RE: Maa Beti Chudai माँ का आँचल और बहन की लाज़
शिवानी के हाथ फैले हुए हैं ..दोनों टाँगें सीधी और थोड़ी फैली .... शशांक के अगले कदम की प्रतीक्षा में ....
स्लॅक्स के अंदर उसकी गीली पैंटी सॉफ दीख रही थी ...
शशांक उस से लगता हुआ उसकी ओर चेहरा किए बगल में लेट जाता है ...थोड़ी देर तक उसे निहारता रहता है..... उसके होंठों को चूमता है ...और शिवानी के बालों को सहलाता हुआ कहता है ...
" शिवानी ....."
" हां भैया ..बोलो ना .." दोनों की आवाज़ भर्राई सी है....
" तू क्यूँ ज़िद पे आडी है बहना ...अपने भाई को क्यूँ तकलीफ़ देने पर आमादा है..??"
" भैया ...मैं जानती हूँ दर्द मुझे होगा और तकलीफ़ आप को .... पर कभी ना कभी तो होना ही है ना ..?क्या मैं जिंदगी भर कुँवारी रहूं ..?"
" शिवानी कुछ दिन और रुक जा ना..थोड़ी और बड़ी हो जाएगी ना ...फिर आसानी होगी..."
" नहीं भैया ..मैं और नहीं रुक सकती ..बस मुझे आज चाहिए ..और भैया ...मुझे अपने से ज़्यादा आप पर भरोसा है..मैं जानती हूँ आप मुझे कुछ भी दर्द महसूस नहीं होने दोगे .... इतने प्यार से , हिफ़ाज़त से मेरे कुंवारेपन को और कौन तोड़ेगा भैया ... मुझे इतना अच्छा , प्यारा और यादगार गिफ्ट कौन देगा भैया ....प्लीज़ आप मुझे इस पल के महसूस से मत रोको .प्लीज़...."
और फिर शिवानी करवट लेती हुई शशांक के उपर आ जाती है ..उस से लिपट जाती है , अपने टाँगों के बीच उसके बॉक्सर के उभार को जकड़ती है और अपनी गीली पैंटी से बूरी तरेह दबाती जाती है
शशांक कराह उठा ता है इस अचानक मस्ती के झोंके से ....
" उफफफफफफफ्फ़..शिवानी...शिवानी तू क्या कर रही है.....आआआः ...तू बहोत ज़िद्दी है ....."
" हां भैया ....मेरे प्यारे भैया .... आज मैं अपनी ज़िद मनवा के रहूंगी ......" वो शशांक को चूमती जाती है और अपनी गीली पैंटी से और जोरों से दबाती है ....
शशांक का उभार कड़ा और कड़ा होता जाता है..उसे ऐसा महसूस होता है उसके बॉक्सर को फाड़ते हुए उसका कड़ा लंड कभी भी बाहर आ जाएगा .....
वो सिहर जाता है...और धीमी आवाज़ में कहता है ..
" पर शिवानी मैने भी तो आज तक यह काम नहीं किया ....तुम्हें बहोत दर्द होगा बहना ....."
" मैं जानती हूँ भैया ..आज हम दोनों अपना अपना कुँवारापन एक दूसरे को गिफ्ट करेंगे ...उफफफफ्फ़ ...उुउउहह .भैया कितना अच्छा कोयिन्सिडेन्स है ...... "
अपनी गदराई चूचियों को शशांक के सीने से रगड़ते हुए शिवानी बोलती है...
शशांक की हिचक और विरोध कमजोर पड़ते जा रहे थे ..... वो भी इस आनंद और मस्ती के ल़हेर में बहता जा रहा था ....
अपनी टूट ती आवाज़ में शशांक कराहता है
" अयाया शिवानी ....ऊवू ..तू यह क्या कर रही है बहना ..उफ़फ्फ़..देख ऐसा मत सोचना मेरा दिल नहीं करता ...बहोत दिल करता है शिवानी ..बहोत ...पर फिर तेरा दर्द ..??"
" कम ऑन भैया ...दर्द तो होना ही है भैया ....पर आप का दिया दर्द भी तो कितना मीठा होगा ...आप यह मीठा दर्द मुझे महसूस करने दो ना ..प्लीज़ ..."
और अब तक लोहे के समान हो चूके कड़े उभार को शिवानी अपने एक हाथ से जोरों से जकड़ते हुए अपनी गीली पैंटी पर दबाते हुए रगड़ देती है ....
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