RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
वापस घर : मेरी भाभी का देवर
सामान पहले ही रखा जा चुका था।
मैं जाकर बस में बैठ गयी, खिड़की के बगल में और बस चल दी। मैं देख रही थी, बाहर, खिड़की से, गुजरती हुई, अमरायी, जहां हम झूला झूलने जाते थे और जहां रात में पहली बार अजय ने…
वो गन्ने के खेत, मेले का मैदान, नदी का किनारा सब पड़ रहे थे और पिक्चर के दृश्य की तरह सारा दृश्य एक-एक करके सामने आ रहा था।
भाभी ने पूछा- “क्यों क्या सोच रही हो, तब तक एक झटका लगा और मेरी गाण्ड और चूत दोनों से वीर्य का एक टुकड़ा मेरे चूतड़ और जांघ पर फिसल पड़ा।
भाभी और मेरे पास सट गयीं और मेरे गाल से गाल सटाकर बोलीं-
“घर चलो, वहां मेरा देवर इंतजार कर रहा होगा…”
मेरे चेहरे पर मुश्कान खिल उठी। मेरे सामने रवीन्द्र की शक्ल आ गयी। मैंने भी भाभी के कंधे पे हाथ रखकर, मुश्कुराकर कहा-
“भाभी आपके भाइयों को देख लिया, अब देवर को भी देख लूंगी…”
तो ये रही मेरी भाभी के गांव में आप बीती। भाभी के देवर ने मेरे साथ क्या किया, या मैंने भाभी के देवर के साथ,
...................
जब मैं घर पहुँची तो बहुत देर हो चुकी थी, इसलिये मैं अपने घर पे ही उतर गयी।
अगले दिन मैंने सुबह से ही तय कर लिया था, भाभी के घर जाने को। सावन की पूनो में अब तीन दिन बचे थे। और उसका बहाना भी मिल गया। जब स्कूल की छुट्टी हुई, तो तेज बारिश हो रही थी। और भाभी का घर पास ही था।
वैसे भी दिन भर बजाय पढ़ाई के मेरा मन रवीन्द्र में, चन्दा ने उसके बारें में जो बताया था। बस वही सब बातें दिमाग में घूमती रहीं।
भाभी के घर तक पहुँचते-पहुँचते भी मैं अच्छी तरह भीग गयी। मेरे स्कूल की यूनीफार्म, सफेद ब्लाउज और नेवी ब्लू स्कर्ट है।
और भाभी के गांव से आकर मैंने देखा कि मेरा ब्लाउज कुछ ज्यादा ही तंग हो गया है। भाभी के घर तक पहुँचते-पहुँचते भी मैं अच्छी तरह भीग गयी, खास कर मेरा सफ़ेद ब्लाउज, और यहां तक की तर होकर मेरी सफेद लेसी टीन ब्रा भी गीली हो गयी थी।
भाभी किचेन में नाश्ता बना रहीं थीं और साथ ही साथ खुले दरवाजे से झांक कर टीवी पर दिन में आ रहा सास बहू का रिपीट भी देख रही थीं।
मैंने भाभी से पूछा- “ये दिन में आप इस तरह… सास बहू देख रही हैं… रात में नहीं देखा क्या… और ये नाश्ता किसके लिये बना रही हैं…”
भाभी हँसकर बोलीं-
“रात में तो 9:00 बजे के पहले ही पति पत्नी चालू हो जाता है तो सास बहू कैसे देखूं… तेरे बड़े भैया आजकल ओवरटाइम करा रहे हैं। मैं इतने दिन सावन में गैर हाजिर जो थी। आजकल हम लोग रात में 8:00 बजे तक खाना खा लेते हैं और उसके बाद रवीन्द्र पढ़ने अपने कमरे में ऊपर चला आता है… और मेरे कमरे में, तुम्हारे बड़े भैया मेरे ऊपर आ जाते हैं।"
“और ये नाश्ता किसके लिये बना रही हैं…” मुझसे नहीं रहा गया।
“रवीन्द्र के लिये… आज उसकी सुबह से क्लास थी बिना खाये ही चला गया था आते ही भूख… भूख चिल्लायेगा…”
मैंने उनके हाथ से चमचा छीनते हूये कहा- “तो ठीक है भाभी नाश्ता मैं बना देती हूं। और आप जाकर टीवी देखिये…”
“ठीक है, वैसे भी मेरे देवर की भूख तुम्हें मिटानी है…” हँसते हुए, भाभी हट आयीं।
“चलिये… भाभी आपको तो हर वक्त मजाक सूझता है…” झेंपते हुये मैंने बनावटी गुस्से से कहा।
“मन मन भावे… और हां नाश्ते में उसे फल पसंद हैं तो अपने ये लाल सेब जरूर खिला देना…” ये कहकर उन्होंने मेरे गुलाबी गालों पर कस के चिकोटी काटी और अपने कमरे में चल दीं।
भाभी के मजाक से मुझे आइडिया मिल गया और चम्पा भाभी का बताया हुआ श्योर शाट फार्मूला याद आ गया।
मैंने फ्रिज़ खोलकर देखा तो वहां दशहरी आम रखे थे। मैंने उसकी लंबी-लंबी फांकें काटी और प्लेट में रख ली और उसमें से एक निकालकर, (मैंने भाभी के कमरे की ओर देखा वो, सास बहू में मशगूल थीं) अपनी स्कर्ट उठाकर, पैंटीं सरकाकर, चूत की दोनों फांके फैलाकर उसके अंदर रख ली और चूत कसकर भींच लिया।
नाश्ता बनाते समय मुझे चन्दा ने जो-जो बातें रवीन्द्र के बारें में बतायी थीं याद आ रही थीं और न जाने कैसे मेरा हाथ पैंटी के ऊपर से रगड़ रहा था और थोड़ी ही देर में मैं अच्छी तरह गीली हो गयी।
नाश्ता बनाकर मैंने तैयार किया ही था कि मुझे रवीन्द्र के आने की आहट सुनायी दी। वह सीधा ऊपर अपने कमरे में चला गया।
वहीं से उसने आवाज लगायी- “भाभी मुझे भूख लगी है…”
भाभी ने कमरे में से झांक कर देखा। मैंने इशारे से उन्हें बताया की नाश्ता तैयार है और मैं ले जा रही हूं। जब मैं सीढ़ी पर ऊपर नाश्ता लेकर जा रही थी,
तभी मुझे “कुछ” याद आया और वहीं स्कर्ट उठाकर आम की फांक मैंने बाहर निकाली। वह मेरे रस से अच्छी तरह गीली हो गयी थी। मैंने उसको उठाकर प्लेट में अलग से रख लिया। बिना दरवाजे पर नाक किये मैं अंदर घुस गयी।
वह सिर्फ पाजामे में था, चड्ढी, पैंट उसकी पलंग पर थी और बनयाइन वह पहनने जा रहा था।
मैंने पहली बार उसको इस तरह देखा था, क्या मसल्स थीं, कमर जितनी पतली सीना उतना ही चौड़ा, एकदम ‘वी’ की तरह… और वह भी गीले हो चुके मेरे उभारों से अच्छी तरह चिपके ब्लाउज, जिससे न सिर्फ मेरे उभार ही बल्की चूचुक तक साफ दिख रहे थे, घूर रहा था। थोड़े देर तक हम दोनों एक दूसरे के देह का दृष्टि रस-पान करते रहे।
फिर अचानक वो बोला- “तुम… नाश्ता लेकर… भाभी कहां है…” लेकिन अभी भी उसकी निगाहें मेरे किशोर उभारों पर चिपकी थीं।
मैं उसके बगल में सटकर जानबूझ कर बैठ गयी और अपनी तिरछी मुश्कान के साथ पूछा- “क्यों भाभी ही करा सकती हैं नाश्ता, मैं नहीं करा सकती… मेरे अंदर कोई कमी है…”
मैंने नाश्ते की प्लेट सामने मेज पर रख दी थी। उसने भी बनयाइन पहन ली थी। मैंने उसकी चड्ढी और पैंट उठाया और खूंटी पर टांग दिया।
“तो लो ना… मेरे हाथ से कर लो…” और मैंने सबसे पहले वो फांक जो मैंने “वहां” रखी थी, उसे प्लेट से उठाकर अपने हाथ से उसके होंठों पर लगाया।
उसने आपसे मुँह में ले लिया और थोड़ी देर चूसने खाने के बाद बोला- “इसमें थोड़ा अलग किस्म का रस है…”
मैं अपने होंठों पर जीभ फिराती, उसे दिखाकर बोली- “हां हां होगा, क्यों नहीं मेरा रस है…”
“तुम्हारा रस… क्या मतलब…” चौंक कर वो बोला।
“मेरा मतलब… कि मैंने अपने हाथ से खिलाया है इसलिये मेरा रस तो होगा ना…”
बात बनाती मुश्कुराती मैं बोली। मैंने आम की एक दूसरी फांक उठा ली थी और उसके टिप को अपने गुलाबी होंठों से रगड़ रही थी, फिर उसे दिखाते हुए मैंने उसका टिप अपने होंठों के बीच गड़प लिया और उसे चूसने लगी।
उसकी निगाहें मेरे होंठों पर अटकी हुईं थीं।
“लो खाओ ना… इसमें भी मेरा रस है…” और जब तक वह समझे समझे मैंने उसे निकालकर उसके होंठों के बीच घुसेड़ दिया। वह क्या मना कर सकता था। अब मैंने खड़ी होकर एक कस के रसदार अंगड़ाई ली, मेरे कबूतर और खड़े हो गये थे और उसकी चोंच तो तनकर मेरे ब्लाउज फाड़े दे रहे थे।
एक बार फिर उसकी निगाह वहीं पे गयी और जब मैंने उसकी निगाहों की ओर देखकर मुश्कुरा दिया तो वह समझ आया की चोरी पकड़ी गयी। उसने निगाहें नीची कर लीं और कहने लगा…
” तुम बदल गयी हो… बड़ी वैसी लगाने लगी हो…”
“कैसी… खराब…” मैं बोली।
“नहीं मेरा मतलब है… कैसे बताऊँ… वैसी… एकदम बदली बदली…”
मैंने एक बार फिर अपने हाथ पीछे करके जोबन को कस के उभारा और हँस के बोली- “तो क्या… तुम्हारा मतलब है… सेक्सी… तो बोलते क्यों नहीं, सिर्फ मैं नहीं बदली हूँ तुम भी बदल गये हो, तुम्हारी निगाहें भी…”
मैं अब पाजामें में तने तंबू को देख रही थी। उसने चड्ढी भी नहीं पहन रखी थी इसलिये साफ-साफ दिख रहा था।
उसने मेरी निगाह पकड़ ली पर मैंने तब भी अपनी निगाह वहां से नहीं हटायी।
“मैं जरा बाथरूम हो के आता हूं…” वो बोला।
“तो क्या मैं चलूं…” मैं भी खड़ी हुई।
तो वो बोला- “नहीं बैठो ना…”
जैसे ही वह अंदर घुसा, मैं बोली- “ज्यादा टाइम मत लगाना नहीं तो मैं चली जाऊँगी…”
“नहीं नहीं…” वह अंदर से बोला।
मैंने उसका पर्स खोला, जैसा कि चन्दा ने कहा था उसके अंदर मेरी एक फोटो थी। मैंने पलटकर देखा तो पीछे उसने लिख रखा था, ‘आई लव यू’।
मैं एकदम सिहर गयी। मेरे चूचुक कस के खड़े हो गये। मैंने भी एक पेन उठायी और उसके नीचे लिख दिया- ‘आई लव यू टू’ और फोटो वापस पर्स में रख दी। जब वह बाहर निकला तो मैं फिर उसके पास बैठ गयी और कहने लगी- “मुझे एक बात पता चली है…”
उत्सुकता से उसने पूछा- “क्या…” [attachment=1]male+001245.jpg[/attachment]
तो मैं मुश्कुराकर बोली- “किसी को मैं अच्छी लगती हूं…”
“तो इसमें कौन सी खास बात है… तुम अच्छी हो… बहुत अच्छी हो… तो फिर बहुतों को अच्छी लगती होगी…”
“नहीं ऐसी बात नहीं, वह एक खास है, बहुत खूबसूरत है, बुद्धिमान है… लेकिन थोड़ा बुद्धू है… और एक खास बात है…” मैं चलने के लिये उठी।
“क्या बात है… बताओ ना…” वह भी अब थोड़ा थोड़ा समझ रहा था और बेताब था।
“कान में बताऊँगी…” और मैंने अपने रसीले होंठों से उसके इअर-लोबस छू लिये और बोली-
“वो मुझे भी बहुत अच्छा लगाता है…”
और जैसे मैं अपनी स्कर्ट ठीक कर रही हूं, मेरे हाथ नीचे गये और उसके फिर से उठते, टेंट पोल को सहलाकर, वापस आ गये। जब तक वह सम्हले, सम्हले, मैं, अपने नितंबों को इरोटिक ढंग से हिलाती हुई, वापस अपने घर को चल दी।
|