मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:03 PM,
#4
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
जैसे ही हम घर पहुँचे कि विश्वनाथजी बाहर आये हमसे मिलने के लिये.

संयोग कि बात यह थी कि यह लोग विश्वनाथजी की पहचान वाले थे. इसलिये जैसे ही उन्होने विश्वनाथजी को देखा तो तुरंत ही पूछा, "अरे विश्वनाथजी आप यहां? क्या यह आपका परिवार है?"



तो विश्वनाथजी ने कहा, "अरे नही भाई, परिवार तो नही पर हमारे परम मित्र और एक ही गाँव के दोस्त और उनका परिवार है यह."



फिर विश्वनाथजी ने उन लोगों को चाय पीने के लिये बुलाया और वह सब लोग हमारे साथ ही अन्दर आ गये.



वह चारों बैठ गये और विश्वनाथजी चाय बनाने के लिये किचन पहुँचे. तभी मेरे मामाजी ने कहा "बहू! ज़रा मेहमानों के लिये चाय बना दे."



और मेरी भाभी उठ कर किचन मे चाय बनाने के लिये गयी. भाभी ने सबके लिये चाय चढ़ा दी और चाय बनाने के बाद वह उन्हे चाय देने गयी. तब तक मेरे मामा और मामी उपर के कमरे मे चले गये थे और नीचे के उस कमरे मे उस वक्त वह चारों दोस्त और विश्वनाथजी ही थे.



कमरे मे वह पाँचों लोग बात कर रहे थे जिन्हे मै दरवाज़े के पीछे खड़ी सुन रही थी. मैने देखा कि जब भाभी ने उन लोगों को चाय थमायी तो एक ने धीरे से विश्वनाथजी की नज़र बचा कर भाभी की एक चूचि दबा दी. भाभी "सी" कर के रह गयी और खाली ट्रे लेकर वापस आ गयी.



वह लोग चाय की चुसकी लगा रहे थे और बातें कर रहे थे.



विश्वनाथजी- "आज तो आप लोग बहुत दिनों के बाद मिले हैं. क्यों भाई कहाँ चले गये थे आप लोग? क्यों भाई रमेश! तुम्हारे क्या हाल चाल है?"

रमेश- "हाल चाल तो ठीक है, पर आप तो हम लोगों से मिलने ही नही आये. शायद आप सोचते होगे कि हमसे मिलने आयेंगे तो आपका खर्चा होगा."

विश्वनाथजी- "अरे खर्चे की क्या बात है. अरे यार कोई माल हो तो दिलाओ. खर्चे की परवाह मत करो. वैसे भी फ़ैमिली बाहर गयी है और बहुत दिन हो गये है किसी माल को मिले. अरे सुरेश तुम बोलो ना कब ला रहे कोई नया माल?"

सुरेश- "इस मामले मे तो दिनेश से बात करो. माल तो यही साला रखता है."

दिनेश- "इस समय मेरे पास माल कहाँ? इस वक्त तो महेश के पास माल है."

महेश- "माल तो था यार पर कल साली अपने मैके चली गयी है. पर अगर तुम खर्च करो तो कुछ सोचें."

विश्वनाथजी- "खर्चे की हमने कहाँ मनाई की है. चाहे जितना खर्चा हो जाये, लेकिन अकेले मन नही लग रहा है यार. कुछ जुगाड़ बनवाओ."



मै वहीं खड़े-खड़े सब सुन रही थी. तभी मेरे पीछे भाभी भी आकर खड़ी हो गयी और वह भी उन लोगों की बातें सुनने लगी.



सुरेश- "अकेले-अकेले कैसे, तुम्हारे यहां तो सब लोग है."

विश्वनाथजी- "अरे नही भाई यह हमारे बच्चे थोड़ी ही हैं. हमारे बच्चे तो गाँव गये है. यह लोग हमारे गाँव से ही मेला देखने आये है."

महेश- "फिर क्या बात है. बगल मे हसीना और नगर ढिंढोरा! अगर तुम हमारी दावत करो तो इनमे से किसी को भी तुमसे चुदवा देंगे."

विश्वनाथजी- "कैसे?"

महेश- "यार यह मत पूछो कि कैसे, बस पहले दावत करो."

विश्वनाथजी- "लेकिन यार कहीं बात उलटी ना पड़ जाये. गाँव का मामला है. बहुत फ़जीता हो जायेगा."

सुरेश- "यार तुम इसकी क्यों फ़िक्र करते हो? सब कुछ हमारे उपर छोड़ दो."

रमेश- "यार एक बात है, बहु की जो सास (मेरी मामी) है उस पर भी बड़ा जोबन है. यार मै तो उसे किसी भी तरह चोदुंगा."

विश्वनाथजी- "अरे यार तुम लोग अपनी बात कर रहे या मेरे लिये बात कर रहे हो?"

महेश- "तुम कल दोपहर को दावत रखना और फिर जिसको चोदना चाहोगे उसी को चुदवा देंगे, चाहे सास चाहे बहु या फिर उसकी ननद."

विश्वनाथजी- "ठीक है फिर तुम चारों कल दोपहर को आ जाना."



मैने सोचा कि अब हमारी खैर नही. पीछे मुड़कर देखा तो भाभी खड़े-खड़े अपनी चूत खुजला रही है.



मैने कहा, "क्यों भाभी, चूत चुदवाने को खुजला रही हो?"

भाभी- "हाँ ननद रानी, अब आपसे क्या छुपाना! मेरी चूत बड़ी खुजला रही है. मन कर रहा के कोई मुझे पटक कर चोद दे."

मैने कहा, "पहले कहती तो किसी को रोक लेती जो तुम्हे पूरी रात चोदता रहता. खैर कोई बात नही कल शाम तक रुको. तुम्हारी चूत का भोसड़ा बन जायेगा. उन पाँचों के इरादे है हमे चोदने के और वह साला रमेश तो मामीजी को भी चोदना चहता है. अब देखेंगे मामी को किस तरह से चोदते हैं यह लोग."



अगली सुबह जब मैं सो कर उठी तो देखा कि सभी लोग सोये हुये थे. सिर्फ़ भाभी ही उठी हुई थी और विश्वनाथजी का लंड जो कि नींद मे भी तना हुआ था और भाभी गौर से उनके लंड को ही देख रही थी. उनका लंड धोती के अन्दर तन कर खड़ा था, करीब 10" लम्बा और 3" मोटा, एकदम रौड की तरह.



भाभी ने इधर-उधर देख कर अपने हाथ से उनकी धोती को लंड पर से हटा दिया और उनके नंगे लंड को देख कर अपने होठों पर जीभ फिराने लगी. मै भी बेशर्मों की तरह जाकर भाभी के पास खड़ी हो गयी और धीरे से कहा, "उई माँ"!"



भाभी मुझे देख कर शर्मा गयी और घूम कर चली गयी. मै भी भाभी के पीछे चली और उनसे कहा, "देखो कैसे बेहोश सो रहे हैं."

भाभी- "चुप रहो!"

मै- "क्यों भाभी, ज़्यादा अच्छा लग रहा है."

भाभी- "चुप भी रहो ना!"

मै- "इसमे चुप रहने की कौन सी बात है? जाओ और देखो और पकड़ कर मुंह मे भी ले लो उनका खड़ा लंड, बड़ा मज़ा आयेगा."

भाभी- "कुछ तो शर्म करो यूं ही बके जा रही हो."

मे- "तुम्हारी मर्ज़ी, वैसे उपर से धोती तो तुमने ही हटायी है."

भाभी- "अब चुप भी हो जाओ, कोई सुन लेग तो क्या सोचेगा."



फिर हम लोग रोज़ की तरह काम मे लग गये.



करीब दस बज़े विश्वनाथजी कुछ सामान लेकर आये और हमारे मामा के हाथ मे सामान थमा कर नाश्ते के लिये कहा. और कहा, "आज हमारे चार दोस्त आयेंगे और उनकी दावत करनी है यार. इसलिये यह सामान लाया हुँ भाईया. मुझे तो आता नही है कुछ बनाना. इसलिये तुम्ही लोगों को बनाना पड़ेग. और हाँ यार तुम पीते तो हो ना?" विश्वनाथजी ने मामाजी से पूछा.



मामा- "नही मै तो नही पीता हूँ यार."

विश्वनाथजी- "अरे यार कभी-कभी तो लेते होगे?"

मामा- "हाँ कभी-कभार की तो कोई बात नही."

विश्वनाथजी- "फिर ठीक है हमारे साथ तो लेना ही होगा."

मामा- "ठीक है देखा जायेगा."



हम लोगों ने सामान वगैरह बना कर तैयार कर लिया. 2 बज़े वह लोग आ गये. मै तो उस फिराक मे लग गयी कि यह लोग क्या बातें करते है.



मामा मामी और भाभी उपर के कमरे मे बैठे थे. मै उन चारों की आवाज़ सुन कर नीचे उतर आयी. वह पाँचो लोग बाहर की तरफ़ बने कमरे मे बैठे थे. मै बराबर वाले कमरे की किवाड़ों के सहारे खड़ी हो गयी और उनकी बातें सुनने लगी.



विश्वनाथजी- "दावत तो तुम लोगों की कर रहा हूँ. अब आगे क्या प्रोग्राम है?"

पहला- "यार ये तुम्हारा दोस्त दारू-वारू पीयेगा कि नही?"

विश्वनाथजी- "वह तो मना कर रहा था पर मैने उसे पीने के लिये मना लिया है."
दूसरा- "फिर क्या बात है! समझो काम बन गया. तुम लोग ऐसा करना कि पहले सब लोग साथ बैठ कर पीयेंगे. फिर उसके गिलास मे कुछ ज़्यादा डाल देंगे. जब वह नशे मे आ जायेगा तब किसी तरह पटा कर उसकी बीवी को भी पिला देंगे और फिर नशे मे लाकर उन सालीयों को पटक-पटक कर चोदेंगे."
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