Antarvasna kahani हवस की प्यासी दो कलियाँ
09-17-2018, 01:18 PM,
#50
RE: Antarvasna kahani हवस की प्यासी दो कलियाँ
उसने मेरे होंटो को चूस्ते हुए, अपनी एक उंगली को मेरी चुनमुनियाँ मे घुसा दिया…और अपने अंगूठे से मेरी चुनमुनियाँ के दाने को मसलने लगा….जैसे ही उसने मेरी चुनमुनियाँ के दाने को मसला…..मैं एक दम सिसक उठी….आँखे बंद होती चली गये…और सारा विरोध ख़तम होता चला गया….मैं राज के शर्ट के कॉलर को हाथ से कस्के पकड़े हुए थी…वो तेज़ी से अपने अंगूठे को मेरी चुनमुनियाँ के दाने पर हिलाता हुआ उसे मसल रहा था…मैं मदहोश होती जा रही थी….मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था….मेने अपने होंटो को उसके होंटो से अलग किया और तेज़ी से साँसे लेते हुए, धीरे-2 नीचे बैठने लगी…

राज की उंगली चुनमुनियाँ से बाहर आई, और फिर उसका हाथ मेरी सलवार से बाहर आ गया….मैं नीचे पैरो के बल बैठी हुई बुरी तरह से कांप रही थी..,..तभी मुझे राज की पेंट की ज़िप खुलने की आवाज़ आई, जैसे ही मेने अपनी आँखे खोल कर देखा तो राज का मुनसल जैसे साढ़े 8 इंच का बाबूराव मेरी आँखो के सामने झटके खा रहा था….उसने मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखा और फिर अपने बाबूराव को हाथ से पकड़ा और दूसरे हाथ से मेरे सर को, उसने अपने बाबूराव के सुपाडे को मेरे होंटो पर लगा दिया….

मेने अपना फेस दूसरी तरफ करने की कॉसिश की, मैने कभी बाबूराव को मूह मे नही लिया था….यहाँ तक कि आरके के बाबूराव को भी मूह मे नही लिया था…पर उसने मेरे सर को कस्के पकड़ा और अपने बाबूराव को बेस से पकड़ते हुए उसके सुपाडे को मेरे गालो पर मारने लगा….और फिर से होंटो पर सुपाडे को रगड़ने लगा….उस समय, राज बहुत उत्तेजित हो गया था…”

साली खोल और चूस इसे…..नही तो यही पटक कर चोद दूँगा.. चाहे तेरा पति देख ले…” उसने अपने बाबूराव के सुपाडे को मेरे होंटो पर सटाते हुए कहा…और फिर जबरन मेरे मूह मे अपना बाबूराव ठूंस दिया….”चल अब चूस इसे…” 

मेने उसके बाबूराव के चुप्पे लगाने शुरू कर दिए….इस डर से कहीं आरके नीचे ना अजाए, और अगर मैं ना करती तो, शायद वो मुझे वही चोदने लग जाता….इस आई मुसबीत से पीछा छुड़ाने के लिए, मैने उसके बाबूराव के चुप्पे लगाने शुरू कर दिए.. वो मेरे सर को पकड़ कर तेज़ी से अपनी कमर को हिलाते हुए अपने बाबूराव को मेरे मूह के अंदर बाहर करने लगा…उसका मोटा बाबूराव हाथो मे लिए हुए जब मैं उसे चूस रही थी….तो मैं भी गरम होने लगी थी…जिस मोटे बाबूराव से मैं आज तक भाभी को चुदते हुए और भाभी को चुप्पे लगाते हुए देखती आ रही थी…..

वही मोटा और लंबा बाबूराव आज मेरे हाथो मे था….आज मेने उसके बाबूराव को पहली बार छुआ ही नही था….बल्कि, उसके बाबूराव को मूह मे लेकर सकिंग भी कर रही थी…एक अजीब सा नशा छाता जा रहा था मुझ पर….और उस वासना के नशे मे आकर अब मैं खुद ही उसके बाबूराव के मोटे गुलाबी सुपाडे को अपने होंटो मे दबा-2 कर चूस रही थी. 

मुझे उसके बाबूराव की नसें अब फुलती हुई अपने हाथ मे सॉफ महसूस हो रही थी…करीब 6-7 मिनिट बाद उसने अपनी कमर को फिर से हिलाना शुरू कर दिया…”आहह डॉली मेरी जान….यस सक मी डियर….येस्स्स अहह ओह्ह्ह्ह्ह….” फिर उसने अपने बाबूराव के सुपाडे को मेरे मूह के अंदर तक धकेल दिया….और काँपते हुए झड़ने लगा….जैसे ही मुझे इस बात का अहसास हुआ, तो मेने उसकी जाँघो को पकड़ कर पीछे पुश किया, तो उसका बाबूराव मेरे मूह से बाहर आ गया….पर तभी उस ने झटके लेते हुए वीर्य की पिचकारियाँ मेरे चेहरे पर छोड़नी शुरू कर दी….


मैं बदहवास सी नीचे बैठी हुई, अपनी उखड़ी हुई सांसो को काबू मे करने की कॉसिश करने लगी….मुझे कुछ होश नही था कि, कब राज किचिन से बाहर चला गया…जब थोड़ी देर बाद होश आया, तो मैं जल्दी से भाभी के रूम मे गयी, और फिर बाथरूम मे घुस कर अपने आप को आयने मे देखा….उसके कम से मेरा पूरा फेस भरा हुआ था…मेने जल्दी से अपने फेस को धोया….और फिर फ्रेश होकर बाहर आई…..

मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, ये सब क्या हो रहा है मेरे साथ….क्यों मैं उसको हर बार रोक नही पाती….

इसी तरह दो दिन और गुजर गये….एक बार फिर से राज मुझसे दूर रहने लगा था…मैं अपने मन मे चल रहे अंतर्द्वंद से परेशान थी…आख़िर ये सब क्या हो रहा है.. और मेरे साथ ही क्यों हो रहा है….अजीब से कस्मकश मे थी…हर दूसरी या तीसरी रात को वो दोनो ऊपेर किचिन मे आकर जबरदस्त सेक्स करते थे….उनकी चुदाई की आवाज़े आधी रात तक सुन-2 कर मैं तड़प कर रह जाती….सॅटर्डे का दिन था….मैं सुबह तैयार होकर नीचे आई….हमें स्कूल के लिए निकलना था….मैं भाभी के रूम की तरफ बढ़ी. पर डोर पर पहुँचते ही मेरे कदम रुक गये….

भाभी ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी हुई, अपने होंटो पर मरून कलर की लिपस्टिक लगा रही थी….और उनके पीछे राज खड़ा था…स्कूल यूनिफॉर्म पहने वो भी तैयार था. “आह जान आज तो गजब ढा रही हो….सच्ची तुम्हारे होंटो पर ये मरून लिप कलर बहुत सेक्सी लगता है….” उसने भाभी के पीछे आकर उसे अपनी बाहों मई भरते हुए कहा.. 

“क्या इरादा है तुम्हारा आज सुबह-2 ही शुरू हो गये हो…” भाभी ने अपने दोनो हाथ ऊपेर उठाए और पीछे लाते हुए राज के सर को पकड़ लिया….

राज: आज इस मरून के लिप्स से बाबूराव चुसवाने का दिल कर रहा है….

भाभी: (ड्रेसिंग टेबल पर बैठे-2 राज की तरफ घूमते हुए) अच्छा तुम्हारा दिल कर रहा हो….और मैं तुम्हारे दिल की ख्वाहिश पूरी ना करूँ कभी ऐसा हो सकता है….?

राज ने अपनी पेंट की ज़िप को खोल दिया….और भाभी ने ज़िप के अंदर हाथ डाला और फिर थोड़ी देर बाद राज के बाबूराव को बाहर निकाल लिया…फिर राज की आँखो मे देखते हुए, अपने होंटो को खोल कर राज के बाबूराव के सुपाडे पर लगा दिया…और फिर राज के बाबूराव के सुपाडे पर अपने होंटो को रगड़ने लगी….”आहह शीइ….तुम्हारे लिपस्टिक लगे होंटो मे मेरा बाबूराव कितना सेक्सी लगता है मेरी जान…अह्ह्ह्ह….” ये सुनते हुए भाभी ने अपने होंटो को राज के बाबूराव पर चारो तरफ रगड़ना शुरू कर दिया…..

मैं वहाँ और खड़ी ना रह सकी, और ऊपेर अपने रूम मे आ गये….वेट करने लगी कि कब भाभी मुझे स्कूल जाने के लिए आवाज़ लगाई….मैं रूम मे आकर ड्रेसिंग टेबल पर बैठ गयी….और तभी मेरे नज़र वहाँ पड़ी मरून कलर की लिपस्टिक पर पड़ी…पता नही क्यों मेरे हाथ खुद ब खुद उस लिपस्टिक को उठाने के लिए बढ़ गये….मेने उसका ढक्कन खोला और उसे अपने होंटो पर लगाने लगी…मैं खुद पर हैरान भी हो रही थी कि, मैं ये क्या कर रही हूँ….और फिर मेने उठ कर जैसे ही अपने होंटो को कपड़े से सॉफ करना चाहा, तो भाभी एक दम से रूम मे आ गयी….

भाभी : डॉली चलना नही है क्या….चल जल्दी कर बहुत देर हो गयी है…

मैं: हां भाभी चलो….

उसके बाद मैं और भाभी स्कूल आ गये…स्कूल शुरू होने मे अभी टाइम था…इसलिए मैं बाहर ग्राउंड मे खड़े होकर भाभी के साथ और दूसरे टीचर के साथ कुछ बातें कर रही थी…तभी मेरी नज़र राज पर पड़ी…जो ललिता के पास खड़ा था…उससे बातें कर रहा था….पर मेरी तरफ देख रहा था…मुझे नज़ाने क्यों ऐसा महसूस हो रहा था कि, उसके नज़र मेरे मरून कलर मे रंगे होंटो पर जमी हुई थी…मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था….पर कुछ-2 अच्छा भी लग रहा था….क्योंकि पिछले कुछ दिनो से उसने मुझे फिर से इग्नोर करना शुरू कर दिया था…

मैं दो राहे पर खड़ी थी…..आख़िर ये सब क्या हो रहा है….कुछ समझ मे नही आ रहा था…..फिर क्लासस शुरू हो गयी….पता नही क्यों मेरा मूड आज कुछ अजीब सा हो रहा था…मैं अपने ऑफीस मे बैठे हुए उकता सी गयी थी…तभी जय सर, ऑफीस के अंदर आए, तो मैं उन्हे देख कर अपनी चेयर से खड़ी हो गयी…”अर्रे बैठो-2…..”

मैं: जी सर,

सर: डॉली तुम अभी राज के साथ मेरे घर चली जाओ…वहाँ मेरे रूम मे स्कूल के कुछ ज़रूरी डॉक्युमेंट पड़े हुए है एक फाइल मे….उसे ले आओ…ढूँढने मे टाइम लगेगा. इसलिए राज के साथ तुम्हे भेज रहा हूँ….

मैं: जी सर कॉन सी फाइल है…..?

सर: स्कूल के रिलेटेड जो भी फाइल्स मिले उन्हे ले आना….मैं राज को बेझता हूँ…..

सर वापिस चले गये…..”अब ये क्या नयी मुसबीत आ गयी….ये राज का भूत मेरा पीछा कब छोड़ेगा….” मैं खुद ही बुदबुदाने लगी….थोड़ी देर बाद राज ऑफीस मे आ गया…और उसने मुझे साथ चलने के लिए बोला…मैं बिना बात किए उसके साथ बाहर आ गयी….और उसकी बाइक पर हम जय सर के घर पहुँच गये…..मैं और राज जय सर के रूम मे गये….और उनके रॅक मे से फाइल्स ढूँढने लगी…

राज जाकर सोफे पर बैठ गया…..वो लगतार मुझे घूर रहा था….मैं नीचे बैठ कर नीचे वाली सेल्फ़ पर फाइल्स को देखने लगी…तभी राज के कदमो की आहट नज़दीक आते हुए सुनाई दी तो, मेने चोंक कर उसके तरफ देखा…वो बिल्कुल मेरे सामने आकर खड़ा हो गया था….मैं नीचे बैठे हुए, उसकी ओर देख रही थी…उसके होंटो पर वही कमीनी मुस्कान फेली हुई थी…उसने मेरे होंटो की तरफ देखते हुए, अपने पेंट की ज़िप को खोल दिया…मैं एक दम से ऐसे हडबडाइ…जैसे किसी सपने से बाहर आई हूँ….
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