RE: Jawan Ladki Chudai कमसिन कलियाँ
कमसिन कलियाँ--19
गतान्क से आगे..........
मुमु: हाँ…लीना के टाईम वह मुश्किल से बारह की होगी…या तेरह मे लगने वाली होगी।
राजेश: परन्तु कद काठी से तेरह की लगती थी। मेरे पास कुछ करने को नही था तो मै अगले रोज उसी रास्ते से चिठ्ठी डालने पोस्ट आफिस जा रहा था कि तनवी स्कूल से लौटती हुई दिखायी दी… मुझको देख कर मेरी ओर आ गयी और कहने लगी राजू भैया मुझसे चला नहीं जा रहा… तो मैनें हँसते हुए कहा कि क्या तुमने मुझे अपनी स्कूल बस समझ लिया है…अभी तो ठीक ठाक चलती हुई दिख रही थी और अब मुझे देख कर अपना बोझा ढोने के लिए ऐसा बहाना बना रही हो… तो अचानक उसके चेहरे पर मायूसी आ गयी…मुमु तुम्हें तो पता है कि उसका चेहरा मासूम होते हुए भी कितना एक्सप्रेसिव था…मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और मैनें एक बार फिर से उसे अपनी बाहों मे उठा लिया और तुम्हारे घर का रुख करने को हुआ तो तनवी ने मुझे रोका और बोली कि क्या कुछ देर हम वहीं पर बैठ सकते है… मुझे पोस्ट करने की जल्दी थी आखिर वह मेरे अमरीका मे दाखिले के पेपर्स थे… पर उसकी आवाज में जो भाव थे मुझसे आगे नहीं बढ़ा गया…
मुमु: यही तनवी की खूबी थी…वह जो भी बोलती ऐसा लगता था कि दिल से बोल रही है…
राजेश: उसे अपनी बाहों मे उठा कर मै नहर के किनारे ले जा कर बैठ गया… तनवी मुझे देख रही थी और मै अपनी झेंप मिटाने के लिए अनाप-शनाप बकता चला जा रहा था… अचानक तनवी ने मेरे होंठों पर उंगली रख कर चुप कर दिया और कहा कि तुम मेरा बोझ कितनी देर तक उठा सकते हो…। उसे खुश करने के लिए मैने मजाक मे कह दिया कि तुम कहो तो सारी जिन्दगी मै तुम्हारा बोझ ऐसे ही उठा सकता हूँ। परन्तु मै उस वक्त यह नहीं जानता था कि ऐसा करके मैनें उसके डेथ वारन्ट पर दस्तखत कर दियें है…(कुछ देर चुप हो कर राजेश अपनी भावनाओं को सँभालने की कोशिश करता है)… मुमु यह सुनते ही तनवी ने जिस तरीके से मुझे देखा तो पहली बार मुझे लगा कि उसकी आंखे जैसे मेरी आत्मा से सीधे कुछ कह रही है। उस समय तो मुझे कुछ समझ नहीं आया परन्तु जब उसे तुम्हारे घर पर छोड़ कर लौट रहा था तो मुझे लगा जैसे मेरा कुछ पीछे छूट गया है… सारे रास्ते अपने आप को यकीन दिलाता रहा कि वह तो बहुत छोटी है परन्तु दिल में तो जैसे उसकी वह आँखे मेरे दिल में घर कर चुकीं थी… उस रात को मै सो नहीं सका। पहली बार अपने को बेबस पा रहा था…
मुमु: यही तो पहली नजर की मोहब्ब्त कहलाती है…
राजेश: तुम नहीं मानोगी तब तक मैं स्त्री सुख भोग चुका था आखिर होस्टल में रहता था और जमींदार परिवार का इक्लौता वारिस था… परन्तु पहली बार एक बारह वर्षीय लड़की के मोहपाश में पागल हो गया था। अगले दिन मै सीधा स्कूल पहुँच गया और तनवी का इंतजार करने लगा…स्कूल की छुट्टी हुई कि सामने तनवी अपनी सहेलियों के साथ बाहर आती हुई दिखाई दी तो मै थोड़ा सा दीवार की आड़ ले कर खड़ा हो गया। हाँलाकि तनवी अपनी सहेलियों के साथ थी परन्तु वह बार-बार इधर-उधर कुछ ढूँढती हुई दिखी… कुछ देर बात कर के उसने अपने घर की ओर चलना शुरु किया…और मै कुछ दूरी बना कर उसके पीछे-पीछे चलने लगा… एक सुनसान जगह पर मैने उसे आवाज दे कर रोका तो मुझे देख कर भाग कर आकर मुझसे लिपट कर रोने लगी। मै डर के मारे जल्दी से उसे सड़क से उतार कर झुरमुटों के पीछे ले गया जिस से कोई कुछ गलत न समझ लें… तनवी जब शान्त हुई तो मेरे सीने पर मुक्का मारते हुए पूछा कि तुम मुझे लेने क्यों नहीं आए… हतप्रभ हो कर मुझे तो जैसे साँप सूँघ गया… कोई जवाब नहीं बन पड़ा और वह रोती हुई कहे जा रही थी कि वह मुझे स्कूल के बाहर ढूँढ रही थी। बात बनाते हुए मैने कहा कि मैने कब कहा था कि मै उसे लेने स्कूल आऊँगा तो उसने जवाब दिया कि कल ही तो कहा था कि आज से तुम मेरा बोझ सारे जीवन भर उठाओगे…कल तुम्हारी आँखों ने मुझसे कहा था कि आज से तुम रोज मुझे स्कूल से लेने आओगे…फिर क्या हुआ कह कर लड़ने लगी। उसकी यह बातें सुन कर मै हैरानी भरे स्वर में बताया कि मै उसके स्कूल के गेट पर खड़ा हो कर पिछले आधे घंटे से उसका इंतजार कर रहा था पर जब उसको सहेलियों के साथ देखा तो शर्म के कारण छिप गया था…
मुमु: (राजेश के बालों मे अपनी उँगलियॉ फिराते हुए) इसको कहते दिल से दिल की राह…
राजेश: सच में मुमु… प्यार की पराकाष्ठा ही कह सकता हूँ कि मोहब्बत का इजहार किये बिना बस मेरी आँखों में सब पढ़ लिया था और उसने मुझे अपना मान लिया था। उसको अपनी बाँहों मे उठा कर वहीं नहर के किनारे ले जा कर बैठ गया। हम बिना कुछ बोले एक दूसरे को देख रहे थे और मुझे आज भी विश्वास है कि हमारे बीच जैसे कुछ बात हो रही थी। काफी देर के बाद मैनें झिझकते हुए कहा कि तनवी मै उम्र में तुमसे बहुत बड़ा हूँ परन्तु मुझे तुमसे मोहब्ब्त हो गयी है… तनवी का जवाब था कि मै जानती हूँ पर क्या तुम जानते हो कि मै तुमसे बहुत दिनों से प्यार करती हूँ… इस प्यार में वासना नहीं थी… मुमु वह पहला दिन था जब हमने एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसम खायी थी।
मुमु: तभी…जब तनवी मेरे पास आयी थी पिताजी की शिकायत करने तब तक यह बात हो चुकी थी…
राजेश: नही… यह वाला वाक्या तो पहले हो चुका था…मुझे तनवी ने बताया था।
मुमु: अच्छा… कमाल है कि बिना इजहारे इश्क तनवी को पहले से विश्वास था कि वह तुम्हारी है… फिर पिताजी को कब और कैसे पता चला…
राजेश: जैसे तुमने आज अपना दिल खोल कर रख दिया वैसे आज मै भी सारे दिल के राज तुम्हें बता देता हूँ… उस दिन के बाद हम रोज नहर पर अपना समय बिताते थे… तनवी अब तक मुझे अपना पति मान चुकी थी। मेरे अमरीका जाने का टाइम नजदीक आ चुका था… अमरीका जाने से एक दिन पहले जिद्द करके मुझे मन्दिर ले गयी और भगवान की मूर्ती के सामने हमने एक दूसरे के गले में फूलमाला डाल कर विवाह कर लिया… तुम्हें याद होगा कि तनवी एक पूरी रात घर नहीं आयी थी क्योंकि उस रात हम दोनों आसमान के नीचे तारों की छाँव में नहर के किनारे अपनी सुहाग रात मना रहे थे।
मुमु: कमाल है…तनु ने इस बात की कानोकान खबर नहीं लगने दी… उसने तो बताया था कि वह टेस्ट के चक्कर में सुनीता के घर पर रुक गयी थी… वाह रे मोहब्ब्त… तो पिताजी को कैसे पता चला…
राजेश: अब सो जाओ… इसकी भी एक कहानी है… कल दफ्तर भी जाना है…
मुमु: राजेश… आज हमारे बीच कोई हिचक नहीं है… आज सब बता दो…फिर क्या पता कल हो न हो…
राजेश: शायद तुम सही कह रही हो… मै कल की छुट्टी ले लेता हूँ। परन्तु आगे कुछ बताऊँ इससे पहले जरा गला तर कर लेते है… क्या कहती हो… मेरे लिए वोदका तुम्हारे लिए ब्लडी मैरी…
(कहते हुए कमरे के बाहर चला जाता है और फ्रिज खोल कर ड्रिंक्स बनाता है।राजेश अपने हाथों में ड्रिंक्स की ट्रे लिए बेडरूम में आता है। बेड पर निर्वस्त्र लेटी हुई मुमु को देख कर ठिठक कर रुक जाता है और उसके के अंग-अंग को निहारता है। गोल चेहरा, तीखे नाक-नक्श, भरपूर गोलाई लिये सुडौल नितंब, बालोंरहित कटिप्रदेश, बल खाती हुई कमर और कटाव लेते हुए कुल्हे, उन्नत और भारी स्तन और उनके शिखर पर काले अंगूर सिर उठा कर बैठे हुए। राजेश के शरीर में एक बार फिर से खून का बहाव तेज होता है पर कुछ सोच कर अपने उपर काबू करता है। मुमु भी राजेश को निहारती हुई एक बदन तोड़ने वाली अंगड़ाई लेती है।)
राजेश: (मुमु की ओर बढ़ते हुए) अ…ररे क्या कत्ल करने का इरादा है
मुमु: (मुस्कुराते हुए) हाँ बिल्कुल…
राजेश: (हँसते हुए) तुम कहो तो…
मुमु: नहीं। आज नहीं… आज से पहले हम कितनी बार एक दूसरे के शरीर मे समा चुके है। परन्तु आज से पहले हम एक दूसरे के इतने निकट नही आ सके… जितना आज रात को बिना कुछ किए आ गये…
राजेश: तुम सही कह रही हो… इतने साल से तुम मेरे साथ रह रही हो पर हमारे बीच में हमेशा एक दूरी या दीवार रही है जिसे हम दोनों ने कभी लांघने की कोशिश नहीं की बस अपने पास्ट को सीने से लगाए चलते जा रहे थे…
मुमु: (अपनी ड्रिंक की चुस्की ले कर) हाँ… मेरे पिताजी को तुम्हारी मोहब्बत का कब और कैसे पता चला?
राजेश: (ड्रिंक की चुस्की ले कर) अच्छा तो फिर हमारी सुहाग रात के बाद अगले दिन मै अमरीका चला गया… तनवी अपनी पढ़ाई में जुट गयी आखिर उसे परीक्षा में भी पास होना था… लेकिन हर हफ्ते वह मुझे एक खत लिखती थी… मेरी मजबूरी थी कि मै उस को जवाब नहीं दे सकता था… तनवी बहुत साफ दिल और मिलनसार थी।
मुमु: क्यों नहीं लिख देते… पिताजी को कौन सी अंग्रेजी आती है…
राजेश: तुम नहीं जानती हो अपने पिताजी को… जब से तनवी ने खिलाफत की थी वह इसी ताक मे थे कि कैसे उसे दंडित करें… तनवी अपने खतों में यहाँ की सब बातों का जिकर करती थी। लीना के पैदा होने की खबर भी मुझे उसने दी थी… बच्ची को जन्म देने के बाद जब तुम अपने पिताजी के कमरे मे रहने चली गयी तो उसने मुझे लिखा था कि पिताजी सबसे ज्यादा मुमु को प्यार करते है… और बहुत सारी यहाँ की बातें लिखती थी। एक बार मुझसे नहीं रहा गया… तो मैनें तनवी से बात करने के लिए स्कूल मे फोन किया… समझ सकती हो तुम कि यहाँ के दिन के एक बजे वहाँ पर रात के एक बज रहा होता है। पर प्यार अंधा होता है, तनवी की आवाज सुनने के लिए मै तीन मील चल कर रात के एक बजे अपने होस्टल से फोन बूथ पर आया था। उसके साथ बात करके मुझे कुछ दिन के लिए चैन हो गया परन्तु उसकी आवाज सुनने के लिए मै हर दम बेचैन रहता था। मैनें एक दिन फिर से तनवी से बात करने के लिए स्कूल फोन किया… और फिर हर हफ्ते हम फोन पर बात करने लगे… यह मेरी पहली गलती थी
मुमु: हाँ स्कूल से तनवी के खिलाफ शिकायत आई थी और पिताजी ने उसे बुला कर बहुत बुरा भला कहा था… बहुत पूछने के बाद भी उसने तुम्हारा नाम नहीं बताया था…
राजेश: इसके बाद से तुम्हारे पिताजी ने तनवी के प्रति ज्यादा सजग हो गये थे… उसके आने-जाने, किस से मिलती है और उसकी कौन सहेलियाँ है, सब पर नजर रखने लगे थे… फिर एक साल बाद मै अपनी छुट्टियाँ बीताने घर आया था… तुम्हारे पिताजी ने शायद तनवी के चेहरे पर आयी खुशी पढ़ ली थी… तनवी को जबरद्स्ती उन्होंने मामा के घर भेज दिया था। इस बात का बड़ी मुश्किल से मुझे पता चला तो उस से मिलने तुम्हारे मामा के गाँव चला गया। तनवी बहाना लगा कर मेरे साथ वापिस आ गयी और वह मेरे खेत वाले मकान मे रहने लगी। अब हमारे दिन और रात साथ-साथ बीतने लगी थी। मेरे पापा और मम्मी ने जब इसके बारे में मुझ से पूछा तब तनवी को उनके सामने ला कर मैने उनको सच-सच सारी बात बता दी। यह मेरी दूसरी गलती थी।
मुमु: मुझे उस वक्त मामला तो समझ नहीं आया अपितु यह पता चला कि तुम्हारे पापा ने हमें बहुत बड़ा नुकसान दिया था और दुश्मनी निभाई थी… एक या दो बार तो पिताजी अपनी गन ले कर तुम्हारे पिताजी को मारने के लिए गये थे…
राजेश: हाँ परन्तु यह सब बात मेरे जाने के बाद हुई थी… उस दिन के बाद तनवी हमारे घर पर ही रहने लगी थी… मेरी मम्मी के साथ उसकी काफी घनिष्टता हो गयी थी। मेरे जाने के बाद मेरे पापा तुम्हारे पिताजी के पास गये थे और उन्हें सारी बातों से अवगत करा दिया तो तुम्हारे पिताजी आग-बबूला हो कर जबरदस्ती तनवी को अपने साथ रास्ते भर मारते हुए ले जा कर खेत पर बने गोदाम में बन्द कर दिया था। इसके बाद से हमारे परिवारों मे दुश्मनी हो गयी कभी तुम्हारे पिताजी के गुंडे हमारे खेतों में आग लगा देते और कभी मेरे पापा के गुंडे तुम्हारे खेतों को नुक्सान पहुँचाते थे। इन्ही दिनों में टीना तुम्हारे पेट में आ गयी थी… और तुम अपने पिताजी के काम की नहीं रह गयी थी… तनवी की पढ़ाई भी तुम्हारे पिताजी छुड़वा दी थी… तुम्हारे पिताजी ने तनवी का जीना दूभर कर रखा था। बेचारी इतने दुख में भी अपनी चिठ्ठी मेरे पास भिजवाना नहीं भूलती थी। तुम्हें पता है कि कौन तुम्हारे घर से तनवी की चिठ्ठी मेरी मम्मी के पास पहुँचाता था…
मुमु: पता नहीं
राजेश: दाई अम्मा… तनवी के एक-एक आँसू की वही अकेली गवाह थी। दाई अम्मा ने तुम्हारे बारे मे भी तनवी को बता दिया था… उसे यह भी बताया था कि कैसे तुमने अपने पिताजी को धमकी दे कर तनवी को बचाया था। बेचारी उसने कभी भी अपने उपर होते हुए जुल्मों को अपनी चिठ्ठी मे नहीं लिखा था। हाँ बस एक बार हमारे परिवारों के बीच हुई दुश्मनी का जिकर किया था… बहुत बार उसने तुम्हारे बारे में लिखा था। हर चिठ्ठी में लीना का जिकर करती थी… लीना से बहुत प्यार करती थी उसने मुझे एक लिस्ट भेजी थी कि अगली बार जब मै वापिस आऊँगा तब इन सब चीजों को लेता हुआ आँऊ… टीना के जन्म पर तनवी ने एक ऐसी ही लिस्ट और भेजी थी… तुम विश्वास नहीं करोगी कि दो साल से बाहर रह रहा था परन्तु एक बार भी मेरे जहन में किसी और लड़की का ख्याल नहीं आया। ऐसे ही रस्साकशी में दूसरा साल भी निकल गया। पढ़ाई के जोर की वजह से उस बार छुट्टियों में नहीं आ सका था। तुम्हारे पिताजी ने मेरे खिलाफ न जाने तनवी से क्या-क्या कहा मगर उसने कभी भी उन बातों का जिक्र नहीं किया… मुझे हर बात दाई अम्मा की जुबानी पता चली थी।
मुमु: तुम्हें पता है जब टीना हुई तो पिताजी गुस्से से बिफर गये और उन्होंने मुझे छिनाल कह कर घर से निकाल दिया था… मै दूध पीती हुई बच्चियों को ले कर कहाँ जाती… तो बेचारी तनवी ने मुझे अपने कमरे में ही रख लिया था। बेचारी कभी मुझे संभालती कभी बच्चियों को संभालती…जैसे तैसे तुम्हारी पढ़ाई खत्म होने की खबर आयी तो तनवी के चेहरे पर पहली बार इतने दिनों के बाद रौनक देखने को मिली थी… जब तुम लौट के वापिस आ गये तो एक दिन पिताजी हमारे कमरे में आकर तनवी को चेतावनी दे कर गये कि अगर तुम उनके घर के आस-पास भी दिखे तो तुम्हें गोली मार देंगें… हम दोनों बहुत डर गये थे क्योंकि तनवी को विश्वास था कि तुम वापिस आकर जरूर उसको लेने आओगे…
राजेश: दुश्मनी बहुत आगे तक जा चुकी थी और मेरे और तनवी के पिताजी का आमना-सामना बहुत घातक होगा…इसलिए मेरे पापा ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया था… बहुत कोशिश के बाद दाई अम्मा ने मुझे बता दिया था। मैने तनवी को बचाने की योजना अपने दोस्तों के साथ मिल कर बनाई और उसी रात को गोदाम पर पहुँच गये और तुम्हें और तनवी को लेकर अपने घर ले कर आये थे। यह मेरी तीसरी गलती थी… हमारे घर पर तुम्हारे पिताजी अपने गुंडों को ले कर पहले से ही बैठे थे… मुझे देखते ही मुझ पर गोली चला दी परन्तु तनवी अपने पिताजी को रोकती हुई मेरे सामने आ गयी… तुमने तो सारा कुछ अपनी आँखों से देखा था। मेरे पापा जब मुझे बचाने के लिए आगे बढ़े तब पास खड़े जगबीर ने उन्हें भी गोली मार दी थी। मुझे तो होश ही नहीं था एक तरफ तनवी खून में लथपथ मेरी बाँहों में तड़प रही थी और दूसरी ओर मेरे पापा की लाश पड़ी हुई थी। उस दिन मैनें तुम्हारा असली रूप देखा था (राजेश डबडबाती हुई पलकों से मुमु की ओर देखते हुए)… जब तुमने तनवी का हाथ पकड़ कर अपने पिताजी का खुलेआम विरोध किया और उनको छोड़ने का निश्चय करते हुए कहा था कि आज के बाद तुम और तुम्हारी बच्चियाँ उनके लिए मर गये… और तनवी ने अपने आखिरी वक्त में मुझे तुम्हारी और बच्चियों की जिम्मेदारी दे कर हमेशा के लिए छोड़ कर चली गयी।
मुमु: हाँ मुझे मालूम है… तुमने मेरा हाथ पकड़ कर मेरे पिताजी को कहा था कि तुमने अपनी एक बेटी को इस लिए मार दिया कि वह मेरी पत्नी थी पर अब क्या करोगे जब तुम्हारी सारी बेटियों को मै सिर्फ मेरी हमबिस्तर बना कर रखूंगा… मुझे रोक सको तो रोक लेना। मेरे पिताजी को पुलिस पकड़ कर ले गयी थी और कुछ दिन गाँव मे ठहर कर तुमने अपने और हमारे खेतों की जिम्मेदारी अपने पुराने नौकर पर डाल कर इस शहर आने का फैसला लिया था। पिताजी को बारह वर्ष की सजा हो गयी और हम इस शहर में आकर बस गये। तुमने तो स्वर्णाआभा को भी साथ चलने को कहा था… परन्तु पिताजी के बहकावे में आ कर वह दाई अम्मा के साथ ही रह गयी थी। हमारा किसी रीति-रिवाज से विवाह तो नहीं हुआ परन्तु आज तक हम पति-पत्नी की तरह रह रहें है। मेरी बच्चियाँ के लिए तुम ही उनके बाप हो… और मै अपनी बच्चियों के उपर उस जालिम आदमी का साया भी पड़ने नहीं देना चाहती…
राजेश: (मुमु को अपने सीने से लगाते हुए) मुमु… तुम यह नहीं जानती कि मैने तुम्हारे पिताजी को फाँसी से बचाने के लिए वकील किया और हर महीने स्वर्णाआभा को जेब खर्च के लिए पैसे भेजता था… जब तुम्हारे पिताजी अपनी सजा काट कर पिछले साल मेरे पास तुम्हारी जानकारी लेने आये तो बहुत बुरी हालत में थे… कोर्ट-कचहरी के चक्कर में उनका सब कुछ लुट चुका था। पर उनको देख कर मुझे उन पर गुस्सा नहीं आया अपितु उन पर द्या करते हुए मैनें उन्हें किसी से कह कर काम पर लगा दिया था…।
मुमु: यह क्या किया तुमने… वह आदमी भरोसे के काबिल नहीं है।
राजेश: (मुमु के होंठों को चूम कर अपने जिस्म से उसके नग्न जिस्म को ढकते हुए) मुमु क्या तुम एक और बच्चे के लिए तैयार हो…
मुमु: राजू (भावविह्ल हो कर) अब तक याद नहीं हमने कितनी रातें साथ बिताई है पर तुमने ने कभी भी यह प्रश्न पहले नहीं किया… न ही तुमने तनवी के बाद कभी बच्चे की चाहत दिखाई है…
क्रमशः
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