RE: Antarvasna kahani हवस की प्यासी दो कलियाँ
मुझे राज की पेंट की ज़िप्प खुलने की आवाज़ आई….और अगले ही पल मुझे अपनी टाँगो के बीच अपनी फुद्दि पर कुछ कड़क सा और गरम सा अहसास हुआ…..और अगले ही पल मेरी रूह अंदर तक कांप गयी….राज का बाबूराव मेरी सलवार और पेंटी के ऊपेर से मेरी चुनमुनियाँ पर धंसा हुआ था….मेरी टाँगे थरथराने लगी….और मुझे चुनमुनियाँ मे कल वाली सरसराहट फिर से महसूस होने लगी….पर इस बार चुनमुनियाँ की कुलबुलाहट बहुत ज़्यादा थी. एक अजीब सी गुदगुदी मुझे अपनी जाँघो के बीच और पेंटी के अंदर छुपी हुई चुनमुनियाँ पर हो रही थी…पर मेरा दिमाग़ मुझे कह रहा था….कि इसके चंगुल से निकल जा डॉली…”
पर जिस तरह से उसने मुझे दबोच रखा था….मैं हिल भी नही पा रही थी…उसने फिर से दोनो हाथों से मेरे हाथों को सर के पास से पकड़ा और मेरे होंटो पर फिर से अपने होंटो को लगा दिया….मेने फिर से अपने होंटो को बंद कर लिया…पर राज जैसे औरत की सभी कमज़ोरियों को जानता था….उसने मेरी सलवार के ऊपेर से अपने बाबूराव को मेरी चुनमुनियाँ के ऊपेर रगड़ना शुरू कर दिया…ना चाहते हुए भी मैं एक दम से सिसक उठी…और मेरे होन्ट एक दूसरे से अलग हो गये….
राज ने लपक कर मेरे होंटो को अपने होंटो मे भर लिया….और नीचे वाले होंटो को अपने दोनो होंटो मे दबा दबा कर चूसने लगा…ऐसा लग रहा था..जैसे वो मेरे होंटो का सारा खून निचोड़ लेना चाहता हो….नीचे से वो अभी भी लगतार अपने बाबूराव को मेरी चुनमुनियाँ पर ऐसे रगड़ रहा था…जैसे कोई आदमी किसी औरत को चोद रहा हो…ना चाहते हुए भी मेरी आँखे अब धीरे-2 बंद होने लगी थी….चुनमुनियाँ मे तेज सरसराहट होने लगी…मुझे ऐसा लगने लगा था कि, अब मेरे हाथों मे उसका विरोध करने के लिए जान नही बची है….उसका बाबूराव बुरी तरह से मेरी सलवार और पेंटी के ऊपेर से मेरी चुनमुनियाँ की फांको के बीचो बीच रगड़ खा रहा था…..
27 साल की होने के बावजूद भी मेने अभी तक किसी से सेक्स नही किया था…और ना किसी मर्द ने आज तक मुझे सेक्शुअली छुआ था….पर आज तो सीधा मेरे जनांग पर मुझे मर्द के बदन का वो हिस्सा महसूस हो रहा था….जिसके बारे मे मेने सिर्फ़ सुना ही था…एक अजीब तरह का नशा मेरे दिमाग़ पर छाता जा रहा था…और राज मेरी इस कमज़ोरी का फ़ायदा उठाने लगा….वो अब मेरे होंटो को अपने होंटो मे भर कर बारी-2 चूस रहा था.
मेरी ब्रा की क़ैद मे चुचियों के निपल्स मे मुझे तनाव बनता हुआ सॉफ महसूस हो रहा था….नज़ाने क्यों ना चाहते हुए भी मेरा दिल कर रहा था….कि कोई मेरी चुचियाँ और निपल्स को मसल कर रख दे….मुझे मेरी पेंटी पर गीला पन महसूस होने लगा था…थोड़ी देर मेरे लिप्स को सक करने के बाद राज ने मेरे होंटो से अपने होंटो को अलग किया…और मेरी ओर देखने लगा….मेने अपनी आँखे खोल कर उसकी तरफ देखना चाहा…पर मैं उसकी तरफ नही देख पे, और दूसरी तरफ फेस करके विनती भरी आवाज़ मे बोली….”राज प्लीज़ मुझे छोड़ दो….जाने दो मुझे….सब लोग मुझे ढूँढ रहे होंगे….अगर उन्हे पता चला तो अह्ह्ह्ह” राज ने फिर से नीचे अपने बाबूराव को मेरी चुनमुनियाँ की फांको पर बुरी तरह से रगड़ दिया था….
जिससे मैं अपने आप को सिसकने से नही रोक पे….”राज हट जाओ तुम ये सब ठीक नही कर रहे…” मेरे दिमाग़ मे अजीब-2 तरह के ख़याल आने लगे, कि कही स्कूल वालो को इस बात का पता ना चल जाए कि, मैं और राज वहाँ से गायब है…और मुझ पर कोई किसी तरह का शक करे….”चलो छोड़ देता हूँ…पर एक शर्त पर….”
मैं राज की तरफ हैरत से देख रही थी….मुझे यकीन नही हो रहा था कि, मेरा ही स्टूडेंट मुझसे ऐसे पेश आ रहा है….”बोलो जल्दी बोलो….” मेने अपना पीछा छुड़ाने के लिए बोला…”फिर एक बार मुझे तुम अपनी मरज़ी और प्यार से अपने होंटो को चूसने दो…और अपनी टाँगो को उठा कर मेरी कमर पर रख कर लपेटो….”
मैं: (मैं राज की ये बात सुन कर एक दम से घबरा गयी…) नही राज ये सब मुझसे नही होगा छोड़ दो प्लीज़….वरना ठीक नही होगा….
राज: तो ठीक है फिर सारा दिन ऐसे ही रहो….जिसको पता चलना है चलने दो….
और ये कहते हुए उसने फिर से मेरे होंटो को अपने होंटो मे भर लिया. और मेरे होंटो को चूसने लगा…अब और कोई रास्ता ना देख कर मेने अपने होंटो को खोल लिया…जैसे ही मैने अपने होंटो को खोला….राज एक दम जोश मे आ गया….और अपने होंटो मे दबा -2 कर मेरे होंटो को चूसने लगा…राज ने मेरे हाथो को छोड़ा और अपने होंटो को मेरे होंटो से अलग किया…”अब चलो मेरी पीठ पर अपनी बाहों और टाँगो को उठा कर लपेट लो. सिर्फ़ 2 मिनट सिर्फ़ 2 मिनिट के लिए….”
मेने राज की बात का कोई जवाब नही दिया….और अपना फेस दूसरी तरफ घुमा लिया…राज ने एक हाथ से मेरे फेस को पकड़ कर सीधा किया…और फिर से मेरे होंटो को अपने होंटो मे लेकर चूसने लगा….ना चाहते हुए भी मेने अपनी बाहों को राज की पीठ पर कस लिया…पर मुझे अपनी टाँगे उठाते हुए शरम आ रही थी…मुझे ऐसा लग रहा था कि, जैसे मैं शरम के मारे धरती मे धँस जाउन्गी….राज ने अपने दोनो हाथों को नीचे लेजा कर मेरी टाँगो को घुटनो से पकड़ कर ऊपेर की ओर उठा दिया. और अब मेने खुद ही ना चाहते हुए, अपनी टाँगो को उसकी कमर पर लपेट लिया….
राज: (मेरे होंटो से अपने होंटो को अलग करते हुए) ज़ोर से जकडो मेरी कमर को…
मेने अपनी टाँगो को राज की कमर पर और कस लिया…राज नीचे से लगतार अपनी कमर को हिलाते हुए सलवार और पेंटी के ऊपेर से मेरी चुनमुनियाँ पर अपने बाबूराव को रगड़ रहा था… और कभी वो मेरे नीचे वाले होंटो को अपने होंटो मे भर कर खेंचता और कभी ऊपेर वाले होन्ट को…शरम के मारे मैने अपनी आँखे बंद कर ली थी…फिर उसने अपने तपते हुए होन्ट मेरी नेक पर लगा दिए…और मेरी नेक पर अपने होंटो को रगड़ने लगा….मेने अपने होंटो को दाँतों मे भींच लिया….क्योंकि मैं नही चाहती थी कि, मैं अपने स्टूडेंट के सामने सिसकने लग जाउ….
करीब 2 मिनिट बाद राज मेरे ऊपेर से उठ गया….मैने अपनी आँखे खोल कर राज की तरफ देखा…राज मेरी ओर देखते हुए अपने बाबूराव को हिला रहा था…फिर उसने अपने बाबूराव को पेंट के अंदर किया और ज़िप बंद कर बाहर चला गया…
मैं जैसे ही खड़ी हुई, तो मुझे लगा मैं फिर से गिर जाउन्गी…पर मेने किसी तरह अपने आप को संभाला, और उस रूम से बाहर आई…..जैसे ही बाहर को जाने लगी तो चलते हुए मुझे अपनी चुनमुनियाँ और पेंटी के बीच मे अजीब सा चिपचिपा महसूस होने लगा.. मुझे अपने आप से और राज पर बहुत घिन आ रही थी…मेने चारो तरफ देखा तो अंगान मे कोई नही था….मैं आँगन के एक कोने मे गयी….और अपनी सलवार के नाडे को खोल कर सलवार जाँघो तक नीचे सर्काई, और फिर अपनी पेंटी पर नीचे चुनमुनियाँ के पास हाथ लगा कर देखा तो मैं एक दम से हैरान रह गयी….
मेरी पेंटी नीचे से पूरी भीगी हुई थी….और मेरी उंगलियाँ भी उस पानी से चिपचिपाने लगी थी….मेने अपनी पेंटी को नीचे सरका कर अपने हाथ को अपनी चुनमुनियाँ की फांको पर फेरा तो मेरे हाथों की उंगलियाँ मेरी चुनमुनियाँ से निकले पानी से एक दम सन गयी…मुझे उस चीज़ से बहुत घिन हो रही थी…मेने जल्दी से अपने रुमाल को निकाला और अपनी चुनमुनियाँ और फांको को सॉफ किया….और फिर अपनी पेंटी को भी सॉफ किया जितना हो सकता था…और फिर पेंटी ऊपेर की और सलवार को ऊपेर करके नाडा बाँधा और बाहर आए. और वापिस जाने लगी….
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