RE: Biwi ki Chudai किराए का पति
में भी कितना बेवकूफ़ था, पर क्या करता हर इंसान इस दौर से गुज़रता है और जिंदगी मे उसे किसी ना किसी से प्यार हो जाता है. और मुझे भी प्यार हो गया वो भी अपनी उस बीवी से जो मुझे पाँच साल बाद तलाक़ देने वाली है.
सोनिया को मेरी बात पसंद आ गयी. उसने मेरी बात मानकर अमित को भी कुछ नही बताया. अमित को कुछ ना बताने का मेरा कुछ कारण था जो में फिलहाल सोनिया को नही बता सकता था. सोनिया ने अमित को सिर्फ़ इतना बताया कि वो बिज़्नेस के सिलसिले मे बंगलोर जा रही है. अगले दिन वो बंगलोर के लिए रवाना हो गयी. और उसके दूसरे दिन उसने वहाँ से हयदेराबाद की फ्लाइट पकड़ ली. में भी बिज़्नेस का बहाना बना हैदराबाद पहुँच गया.
अगले छह दिन हमने खूब मस्ती मे गुज़ारे. दिन मे साथ साथ स्विम्मिंग पूल मे नहाते और रात को नाइट क्लब या फिर किसी अच्छे रेस्टोरेंट मे बैठ खाना ख़ाता. और फिर होटेल के कमरे मे पहुँच जम कर चुदाई करते. सोनिया ने वैसे तो चुदाई के वक़्त मेरा भरपूर साथ दिया लेकिन में ये जानता था कि वो सिर्फ़ मा बनने के लिए वो भी अपने बाप की वसीयत की शर्त पूरी करने के लिए कर रही है. मुझे ये भी पता था कि वो अंदर ही अंदर शर्मन्द्गि महसूस कर रही है कि वो ये सब अमित से छुपा कर रही है.
इतना सब कुछ जानने के बाद फिर भी एक बात थी जो उसे बहोत पसंद थी. वो था मेरा उसकी चूत को चूसना और चाटना. जब भी में उसकी फूली फूली चूत को अपने मुँह मे भर अपनी जीब अंदर तक घुसाता वो इतने जोरों से सिसकती, "ओह राज हाां ख़ाा जाओ मेरी चूओत को ऑश हाा ऐसे अपनी जीएब और अंदर तक घुसाआओ ओह हाा."
ऐसा नही था कि उसे चुदाई मे मज़ा नही आता था, कई बार तो खुद वो मुझ पर चढ़ मेरे लंड को अपनी चूत मे लेती और उछल उछल कर चुदाई करती. जब में अपने लंड का पानी उसकी चूत मे छोड़ने के बाद उसकी चूत को चूस्ता तो वो पागल सी हो जाती. खैर मुझे इतना पता था कि वो मुझे प्यार करे या ना करे पर उसने मेरे दिल, दिमाग़ और आत्मा पर क़ब्ज़ा कर लिया था.
छह ही दिन थे जो हम ऑफीस से बाहर रह सकते थे. पर घर पहुँच कर भी चुदाई जारी तो रखनी थी. घर पर हम कर नही सकते थे, कारण वहाँ अमित होता था. इसलिए हम ऑफीस मे सबके चले जाने के बाद करते.
शाम को सबके चले जाने के बाद या तो उसकी ऑफीस मे उसकी मेज़ पर और नही तो कभी मेरी मेज़ पर. एक बात थी सोनिया को कुतिया बन कर चुदने मे बड़ा मज़ा आता. जब में उसकी गोल गोल चुतडो पर थप्पड़ मारते हुए धक्के मारता तो इतनी जोरों से सिसकती, "ऑश राज हां और ज़ोर से मारो ऑश हाआँ ऐसे ही मारो और ज़ोर ज़ोर से चोदो ओह हाां."
हमारी ये चुदाई तब तक चलती रही जब तक की सोनिया ने मुझे ये ना बताया कि वो मा बनने वाली है.
ये खबर सुनकर तो एक बार में सोच में पड़ गया. कहाँ तो मेने सोनिया से शुरुआत मे ये कहा था की शायद पाँच साल ख़तम होते तक में उससे बेइन्ताह नफ़रत करने लगूंगा पर मुझे ये उम्मीद नही थी कि होगा ठीक मेरी सोच के विपरीत. आज में उससे नफ़रत करने के बजाई उससे बेइंतहा मोहब्बत करने लगा था. में उसकी भलाई के लिए क्या क्या कर रहा हूँ वो में उसे अभी बता नही सकता था. नही में उसे ये बता सकता था कि मेने ऐसा किया तो क्यों किया.
जिस रात उसने मुझे ये बताया कि वो मा बानने वाली है दूसरे दिन शाम को में एक बड़ा सा फूलों का गुलदस्ता और एक शैम्पियन की बॉटल लेकर उसकी ऑफीस मे पहुँच गया. पहले तो उसके गालो को चूम कर उसे बधाई दी और फिर शैम्पियन की बॉटल खोल दो ग्लास मे डाल दी. एक दूसरे को चियर्स कर हम पीने लगे.
हम लोग बातें करते हुए तब तक चंपने पीते रहे जब तक की बॉटल ख़तम ना हो गयी. मेने देखा कि सोनिया को नशा होने लगा है तो में उसे सहारा देते हुए ऑफीस से बाहर ले आया. जब तक कि में उसे गाड़ी मे बिठाता वो नशे मे बेहोश सी हो गयी थी.
मेने अपने ड्राइवर संजय से हमे होटेल ताज महल पे छोड़ने को कहा और उसे फिर रात के लिए छुट्टी दे दी. में सोनिया को सहारा देते हुए लिफ्ट से उपर आठवीं मंज़िल के सूयीट मे ले आया.
मेने सूयीट का दरवाज़ा खटखटाया तो उसे मेरे चचेरे भाई रमेश ने खोला. रमेश एक लंबा चौड़ा कसरती बदन का मालिक था. आज मेने उसे एक स्पेशल काम लिए बुलाया था.
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