RE: Maa Beti Chudai माँ का आँचल और बहन की लाज़
नाश्ते का दौर ख़तम होता है ...
शशांक अपने रूम में क्लास के लिए ज़रूरी नोट -बुक्स वग़ैरह लेने को जाने लगता है और जाते जाते शिवानी से बोलता भी जाता है.." शिवानी..तू जल्दी बाहर आ जा मैं बाइक निकालता हूँ ....आज देर नहीं होनी चाहिए .."
"हां भैया ....तुम चलो मैं बस आई.."
पर हमेशा की तरेह होता यह है के शशांक बाहर बाइक लिए खड़ा है और अपनी प्यारी दुलारी और शोख बहेन का बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा होता है ....
" उफफफ्फ़ ..यह शिवानी भी ना .....अगर आज मुझे देर हुई तो उसे छोड़ूँगा नहीं .." शशांक गुस्से में बड़बड़ाता जा रहा है और बार बार रिस्ट . पर नज़रें घूमाता जा रहा है ..
और इस से पहले की शशांक का गुस्सा उबाल तक पहूंचे ..सामने दरवाज़े से शिवानी भागती हुई बाहर आती है .....वो जानती है के अब अगर ज़्यादा नखरे दीखाई तो उसकी ख़ैरियत नहीं ...
" लो मैं आ गयी ... अब चलें ..?"
शशांक उसकी ओर देखता है ....उसकी नज़रें फटी की फटी रह जाती है ..... टाइट जीन्स , नीचे गले तक का मॅचिंग टॉप..... जितना बदन ढँकता उस से कहीं ज़्यादा उसकी जवानी का उभार बाहर छलक रहा था ....
पर अब इतना टाइम नहीं था के उस समय वो शिवानी से कुछ कहता .... बस एक टेढ़ी नज़र से उसे देखता है " चल बैठ ..तू भी ना ...कॉलेज जा रही है यह कोई फॅशन परेड ..?''
बड़बड़ाता हुआ खुद बाइक पर बैठता है और शिवानी भी उसके पीछे बैठ जाती है...कहना ना होगा अच्छी तारेह चीपकते हुए ...
" क्या भैया .....फॅशन परेड में कोई ऐसा ड्रेस थोड़ी पहनता है ... वहाँ तो बस ....." और जोरों से खिलखिला उठती है
" देख ज़्यादा बन मत ..चूपचाप बैठ ..और हां ज़्यादा मत चीपक ..बाइक चलाने में दिक्कत होती है.."
" उफ्फ भैया जब देखो मुझे डाँट ते रहते हो..यह मत पहेन ..ऐसे बैठ ..वैसे उठ .आप बड़े जालिम हो " और उसकी पीठ पर हल्के से मुक्के लगाती है ....और थोड़ा पीछे खिसक जाती है " लो अब ठीक है ना..?"
पीछे खीसकते हुए शिवानी अपने दोनों हाथ उसके दोनों जांघों पर रखती है और उसके जांघों को अच्छे से जाकड़ लेती है ....
शशांक पीछे मूड कर कुछ बोलता उसकी इस हरकत पर , उस से पहले ही शिवानी बोल उठ ती है ..
" भैया ..सामने देखो ...बाइक चलाने पर ध्यान दो ...." इस बार नसीहत देने की बारी शिवानी की थी .और मन ही मन अपनी इस छोटी सी जीत पर मुस्कुरा उत्त्ती है
शशांक अंदर ही अंदर खीजत हुआ चूपचाप बाइक चलता है ...
रास्ते भर शिवानी उसकी जांघों को सहलाती रही.....कुछ इस तरेह जैसे शशांक को यह महसूस हो कि शिवानी अपने आप को बॅलेन्स कर रही हो जिस से कि वो बाइक से गिर ना जाए ... कभी कभी उसकी उंगलियों की टिप उसके पॅंट के अंदर के उभार को भी छू लेती ...शशांक को अच्छा भी लग रहा था , पर अंदर ही अंदर कुढता भी जा रहा था अपने बहेन की इस हरकत से ...उसे तो अपनी मोम चाहिए थी ..उसके सामने तो जन्नत की हूर भी कुछ नहीं ..शिवानी तो दूर की बात थी...
पर शिवानी भी आखीर उसी की बहेन थी ..उस ने भी कसम खा ली थी कि उसे पीघला के ही रहेगी..चाहे सारी जिंदगी क्यूँ ना निकल जाए ...
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