RE: Mastram Kahani वासना का असर
वासना में शक्ति होती है..मै उसके गुदाज गांड को अपने मुट्ठी में भरकर..प्रलयंकारी वेग से उसके चूत में धक्के लगाता था जैसे मुझे सच में उसकी चूत फाड़ना हो..जैसे मैं उसके चूत में अपने शरीर समेत घुसना चाहता हु। वो मदहोश हो जाती थी और मुझे और ज्यादा अत्ति उत्तेजीत करने के लिए गालिया देना शुरू कर देती थी..
"ओह्ह..मादरचोद..आह..चोद अपनी बुआ को जोर लगा के.. हम्म..रंडी बना के चोद.. उफ़्फ़.. और चोद मादरचोद..हाय..आह.."
और इसी तरह चोदते-चोदते मै उसके गहरी चूत को अपने गाढ़े वीर्य से भर देता था।
मेरी ये अश्लील सोच मेरे बुआ के प्रति पनपी शुद्ध वासना को और ज्यादा या यों कहें बोहोत ही ज्यादा भड़का देती थी। मैं ना जाने कितने घंटे अपने वासना पूर्ति के लिए मनसूबे बाँधने में गुजार दिया करता था। मेरी वासना दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी और मै बुआ के दुबारा आने का प्रतीक्षा कर रहा था। मैं उसके साथ अपने सोच में और सपने में ना जाने कितनी बार सम्भोग कर चुका था लेकिन अब मुझे असलियत में उसके शरीर को छूने की जरुरत थी..मै उसके बड़े बड़े स्तन को अपने हाथो में ले के आंटा की तरह गुथना चाहता था..मै उसे घोड़ी बना के चोदते हुए उसके बड़े..चौड़े और चिकने नितम्ब पे चांटा मारना चाहता था..मै उसके चूत में लण्ड अंदर-बाहर करते हुए उसके गांड के छेद में ऊँगली करना चाहता था।
"मैं उसे बुरी तरह चोदना चाहता था।"
मेरा इंतेजार ख़त्म हुआ..वो आने वाली थी..हाँ मेरी कामुक बुआ आने वाली थी। मेरे घर में एक शादी थी और सबकी प्यारी होने के कारण वो शादी से कुछ दिन पहले आती और शादी के कुछ दिन बाद तक रहती और मुझे कुछ अधिक समय मिल जाता। ये जाड़े का मौसम था जब वो आने वाली थी मतलब मै कम्बल में मँगल कर सकता था।
वो आगयी थी और फूफा जी उसे छोर के वापस भी लौट चुके थे। वो हमेशा साड़ी पहनती थी और मुझे वो साड़ी में बोहोत ही ज्यादा मादक लगती थी। एक गदराया बदन..बड़े स्तन और चौड़ी नितम्ब वाली शादी-शुदा औरत..जिसके माँग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र हो वो साड़ी में कुछ ज्यादा ही कामुक लगती है। उसके आने के साथ ही मेरे अरमान आसमां छूने लगे थे। पर मैं शुरुआत कैसे करता, मुझे समझ में नहीं आ रहा था। वैसे वो मेरे ही कमरे में सोती थी..मेहमानों की वजह से मेरे कमरे में दो बिस्तर लगा दिया गया था। सिंगल वाले बिस्तर पर मैं अकेला सोता था और दूसरे डबल वाले बिस्तर पर वो और मेरी बहन सोती थी। ठण्ड की वजह से वो कम्बल ओढ़ कर सोती थी जिस वजह से मै रात में उसका चक्षु-चोदन भी नहीं कर पाता था। मै उसके आस-पास किसी भौंरें की तरह मँडराता रहता था कि कोई मौका मिल जाये और मुझे कई मौके मिले भी की मैं उसके नितम्ब को हाथ से सहला दू या उसके नितम्ब पे अपने लिंग का स्पर्श करवा सकू या फिर उसके स्तन को अपनी कोहिनी से छू सकू..उसके स्तन पे अपने सर का दवाब डाल सकू। पर उसके पास आते ही मेरी हिम्मत जवाब दे देती थी। मुझे डर लगता था कि कहीं अगर वो किसी को बोल दे तो अपनी इज्जत तो जायेगी ही धुलाई होगी वो अलग। पर मेरे वासना को चैन कहाँ था बस उसे एक मौका चाहिए था। और मौका जल्दी मिल गया..
घर में किसी की तबियत खराब हो गयी थी। डॉक्टर ने कुछ दवाइयाँ लाने को कही थी, मै उन दवाईयों को लेने के लिए दवा-दुकान पर खड़ा था और तभी मेरे दिमाग में कुछ दिनों पहले पढ़ी गयी कहानी का विचार आया..उसमे लड़का अपनी माँ की उत्तेजना बढ़ाने के लिए उसके चावल में उत्तेजना बढ़ाने वाली दवा का प्रयोग करता है। मैने इसके बारे में सोचा और कुछ परेशानियों के बाद मुझे एक ऐसी दवा मिल गयी। ऐ एक कैप्सूल था..अब परेशानी ये थी इसे बुआ के शरीर के अंदर तक कैसे पहोचया जाए।
उस शाम मै कैप्सूल को हाथ में लिए सोच रहा था ..कैसे इसे इसके मंजिल तक पहूंचाया जाए और मुझे चाय पीने की लत जगि और मुझे रास्ता मिल गया था।
"वासना एक पानी की तरह है वो अपना रास्ता बना लेती है।"
मै बुआ के पास गया वो दादी के साथ बैठी बात कर रही थी। मैने उससे पूछा "चाय पियोगी?" उसका जवाब " हाँ.." में आया..और मुझे ऐसा लगा मैंने उसके साड़ी के अंदर हाथ डाल दी है, आखिर ये भी एक कामयाबी ही थी। मैंने पहले कैप्सूल को खोला और उसके अंदर के पाउडर को एक कागज के टुकड़े पे डाला और अच्छे से लपेट के..चाय बनाने चला। चाय बन जाने के बाद मैंने उसके वाले कप के अंदर पहले कागज का आधा पाउडर डाला, मुझे डर था पूरा डालने के बाद कही चाय का टेस्ट ना बदल जाये। फिर चाय डालने के बाद, अच्छि तरह मिला के मै बुआ के ख़िदमत में पेश हो गया। मै भी अपना कप ले के उसके पास ही खड़ा चाय पी रहा था। एक दो चुस्की के बाद उसने कहा..
"चाय का टेस्ट थोड़ा अजीब लग रहा है..अजीब सा.."
अब मुझे काटो तो खून नहीं। पर पिछले 5-6 घंटों में मेरे अंदर वासना कुछ ज्यादा उफ़ान पे थी। सो वासना ने जवाब दिया..
"वो मैंने चाय-पत्ती डाल के कुछ ज्यादा उबाल दिया था।"
मै अपने वासना पे मुस्कुराह रहा था। फिर बोला..
"ज्यादा लिकर वाली चाय थकान उतार देती है।"
वो " हूँ.." बोल के चाय पीने लगी या यों कहें अपने शरीर को वासना के प्याले में उतारने लगी।
उसके बाद मैंने उसपे करीबी नजर रखनी सुरु कर दी। थोड़ी देर बाद ही वो मुझे असहज लगने लगी। दवा अपना काम कर रही थी। मैं खुश था। मेरे लिंग ने अंगड़ाई लेनी सुरु कर दी थी। क्या मैं आज सफल हो जाऊंगा..क्या आज मेरी वासना पूर्ति हो जायेगी..?
मेरे शरीर में रह रह के एक रोमांच हो रहा था। रात हुई..सब अपने अपने बिस्तर पे गए। मै अपने कम्बल के अंदर अपने लिंग को सहला रहा था, मेरा ध्यान बुआ पे लगा था। वो बार बार करवट बदल रही थी। बार बार उसके हाथ उसके जाँघों के बीच जा रहे थे। मुझे बस एक पहल करनी थी और शायद वो आज मेरे से चुद जाती। मै उसे चुपके से छत पे ले जाता..फिर मैं उसपे कुत्ते की तरह टूट पडता। उसके ब्लाउज उतार..उसके ब्रा के ऊपर से ही उसके बड़े बड़े चुँचो को बुरी तरह मसलता..ब्रा उतार के उसके निप्पल को होंठो के बीच ले के चूसता.. उसके भाड़ी चुँची पे जगह जगह काटता। उसकी साड़ी उठा के उसके चूत से टपकती रस को सोमरस की तरह पीता.. उसके चूत के छेद को अपने नुकीले जीभ से चोदता। फिर मैं उसे दीवार से सटा के झुका देता..उसके दोनों हाथ अपने कमर पे साड़ी को इक्कठी कर के पकडे रहते और वो अपने चौड़े और विशाल गांड को मेरे तरफ निकाल के झुकी रहती। वो अपने रसीले और कामुक चूत को फैलाये मेरे लौड़े का इन्तेजार कर रही होती..और मै अपने लण्ड को उसकी चुदक्कड़ चूत के गहराईयो में उतार देता। वो मुझे अश्लील बातें बोल के उसकी प्यासी चूत की जोड़ से कुटाई करने को कहती..वो मुझे गालियां दे के अपने चूत के गहराईयो में लौड़ा उतारने को कहती।
शायद ऐसा होता.. या अभी भी हो सकता था।
शायद ऐसा होता.. या अभी भी हो सकता था।
कुछ समय बीत गया था। घर के सारे लोग सो गए थे और बुआ के बगल में लेटी मेरी बहन भी। मैं भी शांत पडा हुआ आने वाले वक़्त के सपने देख रहा था। तभी चूड़ियों की खनखनाहट ने मुझे सपने से बाहर निकाला..तब मुझे पता चला की अब मेरे पहल करने का समय आ गया है। पर ये क्या..मेरे अंदर ये डर कैसा। मै पहल करने में डर रहा था। मेरे अंदर अजीब अजीब डरावने विचार आ रहे थे। कही बुआ ज्यादा उत्तेजित ना हो तो क्या होगा वो सबको बता देगी फिर तो मैं मारा जाऊंगा। या फिर वो उत्तेज्जित हो भी तो वो मुझे बेटे जैसा समझती है, मेरे साथ सेक्स करने को तैयार नहीं होगी..। मुझे खुद पे गुस्सा आरहा था..अंतिम समय में मेरा हिम्मत जवाब दे रहा था। मैने करवट बदली, अब मेरा चेहरा बुआ की तरफ था। कमरा में अँधेरा था। बुआ का चेहरा भी मेरी तरफ था..और मुझे लगा वो मेरी तरफ ही देख रही है..वो मुझे कुछ बेचैन सी लगी। मै उसके चेहरे की तरफ देखते हुए अपने अंदर हिम्मत जगाने की कोशिस कर रहा था। तभी मुझे फिर से चूड़ियों की खनकने की आवाज़ आयी। मेरी नजर उसके चेहरे से होते हुए उसके मांसल चुँचो से होते हुए वहां पड़ी जहाँ उसके हाथ हिल रहे थे और चूड़ियों की आवाज़ आ रही थी। उसके दोनों जाँघों के बीच, कम्बल के नीचे उसके हाथ हिल रहे थे।
"बाप रे! वो अपने चूत को रगड़ रही थी। वो ऊँगली कर रही थी। मेरी शादी-शुदा, एक अच्छी चरित्र की औरत, कामुक हो कर, चुदासी हो कर, गर्म हो कर अपने चूत को रगड़ रही थी। अपने चूत की प्यास बुझा रही थी।"
मेरे लिए अच्छा मौका था। पर मेरी हिम्मत वापस नहीं आयी थी। पर मेरा लण्ड पूरा तन गया था। मैंने उसे बाहर निकाला अपने कामुक बुआ का साथ देने के लिए। मेरा लण्ड उत्तेजना के मारे फट्टा जा रहा था। और उधर बुआ के चूड़ियों की आवाज़ बढ़ती जा रही थी। वो कम्बल के नीचे अपने साड़ी पेटीकोट को ऊपर उठाये अपने फुले हुए, रस भरे हुए, छोटी छोटी झांटो वाली चूत को रगड़ रही थी। मुझे उसकी तेज तेज साँसों की आवाज़ आ रही थी..वो गहरी साँसे ले रही थी। अब तक तो उसने अपने चुत के होंठो को फैला के अपनी आग उगलती हुई चूत के छेद के अंदर 2-3 उँगलियाँ भी घुसा लिया होगा।
ये ख्याल आते ही मैंने अपने लण्ड पे हाथो की स्पीड बढ़ाई.. मुझसे अब बर्दास्त नहीं हो रहा था। उधर बुआ की भी स्पीड बढ़ गयी थी, मुझे साफ साफ उनके कम्बल के अंदर हिलते हाथ नजर आ रहे थे। अंधेरे में मुझे उनका चेहरा नजर नहीं आरहा था पर उनकी तेज चलती साँसे मुझे अति-उत्तेज्जित कर रही थी। ध्यान से सूनने पे मुझे हल्की हल्की चपर चपर की भी आवाज़ आयी..उसकी चूत पुरि तरह गीली हो गयी थी और ऊँगली अंदर बाहर करने की वजह से आवाज़ आ रही थी। अगले ही पल मुझे "आह.." की आवाज़ आयी। अब बुआ चरम की ओर बढ़ रही थी। फिर "आह.." की आवाज़ आयी और मुझे चूड़ियों की आवाज़ कुछ तेज तेज आने लगी थी..कम्बल के अंदर हाथ कुछ ज्यादा तेज हो गयी थी और फिर हल्के से आवाज़ आयी..
"ओह्ह..हे भगवान्..आह..आह..हम्म्म्म..हम्म्म्म.."
मेरे सब्र का बांध अब टूटने वाला था..मेरा लण्ड अब बुआ के चूत के साथ झड़ने वाला था।
और उधर बुआ के मुँह से एक आवाज़ आयी..
"..हाय..उफ्फ्फ.."
और उधर बुआ ने अपने चुदासी..हजारों बार चुद चुकी..चरित्रवान और रस भरी चूत से रस टपकाया और इधर बुआ कि चूत का दीवाना..उसके सगे भतीजे के लौड़े ने जमकर वीर्य की बारिश कर दी।
बुआ शान्त पड चुकी थी और मै भी। पर मेरे दिल में अफसोसो की बारिश हो रही थी। मैने एक सुनहरा मौका गँवा दिया था। लेकिन मेरे दिल में एक आशा भी जगी थी..बुआ को अगर उत्तेज्जित कर दिया जाये तो वो बर्दास्त नहीं कर पायेगी। और जैसे मैंने बुआ के हाथों को कम्बल के अंदर चलते देखा था ठीक उसने भी मेरा हाथ कम्बल के नीचे चलता देखा होगा। और शायद उसे ये भी शक हो गया होगा की शाम में चाय के स्वाद और उसकी उत्तेजना में कोई कनेक्शन तो नहीं है। कुछ हो न हो लेकिन..
मैने "वासना-पूर्ति की कोशिस" की सुरूआत कर दी थी।
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