RE: kamukta औरत का सबसे मंहगा गहना
जब बाहर आई तो मैं उसे देखते ही रह गया क्योंकि उसने बड़ी ही सैक्सी ड्रेस पहन रखी थी, लाईट ब्लू कलर की डीप नेक टॉप और ब्लैक कलर की जींस, बाल खुले हुए थे।
हालांकि बेचारी सांवली और मोटी होने की वजह से ज्यादा खूबसूरत नहीं लग रही थी फिर भी जितना मैं सोचता था, उतनी बुरी भी नहीं थी।
दरअसल शहर में रहने वाली लड़कियाँ अपने कपड़ों और फैशन से अपनी कमजोरियाँ छुपा लेती है।
उसके हाथ में स्कूटी की चाबी और स्कार्फ थी, उसने स्कार्फ बांधते हुए ही कहा- अब चल!
मैंने पूछा- कहाँ दीदी?
तो उसने कहा- पहली बात तो तू मुझे दीदी कह के मत पुकारा कर! और अब मैं तुझे तेरे आफिस ले जा रही हूँ, वहाँ बहुत से लोग मेरी पहचान के हैं।
मैंने कहा- हाँ, यह तो ठीक है, आप भी चलो मेरे साथ, पर मैं आपको दीदी न कहूं तो और क्या कहूं?
तो उसने कहा- देख, मुझे सब किमी कहते हैं.. तू भी मुझे किमी कहा कर!
मैंने हाँ में सर हिलाया और दोनों स्कूटी से ऑफिस की ओर निकल गये।
रास्ते में बहुत सी बातें हुई, गाड़ी किमी चला रही थी, बातों के दौरान मैंने दीदी को किमी कहना शुरु कर दिया, दो चार बार अटपटा लगा फिर आदत हो गई।
आफिस पहुँचते ही वो सबको ऐसे हाय हलो कर रही थी जैसे वो रोज ही यहाँ आती हो। मैं उसके पीछे-पीछे चला जा रहा था, उसने कैबिन के सामने पहुँच कर नॉक किया और ‘मे आई कम इन सर!’ कहते हुए अंदर घुस गई।
सर ने ‘अरे आओ किमी, बैठो! कहो कैसे आना हुआ?’ कहकर हमारा स्वागत किया।
वो कंपनी के मैनेजर थे।
किमी ने खुद बैठते हुए मुझे भी बैठने का इशारा किया और उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए सर से कहा- यह मेरे शहर से आया है। मेरे भाई का दोस्त है, आप लोगों ने इसे अपनी कंपनी में जॉब के लिए सलेक्ट कर लिया है, आज ज्वाइन करने आया है।
मैंने सर को हैलो कहा और अपना बायोडाटा और वो लैटर दिया। सर ने उसे जल्दी से देखा और साईड में रखते हुए कहा- शुरुआत में 10000/- मिलेगा, बाद में तुम्हारे काम के हिसाब से बढ़ जायेगा। और रहने के लिए…
किमी ने सर को इतने में ही रोक दिया- नहीं सर, यह तो मेरे साथ ही मेरे घर पर रहेगा।
मैंने कुछ कहने की कोशिश की.. लेकिन उसने फिर रोक दिया- तू चुप कर, तू कुछ नहीं जानता।
सर ने एक गहरी सांस ली और ओके कहते हुए मुझसे हाथ मिला कर बधाई दी।
किमी ने भी हाथ मिलाया और ‘ठीक है सर… तो आप इसे काम समझा दो, मैं चलती हूँ। मैं इसे छुट्टी के टाइम वापस ले जाऊंगी।
मैंने स्माइल दी, तो किमी ने कहा- एक मिनट बाहर आना!
मैं किमी के साथ बाहर तक गया, किमी ने बाहर निकल कर आफिस की दाईं ओर इशारा करके दिखाया- वो देख मेरा आफिस! हम दोनों के आफिस का टाइम लगभग सेम है, मेरी शिफ्ट टाइम 09.45 से 04.30 है और तुम्हारे ऑफिस का 10 से 5 लेकिन अगर अभी तुम्हें नाइट सिफ्ट भी कहें तो मना मत करना, हम बाद में सैटिंग कर लेंगे।
फिर वो चली गई, मैं अंदर आ गया।
अमित नाम के एक लड़के ने मुझे काम समझाया, वो सेम पोस्ट में था।
शाम को किमी मेरे आफिस में आ गई और हम वापसी के लिए स्कूटी में निकल गये। किमी ने रास्ते में एक चौपाटी में गाड़ी रोक दी और फिर हम चौपाटी से गपशप करते हुए एक घंटे लेट घर पहुँचे।
अब हम बहुत अच्छे दोस्त की तरह रहने लगे थे, तो मैंने एक दिन चाय पीते-पीते किमी से उसके आत्महत्या के प्रयासों का कारण पूछ लिया। किमी ने चाय का कप टेबल पर रख कर एक लंबी गहरी सांस भरी, उसके आँखों में आंसू भर आए… और उसने मुझसे कहा कि अगर मैं उसका सच्चा दोस्त हूँ तो ये सवाल फिर कभी ना करूँ।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाकर तुरंत दूसरी बात छेड़ दी ताकि किमी का मन हल्का हो सके।
अब ऐसे ही कुछ दिन बीत गए.. सब कुछ अच्छा ही चल रहा था, मेरे मन में किमी के लिए कोई गलत बात नहीं थी, फिर भी था तो मैं जवान लड़का ही।
ऐसे ही एक दिन रात को किमी अपने कमरे में जल्दी सोने चली गई और मैंने अपने मोबाइल पर राजशर्मास्टॉरीज की कहानी पढ़नी शुरू कर दी। कहानी पढ़ते-पढ़ते मेरा हथियार फुंफकारने लगा, मैं इस वक्त हॉल में ही बैठा था, मैं अपने निक्कर के ऊपर से ही उसे सहलाने लगा।
मेरी उत्तेजना बढ़ती गई और मैं लंड को निक्कर से बाहर निकाल कर मसलने लगा और जोर-जोर से हिलाने लगा, मैं झड़ने ही वाला था कि किमी अचानक हॉल में आ गई, मैं कुछ ना कर सका। किमी ने नजरें चौड़ी करके सलामी देते और हाँफते हुए मेरे नन्हे शहजादे को देखा।
आप सभी को झड़ने के वक्त क्या बेचैनी रहती है.. इसका पता ही होगा, शायद मैं भी उस सुखद एहसास के चक्कर में सब कुछ भूल गया था और मैंने उसके सामने ही चार-पांच झटके और लगा दिए। फिर मेरा सैलाब फूट पड़ा.. कुछ बूँदें छिटक कर किमी के चेहरे पर तक चली गईं। ये सब महज चंद सेकंड में हुआ।
फिर किमी ने ‘सॉरी..’ कहा और कमरे में वापस चली गई।
मुझे रात भर नींद नहीं आई, मेरी गलती पर भी किमी ने खुद ‘सॉरी’ कहा, यह सोचकर मुझे खुद पर बहुत शर्म आ रही थी, सुबह उठ कर मैं किमी से नजर नहीं मिला पा रहा था।
किमी मेरे से बड़ी थी इसलिए वो मेरी हालत समझ गई, उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा- संदीप.. रात की बात मैं भूल चुकी हूँ, तुम भी भूल जाओ, जवानी में ऐसी हरकतें अपने आप ही हो जाती हैं। मेरे लिए तुम कल जितने अच्छे थे.. आज भी उतने ही अच्छे हो।
उसके मुंह से इतनी बातें सुनकर मेरे मन का बोझ हल्का हुआ, फिर मैंने मौका अच्छा जानकर किमी से कह दिया- बूढ़ी तो तुम भी नहीं हुई हो.. तो क्या तुम्हारे लिए भी ये आम बात है?
किमी मेरे सवाल से चौंक गई और उसने मुझे घूर कर देखा, मैं डरने लगा कि मैंने फिर गलत तार तो नहीं छेड़ दिया।
उसने सोफे पर बैठते हुए मुझसे पूछा- आज कौन सा दिन है?
मैंने कहा- आज तो सन्डे है, पर पूछ क्यूं रही हो?
तो उसने कहा- क्योंकि आज मैं तुम्हें अपनी सारी कहानी बताती हूँ, कहानी लंबी है इसलिए छुट्टी की पूछ रही थी। उस दिन भी तुमने मेरे आत्महत्या के प्रयासों के बारे में पूछा था ना? असल में यही सबसे बड़ा कारण है।
मैंने कहा- मैं समझा नहीं!
उसने कहा- तुम ऐसे समझोगे भी नहीं.. पूरी कहानी सुनोगे, तब ही समझ पाओगे।
उसने बोलना शुरू किया.. उसने जो कुछ भी बोला, वो एकदम साफ़ शब्दों में कहा था.. हालांकि ये कुछ ज्यादा ही खुल कर कहा था, पर जैसा उसने बताया मैं वैसा ही आपके सामने रख रहा हूँ।
किमी ने कहना शुरू किया- तुम तो जानते ही हो कि मैं शुरू से ही मोटी, सांवली सी दिखने वाली लड़की हूँ। इसलिए कालेज लाइफ में किसी ने मुझ पर चांस नहीं मारा और मेरा मन भी खुद से भी इन चीजों में नहीं गया, बस पढ़ाई करने में ही मैंने जिन्दगी गुजार दी। फिर घर में मेरी शादी की बातें होने लगीं, लेकिन हर बार मेरे भद्देपन के कारण लड़के मुझे रिजेक्ट कर देते थे।
दोस्तों.. मेरे दोस्त की बहन किमी ने मुझे अपनी जिन्दगी के पहलुओं से परिचित कराना शुरू कर दिया था।
उसका ये खुलासा उसकी ही जुबानी काफी दुःखद था इसको पूरे विस्तार से समझने के बाद ही आपको इस कहानी का अर्थ समझ आ सकेगा।
किमी ने आगे बोलना शुरू किया- मेरे रिश्ते को लेकर घर वालों का तनाव भी बढ़ने लगा और नतीजा ये हुआ कि वो सब मुझे भी भला बुरा सुनाने लगे। मुझे खुद से घिन आने लगी, मेरा आत्मविश्वास भी गिरने लगा। ऐसे में पापा ने कहीं से एक लड़का ढूंढ निकाला.. मैं बहुत खुश हो गई, लड़का सामान्य था.. पर मेरी तुलना में बहुत अच्छा था।
बड़े धूमधाम से हमारी शादी हुई, सुहागरात के बारे में मैंने सुना तो था कि पति-पत्नी के शारीरिक सम्बन्ध बनते हैं पर मुझे इसका कोई अनुभव नहीं था। मैं बिस्तर में बैठी डर रही थी कि आज रात क्या होगा, मन में भय था पर खुशी भी थी… क्योंकि आज मेरे जीवन की शुरूआत होनी थी।
कहते हैं न.. किसी भी लड़की का दो बार जन्म होता है, एक जब वो पैदा होती है और दूसरी बार जब शादी होकर अपने पति के पास आती है और पति उसे स्वीकार लेता है। सुहागरात बड़ी ही अनोखी रस्म होती है, इसके मायने मैं अब समझ पाई हूँ।
खैर.. अब रात गहराती गई और वो अब तक कमरे में नहीं आए थे, मुझे नींद सताने लगी थी.. तभी मुझे अपने कंधे पर किसी के छूने का अहसास हुआ, मैं चौंक कर पलटी तो देखा कि कोई और नहीं.. वो मेरे पति सुधीर थे, मैं बिस्तर पर बैठ गई और सर पर पल्लू डाल लिया।
वो मेरे पास आकर बैठ गए और अपना कान पकड़ते हुए मुझसे कहा कि सुहागरात के दिन आपको इस तरह इंतजार कराने के लिए माफी चाहता हूँ, आप जो सजा देना चाहो, मुझे कुबूल है!
उस वक्त मैं नजरें झुकाए बैठी थी, मैंने पलकों को थोड़ा उठाया और मुस्कुरा कर कहा- अब आगे से आप हमें कभी इंतजार ना करवाइएगा.. आपके लिए इतनी ही सजा काफी है।
उन्होंने ‘सजा मंजूर है..’ कहते हुए मुझे बांहों में भर लिया और मेरे गहने बड़ी नजाकत से उतारने लगे।
पहले तो मैं शर्म से दोहरी हो गई, किसी पुरुष का ऐसा आलिंगन पहली बार था, हालांकि मैं पापा या भाई से कई बार लिपटी थी, पर मन के भाव से लिपटने का एहसास भी बदल जाता है और ऐसा ही हुआ। मेरे शरीर में कंपकपी सी हुई.. पर मैं जल्द ही संयत होकर उनका साथ देने लगी।
गहनों के बाद उन्होंने मेरी दुल्हन चुनरी भी उतार दी, मेरे दिल की धड़कनें और तेज होने लगीं, वो मेरे और करीब आ गए और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.. हाय राम.. ये तो मैंने अभी सोचा भी नहीं था। मेरे ‘वो’ तो बहुत तेज निकले, मैं घबराहट, शर्म और खुशी से लबरेज होने लगी।
मैंने तुरंत ही अपना चेहरा घुमा लिया.. पर उन्होंने अपने हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और अपनी ओर करते हुए कहा कि जानेमन शर्म औरत का सबसे मंहगा गहना होता है, लेकिन सुहागरात में ये गहना भी उतारना पड़ता है.. तभी तो पूर्ण मिलन संभव हो पाएगा।
मैं मुस्कुरा कर रह गई, मैं और कहती भी क्या.. लेकिन मेरी शर्म अब और बढ़ गई, तभी उन्होंने मेरे कंधे पर चुम्बन अंकित कर दिया और मैंने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढक लिया। उन्होंने अपने एक हाथ से मेरी पीठ सहलाई और दूसरे हाथ को मेरे लंहगे के अन्दर डाल कर मेरी जांघों को सहलाने लगे।
उहहहह मईया रे.. इतना उतावला पन.. हाय.. मैं खुश होऊं कि भयभीत.. मेरी समझ से परे था।
उन्होंने मेरे जननांग को छूना चाहा और उनके छूने के पहले ही उसमें सरसराहट होने लगी, मेरे सीने के पर्वत कठोरतम होने लगे, मैं शर्म से लाल होकर चौंकने की मुद्रा में लंहगे में घुसे हाथ को पकड़ कर निकालने लगी।
उन्होंने हाथ वहाँ से निकाल तो दिया, पर तुरंत ही दूसरा पैंतरा आजमाते हुए, मेरे उरोजों को थाम लिया।
मैं अब समझ चुकी थी कि आज मेरी जिन्दगी की सबसे हसीन रात की शुरूआत हो चुकी है, पर मुझ पर शर्म हावी थी, तो उन्होंने कहा- जान अब शरमाना छोड़ कर थोड़ा साथ दो ना..!
तो मैंने आँखें खोल कर उनकी आँखों में देखा और झिझक से थोड़ा बाहर आते हुए मस्ती से उनकी गर्दन में अपनी बांहों का हार डालकर उन्हें अपनी ओर खींचा और उनके कानों में कहा कि जनाब सल्तनत तो आपको जीतनी है, हम तो मैदान में डटे रहकर अपनी सल्तनत का बचाव करेंगें। अब आप ये कैसे करते हैं आप ही जानिए।
इतना सुनते ही उनके अन्दर अलग ही जोश आ गया.. उन्होंने मेरे ब्लाउज का हुक खोला नहीं.. बल्कि सीधे खींच कर तोड़ दिया और मिनटों में ही अपने कपड़ों को भी निकाल फेंका।
अब वो केवल अंतर्वस्त्र में रह गए थे। उन्होंने अगले ही पल मेरा लंहगा भी खींच दिया, मैंने हल्का प्रतिरोध जताया, लेकिन मैं खुद भी इस कामक्रीड़ा में डूब जाना चाहती थी। अब वो मेरे ऊपर छा गए और मेरे सीने पर उभरी दोनों पर्वत चोटियों को एक करने की चेष्टा करने लगे। अनायास ही मेरे मुंह से सिसकारी निकलने लगी, तभी उन्होंने मेरे सीने की घाटी पर जीभ फिरा दी।
हायय… अब तो मेरा खुद पर संयम रखना नामुमकिन था। उधर नीचे उनका सख्त हो चुका वो बेलन.. मुझे चुभ रहा था, मैं अनुमान लगा सकती थी कि मेरे नन्हे जनाब की कद काठी कम से कम आठ इंच तो होगी ही!
मुझे खून खराबे का डर तो था, लेकिन यह भी पता था कि आज नहीं तो कल ये तो होना ही है, इसलिए मैं आँखें मूँदे ही आने वाले पलों का आनन्द लेने लगी, मेरा प्रतिरोध भी अब सहयोग में बदलने लगा था।
वो अब मेरे अंतर्वस्त्रों को भी फाड़ने की कोशिश करने लगे, उनके इस प्रयास से मुझे तकलीफ होने लगी.. तो मैंने खुद ही उन्हें निकालने में उनकी मदद कर दी। तभी उन्होंने एक झटके में अपने बचे कपड़े भी निकाल फेंके।
अब हम दोनों मादरजात नग्न अवस्था में पड़े थे। उन्होंने पहली बार मेरी योनि में हाथ फिराया और खुश होकर बोले- क्या कयामत की बनावट है यार, इतनी मखमली, रोयें तक नहीं हैं..! अय हय.. मेरी तो किस्मत खुल गई!
ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरी पहले से गीली हो चुकी योनि में अपनी एक उंगली डाल दी।
मैं इस हमले के लिए तैयार नहीं थी, मैं चिहुंक उठी, लेकिन फिर अगले हमले का इंतजार करने लगी। कुछ देर पहले सल्तनत की रक्षा करने वाली.. अब खुद ही पूरी सल्तनत लुटाने को तैयार बैठी थी।
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