RE: Maa Beti Chudai माँ का आँचल और बहन की लाज़
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एक पल के लिए शशांक को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं होता .... मोम ..उसकी देवी ..उसके सपनों की रानी..उसकी हसरत , उसकी दुनिया उसका सब कुछ ..खुद उसके सामने खड़ी है...वो अपनी आँखें मलता है दुबारा देखता है.....हां यह उपर से नीचे तक वोही है ..
मोम की आँखों में माँ की चिंता , एक औरत की हसरत और प्यार सब कुछ देख और समझ लेता है शशांक ...
शशांक एक हाथ से दरवाज़ा खोलता है और दूसरे हाथ से मोम के कंधे पर हाथ रखे उसे अंदर खींचता है ....दरवाज़ा बंद कर देता है ...मोम को अपनी गोद में उठाता है ...और बड़े नपे तुले कदमों से बीस्तर के पास जा कर उसे लीटा देता है..
मोम की आँखों में अब कोई चिंता नहीं है ..शशांक की मजबूत बाहों के सहारे गोद में आते ही शांति को महसूस हो जाता है के उसके लंबे कदम जिन्होने उसके वर्षों की संस्कारों और परंपराओं को लाँघते हुए पीछे छोड़ दिया है...उसे सही ठिकाने तक पहूंचाया है .
शांति को उसकी मजबूत बाहों में बिल्कुल वैसा ही महसूस हो रहा था जैसा उसे उस रात सपने में हुआ था ....उसने इन बाहों में अपने आप को कितना महफूज़ पाया ...इन बाहों का सहारा लिए वो जिंदगी के किसी भी तूफान का सामना कर सकती थी ..किसी भी भंवर से खींच निकालने की ताक़त उन बलिष्ठ भुजाओं में थी.... एक औरत को एक मर्द की मजबूत बाहों का सहारा मिल गया था ..... उसकी मंज़िल मिल गयी थी ...शांति अब निश्चिंत है ..उसके अंदर धमाके अब शांत हैं .....
शशांक , शांति को बीस्तर पर लीटा कर उसकी बगल में बैठता है...उसे निहारता है ..अपनी मोम का यह बिल्कुल नया रूप अपनी आँखों से पीने की कोशिश करता है..बस देखता ही रहता है ....
शांति की बड़ी बड़ी आँखें खूली हैं ..चेहरे पे हल्की सी मुस्कुराहट है.... आँखों में एक ताज़गी है ..जो लंबी दूरी तय करने के बाद अपनी मंज़िल तक पहूंचने पर किसी की आँखों मे होती है... शांति ने भी तो सालों की मान्यताओं , नियमों को ठोकर मारते हुए एक लंबी दूरी तय कर आज शशांक के बीस्तर तक आई थी ...उसके पाओं ने अपने कमरे से शशांक के कमरे तक सिर्फ़ चार कदमों का ही फासला तय किया था ..पर उसके दिल-ओ-दिमाग़ ने सालों से चली आ रही एक लंबी और विस्तृत परंपरा को लाँघने का लंबा सफ़र तय किया था ..
शशांक सब समझता था उसकी आँखों से शांति का आभार , उसकी पूजा , उसकी प्रशन्षा और सब से ज़्यादा उसके लिए असीम प्यार आँसू बन कर टपक रहे थे ....
अपनी मोम की ओर एक टक देखते हुए वो बोल उठता है....." उफफफफफ्फ़ मोम ...अट लास्ट........"
उसके इन चार शब्दों में शांति ने उसकी तड़प , उसका आभार , उसका प्यार सभी कुछ महसूस किया ..
" हां शशांक अट लास्ट ..... तुम्हारे प्यार ने मुझे यहाँ तक आने को मजबूर कर दिया ....मेरे कदम खींचे चले आए ..हां शशांक ..."
और अब शशांक अपने आप को रोक नहीं पाया ...उसने लक्ष्मण रेखा तोड़ दी .....
मोम को अपनी बाहों में जाकड़ लिया ....उसके सीने में मुँह छुपाता हुआ फूट पड़ा " हां मोम ..यस मोम ...आइ लव यू ..आइ लव यू ...उफफफफफफ्फ़ ...मोम .....आइ लव यू सो मच ..... "
" हां शशांक मैं जानती हूँ ..मैं समझती हूँ ..मैं महसूस करती हूँ ..बेटा...मेरी अंदर की औरत को तुम ने जगा दिया है शशांक ...अपना सारा प्यार भर दो मेरी झोली में ....भर दो ...."
शांति अपनी बाहें उसके पीठ से लगाते हुए शशांक को अपने सीने से चीपका लेती है ....बार बार उसे अपनी तरफ खींचती है ..शशांक उसकी पीठ के नीचे बाहें डाले उसे बार बार अपनी तरफ खींचता है ..दोनों के सीने से चिपकते हैं...शांति की मदमस्त चूचियाँ अपनी सारी गोलाई और कोमलता लिए उसके सीने में सपाट हो जाती है , स्पंज की तरेह .... ..
शशांक उसे बार बार गले लगाता है . सीने से चिपकाता है....उसे चूमता है ..चाट ता है चूस्ता है शांति आँखें बंद किए इस प्यार को अपने अंदर महसूस करती है....अपने अंदर समा लेने की जी जान कोशिश में जुटी रहती है ....
शशांक प्यार लूटा रहा था शांति उसे अपनी झोली में समेट रही थी ....
अचानक शांति , शशांक को अपने उपर से हटा ती है ..शशांक चौंकता है
शांति कहती है .." शशांक अपने प्यार के बीच अब यह परदा क्यूँ ??....शांति और शशांक के बीच कोई दूरी क्यूँ ??..उनके महसूस के बीच रुकावट क्यूँ ?? ......मुझे पूरे का पूरा शशांक चाहिए .....और शांति भी शशांक को पूरी मिलेगी ...पूरी की पूरी बेपर्दा ......नंगी .....पूरी तरेह शांति ..."
एक झटके में शांति अपनी नाइटी उतार फेंकती है , शशांक के सामने बिल्कुल बे परदा ..बिल्कुल नंगी ....सिर्फ़ शांति ......
शशांक की आँखें फटी की फटी रह जाती है शांति को देख......उफफफफफफफफ्फ़ ......सही में वो उसके सुंदरता की देवी है ....संगमरमर की मूर्ति की तारेह तराशा हुआ शरीर , शरीर कम एक देवी की मूर्ति ज़्यादा .....भारी भारी गोलाकार चूचियाँ ..गुलाबी घूंडिया ....दूधिया रंग ...लंबी गर्दन ...मुस्कुराता चेहरा ....भरे भरे होंठ ....मांसल पेट ....गहरी नाभि.....लंबी सुडौल टाँगें ...भारी भारी जंघें ..जांघों के बीच हल्की सी फाँक लिए गुलाबी चूत , बीखरे बाल .....हाथ फैलाए ....
शशांक उसकी बाहों में जाने को अपने हाथ फैलाता है ..फिर रुक जाता है .....सोचता है इस संगमरमर की इतनी निर्मल , स्वच्छ और पवित्र मूर्ति उसके कपड़ों के स्पर्श से मैली ना हों जायें ....
अपने कपड़े उतार फेंकता है , अब सिर्फ़ शशांक , शांति के सामने है ...नंगी और निर्मल शांति की बाहों में नंगा और निर्मल शशांक आ जाता है ..जिस तरह वो अपनी माँ की कोख से निकला था ..
दोनों एक दूसरे से बूरी तारेह चीपक जाते हैं ...चीपके चीपके ही बीस्तर पर आ जाते हैं....मानों इतने दिनों से रुका हुआ प्यार का बाँध फूट पड़ा हो..... दोनों इस फूटे हुए बाँध के बहाव में बहते जाते हैं ....
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