Jawan Ladki Chudai कमसिन कलियाँ
07-12-2018, 12:38 PM,
#18
RE: Jawan Ladki Chudai कमसिन कलियाँ
कमसिन कलियाँ--18

गतान्क से आगे..........

टीना:.उ.अ..आह.पा…अ.उउआ.

नी जुबान पर लगाम रखेंगें।

मुमु: हाँ तुम ठीक कह रहे हो उन्हें यहीं पर बुला लेती हूँ… पता तो चले आखिर चाहते क्या है…

राजेश: हाँ और यह भी देख ले कि उसकी बेटी आज शहर के गणमान्य लोगों के साथ उठ्ती बैठ्ती है…

मुमु: तुम भी न …

राजेश: (उठ कर मुमु को अपने आगोश में ले लेता है) तुम भूल सकती हो… परन्तु मै अपना अपमान और तुम्हारी छोटी बहन तनवी को कभी भी नहीं भूल सकता…

मुमु: आज भी तनु की याद करके आप की आँखें नम हो जाती है…(गाल को सहलाती है और राजेश के होंठों को चूम लेती है)

राजेश: (मुमु को अपने निकट खींचकर) सिर्फ तुम्हारी वजह से आज मै इन्सान हूँ वर्ना तुम्हारे पिताजी ने तो मुझे हैवान बनाने मे कोई कसर नहीं छोड़ी थी…

मुमु: तुम नाहक ही उनके बारे में सोच रहे हो…

राजेश: तुम्हारी सबसे छोटी बहन आज कल उनके साथ रह रही है…

मुमु: हाँ बता रहे थे… और हँसते हुए बता रहे थे तुम्हारे और उसके बारे में…

राजेश: ठीक ही तो है… मेरा जन्म तो सिर्फ तुम्हारे पिताजी की लड़कियों के लिए हुआ है। याद है न मैनें तुम्हारे पिताजी से वादा किया था कि उन्होंने मेरे प्यार को मुझसे छीना है और एक दिन उनकी सारी बेटियों को मै अपनी बना कर रखूँगा। मैने तो स्वर्णाआभा से भी कहा था कि मेरे साथ चल परन्तु शायद अपने पिताजी की मर्दानगी से ज्यादा ही प्रभावित है या डर के कारण उसने मना कर दिया…

मुमु: मै जानती हूँ…तुम्हारे दिल का दर्द्। आखिर हम सब का बचपन साथ बीता है। काश मेरी माँ जिन्दा होतीं तो यह सब तो न होता…

राजेश: रहने दो… अच्छा है कि वह नहीं रही वरना अपनी बेटियों का जीवन बर्बाद होते हुए देख कर जीते जी मर जाती।

मुमु: माँ के मरने के बाद तो…

राजेश: मुमु मैनें तुमसे यह बात कभी भी पहले नहीं पूछी कि तुम्हारे संबन्ध अपने पिताजी के साथ कैसे और कब बन गये… क्या इस के बारे में बात करना चाहोगी।

मुमु: (राजेश के सीने से लगते हुए) आज तुम्हारे साथ रहते हुए चौदह साल हो गये है… सब कुछ जानते हुए भी तुमने कभी भी मुझसे इस बारे में नहीं पूछा फिर आज अचानक क्यूँ ?

राजेश: एकाएक तनवी जहन में आ गयी… खून में लथपथ फर्श पर पड़ी थी और… (राजेश फफक कर रो पड़ता है)…

मुमु: पुराने जख्म को मत कुरेदो…सोच कर दर्द ही होगा। परन्तु आज तक मैने किसी को भी अपनी आप बीती नहीं सुनाई। सारा जहर इतने साल मैने अपने सीने में दबा कर रखा…

राजेश: जितनी नफरत मै तुम्हारे पिता से करता हूँ उस से कहीं ज्यादा मोहब्बत मै तुमसे और तनवी से करता हूँ। आज भावनाओं मे बह कर तुम से पूछ बैठा… मुझे माफ कर दो…तुम सही कह रही हो पुराने घाव कुरेदने से सिर्फ पस ही निकलेगा…

मुमु: (राजेश से लिपट कर उसके सीने में मुँह छुपाते हुए) राजू आज मै अपनी आत्मा पर बहुत सालों से पड़े हुए बोझ को हटाना चाहती हूँ… मुझे मत रोको… माँ की मौत पर मै सिर्फ तेरह वर्ष की थी। मेरे शरीर में बदलाव आना शुरु हो गया था। सीने के उभार दिखने लगे था और कुल्हे और नितंबों मे भराव आना शुरु हो गया था। जब भी मै चलती तो सीने के उभार हिलते और देखने वाले मेरे सीने पर ही अपनी नजर गड़ाये रखते थे। मुझे बड़ा अजीब सा लगता था। उन्हीं दिनों में पिताजी जब शाम को घर पर लौट कर आते लड़खड़ाते हुए नशे में सीधे अपने कमरे में चले जाते थे। माँ के मरने के बाद कुछ दिनों तक तो क्रमवार यही चलता रहा परन्तु पिताजी का मेरे प्रति रवैया बदलने लगा। जब भी मन करता या कोई काम होता तभी किसी नौकर द्वारा बुला भेजते। अपने एकाकीपन को दूर करने के लिए मुझे अपने साथ सोने के लिए कहते थे। दो छोटी बहनों के देख रेख के लिए एक दाई माँ रख ली थी।

राजेश: मुमु तुम्हारे घर में तो बहुत सारे नौकर-चाकर हुआ करते थे फिर तुम्हारे पिताजी तुम्हें ही क्यों बुलाते थे…

मुमु: पहले कुछ समय तो मुझे भी नहीं समझ आया परन्तु एक लड़की पर चड़ती हुई जवानी उसे बहुत संवेदनशील बना देती है। लोगों की निगाह और उनके बात करने के हाव भाव से ही उनकी नीयत का आभास हो जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ क्योंकि जब भी मै पिताजी के कमरे में जाती तो पिताजी रेस्टिंग चेयर पर बैठे होते और जबरदस्ती मुझे अपनी गोदी में बिठा लेते और फिर मेरे शरीर को प्यार से सहलाते हुए माँ को याद करते थे और रात को मुझसे लिपट कर सोते थे। मुझे भी अच्छा लगता था कि मेरे पिताजी मुझसे कितना प्यार करते है। लेकिन एक बार बीच रात में मेरी नींद टूट गयी क्योंकि मुझे अपनी जांघों के बीच में कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ था। मेरे पिताजी ने अपना लंड मेरी जांघों के बीच मे फँसा कर मेरे नाजुक उभारों को अपने हाथों से दबा रहे थे। पिताजी के डर की वजह से कुछ देर मै चुपचाप पड़ी रही पर अंधेरे में उत्सुकतावश मैनें अपनी जांघों के बीच फँसी हुई वस्तु को अपने हाथ से पहचानने की कोशिश की तो पिताजी ने मेरा हाथ को दिशा दे कर अपने तन्नायें हुए लंड को पकड़ा दिया और पीछे से धीरे-धीरे धक्के लगाने लगे। यह सब मेरे लिए एक स्वप्न भाँति लग रहा था। एकाएक पिताजी के लंड ने कँपकँपी लेते हुए अपना सारा रस मेरी हथेली पर उंडेल दिया। कुछ ही देर में पिताजी के खर्राटें कमरे में गूँजने लगे परन्तु काफी देर तब इस नवीन अनुभव को मेरा नासमझ दिमाग समझने की कोशिश करता रहा। उसी रात को पहली बार मुझे अपनी चूत में खुजली महसूस हुई थी…

राजेश: तुम नाहक ही…।

मुमु: नहीं… तुम नहीं समझोगे क्योंकि तुम मर्द हो… तुम्हें क्या पता कि एक कमसिन कली पर ऐसे एहसास का क्या असर होता है। फिर कई दिनों तक यही खेल रात को बिस्तर पर चलता रहा। हम दोनों एक दूसरे को रात के खेल के बारे में अपनी अनिभिज्ञता दर्शाते थे पर दिल ही दिल में रात की बात को याद करके रोमांचित हो जाती थी। एक रात को सोने से पहले पिताजी के हाथ से पानी का गिलास फिसल कर मेरी गोदी में गिर जाने से मेरी फ्राक और जांघिया भीग गये थे। पिताजी ने कहा कि गीले कपड़े उतार कर सुखाने के लिए रख दो अगर ऐसे ही गीले कपड़े पहने सो गयी तो बीमार पड़ने का खतरा रहेगा। मै कुछ न नुकर करती, पिताजी ने जबरदस्ती मेरे सारे कपड़े उतार दिए और सूखने के लिए अपनी कुर्सी पर फैला दिए। पहली बार मेरा नग्न जिस्म मेरे पिताजी के सामने उदित हुआ था। मै शर्म के मारे मरी जा रही थी परन्तु पिताजी मुझे अपनी बाँहों मे भर कर बिस्तर पर ले जा कर लिटा दिया। पिताजी ने अपना कुर्ता उतार दिया और धोती पहने बिस्तर पर आकर मुझे अपनी बाँहो में ले कर लेट गये और मेरे सीने के उभारों के साथ खेलना शुरु कर दिया। लगातार छेड़खानी से मेरे निप्पल फूल कर खड़े हो गये थे और किसी शातिर खिलाड़ी की तरह उनहोंने मुझे अपनी ओर मोड़ कर मेरे निप्प्लों को अंगूर की तरह अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगे और धीरे से मेरी अनछुई चूत की दरार में उँगली फिराने लगे।

राजेश: मुमु तुमने मना नहीं किया…

मुमु: क्या बताऊँ एक तरफ डर और दूसरी ओर जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए जिस्म की अनजान भूख… उस समय कुछ समझ नही आ रहा था। उस रात मैनें हिम्मत करके पिताजी को रुकने को कहा तो पिताजी ने धोती में से अपना काला भुजंग फनफनाता हुआ लंड निकाल कर मेरे हाथ में देते हुए कहा कि यह तेरी अम्मा की धरोहर है अब उसके जाने के बाद से यह तेरी है। जो तेरी माँ इसके साथ करती थी अब से तुझे करना होगा और यह कह कर मुझे नोचना-खसोटना शुरु कर दिया।

राजेश: पर मुमु तुम चुप क्यों रही… रोकने के लिए चीखँती…कोई तो नौकर आता बचाने को…

मुमु: तुम मेरे पिताजी के खौफ से क्या वाकिफ नहीं हो… किसी नौकर में इतना दम नहीं था कि मेरे पिताजी की आज्ञा की अवेहलना करें…पिताजी ने मुझे अपने नीचे दबा लिया और धीरे धीरे मेरे होंठों और गालों को चूसना शुरु कर दिया… फिर मेरे सीने के उभारों को अपने मुख में भर कर आम की तरह चूसना शुरु कर दिया…मेरे अन्दर भी अजीब सी आग जलने लगी थी… पिताजी को अपनी मर्दानगी पर बड़ा घमंड था और मेरे हाथ में अपने लंड को पकड़ा कर कहा की यह तेरी माँ की धरोहर है और आज से तू इसका ख्याल रखा करेगी। द्स इंच लम्बा और तीन इंच की गोलाई लिए लंड को मेरे हाथ में थमा दिया… और मुझे सरसों का तेल दे दिया और कहा की इसकी मालिश करूँ … कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ परन्तु जैसा पिताजी ने कहा मैने वैसा करना आरंभ कर दिया… पिताजी मेरे नाजुक अंगों के साथ खिलवाड़ कर रहे थे और मै उस काले भुजंग की मालिश कर रही थी… तुम्हें नहीं मालूम होगा परन्तु उनके लंड का अग्र भाग एक फूले हुए बैगंन की तरह दिखता है।

राजेश: मुमु…

मुमु: नहीं आज मुझे कहने दो… पिताजी कुछ देर तक मेरे स्तनों को नीबू की तरह निचोड़ते हुए चूसते थे और कभी अपने दाँतों में दबा कर कचकचा कर काट देते थे। मेरे स्तन पर आज तक उनके दाँतों के निशान है…(मुमु अपने नाइट गाउन को उतार कर अपने दोनों स्तनों पर कुछ निशान दिखाती है। राजेश प्यार से स्तन को अपने हाथों मे ले कर सहलाता है।)… मै दर्द से छ्टपटाती हुई पिताजी से अपने स्तन छुड़ाने का प्रयास करती तो और जोर से काट देते थे… काफी देर तक मेरे होंठों और स्तनों के साथ खेल कर उन्होनें मेरी गरदन पकड़ कर मेरे मुँह में अपना लंड जबरदस्ती धँसा दिया…और मुझसे चूसने को कहा। तुम सोच सकते हो कि एक तेरह वर्ष की नादान लड़की का पहला अनुभव कैसा रहा होगा…कि एक तरफ से उनका लंड मेरे गले में धँस कर मेरा दम घोट रहा था और दूसरी ओर से मेरे पिताजी अपनी मोटी उँगलियों से मेरी चूत को खोल कर मेरे दाने को रगड़ने में लगे हुए थे। मेरा शरीर मेरे काबू में नहीं रह गया था और कुछ ही क्षणों मेरा पहला स्खलन हो गया था…

मुमु: राजू उस वक्त मै नासमझ और बेबस थी… मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। पिताजी मुझे एक गुड़िया की भाँति इस्तेमाल कर रहे थे… अचानक मेरे पिताजी ने अपना लंड मेरे मुख से निकाल कर मुझे गोदी मे ले लिया तो मुझे साँस लेने में कुछ राहत महसूस हुई। पुचकारते हुए पिताजी ने मुझे अपनी ओर खींचकर मेरी चूत के मुहाने पर अपना लंड रख घिसना आरंभ कर दिया और मेरी कमर को कस कर पकड़ कर अपनी ओर धक्का दिया। सरसों के तेल से भीगा हुआ लंड का अग्र भाग मेरी चूत के मुख को जबरदस्ती खोल कर अन्दर जा कर फँस गया। मेरी आँखों के आगे अंधेरा छाता चला गया… और मै दर्द के मारे बेहोश हो गयी…जब तक मुझे होश आया तब तक मेरा कौमर्य भंग हो चुका था। मेरे पिताजी अपना लंड मेरी चूत में फँसा कर मेरे उपर लेटे हुए थे। मेरी चूत में बर्छियाँ चल रही थी और मैं पीड़ा से छटपटा रही थी। मेरा बाप मेरे शरीर को रौंदने में लगा हुआ था। मेरी परवाह किए बिना, पिताजी लम्बे और गहरे धक्के लगाते हुए जल्दी ही अपना सारा रस मेरी चूत में उंडेल कर एक तरफ पड़ गये… मेरा क्या हाल था मै क्या बयान करूँ…

राजेश: मुमु मै समझ सकता हूँ… (अपनी उँगली मुमु की चूत की दरार पर फिराते हुए) मुझे पता है इस ने कितनी यातनाएँ सही है… (और चूत के होंठों को उँगलियों से खोल कर उठे हुए बीज को चूमते हुए अपने होंठों में दबा लेता है।)

मुमु: अ आह्… नहीं प्लीज। आज मै तुम्हें सब कुछ बता कर अपना बोझ हलका करना चाहती हूँ (कहती हूई राजेश के चेहरे को अपने नग्न सीने पर रख कर) पुरे चार दिन तक मै अपने बिस्तर से नहीं उठ पाई और सारे दिन मै पीड़ा से तड़पती रहती थी। पिताजी रोज मेरे पास आकर प्यार से बात करते थे पर डर के कारण उस रात का कोई जिकर नहीं होता था। पिताजी ने मेरी हालत देख कर दाई माँ को बुलाया और उसे मेरा इलाज करने के लिए छोड़ दिया और गाँव भर में मेरी चरित्रहीनता की खबर फैला दी। एक हफ्ते बाद मेरे पिताजी ने रात को मुझे अपने कमरे में फिर से बुलाया तो दाई अम्मा मुझे अपने साथ ले कर उनके कमरे मे छोड़ आयीं।

राजेश: मुमु तुम्हें याद होगा जब मै पहली बार तुम्हारे घर आया था तो तुम मुझे एक दुखी और मासूम परन्तु बहुत नकचड़ी और घमंडी सी लड़की लगी थी।

मुमु: मेरे भाग्य की विडम्बना थी… एक तरफ मेरा डर और दूसरी ओर यौन शोषण ने मुझे बहुत चिड़चिड़ी बना दिया था। रोज रात को पिताजी मेरा को हर तरह से भोगते थे। अब मेरा शरीर भी इस खेल का आदि हो चुका था। पहले मै डर के मारे पिताजी का इस काम में साथ देती थी परन्तु कुछ समय बाद पिताजी के लंड को लिए बिना मुझे नींद नहीं आती थी। कुछ ही दिनों में पिताजी ने मेरे शरीर के सारे छेदों का अपने प्रेमरस से भर दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरे पेट में लीना आ गयी। पहले तो पिताजी दाई अम्मा से बच्चे को गिराने की बात करते रहे पर ज्यादा दिन होने की वजह से जान को खतरा था इस लिए बच्चे को गिराने का ख्याल दिल से निकाल दिया। माँ बनने के कारण अब मै पिताजी की आग शान्त करने में अस्मर्थ थी। अब तक तनवी ने जवानी की दहलीज पर पहला कदम रख दिया था। देखने मे तो वह हम सब से सुन्दर थी और उसके कमसिन बदन में भी भराव आने लगा था। मैनें गौर किया कि अब पिताजी की नजर उस पर लगी हुई थी।

राजेश: (मुमु के सीने की दोनों पहाड़ियों के बीच मे से मुख निकाल कर) तुम्हें कब मालूम हुआ कि मेरे और तनवी के बीच में प्रगाड़ संबन्ध है…

मुमु: जब पिताजी ने पहली बार तनवी को रात में अपने साथ सोने के लिए बुलवाया था और तनवी ने साफ मना कर दिया था। वह मेरे पास रोती हुई आई थी कि वह किसी और की अमानत है की… बहुत पूछने पर भी जब उसने कोई नाम नहीं लिया तो मै यह तो समझ गयी थी कोई जानकार है परन्तु तुम दोनों के बारे में पहली बार पिताजी के मुख से सुना था।

राजेश: फिर क्या हुआ… (मुमु के उन्नत उभारों से खेलते हुए)

मुमु: जब तनवी मेरे पास अपना दुखड़ा सुना कर गयी तब मैने पहली बार पिताजी की खिलाफत की थी। उनके पास जा कर मैने साफ लफ्जों में कह दिया कि मेरी बहनों मे से किसी के एक के साथ भी उन्होंने कुछ करने की कोशिश की तो मै सब को होने वाले बच्चे के पिता का नाम बता दूँगी… मेरी धमकी से पिताजी डर गये और फिर जब तक लीना हुई उन्होंने तनवी पर कोई दबाव नहीं डाला… राजू तुम बताओ तनु के साथ तुम्हारा प्यार कब और कैसे हुआ… तुम तो होस्टल मे रहा करते थे और हमारे घर सिर्फ छुट्टियों में खेलने आते थे…

राजेश: मुमु यह उन दिनों की बात है जब तुम्हारे पेट में लीना थी… मै अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करके कुछ समय के लिए घर पर रहने आया था… तीन महीने बाद मुझे अमरीका आगे पढ़ने के लिए जाना था… उन दिनों मै अपने खेतों पर रह कर इधर-उधर घूमता रहता था। एक दिन तनवी अकेली लंगड़ाती हुई स्कूल से लौट रही थी। हम पहले से एक दूसरे को जानते थे क्योंकि तुम्हारे घर मे मेरे परिवार का आना-जाना था। उसकी यह हालत देख कर मुझ से रहा नहीं गया सो मैनें उसे रोका और अपनी बाँहों मे ले कर इधर-उधर की बात करते हुए उसे घर पर छोड़ दिया। मै हमेशा उसे छोटी बच्ची की तरह देखा था इसी लिए उसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैं अठारह का हो चुका था और वह मुश्किल से तेरहवें वर्ष में लगी थी या लगने वाली थी।

क्रमशः
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RE: Jawan Ladki Chudai कमसिन कलियाँ - by sexstories - 07-12-2018, 12:38 PM

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