मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:05 PM,
#15
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
हम दोनो की ही सांसें तेज चल रही थी पर हम कोई आवाज़ नही कर रहे थे. बस चुपचाप अंधेरे मे लेटे चुदाई किये जा रहे थे. "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" अंधेरे मे बस यही आवाज़ आ रही थी.

मुझे पेलते पेलते मामाजी बोले, "वीणा, नीतु अब बड़ी हो गयी है, है ना?"
मैं मामाजी के ठापों का कमर उठा उठाकर जवाब दे रही थी. मैं बोली, "हाँ, इस साल 18 की होगी."
"उसके मम्मे अब मीसने लायक बड़े हो गये हैं. अमरूद जैसे."
"मामाजी, अब आपकी बुरी नज़र मेरी छोटी बहन पर भी पड़ गयी है!" मैने कहा.
"क्यों इसमे क्या बुराई है?" मामाजी ठाप लगाते हुए बोले. "जब बड़ी भांजी को चोद सकता हूं तो छोटी को क्यों नही चोद सकता?"
"तो बुला लाऊं उसे यहाँ? उसके बुर का भी उदघाटन कर दीजिये!" मैने कहा.
"हो सकता है उसके बुर का उदघाटन पहले ही हो चुका हो!" मामाजी बोले, "आजकल के लड़कियों का कुछ पता नही. अब तेरे को ही देख ना. शकल से तु चुदैल थोड़े ही लगती है. कभी मौका मिला तो फुर्सत से नीतु को चोदुंगा. तु उसे पटाने मे मेरी मदद करेगी ना?"
"हाँ मामाजी." मैने कहा. चूत मे मामाजी के मोटे लन्ड की ठोकर से मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मै कुछ भी मानने को राज़ी थी.

धीरे धीरे हमारी सांसें और तेज हो गयी और मामाजी के धक्के भी तेज हो गये. अब मेरे लिये अपनी मस्ती को दबाये रखना मुश्किल हो रहा था.

"ओह!! मामाजी! आह!! और जोर से मामाजी! आह!!" मैं दबी आवाज़ मे बोलने लगी.
मामाजी कमर चलाते हुए बोले, "चुप कर, साली! बाहर कोई सुन लेगा!"

पर मुझसे खुद पर काबू नही हो रहा था. माँ, बाप, और छोटी बहन से छुपकर चुदवाने मे अलग ही मज़ा आ रहा था. मैं बस झड़ने ही वाली थी. मामाजी को जोर से जकड़कर मैने कहा, "और जोर से मामाजी! हाय और जोर से! क्या मज़ा आ रहा है चूत मराने मे!! उम्म!! आह!! हाय मैं गयी! हाय मैं गयी, मामाजी!!"

मेरी आवाज़ इतनी ऊंची हो गयी कि दरवाज़े के बाहर कोई होता तो ज़रूर सुन लेता. मामाजी ने मेरे होठों को अपने होठों से दबाकर बंद कर दिया जिससे मैं कोई आवाज़ न निकाल सकूं. फिर जोरों की ठाप देते हुए वह मेरी चूत मे झड़ने लगे. हम दोनो के मुंह से सिर्फ़ "ऊंघ!! ऊंघ!! ऊंघ!!" की आवाज़ निकल रही थी.

पुरा झड़ने के बाद मामाजी मेरे ऊपर कुछ देर लेटे हांफ़ते रहे. मैं भी उनके नीचे लेटे अपनी चूत मे उनके गरम वीर्य के अहसास का मज़ा लेती रही.

शांत होने पर मामाजी उठे और उन्होने अपना ढीला लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया. मेरी चूत से उनका वीर्य बहकर निकलने लगा.

"चल उठ, छोकरी." मामाजी बोले. "आज बस इतनी ही चुदाई होगी. इससे पहले कोई आ जाये, मेरे कमरे से निकल."

एक बार झड़के मेरी भूख नही मिटी थी. मैं तो रात भर चुदवा सकती थी. पर हालात को देखते हुए मैं बिस्तर से उठी, अपनी साड़ी ठीक की और चुपके से मामाजी के कमरे से निकल आई. मामाजी ने मेरे पीछे दरवाज़ा बंद कर लिया.

मेरे जांघों पर मामाजी का वीर्य बहने लगा था. अपनी चूत को अपनी जांघों से दबाकर मैं किसी तरह नीतु के कमरे तक पहुंची. मैने धीरे से नीतु के कमरे का दरवाज़ा खोला और आकर बिस्तर पर उसके पास लेट गयी.

अंधेरे मे नीतु के हलके सांसों की आवाज़ आ रही थी. शायद वह पूरे समय सोती ही रही थी और उसे मेरे आने-जाने का कुछ पता नही चला था.

पर अचानक नीतु ने पूछा, "दीदी, तु कहां गयी थी?"

मेरा दिल धक! से धड़क उठा.

"अरे तु सोयी नही है? मैं...मैं कहीं नही गयी थी!" मैने हड़बड़ाकर जवाब दिया.
"झूठ मत बोल, दीदी! तु मामाजी के पास क्यों गयी थी?" नीतु ने पूछा.
"ओह! वह तो ऐसे ही!" मैने हंसने की कोशिश की और कहा, "हम मीना भाभी और मामीजी के बारे मे बात कर रहे थे."
"पता नही तुम लोग क्या बातें कर रहे थे, पर अजीब आवाज़ें आ रही थी अन्दर से." नीतु बोली.
"कमीनी, तु कान लगाकर सुन रही थी क्या?" मैने पूछा.
"और तुम लोग अंधेरे मे बैठ के क्यों बातें कर रहे थे?" नीतु ने उलटे पूछा.
"तु अन्दर देख भी रही थी, साली!" मुझे तो डर से पसीने आने लगे. "ठहर मैं माँ से तेरी शिकायत करती हूं."
"दीदी, मैं तेरी जगह होती तो माँ-पिताजी को शिकायत करने नही जाती." नीतु ने मुझे धमकाया.
"क्या मतलब है तेरा?"
"कुछ नही!" नीतु बोली. उसने एक बड़ी सी नकली जम्हाई ली और कहा, "बड़ी नींद आ रही है, दीदी. मैं तो चली सोने."

नीतु ने मेरे किसी सवाल का और जवाब नही दिया. मैने अंधेरे मे लेटे सोचती रही नीतु ने क्या देखा और सुना होगा, और न जाने कब मेरी आंख लग गई.


अगले दिन सुबह नाश्ते के बाद मामाजी हाज़िपुर लौटने वाले थे. मैने सोचा मीना भाभी न जाने क्या कर रही होगी. उनका हाल-चाल पूछने के लिये, और मामाजी के साथ अपनी कल रात की चुदाई के अनुभव को बताने के लिये, मैने भाभी को एक चिट्ठी लिखी.

**********************************************************************

प्रिय मीना भाभी,

आशा है घर पे सब कुशल-मंगल है. बलराम भैया, किशन, और बाकी सब लोग कैसे हैं? घर का हाल-चाल बताना.

भाभी, कल रात मौका देखकर मैने मामाजी से एक बार चुदवा लिया. मुझे तो उनसे सारी रात चुदवाने का मन था, पर वही नही माने.

खैर, आज सुबह मामाजी हाज़िपुर के लिये रवाना हो रहे हैं. दोपहर तक घर पहुंच जायेंगे. यह चिट्ठी मैं उनके हाथों भिजवा रही हूँ.

चिट्ठी का जवाब जल्दी देना. सोनपुर से लौटते समय ट्रेन मे तुमने जो योजना बनायी थी वह सफ़ल हो रही है या नही, सब खोलकर लिखना. मामीजी को मेरा प्रणाम कहना.

तुम्हारी वीणा

********************************************

अगले दिन दोपहर को मेरे नाम भाभी की एक चिट्ठी आयी. खानपुर से मेहसाना डाक आने मे एक दिन लगता है. यानी कि यह चिट्ठी भाभी ने हाज़िपुर पहुंचते ही लिखी थी. मैं चिट्ठी लेकर अपने कमरे मे भागी और पढ़ने लगी.

**********************************************************************

मेरी प्यारी वीणा,

सासुमाँ और मैं सकुशल घर पहुंच गये हैं. घर पर सब ठीक है. तुम्हारे बलराम भैया के पाँव मे बहुत जोर की मोच आयी है. सारा दिन बिस्तर पर लेटे रहते हैं.

अब आती हूँ यहाँ घर के हाल-चाल पर.

तुम्हारी मामीजी और मैं हाज़िपुर स्टेशन से तांगा लेकर शाम तक गाँव पहुचे. पहुंचकर देखा तुम्हारे बलराम भैया अपने बिस्तर पर दायें पाँव मे मलहम-पट्टी किये पड़े हुए हैं. सेवा मे मेरा देवर किशन और हमारे नौकर रामु की जोरु गुलाबी बैठे हैं.

मुझे देखर मेरे पति देव का चेहरा खिल उठा. घर के सब लोग मौजूद थे नही तो वह तो मुझे वहीं गले लगा लेते. आखिर तुम्हारे भैया मुझे बहुत प्यार जो करते हैं!

किशन बोला, "माँ, बहुत झमेला हुआ यहाँ, इसलिये तुम सबको भैया ने जल्दी बुला लिया. भैया को मोच आते ही मैं तांगे मे उनको हाज़िपुर बाज़ार मे डाक्टर मिश्रा के यहाँ ले गया. वही मलहम-पट्*टी कर दिये और बोले कि कुछ दिन बिस्तर मे आराम करना."

मेरी सासुमाँ ने पूछा, "गुलाबी, रामु नही दिख रहा?"

गुलाबी अपनी चुनरी से घूंघट किये खड़ी थी. चुनरी का सिरा मुंह मे दबाये बोली, "मालकिन, ऊ आप लोगन के साथ जो सोनपुर गये थे, तब से लौटे ही नही हैं!"

सासुमाँ बोली, "हूं! अपने गाँव जाकर यहाँ सबको भूल गया है! लौटेगा तो अच्छी सबक सिखाउंगी!" फिर मेरे देवर को बोली, "किशन, तु जा के अपनी पढ़ाई कर. अब मैं और तेरी भाभी आ गये हैं. हम सब सम्भाल लेंगे."

किशन के जाते ही मैने कहा, "माँ, आप बैठिये. मैं सेंक लगाने के लिये गरम पानी लाती हूँ."
सासुमाँ बोली, "नही बहु, तु बैठ के बातें कर. बलराम बहुत दिनो बाद मिल रहा है न तुझसे. चल गुलाबी, मेरे साथ रसोई मे चल."

बोलकर सासुमाँ और गुलाबी मुझे तुम्हारे भैया के साथ अकेले छोड़कर चले गये.
Reply


Messages In This Thread
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग - by sexstories - 10-08-2018, 01:05 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,549,854 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 549,875 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,253,182 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 947,543 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,682,485 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,104,674 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,991,923 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,190,386 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,081,785 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 289,618 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 3 Guest(s)