RE: XXX Chudai Kahani चूत के चक्कर में
रामलाल तेजी से कदम बढ़ाता है उसका मन पश्चाताप की अग्नि में धधक रहा था न जाने कैसे उसने अपनी भावनाओ को फिर बह जाने दिया पहले कजरी और अब रुकसाना। रामलाल के ह्रदय में अपने लिए घृणा उठने लगती है वो सोच भी नहीं पा रहा था की वो आखिर ऐसा कैसे कर सकता है । रामलाल के कदम जब रुकते हैं तो नदी के किनारे पे खड़ा रहता है। रामलाल अपने दिमाग को ठंडा करने के लिए कपडे उतार नदी में उतर जाता है। नदी का ठंडा पानी उसको थोड़ी शान्ति प्रदान करता है । काफी देर तक पानी में रहने के बाद रामलाल नदी से बाहर निकालता है और पुराने कपडे पहन वही किनारे बैठ सोचने लगता है। उसके मन में ये विचार उठता है की रुकसाना ने ये बात अगर गाँव वालो को बता दी तो क्या होगा। भय के मारे उसके हाथ पाँव फूल गए । तरह तरह के विचार उसके मन में कौंधने लगे। उसकी हिम्मत जवाब देने लगी गाँव वापस जाने की।
जमीन पर पड़ी रुकसाना अभी भी अपनी चुदाई के खुमार से निकली नहीं थी ऐसी चुदाई तो उसके पति ने भी नहीं की थी । उसका मन और शारीर दोनों तृप्त हो गया था। रामलाल के लंड का उगला हुआ वीर्य उसकी चूत से निकलकर उसकी जांघो पे बह रहा था। रुकसाना को ऐसा लग रहा था न जाने कितने जन्मों की प्यास आज जाके पूरी हुई है। रुकसाना ने सुबह जब रामलाल का खड़ा लंड देखा था तभी से उसकी चूत पनियाने लगी थी । वो रामलाल के उठने का इंतेज़ार कर रही थी। उसने सारी योजना ऐसे बनायीं की रामलाल उसके जाल में फंस जाये। उसने जान बूझ कर घर का दरवाजा खुला रखा और रामलाल को रिझाना के लिए वो नंगे होके नाहा रही थी जबकि आजतक उसने अपने शौहर के सामने भी ऐसा नहीं किया। वो धीरे धीरे उठती है आज उसके चेहरे पे ख़ुशी दिख रही थी वो वापस नहाती है और चहकते हुए घर के कामों में लग जाती है।
रामलाल थोड़ी देर नदी के किनारे चहलकदमी करता रहा पर उसके पेट में उमड़ी भूख और दिमाग में उमड़ते हुए सवालो ने उसे परेशान कर रखा था। अंततः उसने फैसला किया की उसने रुकसाना के साथ जो गलत हरकत की है उसकी वो उससे माफ़ी मांग लेगा और अगर वो उसे दंड दिलवाना चाहती है तो वो खुद पंचायत के सामने अपना गुनाह कबूल कर लेगा। रामलाल अब ये ठान के अपने कदम घर की तरफ बढ़ा देता है। घर पहुचने पर वो देखता है की घर का दरवाजा खुला हुआ है । वो अंदर झांकता है तो उसे दिखाई देता है की रुकसाना गुनगुनाते हुए अपना काम कर रही है जैसे की सुबह कुछ हुआ ही नहीं । रामलाल को कुछ समझ नहीं आता है फिर भी वो पूरा साहस बटोर के घर में दाखिल होता है। रुकसाना उसे देखके खुश होते हुए पूछती है " आ गए हुजूर बोलिये तो आपका खाना लगा दू?"
रामलाल को अभी भी रुकसाना का बर्ताव कुछ समझ में नहीं आता पर वो जो ठान के आया था वो बात वो रुकसाना से कहने के लिए अपना मुह खोलता है " रुकसाना मुझे आज सुबह जो हुआ ..."
रुकसाना बीच में ही बात काटते हुए " क्या हुआ ..."
रामलाल झेंपते हुए बोला " वही जो मैंने तुम्हारी बिना मर्जी के ....."
रुकसाना ने फिर बात बीच में ही काटते हुए " आपसे किसने कहा की जो हुआ वो बिना मेरी मर्जी के हुआ ?"
रामलाल ने आश्चर्य से पूछा " मतलब ?"
रुकसाना " हर बात का मतलब नहीं होता हुजूर आप हाथ मुँह धोले मैं खाना लगा देती हूँ ।"
रामलाल ने भी बात आगे बढ़ाने के बजाये उसकी बात मानना उचित समझा।
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