RE: Hindi Sex kahani मेरी बर्बादी या आबादी
मैने उसकी परेशानी समझते हुए कहा " संध्या तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना ..? लगता है तुम काफ़ी थक गयी हो ..अगर तुम्हें जाना है तो जाओ अपने रूम में आराम करो .."
उस ने चैन की सांस लेते हुए कहा "हां भाभी आप दोनों बातें कीजिए मैं अंदर जा कर थोड़ा लेट ती हूँ .." और वो भागते हुए अंदर चली गयी .
जैसे संध्या अंदर गयी मुझ से रहा नही गया मैने स्वेता को अपनी बाहों में जाकड़ लिया और चूमने लगा , चूसने लगा उसके होठों को ...वो भी मेरे से चिपक गयी..और करीब दस मिनट तक ऐसे चूमने और चूसने का दौर चलता रहा ...
फिर स्वेता मुझे हल्के से धक्का दे कर मुझ से अलग हुई और कहा " प्रीत ..संध्या को अब तुम चोद ही डालो ..बेचारी बहोत परेशान है ..मैं जानती हूँ वो खुद से कभी नहीं कहेगी ..अब तुम कुछ करो ..कुछ भी करो ..जबरन करो ..पर उसे अब तुम्हारा लंड चाहिए ..और जल्दी चाहिए ... देर मत करो .."
" हां स्वेता मैं भी समझ रहा हूँ ... पर कैसे करूँ ... ...?? तुम्हारे सामने तो वो चुदने से रही ..तुम कुछ बहाना करो और हम दोनों को अकेला छोड़ दो ..एक बार उसे चोद लूँ फिर हम दोनों का भी रास्ता सॉफ हो जाएगा ... मुझे यकीन है के एक बार उसकी झीझक टूट गयी फिर देखना कितनी खूल कर तुम्हारे सामने भी चुदवायेगि .. "
" तुम सही कह रहे हो प्रीत ... क्योंकि जिस तरह बेशर्मी से वो लिंग की पूजा कर रही थी ..इस से यही ज़ाहिर होता है कि वो एक बार खूल गयी तो किसी भी हद तक जा सकती है .. तुम ने उसे ठीक पहचाना मेरे भोले राजा .." और यह कहते हुए स्वेता ने मुझे चूम लिया ... मैने भी उसका जवाब दिया उसके होंठों को चूस कर और उसकी फूली फूली चूत को उसकी साड़ी के उपर ही से दबोच कर ..स्वेता चिल्ला उठी "आआआआआआआआआह है यह क्या कर रहे हो ..अभी संध्या है .. थोड़ा सब्र करो ना .. "
मैं हंसते हुए अलग हो गया उस से और फिर बाइ किया और कहा " स्वेता ..संध्या का कुछ जल्दी ही इंतज़ाम करो .."
और मैं बाहर निकल अपने घर की ओर चल पड़ा ..
घर पहून्च्ते ही कपड़े बदले और लेट गया , सोचा कि एक नींद मार लूँ...पर नींद थी की कोसों दूर ..आँखों के सामने वोही संध्या का वहशियाना ढंग से लिंग की पूजा ....उसका नंगा बदन ... उसकी उछलती चूचियाँ .. उसके सुडौल चूतड़ ..मेरी आँखों के सामने घूम रहे थे एक के बाद एक सीन चेंज हो रहा था ..उसके लिंग का सहलाना ..फिर उस पर अपनी टाइट चूत रख कर पागलों की तरेह हिलना ... फिर पानी छोड़ते हुए टाँगें फैला कर हान्फ्ते हुए लेट जाना .... अदभुत द्रिश्य था ..किसी को भी चौंका देने वाला ..... संध्या के अंदर भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा था ..उसके लिए अब उसे क़ाबू करना बहोत ही मुश्किल हो रहा था ..बेचारी तड़प रही थी ... ..उसके अंदर ज्वाला भड़क रही थी और शांत होने के आसार नज़र नहीं आते ... ज्वाला इतनी तेज़ और उसकी लपटें इतनी उँची उठ रही थीं की अगर उसे रोका ना गया समय रहते ...तो अपने चपेट में सब कुछ स्वाहा कर देगी ..सब कुछ ..
फिर उसका मेरे सामने रोना ... जैसे वो रो रो के मुझ से कह रही हो कुछ करो ..कुछ करो ... गिड़गिदा रही हो.......हाथ फैला रही हो के मुझे अपने हाथों से अपने सीने से लगा लो ...अपने में समा लो ...इतने दिनों की प्यास बूझा दो ..मैं और सहन नहीं कर सकती ...आआओ ..आओ आआओ ना ..आओ मुझे ले लो ...
संध्या एक अजीब दो राहे पे खड़ी थी ..एक ओर थी उसकी सेक्स की ज्वाला ... उसकी आग उसकी उठती लपटें , उसे पूरी तरह जला देने को तैय्यार और दूसरी तरफ था उसके अंदर लाज लीहाज़ ..अजय का प्यार ..उसका संकोची स्वाभाव .... जो उसके पाँव की बेड़ियाँ बन उसे जाकड़ रखा था .....पर आख़िर कब तक ... ?? उसके सेक्स की आग के सामने इन बेड़ियों की जाकड़ ढीली पड़ती जा रही थी ...
अब इन ढीली पड़ गयी बेड़ियों को खोलना और संध्या को आज़ाद करना ही होगा ....उसकी भड़कती ज्वाला शांत करनी ही पड़ेगी ...पर कैसे..??????
मैं सोचे जा रहा था ..दिमाग़ में यह सब बातें बार बार घूमती , आती फिर जाती ..अचानक मेरे आँखों के सामने उसकी लिंग पूजा वाला द्रिश्य ठहेर जाता है ..जैसे किसी ने चलते सीन को पॉज़ कर दिया ... हम दरवाज़े के उपर वेंटिलेटर से अंदर झाँक रहे थे ... वेंटिलेटर मेरी आँखों के सामने था ...मैने अपने दिमाग़ पर ज़ोर दिया ... मुझे याद आया वेंटिलेटर में काँच लगी थी और वेंटिलेटर की बंद पोज़िशन में अंदर ठीक से नहीं देखा जा सकता था क्योंकि काँच गंदे थे , उनमें धूल की मोटी परत थी ..पर वेंटिलेटर खुला था .. जिस से अंदर देखने में कोई परेशानी ना हो ...और नॉर्माली ऐसे वेंटिलेटर हमेशा बंद ही रहते हैं ... किसी का ध्यान उधर जाता नहीं ..क्योंकि उन से धूल धक्कड़ अंदर जाने का अंदेशा रहता है....पर आश्चर्य ...वेंटिलेटर ख़ूला था... फिर उसे खोला किस ने और क्यूँ..??
इस सवाल का जवाब दो दिनों बाद मिल गया ....
उस दिन किसी सरकारी छूट्टी की वाज़ेह से मेरा ऑफीस बंद था ... यह बात स्वेता और संध्या दोनों को पता था ... क्यूंकी पीछले दिन शाम को जब दोनों फूल लेने आए थे मेरे घर ..मैने ऐसे ही बातों बातों में इसका जिक्र किया था ..
छूट्टी होने की वजेह से मैं देर से उठा ...और चाइ नाश्ते के बाद बाहर बरामदे में बस ऐसे ही बैठा पेपर पढ़ रहा था ...
तभी फोन की घंटी बजी , मैने रिसीवर उठाया उधर स्वेता थी ...
उसकी आवाज़ से ज़ाहिर था वो काफ़ी घबडाई हुई थी . उस ने कहा " प्रीत , जल्दी आ जाओ ..संध्या ने तो आज लगता है सारी हदें पार कर दी हैं ... बस तुम जल्दी आ जाओ ..मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ ..प्लीज़ ..बस आ जाओ.."
मैने जल्दी कपड़े पहने और लंबे लंबे कदम लेता स्वेता के घर की ओर भागा..
पहले दिन की तरह ही स्वेता ने पूजा -रूम के बाहर टेबल रखी हुई थी और उस ने मुझे इशारे से उस पर चढ़ कर अंदर देखने को कहा ..
|