RE: Hindi Sex kahani मेरी बर्बादी या आबादी
मैं फिर उसे देखता ही रहा ...अब उसके चेहरे पर एक ताज़गी थी ..एक नयी चमक थी जो उसे और भी सेक्सी और सेडक्टिव बना रही थी ..बड़ी धीमी धीमी चाल से कमर और चूतड़ मटकाती डाइनिंग टेबल के पास आई ...
" आए मिस्टर क्या देख रहे हो ..?? कभी किसी औरत को देखा नहीं क्या ..?? '' उस ने मेरे चेहरे के सामने छूटकी बजाते हुए कहा ...
" देखा है स्वेता ,,बहोत देखा है ..पर तुम्हारे जैसी नहीं .. "
" अच्छा ..?? तो क्या खास बात देखी तुम ने मुझमें ..?? मुझे तो सब मोटी मोटी कहते हैं ...तुम्हें इस मोटी औरत में क्या दीख गया जो हाथ धो कर मेरे अंदर टूट पड़े ..??? " और फिर वोही जानलेवा हँसी .
मैने उसे कमर से थामते हुए डाइनिंग टेबल की ओर ले जाते हुए कहा .." बताता हूँ बाबा बताता हूँ ..पहले बैठो तो सही ..खाना तो खा लो पहले .."
और मैने कुर्सी खींची उसे बिठाया और खुद भी उसकी बगल में बैठ गया .
"नहीं पहले बताओ ... फिर खाऊंगी ... "
"अच्छा ठीक है चलो खाना शूरू करो और साथ में मैं बताता जाऊँगा ..ओके ..?? "
"ओके बॉस ..." उस ने खाना शूरू किया और मेरी ओर देखते हुए कहा " चलो शूरू हो जाओ ..मैं तारीफ़ की भी भूखी हूँ ... ""
"देखो स्वेता ..सब से पहले तो तुम्हारा आज का ड्रेस सेन्स इतना पर्फेक्ट है ..क्या साड़ी पहनी है तुम ने ... तुम्हारी हाइट और भी उभर जाती है .. मुझे लंबी औरतें बहोत सेक्सी लगती हैं .." मैने भी खाना शूरू करते हुए कहा..
" और ...????" उस ने फिर से बड़े शरारती ढंग से मुस्कुराते हुए पूछा ..
"और ...लंबाई के साथ साथ तुम्हारे भरे भरे बदन ..दोनों मिल कर एक जानलेवा कॉंबिनेशन हो जाता है ..और शिफ्फॉन की झीनी और पतली साड़ी सब कुछ बाहर ला देता है ... " और मैं फिर से उसे एक टक देखना चालू कर दिया ...
" ह्म्म्म ... तो आप की जान आज मेरी साड़ी के अंदर चली गयी ...?? बड़ी आवारा है आपकी जान .. कहाँ कहाँ घूस्ति रहती है ... हे हे हे हे .."
" हां स्वेता बिल्कुल सही कहा तुम ने ...अभी भी वहीं अटकी है ... वापस दे दो ना .." मैने उसकी ओर निगाहें हटाए बिना कह दिया ..
"अच्छा ...तो आपकी जान मेरी साड़ी के अंदर है ..??पर ज़रा यह भी तो जानू के इतनी लंबी चौड़ी साड़ी के किस कोने में है ..?? "" उस ने फिर से शरारती मुस्कान लाते हुए पूछा..
स्वेता के सवाल का भी जवाब नहीं था आज ..पर मैने भी नहले पे दहला फेंकते हुए कहा ..
"अब क्या बताऊं स्वेता .. मेरी जान बड़ी चंचल है ..एक कोने में पड़ी रहनेवाली नहीं..जब जहाँ मर्ज़ी घूस जाती है .." और यह कहते हुए मैं भी मुस्कुरा रहा था ..
" वाह वाह क्या जान है तुम्हारी .."
"हां स्वेता तुम्हीं ने तो कहा था ना आवारा है ..? अब आवारा है तो एक जागेह तो रुक सकता नहीं .."
हम लोग साथ में खाना भी खा रहे थे ..और स्वेता बातें करते करते मेरे बिल्कुल पास आ गयी थी .. उसकी गूदाज , सॉफ्ट और भारी भारी जाँघ मेरी जाँघ छू रही थी ..और वो धीरे उसे मेरी जाँघ से रगड़ रही थी ...मेरे अंदर भी हलचल मची थी ....
" अच्छा तो यह बताओ अभी तुम्हारी जान कहाँ है ...??" उसका मेरी जाँघ से खेलना जारी था..
" तुम ने तो बड़ा मुश्किल सवाल कर दिया स्वेता ..अब मैं क्या बताऊं ..?? " उसकी हरकतों से मेरी आवाज़ कुछ भर्राई थी
"क्यूँ .. इसमें कौन सी मुश्किल है ...दो चार ही कोने तो हैं ..उन्हीं में कहीं घूसी होगी ...चलो जल्दी बताओ ..."
तब तक हमारा खाना ख़त्म हो चूका था ...
'ह्म्म्म... तो तुम मनोगी नहीं ... ओके ..पर एक शर्त है .."
"शर्त ..?? अरे इतनी छोटी सी बात के लिए शर्त ..अच्छा ठीक है बताओ तो क्या शर्त है .."
"बताऊँगा पर तुम्हें राज़ी होना पड़ेगा .."
" बोलो तो सही ... अरे मेरे पास जो देने को था तुम तो पहले ही ले चूके हो , और अब बचा ही क्या है ..??'"
" अभी बहोत कुछ है स्वेता ...तुम क्या जानो तुम्हारे पास कितना कीमती ख़ज़ाना है ..?? "
" अच्छा ..?? .तब तो अपने ख़ज़ाने की कीमत मालूम करनी ही पड़ेगी ..चलो जल्दी बताओ ....बताओ ना ..."
"ह्म्म्म..यह हुई ना बात...तो सुनो ..देखो खाना तो हो गया हमारा ..चलो अब सोफे पर चलते हैं ..."
" सोफे पर ..क्या वहाँ चली गयी जान तुम्हारी ..अरे इतनी जल्दी बाहर ...??ही ही हीही...." उस ने फिर हँसना चालू किया
"अरे नहीं बाबा ..ऐसे कैसे बाहर आ जाएगी ...देखो वहाँ जा कर हम लोग आइस क्रीम खाएँगे .."
"ह्म्म्म्म..मतलब तुम्हारी जान आइस क्रीम की ठंडक से मेरे अंदर जम जाएगी और मैं उसे थाम लूँगी ..है ना ..?? इंट्रेस्टिंग ..."
"हा हा हा हा हा !! वैसे आइडिया बूरा नहीं ..पर मेरा आइडिया कुछ और ही है ..."मैने कहा ..
" अब देखो ज़्यादा पहेलियाँ मत बूझाओ और सीधे सीधे बताओ ..."
"अरे बाबा तुम बीच में टपक पड़ती हो मुझे पूरी बात तो कहने दो ना यार.. देखो जब मेरी जान जिस भी जगह होगी तुम्हारे अंदर ..मैं चम्मच से वहाँ आइस क्रीम रखूँगा और फिर उसे अपनी जीभ से चाट जाऊँगा ..."
स्वेता की आँखें फटी की फटी रह गयीं यह शर्त सून कर ...
"पर मेरी सादी का तो बजेगा ना बारह ... ??? "
"अब यह तुम्हारे उपर है ... स्वेता साड़ी बचाओ या शर्त हारो ...साड़ी बचानी है तो बिना साड़ी के भी खेल सकतें हैं हम ..." मैने बड़े भोले पन से कहा ....
"मतलब मैं साड़ी उतार दूं ....??" उसकी आँखें और भी फॅट गयीं ..और बड़ी अजीब निगाहों से मुझे देखने लगी ..जैसे अभी के अभी मुझे कच्चा खा जाएगी ...
मैं मुस्कुराए जा रहा था ......
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