RE: Maa Beti Chudai माँ का आँचल और बहन की लाज़
शिव शांति का परिवार बड़े जोश और उत्साह से दीवाली की जगमग रोशनी में , पटाको और फुलझड़ियों की चकाचौंध में डूबा है , चारों एक दूसरे के आनंद में शामिल हैं ....
शिवानी के तन -मन में तो पहले ही फुलझड़ियाँ फूट चूकी थीं , पटाखो की गूँज ने धमाका कर डाला था ...वो अभी भी उन धमाकों की आवाज़ों में खोई थी ..
शशांक के करीब आने , उस से गले लग जाने का कोई भी मौका नहीं चूकती ...
शशांक भी अपनी बहेन की खुशी में पूरा साथ दे रहा था...
पर शशांक ने अपनी मोम से शारीरिक करीबी की पतली सी लक्ष्मण रेखा हमेशा बरकरार रखी .....
शिवानी और शांति इस बात को अच्छी तरेह समझ रहे थे ..शांति को शशांक के अंदर इस लक्ष्मण रेखा को ना लाँघने की कोशिश में हो रहे धमाकों का भी अंदाज़ा था ..आख़िर वो उसकी माँ भी थी ना..और एक माँ से ज़्यादा अपने बच्चे को कौन जान सकता है ....और माँ अपने बच्चे का ख़याल ना करे यह भी कैसे हो सकता है...??
शांति के अंदर भी इस सवाल ने धमाका मचा रखा था ...इन धमाकों से अपने आप को कैसे बचाए ?? ..कब तक बचाए ..??? और क्यूँ बचाए ????.इस आखरी सवाल ने उसे बूरी तरेह झकझोर दिया था .....
काफ़ी देर तक दीवाली की धूम मचती रही , पटाको का धमाका चलता रहा , पर शांति अपने अंदर और बाहर हो रहे दोनों धमाकों से बहोत परेशान हो जाती है ...
" चलो भी अब ...बहोत हो गया ....और रात फाइ काफ़ी हो चूकि है ...." शांति ने सब से कहा ... सब अंदर जाते हैं ...खाना वाना खा कर अपने अपने कमरे में घूस जाते हैं...
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