RE: kamukta औरत का सबसे मंहगा गहना
मेरे मन से फिलहाल सैक्स का भूत गायब हो चुका था, मैं किसी की जिन्दगी के अनबूझे पहलुओं को समझने की कोशिश करने लगा।
स्वाति ने आंसू पोंछे और बताना शुरू किया, मेरी नजरें स्वाति के मासूम चेहरे के पीछे छुपे राज जानने के लिए बेचैनी से स्वाति को ही घूर रही थी।
‘जब मैं दीदी के घर थी तब मैं मोबाईल में अपने बॉयफ़्रेंड से बात कर रही थी…’
मुझे झटका लगा और मैंने तुरंत स्वाति को रोका- यह बायफ्रैंड कहाँ से आ गया, कब से है बायफ्रैंड? मुझे सब कुछ शुरू से बताओ, और विस्तार से..
स्वाति ने गहरी सांस लेते हुए सोफे पर अपना सर टिकाया और कहा- जब मैं आठवीं कक्षा में थी तब एक वैन में बैठकर स्कूल जाया करती थी, शायद मैं अपनी सभी सहेलियों से ज्यादा खूबसूरत थी तभी तो हमारे वैन का ड्राइवर जिसे हम अंकल कहते थे मुझको बुरी नजर से देखता था, मैं तो छोटी थी उसकी नजरों में शैतान छुपा है इस बात को समझ ना सकी, लेकिन जब वो बहाने करके मुझे छूता था तब बड़ा अजीब लगता था, पर मैंने कभी किसी से कुछ नहीं कहा।
उस वक्त मेरे मासिक धर्म आने के शुरूआती दिन थे जिसकी वजह से मैं चिड़चिड़ी सी हो गई थी, मेरी माँ ने मुझे मासिक धर्म के बारे में बताया पर शर्म संकोच की वजह से अधूरी ही जानकारी मिली। फिर हम सहेलियों के बीच झिझक झिझक कर ये बातें होने लगी क्योंकि हम सभी समय की एक ही नाव पर सवार थे तो आपस में थोड़ी बहुत बातचीत करके अपनी जानकारियों का दायरा बढ़ा रही थी।फिर ऐसे ही लोगों के नजरिए और उनकी हरकतों की भी बातें होने लगी।
तब समझ आया कि लोग हमें बचपने से ही कैसी नजरों से देखते रहे हैं। हम सभी जवानी की दहलीज पर थी तो सीने के उभार, योनि में रोयें आना, चलने का तरीका बदलना रंग में चेहरे में परिवर्तन और यौवन के बहुत से लक्षण झलकने लगे थे।
ये सब धीमी गति से होता है।
इन सबके साथ ही मैं बड़ी हो गई, बोर्ड कक्षा होने के कारण सभी के लिए बहुत मायने रखता है इसलिए पापा ने मुझे स्कूल सत्र के शुरुआत से ही ट्यूशन कराने भेजा जहाँ दसवीं, बारहवीं दोनों की चार विषयों की ट्यूशन होती थी।
ट्यूशन क्लास का समय शाम पांच से सात बजे का था और मुझे सुबह के स्कूल वाले वैन से ही ट्यूशन भी जाना होता था, फिर उसी अंकल का चेहरा देखते ही मन डरने लगता था क्योंकि समय के साथ ही उसकी हरकतें भी बढ़ने लगी थी, वह अकसर वापसी के समय अंधेरे का फायदा उठा कर मेरे अर्धविकसित स्तन पर हाथ फेरने की कोशिश करता!
एक दिन तो उसने रास्ते में गाड़ी रोक दी और मुझे बाहों में भर के चूम लिया और मेरे स्तनों को मसल दिया उम्म्ह… अहह… हय… याह… मैं दर्द से कराह उठी। तभी उसने मेरा हथ पकड़ कर अपने पैंट के ऊपर से ही अपने तने हुए लिंग पर रख दिया, मेरे मन में एक गुदगुदी सी हुई उसके बारे में जानने की जिज्ञासा और आनन्द को समझने के चेष्टा ने पहली बार मन में हिलौर लिया, पर मैं भयाक्रांत ज्यादा थी, मैंने खुद को उससे छुड़ाया, उसने भी ज्यादा कुछ नहीं किया कहा- कहाँ जायेगी साली, आज नहीं तो कल तुझे तो चोद के ही रहूँगा!
ऐसे शब्द मैंने पहली बार सुने थे, मैं रो पड़ी पर कुछ नहीं कहा और घर पहुंच कर खुद को कमरे में बंद कर लिया।
मैंने डर के मारे यह बात घर पर नहीं बताई और रात को बिना खाये-पीये ही सो गई।
रात को अजीब अजीब सी बातें मन में आती, अपनी ही सुंदरता दुश्मन लगने लगती थी, तो कभी उसकी छुवन का सुखद अहसास मन को गुदगुदा जाता! फिर उसकी उम्र और अपने दर्द को याद करके रो उठती।
दूसरे दिन मैं फिर उसी वैन से स्कूल के लिए निकली, मेरे चेहरे का रंग डर के मारे उड़ा हुआ था जबकि ओ कमीना मुझे घूर-घूर के मुस्कुरा रहा था।
मेरे स्कूल पहुंचते ही मेरी सबसे करीबी सहेली रेशमा ने मेरे चेहरे को देख कर कहा- बात क्या है स्वाति, तू इतनी परेशान क्यूं है?
तो मैं उसके कंधे पर सर रख कर रो पड़ी और उसे सारी बातें बताई।
रेशमा ने मुझे चुप कराया और अपने भाई के पास ले गई उसके भाई का नाम समीर था सब उसे सैम बुलाते थे वह स्कूल का स्टूडेंट प्रेसिडेंट था, उनके पापा एस पी थे और वह दिखने में भी दबंग था।
रेशमा ने अपने भाई को मेरे साथ घटी सारी घटना बताई, सैम ने मुझसे कहा- ऐ लड़की, रोना बंद कर, हिम्मत से सामना किया कर, ऐसे लोगों को सबक सिखाना सीखो, अगर मैं उसे सबक सिखाऊँ तो तुम गवाही देने के समय पीछे मत हट जाना!
इतने में रेशमा ने कहा- नहीं हटेगी भाई, मैं हूँ ना!
और मैंने आंसू पोंछते हुए हाँ में सर हिलाया।
फिर सैम ने मेरा नाम पूछा और मेरे स्वाति कहते ही मेरा हाथ बड़े अधिकार से पकड़ा और वैन वाले की तरफ तेजी से बढ़ गया।
मैं लगभग दौड़ती खिंचती हुई उसके साथ भाग पाई।
उसने दो अलग वैन वाले को दिखा कर पूछा- यही है क्या?
मैंने ना कहा, उतने में वो वैन वाला भागने लगा तो उसे लड़कों ने घेर लिया और पकड़ कर मेरे सामने ले आये और मुझे मारने कहा। मैंने मना किया तो सबने मुझे ही डाँटना शुरू कर दिया तो मुझे मजबूरन एक झापड़ मारना पड़ा। मेरा झापड़ उस कमीने को कम लगी होगी और मेरे हाथ को ज्यादा दुख रहा था।
अब तक हमारे स्कूल के सारे लड़के-लड़कियाँ इकट्ठे हो चुके थे, बेचारा सैम तो एक बार भी उसे मार नहीं पाया क्योंकि सारे लड़के टूट पड़े थे, कहीं वो मर ना जाये इस डर से उसको छुड़ाना पड़ा।
फिर प्रिंसिपल ने उस वैन में आने वाले बच्चों के पेरेंटस से कहकर उस वैन को बैन कर दिया।
मेरी इमेज अब सीधी सादी लड़की से बदलकर दबंग की हो गई थी, लेकिन साथ ही एक समस्या भी खड़ी हो गई थी कि मैं स्कूल किसमें और कैसे आऊँ।
इस घटना की खबर पापा तक तो पहुँच ही गई थी, और उन्होंने वैन वाले को बिना देखे ही कोसने के साथ ही दो चार बातें मुझे भी सुनाई, और दो चार दिन तो खुद स्कूल छोड़ने चले गये, पर रोजाना आने जाने में समस्या होने लगी क्योंकि भाई, और दीदी दोनों ही कालेज के लिए दूसरे शहर में रहते थे।
इस समस्या के लिए भी रेशमा ने ही मदद की, वो और उसका भाई एक स्कूटी में स्कूल आते थे और उनके घर जाने का एक दूसरा रास्ता हमारे घर को पार करके जाता था तो उसने मुझे कहा कि मैं उन लोगों के साथ आ जा सकती हूँ।
मेरे पापा रेशमा को जानते ही थे और अब तो सैम भी हीरो बन चुका था, उन्होंने उनके साथ आने जाने की अनुमति दे दी।
कुछ ही दिनों में पापा ने मेरे लिए एक स्कूटी खरीद दी, और सैम को मुझे स्कूटी सिखाने की जिम्मेदारी सौंपी।
सैम मुझे अच्छा लगने लगा था, उसने मेरे साथ कभी कोई गंदी हरकत या गंदा मजाक नहीं किया, और ना ही मुझे कभी उसकी नजर गंदी लगी। हम बहुत अच्छे दोस्त बन गये थे।
ऐसे ही समय गुजरा और पेपर के दिन आ गये। सैम हमें पढ़ा दिया करता था तो हमारे पेपर अच्छे गये, लेकिन जब रिजल्ट आया तब मैं और रेशमा तो अच्छे नंबरों से पास हो गये थे पर सैम के बहुत कम अंक आये थे। उसके पापा ने उसे खूब फटकारा और श्रेणी सुधार करने को कहा।
मतलब उसे उसी स्कूल में दुबारा पढ़ना था।
इसी बीच गर्मी की छुट्टियों में मेरे बहुत मनाने पर सैम मुझे स्कूटी सिखाने के लिए राजी हो गया, वो अपनी गाड़ी से हमारे घर तक आता और फिर हम स्कूटी सीखने निकल पड़ते थे। ज्यादातर वह शाम के समय ही आता था, कभी मेरी स्कूटी तो कभी उसकी… हम सीखने जाते थे, रेशमा भी कभी-कभी आती थी, वह थोड़ा बहुत सीख चुकी थी इसलिए उसे विशेष रुचि नहीं थी।
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