Long Sex Kahani सोलहवां सावन
07-06-2018, 02:48 PM,
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
रविन्द्र मेरी भाभी का देवर 



[attachment=1]young 2.jpg[/attachment]किचेन में खाना बना था, मैंने सलाद बनायी और उसके लिये खास तौर पे गाजर की खीर।


जब मैं खाना लेकर लौटी तो वह मेरी फोटुयें देखने में मगन था और उसके चेहरे से लग रहा था कि उसके ऊपर क्या बीत रही है। 


मैंउसने निगाहें उठायीं तो सामने मेरे जोबन का क्लीवेज़ साफ-साफ दिख रहा था। 


“खा लूं…” अब वह भी द्विअर्थी ढंग से बोलने लगा था और उसकी आवाज में भूख साफ-साफ दिख रही थी।


मैंने भी उसी तरह जवाब दिया और बल्की उसके पास सटकर-


“और क्या… तुम्हारे लिये ही तो है, और सामने इतना रसभरा खाना हो और कोई भूखा रहे तो उसे तो बुद्धू ही कहेंगे ना…”

“इसमें तुमने क्या बनाया है…” बात बदलकर उसने पूछा। 

“सलाद और गाजर की खीर, लो खाओ…” कहकर मैंने अपने हाथ से सलाद में से गाजर का एक पतला टुकड़ा निकाला और उसके मुँह पे लगा दिया। (बात यह थी कि मैं कामिनी भाभी का फार्मूला नहीं भूली थी, जब मैं उसके लिये पानी लेने गयी थी, तभी मैंने किचेन से एक लंबा और मोटा लाल गाजर ले लिया था और कमरें में घुसने से पहले, पैंटी सरकाकर अंदर… )


ने कुछ सोचके फ्राक की दो टाप बटन खोल लीं और उसके पास आकर टेबल पर खाना रखकर, झुक कर बोली- “खाना पेश है…”



और जितने देर मैं उसके पास बैठी रही, उसकी रसीली निगाहों से मैं गीली होती रही, वह वहीं और जब मैं खाना लगाने गयी तो उसी गाजर की सलाद और खीर बना ली)। अपने हाथों से मैं उसे पूरी गाजर की सलाद खिलाकर ही मानी। 



जब उसने खाने के लिये अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने रोक दिया, अपने हाथ से कौर उसके मुँह में ले गयी-


“हे, जब मैं तुम्हारे पास हूँ तो तुम्हें हाथ इश्तेमाल करने की क्या जरूरत… मैं हूँ ना…” 


वह मेरा असली मतलब समझ गया और मेरे हाथ से खाते हुए बोला- 

“आगे से नहीं करूंगा…” 


एक-दो कौर खिलाने के बाद एक कौर मैं उसके मुँह के पास ले जाकर हटा ली और खुद गड़प ली। उसने जब मेरी ओर घूरा तो मैं हँस के आँख नचाके बोली- अरे मैं भी तो भूखी हूं…” 


इस तरह छेड़छाड़ के साथ एक दूसरे के हाथों के रस के साथ खाकर खाना खतम किया। गाजर की खीर तो मैंने उसी पूरी खिलायी, यहां तक की उसने जीभ से कटोरी तक चाट ली। 


“हाथ कहां साफ करूं…” वो बोला। 


“बताती हूं…” और उसके हाथ को मैंने पकड़ लिया और उसकी एक-एक उंगली मैंने चूस चाटकर साफ कर दी। मैं उसकी उंगली वैसे चाट रही थी जैसे कोई लड़की, किसी लड़के का लिंग… 


मैं उसके टिप को गुलाबी होंठों के बीच लेकर चूसती… फिर सारी उंगली गड़प कर लेती… उसे बाहर निकालकर मैं साईड को जीभ से चाटती… मेरी निगाहें उसके उभार की ओर थीं और उसकी हालत खराब हो रही थी। 

जब मैं थाली लेकर उठने लगी तो वो बोला कि कुछ बच गया है। 

“कोई बात नहीं…” कहकर मैं सब कुछ हाथ से समेटकर चट कर गयी और थाली लेकर चल दी। 

“हे वो मेरा जूठा था…” 


दरवाजे के पास से मुड़कर शोख अल से, जीभ होंठ पर फिराते मैं बोली- “तो क्या हुआ, जूठा खाने से प्रेम बढ़ता है। और था भी बड़ा स्वादिष्ट…” 


लौट कर मैंने हिंदी की एक किताब उठायी, बिहारी की… और उसमें से मैंने एक दोहा निकाला- “ये देखिये… उन्नत कुच, पत्थर से कठोर, उल्टे कटोरे की तरह… क्या मतलब है इसका…”

“ये ये कहां से मिला ये तुम्हारे कोर्स में तो नहीं है…” वो बोला। 


“तो क्या हुआ, बिहारी तो कोर्स में हैं ना… मैंने सोचा की मूल पुस्तक पढ़नी चाहिये तो मैं लाइब्रेरी से ले आयी, पर ये जो अर्थ लिखा है… वह भी समझ में नहीं आ रहा है, तुम्हें मालूम है तो ठीक वरना मैं किसी और से पूछ लूंगी…” 

“नहीं नहीं… किसी और से मत पूछना… इसका मतलब है की… नायक को नायिका के उन्नत कुच… जो पत्थर की तरह कठोर हैं, पसंद हैं… मतलब…” 


मैं उससे और सट गयी और साफ-साफ जोबन को उभारकर अदा से बोली- “खुलकर साफ-साफ बताओ ना…” उसकी सांस मेरे सीने को देखकर तेज हो रही थी। 


“मतलब की नायक को नायिका के कुच, उसका सीना, सीने के उभार जो खूब…” 

तब तक लाईट चली गयी और मैंने उसके हाथ को अपने कंधे पे रख लिया, एकदम उभारों के पास खींच लिया और उसके चेहरे के पास चेहरे को ले जाकर मैंने धीरे से पूछा- “अच्छा तुम बताओ, तुम्हें कैसी लड़की पसंद है… कोई तो होगी जो तुम्हें पसंद होगी…” 



“हां पसंद है… है एक बहुत अच्छी है…” 

मैंने उसके हाथ को अब और कस के खींच लिया था और अब वह सीधे मेरे उभार पर था। मेरे गाल उसके गाल से सटे हुए थे। मैंने फिर पूछा- 


“बताओ ना कैसी है… कौन है… मैं भी तो जानूं…” 

“है एक तुम जानती हो उसको… बहुत सुंदर है, एकदम सेक्सी… प्यारी सी…” वह धीमे से बोला। 

“अगर एक बार मिल जाय ना मुझको…” मैंने फुस्फुसाहट में कहा। 

“क्यों मिल जाय तो क्या करोगी…” मुश्कुराकर वह बोला। 

“मुंह नोच लूंगी उसका… और क्या… लेकीन बड़ी किश्मत वाली होगी जिसे तुम चाहोगे…” 

“जलती हो उससे…” हँसकर वो बोला। 



तभी हवा तेज चली और खिड़की, दरवाजे खड़खड़ होने लगे। मैं उठकर गयी और दोनों की सिटकनी लगाकर बंद कर दी। लौटकर बैठते समय, मैं उसके पैरों से फँस गयी और गिरकर उसकी गोद में बैठ गयी। मैंने फिर उसका हाथ खींचकर अपने कंधे पर रख लिया और अपने उभार पर हल्के से दबा दिया। 


“जलूंगी ही… अगर मैं उसकी जगह होती…” हल्के से मैं बोली और उसके हाथ को सीने पे हल्के से दबा दिया।
अबकी उसने भी मेरे उभार को हल्के से सहलाते हुए, मेरे गाल से गाल रगड़कर पूछा- “अगर उसकी जगह तुम होती तो क्या करती…” 


मैं भी अपने गुलाबी गालों से उसके गाल रगड़कर बोली- “पहले मेरी तो इतनी किश्मत नहीं है… फिर करने को, वो तो शेर वाली बात होती, मिलने पर जो करेगा शेर ही करेगा, तो उसी तरह जो करते तुम ही करते… लेकिन तुम जो भी जितना भी जैसे भी करते… मैं सब करवा लेती… जरा भी चूं नहीं करती… पूर्ण समर्पण के साथ… लेकिन मैं इत्ती अच्छी नहीं हूँ कि तुम… मुझे…” मैं अब खुल के बोली। 


“नहीं… ये आज के बाद तुम कभी मत कहना ऐसा, तुमसे अच्छा कौन होगा…” वो बोला। 


अब मैं समझ गयी थी और मैं उसके दूसरे हाथ को अपने सीने के ऊपर ले गयी और उसे वहां कस के दबाते हुए कहा- 


“अच्छा तो तुम्हें मेरी कसम… खुलकर बताओ ना उसके बारें में कितनी उमर है कैसी लगती है…”


“**** सावन है उसका और बड़ी सेक्सी है… …” 


तेज सांसों के साथ अब मेरा सीना तेजी से ऊपर-नीचे हो रहा था। 


मैंने उसके दोनों हाथ अब कस के अपने सीने पे दबा लिये थे। और मैं बोली-

“और वह… तुम्हारे स्कूल में ही पढ़ती है, तुम्हारे क्लास में…” अब मैंने कस के उसके हाथ अपने सीने पे अपने हाथ से भींच दिये। 


वह भी अब खुलकर हल्के-हल्के मेरे रसीले जोबन दबा रहा था। उसका उत्तेजित लिंग लग रहा था कि, जीन्स फाड़ देगा। 


चन्दा की बात अब मुझे गलत लग रही थी। उसका उससे भी बड़ा लग रहा था जितना चन्दा ने बताया था। 


“और बोलो ना…” उसके खड़े लिंग को मैंने अपने नितंब से हल्के से दबाते हुये पूछा। 


उसने अब बिना किसी हिचक के कस के मेरे दोनों रसीले जोबनों को दबाकर, मजा लेते हुए कहा- “और वह इसी गली में रहती है…” 



तब तक लाईट आ गयी।
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