से गाँव मे. मन हुआ चोद लूं उसे भी, पर मौका नही मिला."

तुम्हारे मामाजी और मैं चुम्मा-चाटी कर रहे थे, के मैने देखा सासुमाँ ने अपनी साड़ी उतार दी. फिर हमारे प्यार को देखते हुए अपनी ब्लाउज़, ब्रा, पेटीकोट उतारने लगी. हमे बोली, "तुम लोग भी कपड़े उतार लो! फिर आराम से करो जो करना है."

उधर सासुमाँ पूरी नंगी हो गयी और इधर ससुरजी ने भी उठकर अपनी लुंगी और बनियान उतार दी और नंगे हो गये. उनका काला, मोटा लौड़ा तन चुका था. सासुमाँ उनके लन्ड को मुंह मे लेकर चूसने लगी.

मैने भी अपनी साड़ी उतारी और फिर ब्लाउज़ उतारी. अपनी ब्रा उतारने गयी तो, सासुमाँ बोली, "बहु, ब्रा क्यों पहनती है? कपड़े कुछ कम पहना कर."
"माँ ब्रा नही पहनुंगी तो मेरे दूध हमेश छलकते रहेंगे." मैने कहा.
"तो छलके ना!" सासुमाँ बोली, "इतने सुन्दर दूध हैं तेरे, सबको दिखाया कर. और चड्डी तो नही पहनती ना तु?"
"नही, माँ." मैने कहा, "चड्डी पहननी तो मैने शादी के बाद ही छोड़ दी थी. आपके बेटे तो जब भी मौका मिले मेरी साड़ी उठाकर मेरी चूत मे अपना लौड़ा पेल देते हैं."

ससुरजी सासुमाँ को लौड़ा चुसवाते हुए बोले, "मेरा बस चले तो अपनी सुन्दर बहु को मैं एक ब्रा और एक पेटीकोट मे रखूं, ताकि जब जी चाहे उसे पटक के चोद सकूं."
"वह दिन भी आयेगा." सासुमाँ बोली, "थोड़ा इंतज़ार करो."
तब तक मैने भी अपनी पेटीकोट उतार दी थी और सासुमाँ के साथ बैठकर तुम्हारे मामाजी का लौड़ा चूसने लगी. हम सास-बहु बारी बारी उनका लन्ड चूस रहे थे और बीच बीच मे एक दूसरे के होंठ भी पी रहे थे.

"तो कौशल्या, यहाँ का हाल बताओ." ससुरजी मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलते हुए बोले. "किशन के साथ बहु की कोई बात बढ़ी?"

मैं ससुरजी का लन्ड चूस रही थी और सासुमाँ मेरे नंगी चूत को सहला रही थी. वह बोली, "आज बात बनने ही वाली थी कि तुम मेहसाना से लौट आये और कबाब मे हड्डी बन बैठे! और आधा घंटा मिलता तो बहु किशन के नीचे होती. मैं दरवाज़े के बाहर से दोनो को देख रही थी. कितने कामुक लग रहे थे अध-नंगी भाभी और ठरकी देवर!"
मैने सासुमाँ को लौड़ा चूसने दिया और कहा, "पर माँ मैने उसके लौड़े को हाथ लगया था कि उसने अपना पानी छोड़ दिया."

सासुमाँ ने ससुरजी का लौड़ा मेरे मुंह मे दिया और कहा, "बहु, मेरी सुहाग-रात को तुम्हारे ससुरजी मेरी चूत मे लन्ड घुसाने की कोशिश मे दो दो बार झड़ गये थे. तीसरी कोशिश मे जाकर वह मेरी चूत की झिल्ली फाड़ पाये थे! पर अब देखो, घंटे भर पेल सकते हैं. मैं झड़ झड़ के पस्त हो जाती हूँ, पर यह नही थकते. बहु, अगली बार जब किशन के पास जायेगी तो उसका लन्ड चूसकर एक बार उसका पानी निकाल देना. फिर चुदवाना उससे."
"ठीक है माँ." मैने कहा.

अब तुम्हारी मामाजी बिस्तर पर लेट गयी और मुझे उनकी चूत चाटने को कहा. मैने अपनी चूत उनके मुंह पर दी और उनकी मोटी बुर को चाटने लगी. ससुरजी मेरे चूतड़ों के पीछे आये और उन्होने मेरे कमर को पकड़कर अपना लौड़ा मेरी चूत मे ठूंस दिया. मैं सासुमाँ की चूत चाट रही थी और ससुरजी मुझे कुतिया बनाकर पीछे से चोद रहे थे. बहुत मज़ा आने लगा इस तरह चुदने मे.

ससुरजी बोले, "बहु, गुलाबी का क्या कर रही हो? मैं तो बेकरार हूँ उसे चोदने के लिये."
मैं पीछे से ससुरजी के धक्के खाते हुए बोली, "लड़की आ रही है लाईन पर, बाबूजी...पर पूरा पटने मे थोड़ा वक्त लगेगा."
"बेचारी गुलाबी है बहुत शर्मिली." सासुमाँ बोली, "इतनी जल्दी हमारी बहु की तरह रंडी कैसे बन जायेगी?"
"कुछ करो, बहु!" ससुरजी मेरी चूत मारते हुए बोले, "एक दो दिन मे उसे पटाकर मुझसे चुदवा दो."
"मैं कोशिश कर रही हूँ, बाबूजी." मैने कहा.

ससुरजी की ठुकाई से मेरी मस्ती छूटने लगी थी. मैं सासुमाँ के बुर मे अपना मुंह घुसा के चाट रही थी और अपनी चूत मे लन्ड ले रही थी. मैं "ऊंह!! आह!! उम्म!!" की आवाज़ें निकालने लगी.

सासुमाँ भी हाथों से मेरे सर को अपनी चूत पर दबा रही थी और कह रही थी, "चाट, बहु, चाट! हाय क्या रंडी बहु है हमारी! उम्म!! चाट अच्छे से! सुनो जी, जल्दी से बहु को झाड़ो और फिर मेरी चुदाई करो!"

"मैं बस झड़ने वाली हूँ, माँ!" मैने हांफ़ते हुए कहा. "आह!! बाबूजी, थोड़ा जोर से ठोकिये मुझे! अपनी कुतिया को अच्छे से चोदिये. दो दिन से कोई लौड़े नही ली हूँ! आह!! और जोर से, बाबूजी!! हाय मैं झड़ रही हूँ!! ऊह!! आह!! ओह!!"

मैं झड़ कर सासुमाँ के जिस्म पर गिर पड़ी और अपनी गीली चूत उनके मुंह पर रख दी. वह मेरी चूत के चाटने लगी.

अब ससुरजी मेरी सासुमाँ के फैले हुए टांगों के बीच आये और अपना मोटा खड़ा लन्ड सासुमाँ की चूत पर रखा. मैने उनका लन्ड पकड़ा और अपने मुंह मे ले लिये और चूसने लगी. उनका लन्ड मेरी चूत के रस से चिपचिपा हो रहा था, पर मुझे चूसने मे बहुत स्वाद आया.

सासुमाँ बोली, "अरी छिनाल! मेरे मरद का लौड़ा खुद ही चूसती रहेगी या मुझे भी लेने देगी?"
"देती हूँ, माँ!" मैने हंसकर कहा और ससुरजी का लन्ड पकड़कर सासुमाँ के मोटी बुर पर रखा. ससुरजी ने सासुमाँ के पैर पकड़कर एक जोरदार धक्का अपने कमर का लगया और पूरे 8 इंच सासुमाँ की भोसड़ी मे पेल दिया.

"आह!! क्या आराम मिला!" सासुमाँ बोली.

ससुरजी अपना लौड़ा सासुमाँ की चूत मे पेलने लगे. सासुमाँ मुझे जकड़े हुए थीं और मेरी चूत को चाटे जा रही थी. साथ ही अपनी कमर उठा उठाकर ससुरजी का लन्ड ले रही थी. मेरी आंखों के बिलकुल करीब ससुरजी का लन्ड पिस्टन की तरह सासुमाँ की चूत के अन्दर बाहर हो रहा था.

"कौशल्या, तुम्हारा कुछ काम बन रहा है या नही?" ससुरजी पेलते हुए बोले.
"शायद बन रहा है, जी." सासुमाँ ठाप लेती हुई बोली, "10-12 दिनो से...बलराम को कोई चूत नही मिली है....हाय क्या पेल रहो हो!..उसने गुलाबी का बलात्कार करने की कोशिश की थी...उफ़्फ़!! पर लड़की ने घाँस नही डाली....आह!! अब दो दिन से...बहु की चूत भी...उसे नही मिली रही है...बहुत भड़का हुआ है...आह!! चोदने को मिले...तो वह बकरी भी चोद लेगा...ऐसी हालत है उसकी."

"मैं समझ सकता हूँ." ससुरजी हंसकर बोली, "जिस आदमी को चुदाई की लत हो...उसे चूत मिलनी बंद हो जाय तो वह चूत के लिये कुछ भी कर सकता है. रिश्ते-नाते सब भूल सकता है वह."
"मैं उसका यही हाल करना चाहती हूँ." सासुमाँ बोली, "ओह!! थोड़ा और जोर से पेलो जी...हाँ अब ठीक है...ऊह!! रोज़ बलराम को बहु और गुलाबी अपने जलवे दिखाती हैं... वह हाथ लगा सकता है पर...उन्हे चोद नही सकता...आह!!...अब तो जब मैं उसके कमरे मे जाती हूँ...वह मेरे चूचियों को...बहुत हसरत भरी निगाहों से देखता है."
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