RE: Antarvasna kahani हवस की प्यासी दो कलियाँ
उसके बाद मैं वहाँ से बाहर आ गये…आज मैं जय सर की कार मे नही बैठी और घर से बाहर निकल कर पोलीस स्टेशन की ओर जाने लगी….उस टाइम दिमाग़ बहुत गरम था..पर चलते चलते जैसे जैसे वक़्त बीत रहा था….मेरा गुस्सा कम होता जा रहा था…दिमाग़ मे अजीब अजीब से ख़याल आ रहे थे…और अंत मे अपने ही ख्यालों से मजबूर होकर मैं पोलीस स्टेशन से कुछ दूरी पर रुक गयी……मुझमे इतनी हिम्मत नही थी कि, मैं पोलीस मे जाकर कंप्लेंट करू….अगर करती तो भी क्या होता….मेरा रेप तो हुआ नही था…ऊपेर से दीपा मेरे बारे मे कुछ भी ग़लत बोल सकती थी…..
मुझे खुद अपनी बदनामी का डर सताने लगा था….अगर कॉंपलेट करती तो हाथ कुछ ना लगता और ऊपेर से मुझे और भाभी दोनो को ही इतनी अच्छी जॉब से हाथ धोना पड़ता. और ना इस शहर मे मुझे और भाभी को और जॉब मिलती…छोटा सा सहर था…भाई के आक्सिडेंट के बाद जो 25 लाख मिले थे…उनमे से 8 लाख तो घर बनाने मे ही खरच हो चुके थे. और भाभी अभी भी नये फर्निचर और घर का समान खरीदने का सोच रही थी…मैं फिर से उस बदहाल जिंदगी को नही जीना चाहती थी….
इसलिए ना चाहते हुए भी मैं घर को वापिस मूड गयी…बस पकड़ी और घर आई…जब मैं घर पहुँची तो भाभी मुझे घर के गेट पर ही मिल गयी….वो पड़ोस मे किसी के घर जा रही थी…..”अर्रे डॉली आ गयी तू….” खाना बना हुआ है…मैं वेर्मा जी के घर जा रही हूँ….तू चेंज करके फ्रेश होकर खाना खा लेना…..मैं थोड़ी देर मे आती हूँ…..” भाभी के जाने के बाद मैने गेट को बंद किया और सीधा अपने रूम मे चली आई….
रूम में पहुँचते ही, मेने अपने पर्स को चारपाई पर गुस्से से फेंका और अपनी कपड़े उतारने लगी….पहले मेने अपनी कमीज़ उतारी और फिर अपनी सलवार मैं उन्हे रखने और दूसरी सलवार कमीज़ निकालने के लिए जैसे ही अलमारी की तरफ बढ़ी….तो टेबल पर रखे टेबल फॅन की हवा सीधी मेरी जाँघो के बीच मेरी पेंटी पर टकराई, तो मुझे अपनी पेंटी मेरी चुनमुनियाँ पर चिपकी हुई महसूस हुई…एक अजीब जिंझोड़ देने वाली लहर मेरे पूरे बदन मे फेल गयी…मेने अपनी पेंटी के ऊपेर से अपनी चुनमुनियाँ पर हाथ रखा तो मेरे हाथों की उंगलियाँ उसमे लगे मेरी चुनमुनियाँ के कामरास से चिपचिपा गयी….
मुझे अपने आप पर ही गुस्सा आने लगा था…मैं ऐसे ही रूम से बाहर निकली और सीधा बाथरूम मे चली गयी….मेने वहाँ जाकर अपनी पेंटी उतारी, और उसे पानी से भरी हुई बाल्टी मे डाल दिया…और फिर अपनी जाँघो को थोड़ा सा फैला कर अपनी चुनमुनियाँ की फांको के बीच मे जैसे ही हाथ लगाया तो मेरे हाथ की उंगलियाँ मेरी चुनमुनियाँ से निकले पानी से एक दम तरबतर हो गयी…मेने अपने हाथ को अपनी आँखो के सामने लाकर देखा तो मैं एक दम हैरान रह गयी…जब से मेरा डाइवोर्स हुआ है…तब से ही मुझे सेक्स और मर्द जात से नफ़रत सी हो गयी थी….पर आज जब अपनी चुनमुनियाँ की फिर से ये हालत देखी तो मैं दंग रह गयी….
मुझे अब दीपा और राज पर और गुस्सा आ रहा था…मेने अपनी चुनमुनियाँ से निकले हुए पानी को सॉफ करने के लिए अपने हाथ से रगड़ना शुरू कर दिया…और उसका उल्टा ही असर मुझ पर होने लगा…ना चाहते हुए भी मुझे अजीब सा खेंचाव फिर से अपनी चुनमुनियाँ के बीच मे महसूस होने लगा…..मैं वही दीवार से पीठ टिका कर धीरे-2 नीचे बैठ गयी. मेरी टाँगे विपरीत दिशा मे फेली हुई थी….और मैं अब तेज़ी से अपनी चुनमुनियाँ को रगड़ रही थी….और अपनी सुहागरात को याद करते हुए अपनी चुनमुनियाँ मे उंगली करने लगी थी.
पर फिर अचानक से मेरे जेहन वो नज़ारा उभर आया….जब मेरे फेस के ऊपेर दीपा की चुनमुनियाँ मे राज का बाबूराव अंदर बाहर हो रहा था….कभी मुझे अपनी सुहागरात की चुदाई की तस्वीरें मेरे जेहन मे आती तो कभी दीपा की चुनमुनियाँ में अंदर बाहर होता राज का बाबूराव….इतने सालो मे मेने कभी अपने आप को बहकने नही दिया था…. “अपनी शक्ल देखी है जो मैं तेरे रेप करूँगा…” राज के ये शब्द मेरे कानो में तीर की तरह चुभ रहे थे…..मेने नीचे नज़र करके अपनी वाइट कलर की पुरानी सी ब्रा मे क़ैद अपनी 34फ की अपनी चुचियाँ की ओर देखा….और एक हाथ से अपनी चुचियाँ को ब्रा के ऊपेर से मसलने लगी…..
“ मैं क्या इतनी बदसूरत हूँ….” मैं तेज़ी से अपनी चुनमुनियाँ और मम्मों को मसलते हुए बुदबूदाई…..और अपनी चुनमुनियाँ के दाने को और तेज़ी से मसलने लगी….गरमी की वजह से मेरा पूरा बदन पसीने से नहा चुका था….और मैं काँपते हुए झड़ने लगी… और वही बदहाल सी होकर बैठ गयी….तभी मुझे गेट खुलने की आवाज़ आए…. “ कॉन है” मेने बाथरूम मे बैठे-2 ही आवाज़ लगाई….”
पायल भाभी : मैं हूँ डॉली तू बाथरूम मे है अभी तक खाना खाया कि नही..?
मैं: नही भाभी अभी नही खाया….गरमी बहुत है इसलिए सोचा नहा लेती हूँ…..
भाभी: अच्छा जल्दी से नहा ले मैं खाना लगाती हूँ….
उसके बाद मैने अपनी चुनमुनियाँ को सॉफ किया और नहा कर भाभी को आवाज़ दी…” भाभी मेरे कपड़े दे दो….” भाभी थोड़ी देर बाद मेरे लिए कपड़े ले कर आ गयी..” मेने कपड़े पहने और फिर बाहर आई और भैया भाभी के साथ खाना खाया…दोपहर के 2 बज चुके थे…मुझे नींद आने लगी थी….इसलिए सोचा कुछ देर सो लेती हूँ..तो मैं अपने रूम मे आ गयी….कि तभी मेरे मोबाइल बजने लगा….जब मेने मोबाइल उठा कर देखा तो जय सर की कॉल आ रही थी…मैने कॉल पिक की….
मैं: हेलो जी सर,
सर: और डॉली कैसी हो…?
मैं: जी मैं ठीक हूँ…..
सर: अच्छा घर पर फोन किया था….तो राज ने बताया कि आज तुमने उसे पढ़ाया नही है…कह रहा था कि, थोड़ी देर पहले उनके घर से फोन आया था…बहुत जल्दी में थी इसलिए चली गयी कोई प्राब्लम तो नही है ना….?
मैं: जी वो आक्च्युयली सर वो भैया की तबीयत….. (मेने बहाना बना दिया)
सर: अच्छा अच्छा ठीक है…पहले घर बाकी सब बाद मे….
मैं: सर वो एक बात कहनी थी आपसे….
सर: हां बोलो डॉली….
मैं: सर मैं कुछ दिन नही आ पाउन्गी….
सर: कोई बात नही…तुम अपने भैया का ख़याल रखो….
मैं: जी सर,
सर: अच्छा अब मैं फोन रखता हूँ….
मेने मोबाइल रखा और फिर चारपाई पर लेट गयी….दिल को जैसे सकून सा मिल गया था. कि कम से कम अब सर के घर नही जाना पड़ेगा….और बाकी की छुट्टियाँ आराम से कटेंगी… यही सब सोचते सोचते कब नींद आ गयी पता नही चला….
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