Hindi Porn Kahani सियासत और साजिश
09-18-2018, 12:13 PM,
#42
RE: Hindi Porn Kahani सियासत और साजिश
रवि के लंड की नसें भी फूलने लगी. वो भी झड़ने के बिल्कुल करीब थी. रवि और तेज़ी और ज़ोर-2 से अपने लंड को रज़िया की चूत मे पेलने लगा. तप-2 और फॅक-2 की आवाज़ चारों ओर गूंजने लगी. और जैसे ही रवि के लंड ने वीर्य ने पिचकारी छोड़ी, रवि ने अपनी पूरी ताक़त समेट कर एक जोरदार धक्का मारा. लंड फॅक-2 की आवाज़ से रज़िया की चूत की गहराइयों मे उतर कर वीर्य की पिचकारियाँ छोड़ने लगा. लंड का झटका इतना जबर्दास्त था, कि रज़िया का बेलेन्स बिगड़ गया. और वो आगे की तरफ लुड़कते-2 बची.

रज़िया: अहह क्या कर रहा है जालिम. अभी मे आगे गिरने वाली थी. ओह 

और रज़िया आगे की तरफ लूड़क गयी. रवि का आधा खड़ा हुआ लंड पुच की आवाज़ से रज़िया की चूत से बाहर आ गया. और रज़िया अपनी साँसों को संभालते हुए सीधी खड़ी हो गयी. और अपने लहँगे को नीचे करके ठीक कर लिया. 

रज़िया: (रवि को वैसे ही लेटा देख कर) अब यूँ ही पड़ा रहेगा. चल जल्दी से उठ कर पाजामा पहन ले, कहीं कोई इधर ना आ जाए. 

रवि खड़ा हुआ, और अपना पाजामा उठा कर पहनने लगा. रज़िया वैसे ही लहंगा ठीक करके फिर से अपने काम मे लग गयी.

रवि: काकी अब मे हवेली जा रहा हूँ.

रज़िया: ठीक हैं. पर सुन आज शाम को तेरे काका आने वाले हैं. उनके सामने ज़रा सावधान रहना. कहीं उन्हे शक ना हो जाए.

रवि: ठीक है काकी.

रज़िया: जब भी कोई अच्छा मोका मिलेगा. मे तुझे बता दूँगी.

रवि रज़िया की बात सुन कर खेतों से बाहर की ओर जाने लगा. खेतों से बाहर आकर देखा तो रज़िया का बेटा अभी भी वहीं किसी और मजदूर के लड़के के साथ खेल रहा था. वो रवि को देख कर मुस्कुराते हुए बोला.

मुन्ना: रवि भैया हमारे साथ खेलो ना.

रवि: नही मुन्ना मे थक गया हूँ. कल खेलेंगे.

और फिर रवि हवेली की तरफ चल पड़ा. हवेली पहुँच कर रवि को हरिया काका हवेली के हाल के डोर के बाहर खड़े झाड़ू लगते दिखाई दिए. 


हरिया: अर्रे बेटा आ गया तू. जा अंदर जाकर रोमा से खाना माँग ले. 

रवि: जी काका. बाबू जी चले गये क्या.

हरिया: हां चले गये.

रवि: मेरे बारे मे तो कुछ पूछ नही रहे थे.

हरिया: हाँ एक बार पूछा था. फिर चले गये. कोई बात नही तू जाकर खाना खा.

और रवि अंदर आकर सीधा किचन मे चला गया. और रोमा को खाना देने के लिए बोला. 

दूसरी तरफ शाम के 5:30 राज एप्रा गाँव विशाल के घर पहुँच गया. विस बिशाल काफ़ी अमीर आदमी था. पर राज के मुक़ाबले काफ़ी कम था. विशाल की हवेली भी राज की हवेली की तरहा आलीशान थी. विशाल राज को देख कर बहुत खुस हुआ. 

विशाल: अर्रे आओ राज . मुझ तो उम्मीद ही नही थी कि तुम आओगे, मुझे तुम्हें देख कर बहुत ख़ुसी हुई. आओ अंदर चलें. 

अंदर आकर विशाल ने राज को अपने माता पिता पत्नी और बेटे से मिलवाया. राज अपने साथ लिया हुआ तोहफा विशाल के लड़के को दिया. कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद विशाल ने राज को अपने साथ चलने के लिए कहा.राज और विशाल दोनो हवेली से बाहर की तरफ आ गये. 

राज : अर्रे यार पार्टी अंदर चल रही है. और तू मुझ यहाँ बाहर क्यों ले आया हे.

विशाल: यार बच्चों जैसी बात मत कर. ये तो बच्चों की पार्टी चल रही हैं अंदर. चल मे तुझे अपनी असली पार्टी दिखाता हूँ.

राज : पर चलना कहाँ हैं.

विशाल: ज़्यादा दूर नही यहीं गाँव मे खेतों के बीच मैने एक छोटी सी हवेली और बनाई हुई है. वहीं पर मेरे दो दोस्त और आने वाले हैं. चल आज के शाम को रंगीन बनाते हैं. 

विशाल ने अपने एक आदमी को जीप बाहर निकालने के लिए कहा. कुछ देर बाद जीप बाहर आ गयी. राज और विशाल दोनो जीप मे आगे बैठ गये. और चार हट्टेकट्टे पहलवान जीप के पीछे गन्स को थामे बैठ गये. विशाल जीप को लेकर खेतों के तरफ निकल पड़ा.

राज : यार एक बात तुझे किसी से ख़तरा है क्या. जो ऐसे हथियार लिए आदमियों को अपने साथ रखता है.

विशाल: वैसे कुछ ख़ास नही यार तू तो जानता ही है. इतनी बड़ी ज़मीन जयदाद को संभालने के लिए इनको रखना ज़रूरी है. चल छोड़ ना यार कुछ और बात करते हैं.

दोनो बातें करते हुए विशाल के खेतों मे बनी हुई हवेली मे पहुँच गये. जो ज़्यादा बड़ी तो नही थी. पर ठीक ठाक थी. विशाल के दो दोस्त वहीं खड़े उनका इंतजार कर रहे थे. विशाल ने अपने दोस्तों अजय और राजीव से राज को मिलवाया. और फिर चारों अंदर आ गये. विशाल के आदमी बाहर पहरे दारों के तरहा खड़े थे.

विशाल (अजय और राजीव से) यार तुम दोनो बाहर क्यों खड़े थे. अंदर आकर आराम से बैठ जाते. किसी ने रोका तुम दोनो को.

अजय: नही-2 यार वो हम वैसे ही बाहर खड़े तुम्हारे आने का इंतजार कर रहे थे.

विशाल: देखो यारों तुम्हारे दोस्त का दिल और ये छोटी से हवेली तुम तीनो के लिए हमेशा खुली है. जब चाहो यहाँ आ सकतें हो. यहाँ पर तुम्हें किसी तरहा की रोक टोक नही होगी, और अगर किसी तरहा की ज़रूरत हो तो मुझ बता देना. मे उस वक़्त जहाँ भी रहूं. मेरे यारों के मुँह से निकली हर बात पूरी होगी.

अजय: वो तो हमें पता है यार. चल अब प्रोग्राम शुरू करते हैं

विशाल: जैसे तुम कहो. अर्रे ओ छोटू ज़रा हमारा समान तो लगा.

छोटू: जी बाबू जी.

छोटू ने आँगन के बीचों बीच एक बड़ा सा टेबल लगवा दिया. और टेबल के दोनो तरफ दो-2 कुर्सी लगा दी. चारो वहाँ बैठ गये. छोटू थोड़ी देर मे दो बॉटल वाइन की ले आया. और फिर आइस और बाकी का समान भी ले आया. 

विशाल ने चार ग्लास मे वाइन डाली. और तीनो को एक -2 ग्लास पकड़ा दिया.

राजीव: (अपने ग्लास को आगे बढ़ाते हुए) ये हमारे भाई के बेटे के जनमदिन के लिए चेअर्स ( और सब ने अपने अपने ग्लास आपस मे टकराते हुए चेअर्स बोला) चारो ने एक-2 सीप लिया. 

विशाल: (सीप लेने के बाद ग्लास को नीचे रखते हुए) और बता राज . फिर इतने दिन तक कहाँ रहा और क्या क्या.

राज : कुछ ख़ास नही यार बस डॉली की शादी के बाद जब मेरी शादी हुई. तो मे अपनी पत्नी को लेकर अलीगढ़ सिटी चला गया. डॉली के ससुराल वाले भी वहीं रहते थे. डॉली का पति अपने माँ बाप का एकलौता बेटा था. उसका अपना खुद का बिजनेस था. मैने भी उसके साथ मिलकर उसके बिजनेस मे इनवेस्टमेंट कर ली. पर तुम्हें तो मालूम ही है आगे जो हुआ. अब जब डॉली का बेटा साहिल बड़ा हो जाएगा. तो वहीं उनका बिज्निस भी देखा गा. डॉली के सास ससुर ने अपनी जयदाद साहिल के नाम कर दी है.

इस दौरान चारो एक-2 पेग ख़तम कर चुके थे. विशाल ने सब के ग्लास को टेबल पर रखा और दूसरा पेग बनाना चालू कर दिया.

विशाल: (पेग बनाते हुए) अर्रे ओह्ह्ह छोटू चिकेन कहाँ रह गया.

छोटू: बाबू जी अभी भेजता हूँ.

विशाल पेग बनाने लगा. थोड़ी देर बाद राज को अंदर से पायल की खनक की आवाज़ सुनाई दी. जैसे ही राज ने सर उठा कर देखा. तो सामने से 40-45 साल की एक अधेड़ उमर की औरत आ रही थी. उसके हाथ मे चिकेन की ट्रे थी.उसने ट्रे को टेबल पर रखा

विशाल: और सूनाओ कांता रानी कैसी हो.

काँटा: मे ठीक हूँ बाबू जी. पर लगता हैं आप हमे भूल ही गये. बड़े दिनो बाद याद किया.

विशाल: नही मे तुम्हें भूल सकता हूँ क्या. और सुनो सबाब का इंतज़ाम क्या है. देख मेरे कितने खास दोस्त आए हैं आज.

कांता: जी हजूर जैसे आप ने कहा था. बिल्कुल वैसी ही चुन-2 कर कलियाँ लाई हूँ.

विशाल: कहाँ हैं.

काँटा: अंदर हैं. बुलाऊ बाहर.

विशाल: अभी रहने दो. पहले जाम का दौर ख़तम हो जाने दो. फिर ही तो मज़ा आएगा,

और कांता वापिस चली गयी. राज ये बातें सुन कर बहुत हैरान था. राज के पास इतना पैसा होते हुए भी उसने आज तक ऐसे काम नही किए थे. पर राज कुछ नही बोला. चारों ने अपना दूसरा पेग भी ख़तम कर लिया था. बातों का सिलसिला भी चल रहा था. पर राज खामोशी से बैठा था.
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