RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने कभी किशन को नंगा नही देखा था. देखने मे वह अपने बड़े भाई की तरह बलवान नही है, थोड़ा दुबला है पर काफ़ी आकर्शक है. सीने पर कोई बाल नही है. उसक लौड़ा भी मेरे उनसे एक इंच छोटा है और मोटाई भी ज़रा कम है. अभी 18 का ही हुआ है किशन. शायद आगे चलकर अपने भैया और पिताजी के आकर का होगा उसका लौड़ा.
तय था कि वह कोई गंदी कहानियों की किताब पड़ रहा था और मुठ मार रहा था. मैने उसे कुछ देर देखा फिर एक बैंगन धीरे से अपनी चूत मे घुसा लिया. बैंगन किसी लन्ड से ज़्यादा लंबा और मोटा था. काफ़ी आराम मिला मुझे चूत मे बैंगन डालकर. किशन को मुठ मारते देखते हुए मैं अपनी चूत मे बैंगन पेलने लगी. दरवाज़े के बाहर पूरी तरह नंगे खड़े होकर चूत मे बैंगन करने मे मुझे एक अलग मज़ा आ रहा था.
थोड़ी ही देर बाद, किशन जोर जोर से अपना लन्ड हिलाने लगा. उसने किताब रख दी और दूसरे हाथ से अपने खड़े निप्पलों को छेड़ने लगा.
जल्दी ही वह जोर से कराह उठा, "ऊह!! भाभी! भाभी! यह लो भाभी! यह लो! आह!! ओह!! आह!!" बोलते ही उसके लन्ड से ढेर सारा सफ़ेद वीर्य पिचकारी की तरह हवा मे उठा और फिर उसके नंगे सीने पर जा के गिरने लगा. पांच-छह बार पानी निकला फिर उसका लन्ड ढीला पड़ गया.
अपनी चूत मे बैंगन पेलते हुए मैं यह नज़ारा देख रही थी. जी कर रहा था जाकर उसके पेट के ऊपर गिरे मलाई को चाट चाटकर खाऊं.
मैने थोड़ी देर चूत मे जोर से बैंगन पेला और एक बार झड़ गई. फिर सासुमाँ के कमरे मे चली गई.
सासुमाँ अन्दर नंगी लेट थी और एक हाथ से अपने बुर मे उंगली चला रही थी. मुझे देखकर बोली, "अरे बहु, कितनी देर लगी दी तुने! किसी ने देख लिया था क्या?"
एक बैंगन सासुमाँ को देकर बोली, "नही माँ, पर मैं किसी को देखकर आ रही हूँ."
"किसे?"
"देवरजी को." मैने कहा. "अपने कमरे मे चुदाई की कहानियाँ पड़ रहे थे और मेरा नाम लेकर मुठ मार रहे थे."
सासुमाँ खुश होकर बोली, "हाय, सब कुछ ठीक चल रहा है, बहु!"
फिर सासुमाँ अपने हाथ का बैंगन मेरी चूत मे घुसाकर धीरे धीरे पेलने लगी.
"हाय माँ, कितना मज़ा आ रहा है!" मैं बोली.
"बहु इतने मोटे बैंगन बुर मे मत घुसाया कर. बुर ढीली हो जायेगी और आदमीयों को मज़ा नही आयेगा." सासुमाँ बोली.
"ठीक है माँ, पर आज की रात के लिये काम चला लेते हैं. मुझे तो जी कर रहा है कोई लौकी अपनी चूत मे घुसा लूं!" मैने कहा.
काफ़ी देर तक हम सास-बहु एक दूसरे से लिपटे हुए चूत मे बैंगन पेलते रहे और एक दूसरे की चूची और होंठ पीते रहे. हालांकि लौड़े का काम बैंगन से नही चलता और मर्द का काम औरत से नही चलता, अपनी सासुमाँ के साथ समलैंगिक यौन क्रीड़ा मे मुझे एक अलग मज़ा आ रहा था. मैने भी सोचा, गुलाबी एक बार पट जाये तो उसकी चूची और चूत चखकर देखुंगी.
बैंगन पेलते पेलते कुछ देर मे हम सास-बहु फिर से झड़ने के करीब आ गये. सासुमाँ मुझे कसकर पकड़कर बोली, "बहु, हाय मेरा तो होने वाला है! आह!! ज़रा जोर जोर से पेल!"
मैं उनकी चूत मे जोर जोर से मोटे बैंगन को पेलने लगी. वह मेरे चूचियों को जोर से भींचकर झड़ने लगी. "आह!! ओह!! आह!! हाय क्या मज़ा दे रही है तु! आह!!" सासुमाँ बोलने लगी, "काश यह बैंगन न होकर...विश्वनाथजी का लौड़ा होता! आह!! बहुत याद आ रही है...सोनपुर की चुदाई की...आह!!"
खुद झड़ने के बाद सासुमाँ ने मेरी मस्ती को झाड़ा. मेरी चूत मे बैंगन पेलकर मुझे मज़ा देने लगी. साथ ही मेरी चूचियों को चूस भी रही थी. मुझसे भी और रहा नही गया. अपने सास के नंगे जिस्म को पकड़कर मैं झड़ गयी.
उसके बाद हम सास-बहु थक कर नंगे ही सो गये. सुबह उठकर देखा हम दोनो मादरजात नंगे पड़े हैं और बिस्तर पर दो मोटे बैंगन पड़े है. मैने शरारत से सोचा, आज अपने पति और देवर को इसी बैंगन की सब्जी खिलाऊंगी!
चलो, वीणा, घर पर मेरी पहली रात के बारे मे तुम्हे बहुत कुछ लिख दिया. अब मुझे रसोई मे जाना है. मेरा ख़त पढ़ते ही जवाब देना.
तुम्हारी भाभी
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मीना भाभी की चिट्ठी पढ़कर मैं बहुत गरम हो गई. किसी तरह चूत मे एक बैंगन पेलकर अपनी मस्ती को झाड़ी. फिर जल्दी से उनके चिट्ठी का जवाब लिखा और डाक से भेज दिया.
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प्यारी मीना भाभी,
तुम्हारी चिट्ठी मिली. पढ़कर बहुत आनंद आया. चूत मे बैंगन तो मैं ले ही रही हूँ. अब मुझे एक और काम सीखना है. किसी औरत के साथ समलैंगिक संभोग करना. तुम्हारी चिट्ठी से लगा तुम्हे मामीजी के साथ अपनी हवस मिटाकर काफ़ी मज़ा आया. अगर तुम यहाँ होती तो कसम से तुमको नंगी कर के तुम्हारी मस्त चूचियों को चूस चूसकर खतम कर देती! और तुम्हारी चूत को भी बहुत चाटती.
जल्दी से खबर भेजो घर पर और क्या हो रहा है. तुमने अपने देवर को पटाकर उससे चुदवाया कि नही? अगर वह तुम्हारा नाम लेकर मुठ मारता है तो उसे पटाना बहुत ही आसन होगा.
मामाजी तो अब तक घर पहुंच गये होंगे. तुम उनसे चुदवा रही हो कि नही? उनके हाथों मैने एक चिट्ठी भेजी है. पढ़कर जल्दी जवाब देना!
तुम्हारी वीणा
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अगले दिन भाभी की एक और चिट्ठी आयी. अपने कमरे मे जाकर मैने दरवाज़ा बंद कर दिया ताकि नीतु आकर परेशान न करे. रसोई से एक मोटा बैंगन भी ले आयी थी. अपने कपड़े उतारकर, चूत मे बैंगन को घुसाकर, मैं भाभी की चिट्ठी को चाव से पढ़ने लगी.
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प्यारी ननद वीणा,
आशा है तुम्हे मेरा पहला ख़त मिल गया है. तुम्हारे मामाजी के हाथों भेजा हुआ तुम्हारा ख़त भी मुझे मिल गया है. भई, अपने मामाजी से चुदवाई हो तो ज़रा खोलकर लिखना था कि तुमने उनसे कैसे कैसे मज़े लिये! तुमने तो बस एक पंक्ति लिखकर छोड़ दी है! मुझे तो अपने कारनामों को लिखने मे बहुत मज़ा आ रहा है. उम्मीद है तुम्हे भी पढ़कर मज़ा आ रहा होगा.
सासुमाँ के साथ संभोग करने के अगले दिन की बात बताती हूँ. सुबह तुम्हारे भैया को नाश्ता कराने के बाद गुलाबी सेंक लगाने के लिये गरम पानी लेकर उनके कमरे मे गई. मैं रसोई का काम निपटा रही थी. थोड़ी देर बाद मैं अपने कमरे की तरफ़ गयी तो देखा गुलाबी मेरे उनके पाँव के पास बैठकर एक कपड़े से गरम पानी का सेंक लगा रही थी. मेरे उनका लौड़ा तब भी लुंगी के अन्दर तना हुआ था और उनकी आंखें गुलाबी के कसी कसी चूचियों पर थी. गुलाबी सर झुकाकर सेंक लगा रही थी और कभी कभी चोरी से उनका लौड़े को देख लेती थी.
मैं दरवाज़े पर ही रुक गई.
वीणा, तुमने गुलाबी को तो देखा नही है. उसकी रामु से कुछ महीनों पहले ही शादी हुई है. छोटे कद की, सांवले रंग की लड़की है. उम्र कुछ 18-19 की है. बदन गदराया हुआ है पर चूचियां बहुत कसी कसी हैं. सांवले होने के बावजूद, गोल चेहरे पर बड़ी बड़ी काली आंखों के कारण सुन्दर लगती है. हमेशा घुटने तक घाघरा पहनती है जिसमे उसके जवान नितंभ बहुत आकर्शक लगाते हैं. क्योंकि हम सब उसे बहुत प्यार करते हैं वह घर पर नाज़ से अपने चूतड़ मटका मटका के चलती है.
तुम्हारे भैया गुलाबी को कह रहे थे, "गुलाबी, तुने पिछले दो दिनो से मेरी बहुत सेवा की है रे! मैं ठीक हो जाऊं तो तुझे कोई अच्छा सा इनाम दूंगा."
"नही बड़े भैया, हमे कोई इनाम-सिनाम नही चाहिये. ई तो हमरा काम है." गुलाबी बोली.
"अरे पगली, तेरा काम तो रसोई मे है. ठहर तुझे हाज़िपुर बाज़ार से एक लहंगा ला दूंगा. बहुत सुन्दर लगेगी तु." मेरे वह बोले.
"हमे नही चाहिये लहंगा."
"तो बता क्या चाहिये? तेरे लिये एक जोड़ी पायल ला दूं? कितने सुन्दर हैं तेरे पाँव. बहुत अच्छी लगेगी जब तु घर मे छम-छम चलेगी तो." मेरे वह बोले.
"भाभी के जैसी पायल?" गुलाबी खुश होकर पूछी.
"हाँ, बिलकुल मीना जैसी." मेरे वह बोले, और उन्होने अपने खड़े लन्ड को थोड़ा हाथ से सहलाया, "अच्छा गुलाबी, बहुत सेंक दिये मेरे पाँव तुने. ज़रा इधर आ के बैठ मेरे पास. बहुत बातें करने का मन कर रहा है तेरे साथ."
"नही बड़े भैया. आप वहीं बैठ के बतियाईये ना! भाभी आ जायेगी तो क्या सोचेगी!"
"अरे पगली, उसे तो रसोई मे बहुत समय लगेगा." बोलकर मेरे उन्होने गुलाबी का हाथ पकड़ा और खींचकर अपने पास बिठा लिया.
गुलाबी शरम से सकपकाने लगी. बोली "बड़े भैया, ई का कर रहे हैं आप? हम आपके नौकर की जोरु हैं!"
"नौकर की जोरु है तो क्या तु सुन्दर नही है? और रामु तो अपने गाँव गया हुआ है और पता नही कब लौटेगा." मेरे वह बोले, और घाघरे के ऊपर से गुलाबी के जांघों को सहलाने लगे.
"नही बड़े भैया, आपके साथ हम ई सब नही कर सकते!" बोलकर गुलाबी उठने को हुई पर तुम्हारे भैया ने उसके हाथ को जोर से पकड़े रखा था. उन्होने अपने दूसरे हाथ से गुलाबी का घाघरा ऊपर उठाया और उसकी नंगी जांघों को सहलाने लगे.
गुलाबी सिहर उठी, पर बोली, "बड़े भैया, हमे छोड़ दीजिये! हमरी इज्जत खराब हो जायेगी!"
"कैसे खराब होगी? कोई देखेगा तब न खराब होगी तेरी इज़्ज़त. मेरा कहना मानेगी तो बहुत मज़ा भी पायेगी और किसी को पता भी नही चलेगा. और ऊपर से ईनाम दूंगा सो अलग." कहकर उन्होने अपना हाथ गुलाबी की नंगी चूत पर रख दिया.
वीणा, तुम तो जानती हो गाँव की औरतें चड्डी नही पहनती है. गुलाबी गनगना उठी और उसने अपने दोनो जांघें जोर से दबा ली. मेरे उन्होने झट से अपना हाथ हटा लिया, और मौका देखकर गुलाबी हाथ छुड़ाकर दरवाज़े की तरफ़ भागी. बाहर निकलते ही वह मुझे से टकरा गई.
मैं गुलाबी को खींचकर बाहर बगीचे मे ले गयी और पूछी, "गुलाबी, यह क्या हो रहा था? खोलकर बता क्या बात है!"
गुलाबी कुछ देर अपनी नज़रें नीची किये खड़ी रही, फिर बोली, "भाभी आप बुरा मत मानना. और बड़े भैया से लड़ाई भी नही करना! और मेरे मरद को भी कुछ नही बताना."
"अच्छा नही बताऊंगी. पर बता बात क्या है." मैने दिलासा दिया.
"भाभी, बड़े भैया को न जाने क्या हो गया है! पिछले दस दिनो से हमरी इज्जत से खेलने की कोसिस कर रहे हैं." गुलाबी बोली, "आप सब लोग सोनपुर के मेले मे गये थे तब हम, किसन भैया और बड़े भैया घर पर अकेले थे. मैं सबके लिये खाना बनाती थी और घर का काम करती थी."
"फिर?"
"वैसे तो पहिले भी बड़े भैया हमरे जोबन को देखते रहते थे. पर आप लोगों के जाने के दूसरे दिन ही हम खेत मे उनको खाना देने गये तो ऊ हमरा हाथ पकड़ लिये और बोले, ’गुलाबी, तु कितनी सुन्दर है!’ फिर हमको पियार जताने लगे."
"कैसे कैसे प्यार जताया?" मैने पूछा.
"भाभी, हमे बताते सरम आती है!" गुलाबी बोली.
"अरे शरम कैसी? मैं भी तो एक औरत हूँ! खोलकर बता ना!" मैने सख्ती से कहा.
"भाभी, बड़े भैया हमको पीछे से पकड़कर अपने सीने से लगा लिये. फिर अपने दुई हाथ हमरे जोबन पर ले जाकर उन्हे धीरे धीरे दबाने लगे. बोले, ’कितने कसे कसे हैं तेरे जोबन, गुलाबी! रामु रोज़ मसलता है क्या?’"
"फिर?"
"फिर बड़े भैया अपना हाथ नीचे ले गये और हमे वहाँ सहलाने लगे."
"कहाँ, चूत पे?" मैने ने पूछा.
"हाय भाभी, आप ई कैसी भासा बोल रही हैं!" गुलाबी हैरान होकर बोली.
"अरे लड़की, चूत को चूत नही बोलेंगे तो क्या बोलेंगे?" मैने कहा, "बता फिर क्या हुआ."
"वह एक हाथ से हमरा जोबन दबा रहे थे और एक हाथ से हमरी...चू-चूत को सहला रहे थे. और हमरे गले और कंधों पर चुम्मी भी ले रहे थे!" गुलाबी बोली.
मैने गौर किया कि शरम के साथ साथ एक उत्तेजना भी थी उसकी आवाज़ मे. यानी लड़की को कुछ मज़ा तो आया ही था इस छेड़-छाड़ मे.
"हूं." मैने हामी भरी.
"भाभी आप भैया से नाराज़ तो नही हैं ना?" गुलाबी बोली, "ऊ का है ना, बड़े भैया ठहरे जवान मरद. जोरु साथ न हो तो जोस मे गलती हो जाती है."
"नही, मैं तुम्हारे बड़े भैया से बिलकुल नाराज़ नही हूँ." मैने कहा. बल्कि मैं तो बहुत खुश थी यह सब सुनकर. अगर वह मेरे पीछे गुलाबी की इज़्ज़त लूटने की कोशिश कर रहे थे तो मैने सोनपुर मे जो सब किया था वह भी सब माफ़ था.
"भाभी, आप हमसे नाराज तो नही हैं ना? हम बड़े भैया को और कुछ नही करने दिये." मुझे चुप देखकर गुलाबी पूछी, "ऊ जब हमरी चोली मे हाथ डालकर हमरे जोबन तो दबाने लगे और हमरा घाघरा उठाकर हमरी चू-चूत मे हाथ लगाये तो हम उनसे छूटकर अलग हो गये. और घर भाग आये."
"क्यों, क्यों भाग आयी?" मैने पूछा.
"काहे नही भागेंगे, भाभी!" गुलाबी हैरान होकर पूछी, "हम सादी-सुदा औरत हैं! और बड़े भैया भी तो आपके पति हैं. भला कोई सादी-सुदा औरत किसी पराये मरद का पियार लेती है का?"
"तु बहुत भोली है, गुलाबी" मैने उसके भारे भारे गालों की चुटकी लेते हुए कहा. "पराये मर्द के प्यार मे बहुत मज़ा होता है रे."
"हाय दईया! ई आप का कह रही हैं, भाभी?" गुलाबी हैरान होकर पूछी.
मैने उससे पूछा, "अच्छा बता, जब मेरे उन्होने तेरे चोली मे हाथ डालकर तेरे जोबन तो दबाया था, तुझे थोड़ी गुदगुदी हुई थी कि नही?"
गुलाबी सर झुकाकर चुप खड़ी रही. मैने उसके ठोड़ी को उंगली से ऊपर उठाया और कहा, "शरमा मत, गुलाबी. मैं किसी को नही बताऊंगी. बता, जब तेरे बड़े भैया चोली मे तेरी चूची को मसल रहे थे, तुझे मज़ा आया था कि नही?"
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