RE: Hindi Sex kahani मेरी बर्बादी या आबादी
घर पहूंचा दो देखा घड़ी में 7 बजे थे ... मैने कपड़े उतारे और पाजामा पहेन कर फिर सो गया ...फिर करीब 9 बजे तक सोता रहा ...उठने के बाद काफ़ी अच्छा लग रहा था .काफ़ी तरो ताज़ा महसूस कर रहा था ...जैसे शरीर बिल्कुल हल्का हो गया हो ...लगातार दो दिनों की चुदाई से वो भी भारती जैसी लड़की की चूत ...जिस से सिर्फ़ जिस्मानी ही नहीं कुछ भावनात्मक संबंध भी बन गये थे ..बड़ा रिलॅक्सिंग फील हो रहा था ... नाश्ता कर मैं ऑफीस की ओर निकल पड़ा ...पर सीधा नहीं अपने मोहन पान वाले का पड़ाव तो था ही ...
वहाँ पहूंचते ही मोहन का चहेकना शूरू हो गया ...
"लगता है साहेब को भारती बहोत पसंद आ गयी ..."और आँख मार दी
"क्यूँ क्या हुआ ..?? ऐसी कोई खास बात नहीं यार ..."
"अरे साहेब क्यूँ बनते हो..??मुझे सब पता रहता है..कल आप वहाँ थे...कोई बात नहीं अब तो आप सीधे वहाँ चले जाते हो..मुझे बिना बताए ... हां अब मेरी क्या ज़रूरत ...?? हा हा हा हा !" और अपने ट्रेड मार्क ठहाके लगाने लगा ..
"यार बार बार तुम से कहना अच्छा नहीं लगता ... " मैं कहा ...
"अरे बाबा तो मैने कब मना किया ..जाइए जाइए ज़रूर जाइए ... पर साहेब आपकी नज़रें भी बड़ी पैनी हैं ..भारती सही में लाखों में एक है ...हीरे की परख जौहरी को ही होती है ...वो भी किसी को जल्दी क्या ..आज तक किसी को इतना भाव नहीं दिया ...बस अब मस्त रहिए दोनों ..."
और फिर उस ने पान बढ़ाया ..मैने पान लिया और ऑफीस की ओर चल पड़ा ...
ऑफीस में भी आज काम पर ध्यान बना रहा ... आइ वाज़ टोटली रिलॅक्स्ड ...और जो अकेलापन ...बोरियत .. थी सब मिट गये थे ...सही में जिंदगी में किसी का साथ कितना ज़रूरी होता है...यह मैं अच्छी तरेह समझ चूका था ... !
मैं घर पहूंचा ...आज पहली बार मैने अपने क्वॉर्टर के बाहर भी नज़र डाली ...वरना ऑफीस से सीधा अंदर चला जाता ... चूँकि कंपनी क्वॉर्टर था .बाहर काफ़ी जगेह थी ...लॉन था फूल भी लगे थे ...आज पहली बार फूलों की मुस्कुराहट , उनकी सुंदरता , उनकी महक का जायज़ा लिया .. माली ( कंपनी का ) ने अच्छी देख भाल की थी ..
मेरे बागीचे में गुलाब काफ़ी लगे थे हर तरेह के ..उनकी छटा देखते ही बनती ... और भी फूल थे ..पर गुलाब की बात ही कुछ और थी ...मैने सोचा अगली बार भारती को गुलाब का गुल - दस्ता दूँगा ... उसे गुलाब बहोत पसंद थे ...
मैं अंदर गया .फ्रेश हो कर चाइ पी और बाहर वेरामदे में कुर्सी लगा कर बैठ गया ... और बगीचे का आनंद ले रहा था ... और साथ में न्यूज़ पेपर भी देख रहा था ...
तभी गेट खुलने की आवाज़ आई ... मैने न्यूज़ पेपर हटा कर सामने देखा ... लगा जैसे तूफान सामने चली आ रही है .....
एक लंबी तगड़ी औरत सामने हाथ में फ्लवर बास्केट लिए .....गेट खोल कर बेझिझक लंबे लंबे कदमों से मेरी ओर चली आ रही थी , और चेहरे पे ऐसे भाव जैसे मुझ से बरसों की पहचान हो ,
और मेरे पास आते ही चालू हो गयी " ह्म्म.... तो इस घर में आप रहते हैं ..देखिए ना मैं यहाँ रोज आती हूँ आप के बगीचे से फूल तोड़ने ..पर आज तक किसी इंसान को नहीं देखा ...."
जब सामने आ गयीं तो मैं बस देखता ही रह गया ... लंबाई ..चौड़ाई का इतना बढ़िया सेक्सी कॉंबिनेशन मैने आज तक नहीं देखा था ... मुझ से भी ज़्यादा हाइट ..जब कि मैं खूद 5 फ्ट 8इंच का हूँ ..जो अपने यहाँ लंबा ही होता है ... भारी भारी चूचियाँ .जैसे सीने से उछल कर बाहर आने को तैयार ..पर पेट एक दम फ्लॅट ... मोटी पर कसी जंघें और चूतड़ भी भरे भरे जैसे सलवार फाड़ कर अब बाहर तो तब बाहर ... यानी उस ने अपने शरीर के सही जागेह पर सही उभार बनाए रखे थे , कहीं भी ग़लत जगेह से निकलता नज़र नहीं आया ..जैसा कि आम तौर पे होता है ... पेट निकल्ना तो सब से आम बात होती है ..पर पेट बिकलूल फ्लॅट था ... चेहरा भी अट्रॅक्टिव , बड़ी बड़ी आँखें ... सब मिला कर शी वाज़ आ सेक्सी वुमन ऑफ आ टॉल ऑर्डर ... ! उपर से नीचे तक बस सेक्स , सेक्स और सेक्स ....
बातें करते करते उस ने मेरे बगल में रखी कुर्सी को अपनी ओर खींचा और बैठ गयी ....मैं उसकी बेबाक हरकतों को बस देखता ही रह गया ...कुर्सी पर बैठ ते ही इसके पहले की मैं कुछ बोल सकूँ उस ने अपना कहना जारी रखा .." हां तो मैं कह रही थी इस घर में कोई इंसान आज मुझे पहली बार दीखा ...आप कहीं बाहर गये थे क्या ...?""
मन ही मन मैने दुआएँ दीं कि कम से कम उस ने मुझे इंसान तो समझा और कहा "नहीं नहीं मैं तो यहीं था ..पर ज़रा बिज़ी था ....पर आप ...???"
"हा हा !! अरे वाह देखिए ना मैं भी ....मैं आपके पड़ोस में ही रहती हूँ ...वो आपसे एक घर छोड़ वो दूसरा घर है ना शाह साहेब का ..?? मैं उनकी बीबी स्वेता ... " और मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैने अब तक उनके बारे नहीं जान कर कोई बहोत बड़ा अपराध किया हो ...
मैने हाथ जोड़ते हुए कहा "नमस्कार स्वेता जी आप से मिल कर बहोत खुशी हुई ..."
"मुझे भी ...." अपनी दांतें चमकाते हुए उस ने कहा और शायद उसे नमस्कार जैसे सूखे और नीरस शिष्टाचार पर विश्वास नहीं था ..उस ने तपाक से अपने गोरे गोरे गुदाज हाथ बढ़ाए ...मैने उसकी मुलायम हथेली अपनी हथेली में ले लिया ..उस ने बड़ी गर्म जोशी से उसे थाम लिया और हिलाने लगी ...
"क्या हाथ छोड़ने का इरादा नहीं ....?? " मैं हाथ छुड़ाते हुए हँसने लगा .
"हा हा हा !! अब देखते जाइए आप भी हाथ से शूरू हुआ है ...मेरे लंबे हाथ और कहाँ तक पहूंचते हैं .... " उस ने खनखनाती हुई हँसी के साथ कहा ..
"ह्म्म्म्म, वो तो मैं देख ही रहा हूँ ..." मैने जवाब दिया .
" अरे वाह क्या देखा आप ने ...मैने अभी तो कुछ दिखाया ही नहीं ...??"
"देखने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं ..स्वेता जी ..!! "
"अच्छा जी ..तो आप क़यामत तक पहून्च चूके हैं..क्या देखा वहाँ ..? और यह "जी " तो ना ही लगाइए मेरे नाम के आगे ....इस भरी जवानी में ..."उस ने तपाक से मुस्कुराते हुए कहा..
"क़यामत नहीं स्वेता ..आपके हाथों का कमाल यहीं देखा मैने ..देखिए ना पहले आप अपने खूबसूरत हाथों से सिर्फ़ खूबसूरत फूलों को ही छूती थीं ..और आज आपने मेरे हाथ भी थाम लिए ..आगे और क्या थामेंगी ..?? "
"ह्म्म्म ...आप भी बातें खूब कर लेते हैं ...चलिए मुझे भी कोई तो मिला मेरी बराबरी का ...रही थामने की बात ..तो बस देखते जाइए ..मेरे हाथ का कमाल ... '' और उस ने एक सॅंपल दिखा ही दिया जाते जाते , मुझे आनेवाले दिनों में होनेवाले कमाल का.....
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