मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:03 PM,
#5
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
प्लान के मुताबिक उन्होने हमारे मामा को आवाज़ लगायी.

हमारे मामा नीचे उतर आये और बोले "राम-राम भाईया!"

मामा भी उसी पंचायत मे बैठ गये अब उन लोगों की गपशप होने लगी.
थोड़ी देर बाद आवाज़ आयी कि, "मीना बहू, गिलास और पानी देना!"

जब भाभी पानी और गिलास लेकर वहाँ गयी तो मैने देखा कि विश्वनाथजी की आंखें भाभी की चूचियों पर ही लगी हुई थी. उन्होने सभी गिलासों मे दारू और पानी डाला पर मैने देखा कि मामाजी के गिलास मे पानी कम और दारू ज़्यादा थी. उन्होने पानी और मंगाया तो भाभी ने लोटा मुझे देते हुए पानी लाने को कहा.

जब मै पानी लेने किचन मे गयी तो महेश तुरन्त ही मेरे पीछे-पीछे किचन मे आया और मेरी दोनो मम्मों को कस कर दबाते हुए बोल- "इतनी देर मे पानी लायी है, चूतमरानी? ज़रा जल्दी-जल्दी लाओ."

मेरी सिसकारी निकल गयी.

विश्वनाथजी ने मामाजी से पूछा, "वह तुम्हारा नौकर कहाँ गया?"
मामा- "वह नौकर को यहाँ उसके गाँव वाले मिल गये थे. सो उन्ही के साथ गया है. जब तक हम वापस जायेंगे तब तक मे वह आ जायेगा."

फिर जब तक हम लोगों ने खाना लगाया तब तक मे उन्होने दो बोतल खाली कर दी थी. मैने देखा कि मामा कुछ ज़्यादा नशे मे है. मैं समझ गयी कि उन्होने जान बूझ कर मामा को ज़्यादा शराब पिलायी है.

हम लोग खाना लगा ही चुके थे. मामीजी सबज़ी लेकर वहाँ गयी. मै भी पीछे-पीछे नमकीन लेकर पहुँची तो देखा कि रमेश ने मामीजी का हाथ थाम कर उन्हे दारू का गिलास पकड़ाना चाहा.

मामीजी ने दारू पीने से मन कर दिया. मै यह देख कर दरवाज़े पर ही रुक गयी. जब मामीजी ने दारू पीने से मना किया तो रमेश मामाजी से बोला- "अरे यार कहो ना अपनी घरवाली से! वह तो हमारी बेइज़्ज़ती कर रही है."
मामा ने मामी से कहा "राजो, पी लो ना क्यों बेइज़्ज़ती कर रही हो?"
मामीजी- "मै नही पीती."
रमेश- "भईया यह तो नही पी रही है, अगर आप कहें तो मै पिला दूं?"
मामा- "अगर नही पी रही है तो साली को पकड़ कर पिला दो!"

मामाजी का इतना कहना था कि रमेश ने वहीं मामीजी की बगल मे हाथ डाल कर दूसरे हाथ से दारू भरे गिलास को मामीजी के मुंह से लगा दिया और मामीजी को जबरदस्ती दारू पीनी पड़ी.

मैने देखा कि उसका जो हाथ बगल मे था उसी से वह मामीजी की चूचियां भी दबा रहा था. और जब वह इतनी बेफ़िक्री से मामीजी के बोबे दबा रहा था तो बाकी सभी की नज़रें (सिवाय मामाजी के) उसके हाथ से दबते हुए मामीजी के बोबों पर ही थी. यहाँ तक कि उनमे से एक ने तो गंदे इशारे करते हुए वहीं पर अपना लंड पैंट के उपर से ही मसलना शुरु कर दिया था.

मामीजी के मुंह से गिलास खाली करके मामीजी को छोड़ दिया. फिर जब मामीजी किचन मे आयी तो मैने जान बुझ कर मेरे हाथ मे जो सामान था वह मामीजी को पकड़ा दिया.

मामीजी ने वह सामान टेबल पर लगा दिया. फिर रमेश मामीजी के मना करने पर भी दूसरा गिलास मामीजी को पिला दिया. मामीजी मना करती ही रह गयी पर रमेश दारू पिला कर ही माना. और इस बार भी वही कहानी दोहरायी गयी. यानी कि एक हाथ दारू पिला रहा था और दूसरा हाथ मम्मे दबा रहा था और सब लोग इस नज़ारे को देख कर गरम हो रहे थे.

मामाजी की शायद किसी को परवाह ही नही थी क्योंकि वह तो वैसे भी एकदम नशे मे टुन्न हो चुके थे.

अब गिलास रख कर रमेश ने मामीजी के चूतड़ों पर हाथ फिराया और दूसरे हाथ से उनकी चूत को पकड़ कर दबा दिया. मामीजी सिसकी लेकर रह गयी.

मामीजी को सिसकारी लेते देख कर मेरी भी चुत मे सुरसुरी होने लगी.

हम लोग उपर चले गये. फिर नीचे से पानी की आवाज़ आयी. मामीजी पानी लेकर नीचे गयी. तब तक रमेश किचन मे आ पहुँचा था. मामीजी जो पानी देकर लौटी तो रमेश ने मामीजी का हाथ पकड़ कर पास के दूसरे कमरे मे ले जाने लगा.

मामीजी ने कहा, "अरे ये क्या कर रहे हो?" तो वह बोला, "चलो मेरी रानी, उस कमरे चल कर मज़ा उठाते हैं."

मामीजी खुद नशे मे थीं इसलिये कमज़ोर पड़ गयी और ना-ना करती ही रह गयी. पर रमेश उन्हे खींच कर उस कमरे मे ले गया. 

मेरी नज़र तो उन दोनो पर ही थी इसलिये जैसे ही वह कमरे मे घुसे मैं तुरन्त दौड़ते हुए उनके पीछे जाकर उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगी कि आगे क्या होता है.

रमेश ने मामीजी को पकड़ कर पलंक पर डाल दिया और उनके पेटीकोट मे हाथ डाल कर उनकी चूत मे उंगली करने लगा.

मामीजी- "हाय, यह क्या कर रहे हो. छोड़ो मुझे नही तो मै चिल्लाऊंगी!"
रमेश- "मेरा क्या जायेगा, चिल्लाओ जोर से! बदनामी तो तुम्हारी ही होगी. नही तो चुपचाप जो मैं करता हूँ वह करवाती रहो!"
मामीजी- "पर तुम करना क्या चाहते हो?"
रमेश- "चुप रहो! तुम्हे क्या मालूम नही है कि मै क्या करने जा रहा हूँ? साली अभी तुझे चोदूंगा. चिल्लायी तो तेरे सभी रिश्तेदार यहाँ आके तुझे नंगी देखेंगे और सोचेंगे कि तू ही हमे यहाँ अपनी चूत मरवाने बुलायी है".

डर के मारे मामीजी चुपचाप पड़ी रहीं और रमेश ने अपने सारे कपड़े उतार कर अपने खड़े लंड का ऐसा जोर का ठाप मारा कि उसका आधा लंड मामीजी की चुत मे घुस गया.

मामीजी- "उइइइ माँ मै मरी!"

मामीजी नशे मे होते हुए भी सिसकीयाँ ले रही थी. तभी रमेश ने दूसरा ठाप भी मारा कि उसका पूरा लंड अन्दर घुस गया.

मामीजी "उईई माँ!! अरे ज़ालिम क्या कर कर रहा है? थोड़ा धीरे से कर" कहती ही रह गयी और वह इंजन के पिस्टन की तरह मामीजी की चूत (जो कि पहले ही भोसड़ा बनी हुई थी) उसके चीथड़े उड़ाने लगा.

इतने मे मैने विश्वनाथजी को उपर की तरफ़ जाते देखा. मै भी उनके पीछे उपर गयी और बाहर से देखा कि भाभी जो कि अपना पेटीकोट उठा कर अपनी चूत मे उंगली कर रही थी, उसका हाथ पकड़ कर विश्वनाथजी ने कहा, "हाय मेरी जान! हम काहे के लिये हैं? क्यों अपनी उंगली से काम चला रही है? क्या हमारे लंड को मौक नही दोगी?"

अपनी चोरी पकड़े जाने पर भाभी की नज़रें झुक गयी थी और वह चुपचाप खड़ी रह गयी.
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