RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
सबके जाते ही, तुम्हारे भैया ने मेरा हाथ पकड़कर जोर से खींचा और मुझे अपने सीने पे गिरा दिया.
"उई माँ! यह क्या हो गया आपको?" मैं बोली. मेरी नर्म चूचियां उनके कठोर सीने से लगकर पिचक गयी थी.
उन्होने मेरे नर्म होठों को अपने होठों से चूमा और बोले, "मेरी जान, कितने दिनो से तुम्हारी इस जवानी का मज़ा नही लिया, तुम्हारे इन गुलाबी होठों का रस नही पिया. मुझे बहुत याद आती थी अपनी प्यारी पत्नी की!"
फिर वह अपने हाथ मेरे चूचियों पर ले जाकर उन्हे मसलने लगे. इतने दिनो बाद पति का प्यार पाकर मुझे बहुत अच्छा लगाने लगा.
"क्यों, जान, तुम्हे मेरी याद आयी कि नही?" उन्होने पूछा.
"ऊंहुं!" मैने शरम का नाटक करते हुए सरासर झूठ बोला. "मुझे भी आपकी बहुत याद आयी."
मैने यह बताना उचित नही समझा कि सोनपुर मे मैं रोज़ इतने लौड़े ले रही थी कि पति की याद आने का मुझे समय ही कहाँ था!
हुम दोनो कुछ देर इसी तरह उलझे रहे. मैं उनके मस्त होठों को पीती रही, वह मेरे चूचियों को मसलते रहे. उनका लन्ड लुंगी के अन्दर तनकर खड़ा हो गया था. मैने हाथ से उसे पकड़ा और सहलाकर कहा, "क्या जी, इसका यह क्या हाल बना लिया है आपने?"
वह बोले, "मैने कहाँ, तुमने यह हाल बनाया है, मेरी जान! दस दिनो से तरस रहा हूँ इसे तुम्हारे अन्दर डालने के लिये! अब तुम आ गयी हो तो और सब्र नही हो रहा."
मैने कहा, "पागल हो गये हैं आप! माँ रसोई मे हैं. कभी भी आ सकती हैं. जो करना है रात को कर लेना."
वह बोले, "मीना, तुम नही जानती मेरा क्या हाल हुआ है इन दस दिनो की जुदाई मे! मैं सच मे पागल ही हो गया हूँ! और कुछ नही तो थोड़ा चूस ही दो. मैं और बर्दाश्त नही कर सकता!"
मैने उठकर दरवाज़ा ठेल के बंद कर दिया और उनके पास बैठ गई. लुंगी को कमर के पास से खोलकर थोड़ा नीचे उतारा तो उनका लौड़ा थिरक कर बाहर आ गया. उन्होने चड्डी नही पहनी थी.
वीणा, तुम्हारे भैया का लौड़ा बहुत सुन्दर है - बिलकुल तुम्हारे मामाजी जैसा. संवला, मोटा, और 8 इंच लम्बा है. नीचे मोटा सा काला पेलड़ है जिसके दो अंडकोषों मे हमेशा बहुत वीर्य रहता है. शादी के बाद मैं बहुत मज़े से उनके लन्ड को चूसती थी और अपने चूत मे लेती थी. जब तक मैं महेश और विश्वनाथजी से नही चुदी थी तब तक मुझे पता नही था कि लन्ड इससे भी बड़ा होता है.
मैने झुक कर उनके लन्ड को मुंह मे ले लिया और चूसने लगी. कितना स्वाद आ रहा था इतने दिनो बाद अपने पति का लौड़ा चखने मे. मेरे वह तो मज़े मे जोर से कराह उठे. मैं मज़े से उनका लौड़ा चूसती रही और उंगलियों से उनके पेलड़ को सहलाती रही और वह मेरे सर पर हाथ फेरते रहे.
"आह!! कितना अच्छा चूस रही हो, मेरी जान! ऊम्म!! सुपाड़े को ज़रा जीभ से चाटो! उफ़्फ़!! ऐसा लन्ड चूसना तुम्हे किसने सिखाया?"
मैने उनके लन्ड से मुंह उठाया और कहा, "आपने, और किसने!"
वैसे सच कहूं तो लन्ड चूसने की सही कला तो मैने रमेश और उनके तीन दोस्त, और विश्वनाथजी का हबशी लौड़ा चूसकर ही सीखा था.
हम पति-पत्नी वैवाहिक प्रेम मे जुटे ही थे कि फ़ट! से कमरे का दरवाज़ा खुला. गुलाबी एक गमले मे गरम पानी लेकर दन-दनाकर अन्दर आ गई. मुझे तुम्हारे भैया के लौड़े पर झुके देखकर चीख उठी, "हाय दईया!!" और तुरंत कमरे के बाहर निकल गयी. मैने झट से उनका खड़ा लौड़ा लुंगी से ढक दिया.
बाहर सासुमाँ की आवाज़ आयी, "क्या हुआ, गुलाबी! तु चिल्लाई क्यों?"
गुलाबी बोली, "मालकिन, वह भाभी और बड़े भैया..."
सासुमाँ गुलाबी को डांटकर बोली, "अरी मूरख! कोई पति-पत्नी के कमरे मे ऐसे ही घुस जाता है क्या?"
फिर वह थोड़ी देर बाद गुलाबी को लेकर हमारे कमरे मे आई.
तब तक मैने उठकर अपनी साड़ी ठीक कर ली थी और आंचल से घूंघट कर लिया था. पर मेरे उनका लौड़ा तो लुंगी मे तब भी तम्बू बनाये हुए था. गुलाबी की नज़र तो लौड़े से हट ही नही रही थी. मेरे वह बहुत लज्जित हो रहे थे अपने खड़े औज़ार पे, पर न जाने क्यों उनका लन्ड लुंगी मे फनफनाता ही रहा. जैसे माँ और गुलाबी के आने से उनके अन्दर एक भ्रष्ट आनंद उठने लगा था.
सासुमाँ ने एक नज़र बेटे के खड़े लौड़े पर डाली फिर उसे अनदेखा करके मुझे बोली, "बहु, तु मेरे साथ ज़रा रसोई मे आ. गुलाबी, तु बड़े भैया के पाँव को सेंक दे."
गुलाबी उनके खड़े लौड़े पे नज़र गाड़े हुए ना-नुकुर करने लगी, पर सासुमाँ ने अनसुनी कर दी. हम दोनो रसोई मे आ गये.
रसोई मे आते ही सासुमाँ मुस्कुराकर बोली, "क्या बहु, घर आते ही पति के औज़ार पर टूट पड़ी? रात का भी इंतिज़ार नही हुआ?"
"क्या करूं, माँ! दस दिन हो गये हैं उनके साथ सोये हुए. मैं अपने आप को सम्भाल नही पायी." मैने कहा.
"पर पिछले दस दिनो मे तुने लन्ड कुछ कम भी तो नही खाये हैं! कल रात ही तो तुने छह-छह मर्दों का लिया था." सासुमाँ बोलीं.
मैं थोड़ा शर्म से लाल होती बोली, "माँ, पर वह तो कल रात की बात थी. आज तो पूरे दिन मैने कुछ किया ही नही!"
"और करना भी मत!" सासुमाँ बोलीं.
"वह क्यों?"
"बहु, जैसा कहती हूँ वैसा ही कर." सासुमाँ बोली, "तु आज रात को बलराम से साथ सोना ज़रूर. उसे प्यार भी करना और थोड़ा मज़ा भी देना. पर ध्यान रहे उसके साथ संभोग नही करना. बस उसे बहुत गरम करके छोड़ देना. कहना उसके पाँव मे बहुत चोट लगी है. संभोग करने से चोट बढ़ सकती हैं."
"माँ, मुझे तो लगता है आज उनको मेरी चूत नही मिली तो वह पागल ही हो जायेंगे!" मैने कहा.
"अरे बहु, यही तो मैं चाहती हूँ!" सासुमाँ हंसकर बोली. "वैसे भी इन दस दिनो मे गुलाबी की मस्त जवानी देख देखकर बलराम बहुत ही नाज़ुक हालत मे है. देखा नही कैसी भूखी नज़रों से गुलाबी के उभारों को ताड़ रहा था?"
"हाँ, पर गुलाबी वैसी लड़की नही है." मैने कहा, "वह नही देने वाली आपके बेटे को."
"और मैं चाहती भी यही हूँ कि बलराम को कहीं से भी अपनी हवस मिटाने का मौका न मिले." सासुमाँ बोली. "बस तु मेरे कहे पर चलती रह और देख क्या क्या होता है!"
"पर माँ, मेरा क्या होगा!" मैं लगभग रोकर बोली, "मैं तो अभी से ही बहुत गरम हो गयी हूँ!"
"तेरा इंतज़ाम मैं करती हूँ, बहु!" सासुमाँ बोली, "तेरे ससुरजी कल आ जायेंगे. फिर जितना चाहे उनसे अपनी प्यास बुझा लेना. बस आज की रात किसी तरह गुज़ार ले. मेरा भी तो तेरे जैसा ही हाल है!"
उस रात को खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरे मे चले गये. तुम्हारे भैया तो मुझे देखकर फूले नही समा रहे थे. उनका लन्ड अब भी लुंगी मे तनकर खड़ा था.
मैने दरवाज़ा बंद किया और उनके पास पलंग पर जा बैठी और उनके लौड़े को लुंगी के ऊपर से पकड़कर बोली, "क्यों जी, आप शाम से यूं ही इसे खड़ा किये बैठे हैं क्या?"
"मेरी जान, जब से तुम सोनपुर गयी हो यह ऐसे ही खड़ा है!" वह बोले, और मुझे एक पल सांस लेने दिये बगैर उन्होने खींचकर मुझे अपने बलिष्ठ सीने पर लिटा लिया और अपने होंठ मेरे होठों पर चिपकाकर गहरे चुम्बन लेने लगे. वैसे तो मैं लौड़ा लेने के लिये मर रही थी, पर सासुमाँ के हिदायत की मुतबिक नखरा करने लगी.
"ओफ़फ़ो!" मैने कहा, "मुझे थोड़ा सांस तो लेने दीजिये!"
"सांस बाद मे ले लेना, मेरी जान!" मेरे वह बोले और अपने सख्त, मर्दाने हाथों से मेरी चूचियों को मसलने लगे. "पहले प्यासे पति की प्यास बुझाओ! चलो, अपनी ब्लाउज़ उतारो जल्दी से!"
मैने उठकर अपना ब्लाउज़ उतार दिया. ब्लाउज़ उतरा नही कि उन्होने हाथ मेरे पीठ के पीछे ले जाकर मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मेरे ब्रा को उतारकर कमरे के कोने मे फेंक दिया. अब मेरे नंगे नर्म चूचियों को दोनो हाथों से पकड़कर जी भर के मसलने लगे. मुझे तो मज़ा बहुत आ रहा था! पर मैने कोई पहल नही की.
थोड़ी देर बाद वह बोले, "इधर आओ और ज़रा अपने दूध पिलाओ!"
मैं अपनी चूचियां उनके मुंह के पास ले गयी तो दोनो हाथों से पकड़कर बारी बारी मेरी दोनो चूचियों को वह पीने लगे और मेरे निप्पलों पर जीभ चलाने लगे. मैं मज़े मे गनगना उठी. मेरी चूत तो कब से गीली हो चुकी थी. मैं तो क्या, कोई भी औरत होती तो और बर्दाश्त नही कर पाती और उनका लौड़ा अपनी चूत मे लेकर खुद ही चुदने लगती. पर मैने अपनी हवस को मुश्किल से काबू मे किया. बस अपना हाथ उनकी लुंगी मे ले जाकर उनके सख्त लन्ड को हिलाने लगी.
"जान, अब साड़ी उतार दो!" मेरे वह बोले. मैने कुछ ना-नुकुर की तो वह बोले, "मीना, क्या हो गया आज तुमको? रोज तो मेरा लन्ड लेने के लिये खुद ही कपड़े उतारकर तैयार हो जाती हो?"
मैने उठकर अपनी साड़ी उतारकर रख दी और अब सिर्फ़ पेटीकोट मे उनसे लिपट गयी. उनके लुंगी और बनियान को उतारकर उन्हे पूरा नंगा कर दिया.
वीणा, तुम तो जानती हो तुम्हारे बलराम भैया कितने लंबे-चौड़े, बलवान और सुन्दर हैं. पर तुमने उन्हे नंगा नही देखा है. खेत मे काम करने के कारण बहुत कसा हुआ शरीर है उनका. सीने पर हलके बाल हैं. हालांकि वह तुम्हारे ममेरे भाई हैं, तुम उन्हे इस हालत मे देखती तो तुरंत वासना से भर उठती.
मैं उनके गरम लन्ड को धीरे धीरे हिला रही थी. उनके शक्तिशाली हाथ मेरे सारे जिस्म पर फिर रहे थे और मुझे मदहोश बना रहे थे. मैं आंखे बंद किये अपने प्यारे पति देव के प्यार का मज़ा ले रही थी. अचानक मुझे महसूस हुआ कि उन्होने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया है. मैं उठके बैठ गयी और मैने फिर से नाड़ा लगा लिया.
"मीना! यह क्या कर रही हो तुम!" हैरान होकर मेरे वह बोले. "पेटीकोट उतारो जल्दी से! मैं शाम से तुम्हे चोदने के लिये बेकरार हूँ!"
मैं बिस्तर से उठ खड़ी हुई और बोली, "कैसे चोदेंगे आप, हाँ? खुद उठकर बाथरूम भी नही जा पा रहे हैं, मेरे ऊपर चढ़ेंगे कैसे?"
"तो तुम, मुझ पर चढ़ जाओ ना!" वह बोले.
"नही. आज चुदाई नही होगी." मैने कहा और अपनी साड़ी बिस्तर पर से समेटने लगी.
"मगर क्यों?" वह बोले.
"आपके भले के लिये कह रही हूँ." मैने कहा. "आप बहुत ज़्यादा जोश मे हैं. आज चुदाई करेंगे तो ज़रूर आपके पाँव मे और चोट लग जायेगी. दो चार दिन मे ठीक हो जाइये, फिर जितना चाहे मुझे चोद लेना."
"उफ़्फ़! साली, जी कर रहा है तुझे पकड़ के लाऊं और पटक कर चोदूं!"
मैने हंसकर कहा, "मुझे पकड़ सकते हैं तो पकड़ लीजिये ना! मैं खुशी खुशी चुदवा लुंगी." बोलकर मैने अपनी समेटी हुई साड़ी अपने नंगे सीने पर रखी और दरवाज़े की तरफ़ चल दी.
"मीना! कहाँ चल दी तुम?"
"किसी और कमरे मे सोने! यहाँ न आप खुद सोयेंगे और न मुझे सोने देंगे. और ऊपर से अपने पाँव को चोट पहुंचा बैठेंगे."
बोलकर उन्हे गुस्से मे बिलबिलाता छोड़कर मैं दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गई.
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