RE: Mastram Kahani वासना का असर
को ठेलते हुए नीचे ले जाते तो मेरा लण्ड विरोध में कड़ाह उठता और फिर उसकी सुन्दर ऐड़ी वापस लौटते वक़्त मेरे लौड़े को दुलारते हुए वापस ऊपर की ओर धकेल देते थे। वो अपने ऐड़ी को ऊपर-नीचे करते हुए मेरे लौड़े से खेल रही थी। हाँ..मेरी शादी-शुदा..12-15 सालो से लगातार चुद रही..अधेर उम्र की मिल्फ..एक संस्कारी पतिव्रता बुआ अपने कामुकता और चुत के चुदास के वसीभूत हो कर अपने जवान भतीजे के लौड़े से खेल रही थी। वो अपने बुर के गर्मी के कारण अपने पति..मेरे फूफा जी को धोखा देने को तैयार थी। मैं सातवे आसमान पे था..बुआ अपने पैर के तलवे से मेरा मुठ मार रही थी, वो मेरे लौड़े के कड़कपन को महसूस कर रही थी या शायद ये पता कर रही थी की ये लण्ड जो पिछले कई दिनों से उसके झांटो वाली फूली हुई बुर के कामरस को सूखने नहीं दे रहा वो उसकी चूत की कुटाई कैसे करेगा..जब उसकी चुत में घुसेगा तो कहाँ तक ठोकर मारेगा। और अगर मेरी मौसी वहाँ नहीं रहती तो शायद वो मेरे लोअर और चड्डी को नीचे कर के और अपने साड़ी-पेटिकोट को ऊपर उठा कर ये चेक भी कर लेती। वो मौसी से इधर-उधर की बाते भी किये जा रही थी और मेरे खड़े लण्ड पे बेहद सुहाना अत्याचार भी किये जा रही थी। कभी-कभी बुआ जोश में आके अपने ऐड़ी से मेरे लौड़े को बुरी तरह दबा कर मसल देती थी..और ठीक उसी वक़्त वो अपने दोनों जाँघों के बीच चुदास से रस उगलती चूत को भी भींच लेती थी, मै उसके जांघो और चूतड़ के हल्की थिड़कन से ये महसूस कर सकता था। मेरा लण्ड अब किसी मतवाले नाग की तरह फुफकार रहा था और शायद बुआ की बुर भी कामुक गर्मी से मचल रही थी तभी तो वो अब मेरे लौड़े को अपने ऐड़ी से बुरी तरह से मसल रही थी जैसे की वो मेरे लौड़े को तोड़ देना चाहती हो। रह-रह के उसके बड़े से गाण्ड में बेहद हल्की सी कंप-कंपि हो रही थी और मेरा लण्ड और भी ज्यादा कठोर हो के उसके तलवे से वासना की जंग लड़ रहा था। तभी कुछ पलों के लिए बुआ का तलवा मेरे लण्ड से दूर हो गया और अगले ही पल उसके पैर का अँगूठा खड़े लौड़े के निचे से आ कर मेरे अंड-कोष से टक्कड़या। हे भगवान.. बुआ मेरे विर्य से भड़े आण्ड को सहला रही थी। उसका अंगूठा अब मुड़ चूका था और वो अँगूठे के नाख़ून से मेरे अंडों को खरोंच रही थी और उसने पता कर लिया था की उसमे भड़े गाढ़े वीर्य उसके छिनाल बुर को लबा-लब भरने के लिए काफी है।अपने भतीजे के बुआ के चुत के लिए प्रचण्ड रूप से खड़े लौड़े को महसूस कर के शायद वो अत्यधिक चुदासी हो गयी थी और उसकी हरकते इस बात की प्रमाण थी। पिछले दो-तीन दिनों से अपने गदराए बदन पे वो मेरी कामुकता भरी हरकते झेल रही थी और उसकी गर्मी उतारने के लिए फूफा जी भी यहाँ नहीं थे। आख़िरकार वो भी एक औरत ही थी..एक कामुक औरत जिसके चुत में बोहोत ज्यादा प्यास भड़ी हुई थी। अब उसके अँगूठे मेरे टट्टो को दबा रही थी और फिर उसका अंगूठा टट्टो को नीचे की ओर सहलाता हुआ मेरे गांड के छेद और लौड़े के बीच वाली अत्यधिक संवेदनशील जगह पे आ गया। ये जगह मर्दो के लिए बोहोत ही संवेदनशील होता है और अपने जवानी के सारे खेल..खेल चुकी बुआ को अच्छे से पता था तभी तो वो उस जगह की त्वचा पे अपने अँगूठे से दबाब बना के सहला रही थी। मेरी सहनशीलता अब जवाब देने वाली थी और बुआ ने एक और वार किया। उसका अंगूठा नीचे की ओर फिसलता मेरे गांड के छेद पे आ गया और वो मेरे छेद को अँगूठे से कुरेदने लगी। और फिर वो अपने अँगूठे से मेरे गांड से ले के मेरे टट्टो तक सहलाने लगी। उस गर्म औरत के अंगूठे मेरे गांड के छेद को कुरेदते हुए ऊपर आते और मेरे टट्टो पे ठोकर मारते। बुआ का हाथ अब उसके दोनों जांघो के बीच दब चूका था, शायद वो अब अपने गीली बुर को रगड़ रही थी पर ये देखने के लिए मेरे पास समय नहीं था। मजे से मेरी दोनों आँखों बंद हो चुकी थी। बुआ अपना बदला ले रही थी और सबसे हसीन बदला। मेरी अधेर..गदराए गाण्ड वाली बुआ चुपके से मेरी मौसी के सामने मेरे लौड़े..मेरे टट्टो से खेल रही थी बिलकुल एक रण्डी की तरह जो अपने बुर में लगी आग के लिए कुछ भी कर जाये। बुआ का मेरे गांड से ले के मेरे टट्टो तक सहलाना जारी था और अब मेरी सहनशक्ति जवाब दे गयी थी। मेरे पास दो ही विकल्प थे या तो बुआ को वहीँ पटक कर उसकी रस से भींगी फैली बुर को चोद दू या कैसे भी अपने लौड़े का पानी निकल दू। मैंने अपने हाथों को नीचे लाया और अपने खड़े लौड़े के इर्द गिर्द लपेट कर उसे धीरे से मुठियाने लगा। बुआ का अंगूठा मेरे हाथों की उँगलियों से टकड़ा रहा था। बुआ के पैर रुक गए और फिर मेरे टट्टो से होते हुए मेरे हाथों पे आगये और उसने मेरे हाथों को लौड़े से अलग करने के लिए उसे एक तरफ खिसकाना सुरु कर दिया। मेरा रुकना मुश्किल था।
मेरा रुकना मुश्किल था। मैंने बुआ के तलवे को हाथ से पकड़ा और अपने लण्ड पे रगड़ना सुरु कर दिया। मेरी वासना अपने शिखर पे थी। वो मेरे हाथों से अपने पैरों को खींचना चाही लेकिन मैंने उसके पैरों पे अपनी पकड़ मजबुत कर उसके उसके ऐड़ी पे..उसके तलवे पे..उसके अँगूठे और उँगलियों पे अपने लोहे से कड़क लण्ड को बेदर्दी से रगड़ने लगा। मेरी बुआ अपने अंदर छिपी रण्डी को बाहर निकाल रही थी। उस अधेर उम्र में उसकी अच्छे से चुदी बुर की गर्मी उसे ये सब करने के लिए मजबूर कर रही थी। ये उसकी अत्यधिक कामुकता थी। वो एक ऐसी औरत थी जिसे ज्यादा गर्म कर दिया जाये तो वो कुत्ते से भी चुदवा ले भले ही उसका पति उसे कितना भी संतुष्ट क्यूँ न रखता हो। बुआ के एड़ी का और मेरे लौड़े का जंग जारी था। अब मुझे झड़ना था, अपने टट्टो को खाली करना था। मेरे हाथ अब बुआ के तलवे को लौड़े पे तेजी से रगड़ने लगे थे और बुआ के विशाल गाण्ड की थिड़कन बता रही थी की उसकी चुदासी बुर भी हिचकियाँ ले रही थी। मुझे एक या दो मिनट चाहिये था और मै कभी भी अपने चड्डी को गीला कर सकता था तभी बाहर से किसी ने उसका नाम ले के आवाज़ दी की उसका मोबाइल फोन बज रहा है। अपने नाम पुकारे जाने के कारण वो एकाएक चौंक गयी और अपने पैरों को झटका दे के मेरे हाथों से छुड़ा लिया। वो बिस्तर से उठने लगी थी और तभी एक बार फिर जल्दी से उसने अपने पैरों को पीछे लाया और अपने तलवे से मेरे लौड़े का कुछ ज्यादा ही जोड़ से दबा कर और अच्छे से मसल कर उसके कड़ापन को पूरा महसूस किया जैसे मेरे लण्ड को इस मुश्किल वक़्त में सांत्वना दे रही हो और उठ कर चली गयी..अपनी गीली और फडकती चुदासी चुत को अपने साड़ी में छुपाये वो जा चुकी थी और मेरा लौड़े पे एक बार फिर बड़ा सा ड्राम गिर चूका था।
"किस्मत में हो लौड़ा तो कहाँ से मिलेगा पकौड़ा"
|