मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:04 PM,
#8
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मामा उलटे मुंह किये सो रहे थे और उधर विश्वनाथजी भी मामा के पास ही पड़े हुए थे. ऐसा मालूम होता था मानो रात को कुछ हुआ ही नही था. सब लोग उठ कर फारिग हुए और खाना बनाया और खाना खाया. खाना खाते हुए विश्वनाथजी कभी मुझे और कभी भाभी को घूर कर देख रहे थे.

मै बोली, "भाभी विश्वनाथजी ऐसे देख रहे हैं कि मानो अभी फिर से तुम्हे चोद देंगे."
भाभी- "मुझे भी ऐसा ही लग रहा है. बताओ अब क्या किया जाये."
मै बोली- "किया क्या जाये, चुप रहो, चुदवाओ और मज़ा लो."
भाभी- "तुम्हे तो हर वक्त चुदाई के सिवाये और कुछ सूझता ही नही है."
मै बोली- "अच्छा! बन तो ऐसी शरीफ़जादी रही ही हो जैसे कभी चुदावाया हि नही हो! चार दिनों से लौड़ों का पीछा ही नही छोड़ रही और यहाँ अपनी शराफ़त की माँ चुदा रही हो."
भाभी- "अब बस भी करो! मैने गलती की जो तुम्हारे सामने मुंह खोला. चुप करो नही तो कोई सुन लेगा."

और इस तरह हमारी नोंक-झोंक खत्म हुई.


अगले दिन हमारी मामीजी ने कहा कि उनके पीहर के यहाँ से बुलावा आया है और वह दो दिन के लिये वहाँ जाना चाहती हैं. इस पर मामाजी बोले, "भाई मैं तो काफ़ी थका हुआ हूँ और वहाँ जाने की मेरी कोई इच्छा नही है."

विश्वनाथजी तो जैसे मौका ही तलाश कर रहे थे मामीजी के साथ जाने का, (या फिर मामी को चोदने का चांस पाने का क्योंकि कल के दिन विश्वनाथजी मामी को चोद नही पाये थे.) तुरन्त ही बोले, "कोई बात नही भाईसाहब, मैं हूँ ना! मैं ले जाऊंगा भाभीजी को उनके मैके और दो दिन बिता कर हम वहाँ से वापस यहाँ पर आ जायेंगे."

विश्वनाथजी की यह बेताबी देख कर भाभी और मैं मुंह दबा कर हंस रहे थे. जानते थे कि विश्वनाथजी मौका पाते ही मामीजी की चुदाई जरूर करेंगे. और सच पूछो तो मामीजी भी जरूर उनसे चुदवाना चाह रही होंगी इसलिये एक बार भी ना-नुकुर किये बिना तुरन्त ही मान गयी."

अब हमारी मामी और विश्वनाथजी के जाने के बाद हमारे लिये रास्ता एक दम साफ़ था.

शाम के वक्त हम तीनो याने मै, मेरी भाभी और हमारे मामाजी घूमने निकले. याने कि मेला देखने (और मेला देखने के बहाने अपनी चूचि गांड और चूत मसलवाने) निकले.

भाभी मुझे फिर से भीड़-भाड़ मे ले गयी. मामाजी पीछे पीछे चल रहे थे और कहते ही रह गये कि हम ज्यादा भीड़ मे न जायें नही तो पिछली बार की तरह फिर खो जायेंगे. जल्दी ही मामाजी भीड़ मे काफ़ी पीछे रह गये.

मैं तो भाभी के इरादे समझ रही थी. पिछली रात की जबर्दस्त चुदाई के बाद हम दोनो की प्यास कम होने के बजाय बढ़ गयी थी. शायद वह इस उम्मीद मे थी कि पिछली बार की तरह चूची, चूत, और गांड मसलवाने के साथ हो सके तो सामुहिक बलात्कार का भी मज़ा मिल जाये.

मैने भाभी से पूछा, "क्या भाभी, उस दिन के बलात्कार की याद आ रही है, जो फिर से भीड़ मे जा रही हो?"
भाभी मुझे चूंटी काटकर बोली, "चुप भी करो! बाबूजी पीछे पीछे आ रहे हैं. सुनेंगे तो क्या सोचेंगे?"
मैने भी भाभी को चूंटी काटा और कहा, "यही सोचेंगे कि कितनी छिनाल है उनकी बहु, और हो सकता है वह भी तुम पर हाथ साफ़ करने की कोशिश करें."
भाभी ने मुँह बनाया और कहा, "उफ़्फ़! तुमको तो कुछ कहना ही बेकार है! मेरे साथ साथ चलती रहो और मुँह बन्द करके मज़े लेती रहो."

मैने भाभी की सलाह मान ली. जल्दी ही भीड़ मे कुछ आदमी हमारे पीछे पड़ गये और भीड़ का फ़ायदा उठाकर कभी हमारे गांड तो कभी हमारी चूची दबा देते थे. एक आदमी मेरे बगल बगल मे चल रहा था और एक हाथ से मेरी एक चूची दबा रहा था और दूसरे हाथ से मेरी गांड दबा रहा था. इससे मुझे जवानी की मस्ती चढ़ने लगी. मामाजी मुझे मज़ा लेते हुए देख न लें इसलिये मैं भीड़ मे उनसे और भाभी से थोड़ा अलग हो गयी.

अब मैं आराम से अपनी चूची और गांड दबवा रही थी और भाभी को आगे देख रही थी. मैने देखा कि दो आदमी भाभी को दो तरफ़ से घेरे थे और भाभी उनसे अपनी दोनो चूचियां मसलवा रही थी. हम इस तरह मज़े ले ले कर अलग अलग दुकानों मे घूमने लगे.

अचानक मैने देखा कि मामाजी भीड़ मे हमे ढूंढते ढूंढते भाभी के करीब पहुंच गये हैं और पीछे खड़े होकर उन दो आदमीयों को छेड़-छाड़ करते देख रहे हैं. मैं जल्दी से जाकर भाभी को होशियार करना चाहती थी, पर जो आदमी मेरे चूची पर लगा हुआ था उसने मुझे हिलने ही नही दिया.

भाभी मज़े से एक दुकान के सामने खड़े हो कर उन दोनो आदमीयों से अपनी चूची मसलवाये जा रही थी. मामाजी को यह जल्दी समझ मे आ गया कि भाभी को छेड़-छाड़ मे मज़ा आ रहा है.

मैं डर गयी कि अब क्या होगा. पर मैने देखा कि थोड़ी देर भाभी को देखने के बाद मामाजी ने अपना हाथ बढ़ाकर भाभी की गांड को छू लिया. भाभी अपनी चूचियों को मसलवाने मे इतनी मश्गुल थी कि उनको ध्यान नही आया कि उनके ससुर पीछे खड़े हैं. जब भाभी ने कोई प्रतिक्रिया नही की, तो मामाजी ने अपनी बहु की गांड को जोर से दबाना शुरू किया. अनजाने मे भाभी खड़े खड़े ससुर से गांड दबवाने का मज़ा लेने लगी. साथ मे उन दो आदमीयों के खड़े लण्डों को पैंट के उपर से दबाने लगी.

अब मुझे मामला समझ मे आने लगा. मामाजी को समझ मे आ गया था कि उनकी बहु बदचलन है, और वह भी उसकी जवानी का मज़ा लेना चाहते थे.

मैं भीड़ मे धीरे धीरे सरकते हुए भाभी के पास पहुंची और उसे पुकारा. भाभी पीछे मुड़ी तो उसने अपने ससुर को पीछे खड़ा पाया. उसके तो चेहरे के रंग उड़ गये. मामाजी ने भी झट से अपना हाथ हटा लिया.

मैने मामला संभालते हुए कहा, "उफ़्फ़ कितनी भीड़ है ना, भाभी! थोड़ा हिलना भी मुश्किल है!"
मामाजी बोले, "हाँ बिटिया! मैं तो कहता हूँ हम घर चलते हैं. काफ़ी घूम लिये भीड़ मे."

मैं और भाभी उदास हो गये क्योंकि हमको भीड़ मे जवानी का मज़ा मिल रहा था.
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