RE: Mastram Kahani वासना का असर
किस्मत को मैंने उच्च कोटि की गलियां सुनाई जो आजकल हिंदुस्तान वाले पाकिस्तान वालो को सुना रहे है।
बुरे भाग्य की भी एक हद्द होती है और वो भी सुबह सुबह। मैंने मौसी की तरफ देखा फिर उसके शरीर की तरफ.. पर मीठे और रस भरे अनार को छोड़ कर वो अंगूर खाने की कोशिश करना जिसका स्वाद ही पता न हो मूर्खता होती।
कल शादी का दिन था सो आज काम कुछ ज्यादा ही था इसलिए मैं सारा दिन व्यस्त था और बुआ भी व्यस्त दिख रही थी। सो मौका पे चौका मारने का नसीब प्राप्त नहीं हुआ। रात भी ऐसे ही बीती। बुआ संगीत में व्यस्त थी और मै बाहरी कामो में। देर रात जब मैं काम ख़त्म कर के बुआ को ढुंढा तो वो सो चुकी थी। और मेरे लिए वहां जगह बची नहीं थी। मैंने भी कल कुछ बड़ा करने की सोचा और सो गया।
आज बारात आने वाली थी। आज शादी का दिन था। घर में सुबह से चहल-पहल थी। औरत लोग ब्यूटी पार्लर के पीछे पड़े थे तो मर्द लोग तैयारी में लगे हुए थे। पुरे घर को सजाया जा रहा था। एक खुशनुमा माहौल था। इस माहौल में व्यस्तता भी घुली हुई थी। और मेरे समझ के अनुसार आज मुझे बुआ के साथ कम समय मिलने वाला था। कल घटी घटना ने मुझे अत्यधिक बल और हिम्मत से भर दिया था। बुआ का मेरे लण्ड से खेलना मेरे लिए एक अच्छी चीज थी। इसका मतलब था बुआ भी गर्म हो रही थी। इतने दिनों से मै उसके वासना को भड़काता हुआ आ रहा था और एक कामुक औरत होने के नाते उसका गर्म हो के चुदवाने की इच्छा करना लाजिमी था। अब देखना था आज का दिन कैसा गुजरने वाला था।
मेरे अंदर कहीं ना कहीं एक निराशा भी थी, आज फूफा जी आने वाले थे। और कहीं फूफा जी को देख के बुआ का पतिव्रता और संस्कार और मर्यादा फिर से उसके चुत के रस की तरह टपकने न लगे। और कहीं फूफा जी ने उसे मौका देख कर चोद दिया तो उसकी कामुकता भी कुछ देर के लिए ठहर जायेगी। मुझे इसका डर था बोहोत ज्यादा डर। मेरे लण्ड पे धोखा होने के चांसेज नजर आ रहे थे।
दोपहर हो गयी थी और जैसा मैंने सोचा था, बुआ से टकराने का मौका मुझे कम ही मिला और जो मिला भी वो बोहोत कम समय का था। कमरे में आते-जाते वो मुझे मिल जाती थी या कोई काम के लिये बुला लेती थी। और मै उस कम समय के मौके का भी फायदा उठा लेता था। जैसे की चलते हुए सबसे नजर बचा के उसके बड़े से चुतर को हाथो से सहला देना। उसके पास खड़े रहने वक़्त उसके चुँचियो को केहुनि से दबा देना। कुछ पलों के लिए अकेले मिल जाने पर मैंने उसकी गाण्ड की दरार में उँगलियाँ भी फिराई थी। इन सब हरकतों पे उसकी प्रतिक्रिया सामान्य रहती थी जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। मुझे उसका विरोध अब ना के बराबर दिख रहा था। शायद अब मैं अपने वासना-पूर्ति के लक्ष्य के बोहोत करीब आ गया था। शाम के समय फूफा जी आये और मेरी धड़कने तेज हो गयी थी..मै बार बार बुआ के चहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा था पर बरात आने में कुछ समय ही शेष थे और सब कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गए थे। मै भी तैयार हो रहा था, बारात का स्वागत भी तो करना था। कपडे पहन कर जब मैं अपने बाल संवारने आइना के पास गया तो बुआ वहाँ पहले से आईने के सामने खड़ी तैयार हो रही थी। कमरे में कम लोग ही थे और आईना कमरे के कोने वाले छोर पे लगा हुआ था। बुआ लाल और गुलाबी के मिश्रण के रंग वाली साड़ी पहन रखी थी, उसने हल्का मेकअप भी किया था। साड़ी को उसने कमर के इर्द-गिर्द काफी टाइट लपेट रखा था और उसके कारन उसके विशाल..चौड़े गांड काफी मादक लग रहे थे। मेरा लिंग उत्तेज्जित हो चूका था। बुआ की गाण्ड में बात ही कुछ और थी। उसके पतली कमर और उसके नीचे चौड़े नितम्ब अजीब से मादकता उत्पन्न करते थे। और फिर गांड की दरार में साड़ी का हल्का अंदर की ओर होना कहर ढाता था। मै अपने बाल को सवारते हुए बुआ के काफी करीब आ गया था, बिलकुल उसके हाहाकारी गाण्ड के पीछे। मैंने कमरे में इधर-उधर नजर दौड़ाई, किसी का ध्यान हमारी तरफ नहीं था और मैंने अपना कंघी वाला हाथ नीचे कर दिया। मेरे हाथ में पकड़ा हुआ कंघी अब बुआ के साड़ी में टाइट से लपेटे हुए गुदाज चूतड़ के ऊपर फिसल रहे थे। बुआ अभी भी नजर अपने साड़ी पे टिकाये अपने पल्लू को सही कर रही थी। मेरे हाथ का कंघी अब उसके कमर के ऊपर से उसके गाण्ड के दरार के सुरु तक पहोंच गए थे। मैंने कंघी को उसके दरार में नीचे की ओर लाता जा रहा था, उसके गांड के दरार काफी मांसल थे और चिपके हुए थे..इस कारण कंघी उसके दरार के दोनों पटो को अच्छे से घिसती हुई नीचे की ओर जा रही थी। और फिर वो जगह आ गया। मेरा हाथ का कंघी बिलकुल उसके गाण्ड के छेद पे था।
"क्या बुआ ने कभी गाण्ड मारवायी है..फूफा जी ने कैसे इस गदराए बदन वाली औरत को घोड़ी बना के इसके विशाल गांड के छेद में लौड़ा पेला होगा।"
मेरी सोच वासना में जल रही थी। मेरी नजर आईने में बुआ के चहरे पे टिकी हुई थी। मैंने कंघी को बुआ के छेद पे रगड़ा और तभी बुआ ने अपना चेहरा ऊपर उठाया..उसकी आँखों ने मेरी आँखों में देखा, मुझे वहां सिर्फ वासना नजर आयी सिर्फ वासना अपने चुदाई के लिए..मैंने उसके गांड के चुदासी छेद पे कंघी के रगड़ को तेज कर दिया। वो अभी भी अपना पल्लू ठीक कर रही थी और फिर उसने अपने दाहिने तरफ वाले बड़े से गुदाज चुँचियो पर से अपने पल्लू को हटा लिया। मेरी आँखें उसकी आँखों से फिसलती हुई उसकी कामुकता से भड़ी हुई चुँचियो पे आके टिक गयी, उसकी चूचियाँ ब्लाउज में किसी पहाड़ की तरह खड़े थे..गोल-गोल..बड़े-बड़े..गुदाज..मादक। उसने पल्लू को थोड़ा और खिसकाया..वो लगातार मेरे चेहरे पे देखते हुए ऐसा कर रही थी। कंघी उसके छेद पे लगातार घिस रहा था। मेरी आँखें अब उसकी आँखों और उसके बड़े मम्मो पे फिसल रही थी। अब उसका पल्लू उसकी दाहिने चुँची का साथ पूरी तरह छोर चूका था..एक चुँची ढका हुआ और दूसरा खुला हुआ..अजीब मादक नजारा था वो। और फिर उसका दाहिना हाथ उठते हुए ऊपर आया और उसके चुँची पे टिक गया..और मेरी आँखों में देखते हुए मेरी कामुक शादी-शुदा..छिनार बुआ ने अपने चुँची को अपने हथेली में ले कर ज़ोर से दबा दिया। मेरे लिए ये अति-उत्तेजना वाला दृश्य था..मैंने हाथ में पकडे हुए कंघी को पूरे ज़ोर से बुआ के गाण्ड के छेद पे दबा दिया जैसे की मैं कंघी से ही उसका गाण्ड मारना चाहता हूँ। शायद दर्द से या मेरी बर्बरता से बुआ चिहुंक पड़ी और उसकी आँखें एक पल में ही वासना से आश्चर्य में बदल गयी। झट से उसने पल्लू से अपने वक्ष को ढँका और नजरे नीची कर के आगे खिसक गयी। कंघी उसके गांड के दरार से निकल चुका था। मै समझ नहीं पा रहा था..हुआ क्या था? कहीं बुआ की पतिव्रता वाली बीमारी उभर तो नहीं आयी? मैंने अपना एक कदम आगे बढ़ाया और कंघी को फिर से बुआ के दरार में चुभो दिया। बुआ थोड़ा चिहुंकी और अपने हाथों को नीचे की ओर लायी..वो अपने हाथों से कंघी हटाना चाहती थी। मै उसके हाथों को नीचे उसके नितम्ब की ओर आते हुए देख सकता था और जैसे हुए उसके हाथ कंघी के करीब आये मैने कंघी हटाते हुए अपना कमर को आगे की ओर धकेला और फिर बुआ के हाथ में कंघी की जगह मेरा विकराल रूप में खड़ा लौड़ा था। बुआ ने हाथ में पकडे हुए उसे दबा के देखा..
"आह..काश बुआ ऐसे ही मेरे लौड़े को मसलते रहे"
बुआ को जैसे ही पता चला की उसके हाथ में कंघी नहीं मेरा लौड़ा है उसने झट से अपना हाथ वापस खिंच लिया। कुछ पलों बाद वो पलटी और उसने एक अजीब सी..उपेक्षा वाली नजर मेरे ऊपर डाली और कमरे से बाहर चली गयी। मेरा शक सही था..बुआ का पतिव्रता और संस्कारी वाला रोग उभर चूका था। कल तक तो वो मेरे लौड़े से खेल रही थी और आज..अपने पति को देखते ही रंग बदल लिया। और कहीं उसने फूफा से चुदवा लिया तो फिर सब गुड़-गोबर हो जायेगा। मुझे ये नहीं होने देना था पर मैं रोक भी कैसे सकता था?
बारात आ चुकी थी। सब चीजें अच्छे से हो गयी थी। अब मंडप में शादी हो रही थी। मंडप के इर्द-गिर्द लोग कुर्सी पे बैठे शादी देख रहे थे। बुआ भी मेरे नजरो के सामने मंडप के उस तरफ बैठी हुई थी और फूफा जी कहीं नजर नहीं आरहे थे। मेरे उसके बीच सिर्फ शादी का मंडप का ही फासला ही तो था। उसकी शादी..उसकी पतिव्रता ही तो मेरे वासना-पूर्ति के बीच में आ रही थी। मैं उसपे लगातार ध्यान दिए हुए थे अगर वो कुछ देर के लिए वहाँ से गायब भी होती थी और वापस आने में समय लग जाता तो मैं अंदर जा के उसे ढूंढने लगता था। मैं कतई नहीं चाहता था कि वो आज रात सम्भोग करे और कल फूफा जी ऐसे भी जाने वाले थे। दिन भर की थकान और समय भी आधी रात से ज्यादा हो गयी थी, पता नहीं किस वजह से मेरी आँख कब लग गयी मुझे पता ही नहीं चला। मै वही कुर्सी पे बैठे-बैठे सो गया। पता नहीं कितनी देर बाद मेरी आँखें खुली और मैंने सबसे पहले सामने बैठी बुआ की तरफ देखा..लेकिन..बुआ गायब थी। मेरा दिल बेचैन हो उठा। मै कितनी देर से सो रहा था, इस बीच कुछ भी हो गया होगा..कहीं बुआ की चुदाई हो गयी होगी तब..मै विचलित हो उठा था। मैने तुरंत कुर्सी छोरी और अंदर की ओर भगा। सारे कमरे में बुआ को ढूंढते हुए। और कोने वाले कमरे में मुझे बुआ दिख गयी। वो बिस्तर पे लेटी हुई थी, शायद सो रही थी। कमरे की लाइट बंद थी लेकिन बाहर से आती रौशनी से मै देख सकता था कि पलंग के एक किनारे मेरी चाची सो रही थी। बीच में बुआ और बुआ के बगल में एक दो बच्चे सो रहे थे। चाची और बुआ के बीच में बोहोत सारा जगह बचा हुआ था। मैंने दरवाजे पे खड़े-खड़े चैन की साँस ली। फूफा जी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। दिल को राहत मिलते और बुआ को सोते देख मेरे वासना ने हुँकार लगायी और मेरे कदम कमरे के अंदर बिस्तर की ओर बढ़ने लगे। मैंने चाची और बुआ के बीच वाली खली जगह पे लेट गया। चाची की गहरी और लंबी साँसों से पता चल रहा था कि वो घोड़े बेच कर सो रही है। मैंने करवट बदली अब मैं ठीक बुआ के पीछे था। मै उसके लो-कट ब्लाउज से झाँकते नरम मुलायम पीठ देख सकता था नीचे उसकी चिकनी कमर दिख रही थी और फिर बाहर की ओर उभड़े बड़े विशाल गाण्ड देख सकता था। मेरी साँसे तेज हो गयी थी..लण्ड में अकड़न आ गयी थी..होंठ शुष्क हो रहे थे। मैंने अपने सर को बुआ के पीठ के पास लाया और उसपे फूँक मारी..पीठ पे बिखरे उसके कुछ बाल हवा में लहराये और फिर से उसके पीठ पे टिक गए.. बुआ शान्त और स्थिर थी। मैंने अपने शरीर को बुआ के मादक जिस्म के और पास लाया। अब मेरे पैर बुआ के पैरों से छू रहे थे। मेरे हाथ उसके कमर पे आगये थे और मै उसके कमर को अपने हाथों से सहला रहा था। धीरे-धीरे मैंने अपनों हाथो को उसके विशाल नितम्ब पे साड़ी के ऊपर से रख दिया। कुछ पलों के बाद मेरे हाथ उसके चौड़े चूतड़ को सहला रहे थे।
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