RE: Behen Sex Kahani दो भाई दो बहन
दोनो आपस मे बातें कर रहे थे जिसे राज सुन नही सका...पर जो
उसने देखा उसपर उसे विश्वास नही हुआ... रोमा ने अपना हाथ उस मर्द
की गर्दन मे डाला और अपने होंठ उस मर्द के होंठो पर रख दिए..
दोनो एक दूसरे को चूम रहे थे....मर्द के बाहें उसकी कमर मे कसी
हुई थी. राज समझ रहा था कि ये चुंबन या अप्नत्व कोई दोस्ताना
नही था.. ज़रूर रोमा का इस मर्द के साथ कोई चक्कर है.... उस
मर्द ने अपनी निगाहें रोमा के पीछे की ओर डाली और फिर उसका हाथ
पकड़ घर के अंदर ले गया.
राज पेड़ का सहारा लिए असहाय खड़ा था.. उसकी आँखों मे आँसू आ
गये थे.. दो चार बूंदे बह कर उसके गालों पर आ गयी थी... उसे
रोमा के इस व्यवहार से दुख पहुँचा था... दिल को चोट लगी थी.....
"तुम ऐसा क्यों कर रही हो रोमा? क्या तुम मुझे रिया के साथ देख
जलती हो? क्या मुझे जलाने के लिए तुम ये सब कर रही हो?" राज का
दिल रो पड़ा.
रोमा को चूमते हुए जीत ने महसूस किया कि पेड़ के पीछे से कोई उन्हे
देख रहा है.. वो रोमा को घर के अंदर ले आया और दरवाज़ा बंद
कर दिया.... उसने रोमा से कुछ नही कहा.. उसे पक्का विश्वास नही
था कि उसने किसी को देखा है.. ये उसका भ्रम भी हो सकता था...
बेवजह रोमा को बता कर वो उसे डराना नही चाहता था.
"तुम्हारा फोन आया तो में चौंक पड़ा था... " जीत ने कहा, "में
तो समझ रहा था कि आज की शाम तुम घर पर रहकर पढ़ाई
करोगी."
"हां पहले मेने भी यही सोचा था... पर शायद मेरा भाई अपनी
गिर्ल्फ्रेंड के साथ बाहर चला गया था.... में घर पर बोर हो
रही थी.. मेने थोड़ी देर टीवी देखा.. पर ज़्यादा बोरियत होने लगी तो
मेने तुम्हे फोन किया." रोमा ने जवाब दिया.
"तुम्हारा जब जी चाहे तुम मुझे फोन कर सकती हो या यहाँ आ
सकती हो.. ये बात तुम जानती हो." जीत ने उसके कंधो पर हाथ
रखते हुए कहा, "में देख रहा हूँ कि तुम अपनी कीताबें अपने साथ
लाई हो,, आज क्या पढ़ने का इरादा है?
"कीताबें तो लाई हूँ लेकिन पढ़ने का मन नही है." रोमा ने जवाब
दिया.
"ये तो बहोत अछा है.. शाया हम दोनो मिलकर टीवी पर कोई प्रोग्राम
देख सकें." जीत ने कहा.
"नही... टीवी देखना का भी मन नही है." रोमा ने कहा.
"तो चलो फिर ताश वाईगरह खेलते है." जीत ने सलाह दी.
"नही उसका भी मूड नही है." रोमा ने हिचकिचाते हुए कहा.
"फिर कुछ तो तुम्हारे दीमाग मे होगा... अब तुम खुद बताओगि या फिर
में यूँ ही सोचता रहूं कि तुम्हारे दिल मे क्या है?" जीत ने पूछा.
"तुम जानते हो कि मुझे क्या चाहिए.. या फिर तुम ये चाहते हो कि
में बेशरम बन तुम जैसे शरीफ इंसान से कहूँ कि मुझे क्या
चाहिए." रोमा ने धीमे से कहा.
"तो तुम मुझे शरीफ समझती हो?" जीत ने मुस्कुराते हुए कहा.
जीत की बात सुनकर वो खिलखिला पड़ी फिर वो उसकी बाहों मे घूम
गयी.. उसकी पीठ जीत की छाती से चिपकी हुई थी और उसके हाथ उसकी
कमर से लिपटे हुए थे.
"रात को जब तुम इस घर मे बिस्तर पर अकेले सोते हो तो क्या तुम्हे
मेरी याद आती है? क्या तुम मेरे बारे मे सोचते हो?" रोमा ने पूछा.
"यार में भी इंसान हूँ.. हाँ सोचता भी हूँ और याद भी बहोत
आती है..." जीत ने हक़ीकत बयान कर दी.
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