Long Sex Kahani सोलहवां सावन
07-06-2018, 02:47 PM,
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। मेरा तो वापस जाने का मन नहीं कर रहा था। पर भाभी बोलीं कि रक्षाबंधन में सिर्फ चार दिन बचे हैं… और मैं उनके पति और देवर की इकलौती बहन थी… और मुश्कुराकर चिढ़ाया- 

“और बाकी सावन वहां बरस जायेगा, वहां भी तुम्हारा कोई इंतज़ार कर रहा है…” 




मुश्कुराकर, जोबन उभारकर मैं बोली- “अरे डरता कौन है भाभी…” 


जिस दिन वापस जाना था, मैं सुबह से व्यस्त थी। सामान रखना, मिलने के लिये मेरी सारी सहेलियां आ रहीं थी और भाभियां। 

फिर भाभी मुन्ने को लेकर पहली बार मायके से वापस जा रही थीं, उसके रीत रिवाज… पता ही नहीं चला कि कैसे समय बीत गया। चलने के समय के थोड़ी देर पहले ही चन्दा ने आकर मेरे कान में कुछ कहा। 


मैंने भाभी से कहा कि- “मैं अपनी कुछ सहेलियों से मिलकर वापस आती हूं…” 
भाभी बोलीं- “जल्दी आना, बस आधे घंटे में बस आ जायेगी…” 


चन्दा मेरा हाथ खींचकर ले जाते हुए बोली- “हां बस इसको आधे घंटे में वापस ले आऊँगी… देर नहीं होगी…” 


मुझे भगाते हुए वह पास के बगीचे में एक कमरे में ले गयी। वहां अजय, रवी और दिनेश के साथ-साथ गीता भी थी और मुझको देख के सब मुश्कुरा पड़े। 


तीनों के पाजामें में तने तंबू और उनकी मुश्कुराहट को देखकर मैं उनका इरादा समझ गयी। तब तक चन्दा ने दरवाजे की सांकल बंद कर दी। 

“हे नहीं… अभी टाइम नहीं है, तुम तीनों के साथ। आधे घंटे में बस पकड़नी है…” 


अजय शरारत से बोला- 

“तो क्या हुआ… आधे घंटे बहुत होते हैं… अब तुम कित्ते दिन बाद मिलोगी…” 


“अरे दो महीने बाद… कातिक में तो आना ही है इसे… अच्छा चलो… आधे घंटें में किसके साथ…” चन्दा ने समझाया। 


दिनेश का नंबर लगा। 






आज मैं वही टाप और स्कर्ट पहने थी, जिसे पहनकर मैं शहर से आयी थी। कुछ खाने पीने से और उससे भी बढ़कर… कुछ मेरे यारों कि मेहनत से मेरे जोबन और गदरा गये थे, उभरकर टाप को फाड़ रहे थे। वही हाल मेरे चूतड़ों ने स्कर्ट का किया था। 







दिनेश ने कुछ अजय और रवी से बात की और तीनों अर्थ-पूर्ण ढंग से मुश्कुरा रहे थे। दिनेश पाजामा खोल के लेट गया, उसका कुतुब मीनार हवा में खड़ा था। मैं समझ गयी वह क्या चाहता है।


मैंने झुक के अपनी पैंटी उतारी और स्कर्ट उठा के दोनों टांगें फैलाकर उसके ऊपर चढ़ गयी। पर दिनेश का लण्ड खाली कुतुबमीनार की तरह लंबा ही नहीं बल्की खूब मोटा भी था। 


मैं अपनी चूत फैलाकर उसके सुपाड़े को रगड़ रही थी और वह अंदर नहीं घुस पा रहा था। तभी चन्दा और गीता दोनों ने मेरे कंधे पे धक्का देना शुरू कर दिया और लण्ड मेरी चूत में समाने लगा। उसका मोटा लण्ड जैसे ही मेरी चूत की दीवारों को कसकर फैलाता, रगड़ता अंदर घुस रहा था, मैं मस्ती से पागल हो रही थी। 
चन्दा और गीता का साथ देने के लिये, रवी भी आ आया और जल्द ही दिनेश का पूरा लण्ड इन तीनों ने घुसवा कर ही दम लिया। 






मस्ती में नीचे से दिनेश चूतड़ उठा रहा था और ऊपर से मैं। 


उसने मेरा टाप खोलकर मेरे फ्रट ओपेन ब्रा के सब हुक खोल दिये और कस-कस के मेरी चूचियां मसलने लगा। ये देखके अजय और रवी की हालत और खराब हो रही थी। 


चन्दा ने दिनेश को आँख मारी और उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया। 


मैं उसकी चौड़ी छाती पर थी, वह अपनी बांहों में मुझे कस के भींचे था और वह मेरे जोबन का रस चूस रहा था।











तभी अजय ने अपना लण्ड पीछे से मेरी गाण्ड के छेद पे लगाया। 


मैंने बचने के लिये हिलने डुलने की कोशिश की पर… दिनेश मुझे कस के पकड़े था और फिर उसका मोटा लंबा लण्ड भी जड़ तक मेरी चूत में धंसा था। अजय ने मेरे दोनों चूतड़ फैलाकर कस के धक्का मारा और एक बार में ही उसका मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में पूरा घुस गया। 




“उयीइइ… उयीइइइइ…” मैं जोर से चीखी।


पर रवी पहले से तैयार था और उसने अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसा दिया। 


वह कस के मेरा सर पकड़के ढकेल रहा था और वह अपना पूरा लण्ड मेरे मुँह में ठूंस के ही माना। उधर अजय ने मेरी कसी गाण्ड में अपना लण्ड पेलना चालू रखा। रवी का लण्ड मेरे मुँह में होने से कोई आवाज भी नहीं निकाल पा रही थी। 




उधर थोड़ी देर में ही अजय का लण्ड पूरी तरह मेरी गाण्ड में घुस आया और फिर उसने और दिनेश ने मिलकर मुझे चोदना शुरू कर दिया। जब अजय गाण्ड से लण्ड निकालता, तो मुझे पकड़कर अपना चूतड़ उठाकर दिनेश पूरा लण्ड मेरी चूत में डाल देता और फिर जब अजय जड़ तक अपना लण्ड डालकर मेरी गाण्ड मारता तो दिनेश बाहर निकाल लेता। लेकिन कुछ देर बाद, अजय और दिनेश एक साथ अपना लण्ड घुसेड़ने लगे। 


मुझे लगा रहा था, जैसे कोई एक झिल्ली मेरी चूत और गाण्ड के बीच है और जिसे दोनों लण्ड रगड़ रहे हैं। 


मैं भी एक साथ तीन लण्ड का मजा ले रही थी। मैंने रवी के लण्ड को खूब कस-कस के चूसना शुरू किया और मेरी जीभ उसके लण्ड को कस के चाट रही थी। मेरी एक चूची अजय मसल रहा था और दूसरी दिनेश। तीनों ही तेजी से चोद रहे थे और मैं भी चूतड़ उछाल-उछालकर, सर हिला-हिलाकर इस चुदाई का मजा ले रही थी। 






रवी सबसे पहले झड़ा और उसने कस के मेरा सर पकड़ रखा था जिससे मुझे उसका सारा वीर्य, निगलना पड़ा, पर वह इतना ज्यादा रुक-रुक कर झड़ रहा था कि मेरा पूरा मुँह उससे भर गया और कुछ मेरे गाल से होते हुए मेरे उभारों पर भी गिर गया। 


तब तक पूरबी ने बाहर से आकर दरवाजा खटखटाया- “हे बस आ गयी है, हार्न बजा रही है…” 


अजय और दिनेश अब और कस-कस के धक्के लगाने लगे। और मैं भी… मैं झड़ने लगी… मेरी चूत कस-कस के सिकुड़ रही थी और दिनेश और अजय दोनों एक साथ मेरी चूत और गाण्ड में झड़ रहे थे। 


पूरबी ने फिर गुहार लगायी- “अरे देर हो रही है, भाभी बुला रही हैं…” 


दिनेश ने अपना लण्ड मुश्किल से मेरी चूत से बाहर निकाला। उसमें अभी भी काफी मसाला बचा था। रवी की जगह अब उसने अपना लण्ड मेरे होंठों पर रख दिया और मैं उसे गड़प कर गयी।


और मेरे होंठों से छूते ही फिर वीर्य की एक बड़ी धार निकली जो मेरे मुँह को भरकर गालों पर आ गयी। उसने अपना लण्ड बाहर निकालकर सुपाड़े को मेरे निपकाल पर लगाया कि वीर्य का एक बड़ा थक्का वहां गिर गया। बाकी उसने अपने लण्ड को मेरी चूंचियों के बीच रगड़कर मेरी चूत का रस और अपने लण्ड का रस वहां साफ किया। 


अजय ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड से निकाल लिया था और लग रहा था कि वह अभी भी झड़ रहा है। उसने अपना लण्ड मेरे होंठों पर सटा दिया। मैं सोच रही थी कि… यह… अभी कहां से… क्या… 


पर चन्दा मेरे सर को दबाते बोली- “अरे ले-ले… ले-ले कसकर चूम ले तेरे यार का लण्ड है…” 


मेरे भी मन में झूले का दृश्य याद आ गया, जब पहली बार उसने मेरी मारी थी… और उसी ने शुरूआत की थी इस मजे की। 


मैंने होंठ खोलकर उसे ले लिया और होंठों से चूसते हुए जीभ से उसका सुपाड़ा अच्छी तरह चाटने लगी। कुछ अलग सा अजीब सा स्वाद… मैंने आँखें बंद कर ली और जोर से चूसने चाटने लगी। अजय भी उंह… उंह… हो… आह… आह कर रहा था। उसने जब अपने लण्ड को बाहर निकालकर दबाया तो वीर्य की एक बड़ी तेज धार मेरे गालों और जोबन पे पड़ गयी। एक बार फिर उसको मैंने मुँह में लेकर जो भी कुछ बचा, लगा था, चाट चूट कर साफ कर लिया। 


तब तक चन्दा ने सांकल खोल दी और पूरबी अंदर आ गई। 


“हे जल्दी चलो, बस खड़ी है, ड्राइवर हार्न बजाये जा रहा है…” उसने बोला। 


मैंने बढ़कर अपनी पैंटी उठानी चाही तो पूरबी ने उसे उठा लिया और मुश्कुराते हुये बोली- “हे अब इसे पहनने, पोंछने का टाइम नहीं है बस तुम चल चलो…” 


मेरी गाण्ड और चूत दोनों में वीर्य भरा था और बस चूना ही चाहता था। चूची और गाल पे जो लगा था सो अलग। पूरबी ने मेरे गाल पर लगे, अजय और रवी के वीर्य को कसकर चेहरे पे रगड़ दिया और कहा कि तेरा गोरा रंग अब और चमकेगा। चन्दा और गीता ने जल्दी-जल्दी मेरा टाप बंद कर दिया पर उन नालायकों ने मेरी ब्रा को खुला ही रहने दिया और मेरे निपल पर लगे वीर्य को भी वैसे ही छोड़ दिया। 


मैं जल्दी-जल्दी चलकर गयी। मेरे गालों पर तो लगा ही था, मेरा मुँह भी उन तीनों के रस से भरा था। बस खड़ी थी और ड्राइवर अभी भी हार्न बजा रहा था। मैं जल्दी-जल्दी सबसे मिली। 



राकी भी आकर मेरे पैरों को चाट रहा था।
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RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन - by sexstories - 07-06-2018, 02:47 PM

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