RE: kamukta औरत का सबसे मंहगा गहना
थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद दूसरा धक्का लगा.. तब ऐसा लगा जैसे किसी ने तलवार से मेरे जिस्म को काट दिया हो… मैं बेसुध सी होने लगी… मैं बस यही सोच रही थी कि अगर क्रीम ना लगी होती तो मेरा क्या होता और मैं यह सोच ही रही थी कि तभी तीसरा धक्का लगा और मैं सच में बेहोश हो गई।
जब रेशमा ने मेरे मुंह में पानी डाला तब होश आया..
दर्द और जलन योनि में किस कदर हो रहा था.. बता पाना मुश्किल है.. उस पल को सोचकर समझ आता है कि सच में रेप करने से लड़कियाँ मर क्यों जाती है.. क्योंकि बहुत लोग सोचते हैं कि चुदने के लिए बनी योनि में लिंग घुसने से कोई कैसे मर सकता है.. लेकिन वो यह नहीं जानते कि जबरदस्ती करने और बेरहमी दिखाने से अक्षत यौवनाओं की जान भी जा सकती है.. जैसा कि उस दिन मेरे साथ हो सकता था।
खैर मैं ऐसे ही कुछ देर पड़ी रही, फिर स्थिति सामान्य होने लगी, मैं फिर से उनके कामुक कारनामों का जवाब देने लगी।
तब सैम ने लिंग को आगे पीछे करना शुरु किया, मैं मजे, दर्द उत्साह उत्तेजना के मिले जुले भंवर में फंसती चली गई… और कुछ उलझन में उलझना दिल को सुकून देता है.. मैं इसी सुकून से आनन्द लेते हुए ‘और तेज करो…’ कब कहने लगी पता ही नहीं चला!
सैम किसी तेज घोड़े की तरह हाँफता हुआ बहुत तेज गति से मेरी योनि की प्यास बुझा रहा था, अब प्यास बुझा रहा था या बढ़ा रहा था यह कह पाना भी मेरे लिए मुश्किल है.. क्योंकि हर धक्के के साथ मुझे ऐसा लग रहा था कि इस समय का एक एक पल सदियों लम्बा हो जाये.. यह काम क्रीड़ा कभी खत्म ही ना हो..
पर मेरे चाहने से क्या होता है.. मैं अकड़ने लगी, सैम समझ गया कि मेरा होने वाला है उसने गति और बढ़ा दी.. और मैं झड़ गई।
सैम अभी नहीं झड़ा था लेकिन उसका इंतजार एक और योनि कर रही थी..
रेशमा की आवाज आई- चल भाई, अब जल्दी से इस योनि की प्यास भी बुझा दे!
वो पहले से घोड़ी बन कर लिंग का इंतजार कर रही थी, सैम का लिंग एक झटके में उसकी योनि की गहराइयों में उतर गया और दोनों मजे लेकर कामक्रीड़ा करने लगे।
जल्द ही दोनों एक साथ चरम पर पहुंच गये.. और सब ऐसे ही पड़े रहे।
कुछ देर बाद उठे तो पता चला कि सबकी नींद लग गई थी और शाम हो चुकी थी।
हमने झटपट अपने टिफिन का खाना खा लिया जो हमने सुबह स्कूल के लिए रखा था।
उसके बाद एक राऊंड और चला, दूसरे राऊंड में मैंने खुलकर मजा किया। फिर उन्होंने मुझे घर छोड़ दिया।
मैंने मम्मी से सर दुखने का बहाना किया और अपने कमरे में जाकर सो गई।
स्वाति मुझे अपनी आप बीती सुना रही है, स्वाति पढ़ रही थी जब उसने अपना कौमार्य लुटाया था। सैम रेशमा और स्वाति इन तीन नामों के बीच ही अभी तक स्वाति की कहानी घूम रही थी, पहले सैम और रेशमा में सैक्स सम्बन्ध बने, फिर स्वाति ने खुद को सैम के हवाले किया, और जब भी मौका मिलता था सैक्स मिलन होता रहा।
लेकिन सैम इस बार बारहवीं की परीक्षा देते ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पुणे चला गया, मैंने अपने आप को बहुत अकेला महसूस किया और फिर तन को जो आदत लग चुकी थी सो अलग… अभी मैं रेशमा के साथ ही रहती थी इसलिए कुछ तकलीफ कम हो जाती थी.. सैम के जाने के बाद मैंने किसी की ओर आँख उठा के नहीं देखा।
लेकिन परीक्षा हुये, सैम को गये एक महीना भी नहीं हुआ था कि रेशमा ने हमारे ही क्लास के एक लड़के को बायफ्रेंड बना लिया.. अब वह ज्यादातर वक्त उसी के साथ गुजारने लगी और मैं खुद को बहुत ज्यादा तन्हा महसूस करने लगी।
खैर मैंने पेटिंग सीखने और घरेलू कामों में अपना मन लगाया, रेशमा और उसका बायफ्रेंड सुधीर क्या करते थे, कहाँ जाते थे, मैं सब जानती थी। वो लोग कभी कभी मुझे भी साथ घुमाने ले जाते थे।
ऐसे ही स्कूल खुलने के दिन आ गये, मैं अपनी स्कूटी से स्कूल जाने लगी, स्कूल के पंद्रह दिन ही हुए थे कि रेशमा के पापा का ट्रांसफर हो गया और रेशमा को दूसरे शहर जाना पड़ा, अब मैं बिल्कुल अकेली हो गई.. और अब सुधीर भी अकेला हो गया।
वैसे सुधीर अच्छा लड़का था, रेशमा से पहले और किसी लड़की का नाम मैंने उसकी जिन्दगी में नहीं सुना था।
एक दिन मैं गार्डन के पास एक बेंच पर अकेले उदास बैठी थी.. मेरी नजरें एक टक जमीन को ही देख रही थी.. पता नहीं मैं वहाँ कितनी देर से बैठी थी, शायद घंटा भर तो हो ही गया रहा होगा, और यह बात मुझे तब पता चली जब सुधीर ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा- स्वाति, अब शाम हो गई है, तुम्हें घर जाना चाहिए..
मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा और कहा- नहीं, मैं तो अभी आई हूँ!
तो सुधीर ने हंसते हुए कहा- करीब आधे घंटे से तो मैं खुद तुम्हारे पास वाली बेंच पर बैठा हूँ, मैं सोच रहा था कि तुम खुद मुझे देख लोगी, पर ऐसा नहीं हुआ तो मुझे तुम्हारे पास आना पड़ा।
और उसने गंभीरता से कहा- स्वाति तुम परेशान हो क्या?
मैंने ना में सर हिलाया।
पर सुधीर ने मेरा चेहरा पढ़ लिया- स्वाति, तुम जिस वजह से परेशान हो, मैं भी उसी वजह से परेशान रहता हूँ, पर जिन्दगी तो किसी के लिए किसी परेशानी की वजह से नहीं रुकती, बल्कि हमें उससे लड़ कर आगे निकलना पड़ता है… नहीं तो उसी में उलझ कर दम निकल जाता है..
मैंने उसकी गंभीर बातों का जवाब अपनी भर आई आँखों से दिया..
उसने फिर कहा- यह मैं नहीं कह सकता कि सैम ने तुम्हारे साथ और रेशमा ने मेरे साथ अच्छा किया या बुरा, लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि वक्त ने हमारे सामने ऐसे हालात पैदा करके हमें बड़ा जरूर बना दिया है।
मैं उसकी बातों में खोई हुई थी, तभी उसने कहा- चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ दूँ!
तो मैंने अपनी स्कूटी दिखाते हुए कहा- मैं चली जाऊँगी!
और वहाँ से निकल कर मैं रास्ते भर और घर में भी यही सोचती रही कि सुधीर ने जो बातें कहीं, उनके मतलब क्या थे.. क्योंकि मैं छोटी थी इसलिए मतलब तो नहीं समझी पर सुधीर समझदार है, इतना तो मैं समझ गई।
अब आगे से मैं सुधीर के साथ भी वक्त गुजारने लगी.. हम रोज नहीं मिलते थे पर कभी-कभी हम आपस में सुख दुख बांट लिया करते थे।
ऐसे ही एक दिन पुरानी बातें करते करते मैं रो पड़ी और सुधीर के सीने में सर रख लिया.. शाम का वक्त था अंधेरे और उजाले के बीच का फर्क मिट गया था, लालिमा मद्धम रोशनी ऐसे लग रही थी मानो किसी ने रोमांस के लिए डेकोरेशन किया हो..
मैं सुधीर से लिपटी रही पर सुधीर ने मुझे टच तक नहीं किया..
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