RE: Chudai Story समाज सेविका
हमारा आपस मे एक अंजाना सा रिश्ता जुड़ गया था,
जिससे मेरी पत्नी नावाकिफ़ थी.
जब भी मेरा और उसका सामना होता, वो चोर नज़रों से
मुझे बार बार देखती. मेरा मन कभी हाँ करता और
कभी ना...देखने मे वो बहुत अच्छी थी. सेक्सी थी
कहना चाहिए. जिस्म बड़ा सी गुदाज सा था. पाँच फुट
पाँच इंच की होगी, लेकिन वजन 50 किलो से अधिक ना
होगा. अक्सर साड़ी पहनती थी और साड़ी से ब्लाउज का
फासला काफ़ी होता था. जिससे उसका नंगा गोरा पेट सॉफ
नज़र आता था. साड़ी वो नाभि के नीचे ही बाँधती
थी. उसकी नाभि का छेद बहुत सुहावना था. ऐसा
लगता था जैसे पेट पर कोई डिंपल हो. हमेशा सीना
ताने रखती थी. सीने का उभार गजब का था. मेरा
हमेशा दिल चाहता था कि अपना मूह दोनों उभारों के
बीच मे रख दूं और आँखे बंद करके गुम सूम हो
जाउ. कभी कभी वो जींस और टी-शर्ट भी पहनती थी.
उस वक्त उसके खूबसूरत कुल्हों और मेहनत से तराशे
हुए चुतडो (बम्स) का नज़ारा किसी जन्नत से कम नही
होता था. जब वो घूमती थी, तो क्या मज़ाल किसी की
नज़रे उसके मस्त चुतडो से हट जाए. और जब वो
सामने होती, तो कमर के नीचे, उसके ट्राउज़र की जिप
पर निगाहे रहती. जिप का भाग थोड़ा अंदर की तरफ
घुसा हुआ सा लगता था. इससे मालूम पड़ता कि उसके
पेट के नीचे का भाग कितना स्लिम है. मैं अपनी
कल्पना मे उसकी चूत का नज़ारा करता और ऐसा लगता
कि उसकी खूबसूरत चूत मेरे लंड तक पहुँचने के
मिए बेकरार है.
कुछ दिन वो नही दिखाई दी. मैं ऑफीस से शाम 6 बजे
घर आ जाता हू. रविवार को घर पर ही रहता हू.
मुझे पता चला कि वो अपने किसी ख़ास काम मे बहुत
व्यस्त है. मैने सोचा कि आख़िर मैं उसके बारे मे
इतना क्यों सोच रहा हू, या मेरे दिल ने कहा कि, बेटे,
तू उसकी चूत का दीदार करना चाहता है... तू उसे
घोड़ी बना कर उसे पीछे से चोदना चाहता है... तू
उसे इतना चोदना चाहता है कि फिर सारी उमर किसी
और को चोदने की चाहत बाकी ना रहे.
मैने अपने दिमाग़ को झटका और सोचने लगा कि क्या
वकाई मैं उसे चोदना चाहता हू... दिल ने कहा हां,
दिमाग़ ने कहा.. नही... क्यों नही?
इसलिए कि वो हर रोज पचासों लोगों से मिलती है...बड़े
बड़े लोगों से भी...पता नही कितनों के साथ सो चुकी
होगी.
तो क्या हुआ? सोई होगी तो सोई होगी...इसमे क्या? तू भी
सो जा एक बार...चूस लो उसकी जवानी. चढ़ जा उस पर.
घुसा दे अपना लंड उसकी चूत मे. मार
धक्के...लगातार...उस वक्त तक, जब तक कि वो ना
बोले...बस करो अभी.
क्या हर्ज है यार?
हां...हर्ज तो कुछ नही... चलो देखते है...अबकी
बार मिली तो...तो...तो...कैसे कहूँगा उससे अपने दिल
की बात?
और मेरी ये उलझन भी ख़तम हो गयी. बात अपने आप ही
बन गयी...
उस दिन रविवार था. मेरी पत्नी अपनी मा के यहाँ गयी
थी. उर्मिला को मालूम नही था शायद. वो कोई दो बजे
दोपहर को आ गयी. आते ही यहाँ वहाँ देखा और फिर
मुझे देख कर मुस्कुराइ और बोली... 'मेडम? बाथरूम
मे...???'
मैं भी मुस्कुराया और बोला... 'हाँ बाथरूम मे...और
अब भी अकेले ही.'
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