RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
सुनहली शराब
भाभी की माँ की ऊँगली अभी भी उसके पिछवाड़े और ,अचानक वहां से सीधे निकल के मेरे मुंह में उन्होंने घुसेड़ दी।
मैंने बुरा सा मुंह बनाया तो बोलीं ,
" अरे अभी मेरा स्वाद तो इते मजे ले ले के लेरही थी ,जरा इसका भी चख ले वरना बुरा मान जायेगी ये छिनार ,अच्छा चल ये भी घोंट ले ,स्वाद बदल जाएगा। "
और पास पड़ी बोतल उठा के मेरे मुंह में लगा दी।
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दो चार घूँट मुंझे पिला के फिर वो सीधे बोतल से , ... तब तक गुलबिया भी बैठ गयी थी और उसने माँ के हाथ से बोतल ले ली।
थोड़ी देर में हम दोनों ऐसे ही बाते करते ,...आधी बोतल खाली हो गयी।
आसामान में एक बार फिर से बादल छाने लगे थे।
चांदनी कभी छुप जाती कभी दिख जाती ,
" यार हम दोनों ने मजा ले लिया लेकिन ये छिनार अभी भी पियासी है। " माँ ने मेरी ओर इशारा कर के बोला ,लेकिन खुद ही मज़बूरी भी बताई ,
" हम दोनों तो इतने लथर पथर हो गएँ हैं की आधे पौन घंटे तक हिल भी नहीं सकते ".
गुलबिया ने हामी भरी लेकिन तभी उसकी निगाह रॉकी और उसके मस्ताए शिश्न पर पड़ी ,और वो मुस्करा उठी ,
" एक है न जो थका भी नहीं और इस छिनार का यार भी है ,देखो कितना मस्ता रहा है। "
माँ ने रॉकी के मोटे खड़े लन्ड को देखा ( मेरी निगाह तो वहां से हट ही नहीं रह थी )और खिलखिलाते गुलबिया से हंस के पूछा ,
" इसको चढ़ायेगी क्या मेरी बेटी पे। "
" एकदम लेकिन चोदने के पहले चूस चाट के गरम भी तो करेगा , और हम दोनों भी तो चूस चाट के झड़ी हैं ना ,तो एक बार इसको चटवा के झड़वा देते हैं ,चुदेगी तो ये है रॉकी से और एक बार क्या अब हर रोज चुदेगी ,घर का माल है। लेकिन पहले चटवा देती हूँ। "
माँ ने भी सहमति दी और मेरी तो बिना झड़े वैसे ही हालात खराब हो रही थी।
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मुझे लगा ,गुलबिया रॉकी की चेन अभी खोल देगी और फिर हम दोनों ,...
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
उसने सिर्फ मुझे थोड़ा सरका के ,पेड़ के और नजदीक कर दिया। और तब मुझे अहसास हुआ रॉकी बंधा जरूर था लेकिन उसकी चेन बहुत लंबी थी।
गुलबिया ने माँ से बोतल लेके थोड़ी सी मेरी जाँघों के बीच गिरायी , कुछ मेरे दोनों उभारों पे और बस रॉकी को मेरी टांगों के बीच , चेन पूरी खींचने के बाद अब उसके नथुने मेरे 'वहां' पहुँच सकते थे। और उसकी लंबी खुरदरी जीभ सीधे वहां , ...
मेरी हालात खराब हो गयी ,
लेकिन ये तो सिर्फ शुरुआत थी , शराब से डूबे मेरे जोबन को भी दोनों ने आपस में बाँट लिया और जोर जोर से चूसने लगीं।
रॉकी आज बहुत हलके हलके ,जैसे आराम से कोई सुहाग रात के दिन नयी दुल्हन को गरम करे ,ये सोच के चुदेगी तो ये है ही ,जायेगी कहाँ।
कुछ ही देर में मैं चूतड़ उचकाने लगी ,तब तक माँ ने कुछ गुलबिया से इशारा किया तो गुलबिया ने मेरी ओर इशारा किया। कुछ देर तक तो वो झिझकीं , ना नुकुर की लेकिन मान गयीं।
गुलबिया ने बोला के और उकसाया उनको ,
" अरे अब इसको दो दो की आदत पड़ गयी है। यार से चुसवा रही है अपनी बुर तो ज़रा अपनी बुर आप भी चटवा लो ,अभी चाट तो रही थी लेकिन मैंने हिस्सा बंटा लिया।
बहुत मजा है इस बुर चटानो को बुर चाटने में ,दोनों ओर से मजा लेगी और मैं तब तक जरा इसकी कच्ची अमिया का स्वाद लेती हूँ। "
तब तक भी मुझे नहीं मालूम था क्या होने वाला है ,मैं तो बस रॉकी की बुर चटाई का मजा ले रही थी।
आंगन में एक बार फिर से ठंडी ठंडी हवा चल रही थी, बादलों के छौने आसमान में दौड़ लगा रहे थे ,चांदनी के साथ आँख मिचौली खेल रहे थे। पीला सुनहला आसमान कभी एकदम स्याह हो उठता तो कभी सुनहली चांदनी से नहा उठता।
और माँ मेरे ऊपर सवार थी ,उनकी मांसल जाँघों के बीच मेरा सर दबा हुआ था ,कस के अपना भोंसड़ा मेरे गुलाबी रसीले होंठो पे वो रगड़ रही थीं , खूब मीठे मीठे रस में उनकी बुर डूबी थी एकदम मीठी चाशनी। अभी इत्ती बुरी तरह झड़ी जो थीं और मेरे लिए तो मजे हो गए,...
उधर नीचे रॉकी ने भी चूत चटाई की रफ़्तार तेज कर दी थी ,अबतक इतने लौंडो ने ,औरतों ने मेरी चूत चाटी थी इस गाँव में आने के बाद ,लेकिन रॉकी का जवाब नहीं ,एकदम आग लगी थी।
कुछ देर में जब आसमान स्याह था ,उन्होंने मेरे गाल दबा के मेरे होंठ खुलवा दिए , और मैंने झट से खोल दिया , ...दो बार बसन्ती ने मुझे ये मजा चखा दिया था और अब मुझे भी मजा आने लगा था ,फिर दारु और रॉकी की जीभ ने मेरी सोचने की ताकत ख़तम कर दी थी।
" बोल छिनरो , पियेगी न ,"
लजाते शरमाते ,मैंने हामी में सर हिला दिया।
" अरे मुंह खोल के बोल साफ़ साफ़ , वरना रॉकी को और भरोटी के लौंडों को भूल जाओ , एक भी लन्ड को तरसा दूंगी ,अगर नहीं बोलेगी खुल के , बोल बुर मरानो , कुत्ता चोदी।" गुलबिया ने हड़काया।
माँ ने भी जोड़ा , देख गुलबिया की बात काटने की घर में क्या गाँव में किसी की हिम्मत नहीं है।
और झिझकते मैंने बोल दिया। मेरी चूत एकदम तड़प रही थी ,
एक बार फिर बदलियों ने चांदनी की आँखे खोल दी ,
चांदनी आँगन में चहक उठी।
पीली सुनहली चांदनी आसमान से बरसती ,नीम के पेड़ के ऊपर से छलकती , सीधे मेरे खुले होंठों के बीच ,
पहले एक बूँद ,फिर दूसरी बूँद ,... मेरे प्यासे होंठ खुले थे।
भोंसडे से बूँद बूँद सुनहली शराब , ...मैंने होंठ बजाय बंद करने के और खोल दिए , ...
न किसी ने मुझे पकड़ा था न कोई जबरदस्ती ,
जैसे रॉकी भी ये सब खेल तमाशा समझ रहा था उसने चाटने की रफ़्तार तेज कर दी।
और उस के साथ सुनहली बारिश भी , बूँद बूँद से छर छर , ... फिर घल घल ,...
शरमा के कुँवारी किशोर चांदनी भी बदली के पीछे जा छुपी पर वो खेल तमाशा देख रही थी।
सुनहली शराब बरस रही थी और मैं ,...
कुछ देर बाद जब वो ऊपर से उठीं तो एक नदीदी की तरह से मैंने जीभ निकाल कर होंठ पर लगी सोने की बूंदे भी चाट ली।
आसमान एक बार फिर स्याह हो गया था , मैं लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी लेकिन गुलबिया , उसने रॉकी को हटा लिया। पुचकारते उसके कान में बोली ,
" चल चूस चाट के बहुत गरम कर लिया अपने माल को ,अब इस छिनार को चोद चोद के ही झाड़ना ,अरे तुमसे चोदवाने ही तो आयी है ये। "
और अबकी राकी की चेन उसने बहुत छोटी कर दी थी ,वो हम तीनो का खेल तमाशा देख तो पूरा सकता था लेकिन बीच में नहीं आ सकता था।
और तभी आँगन में पानी की पहली बूँद पड़ी ,लेकिन हम तीनों में से कोई हटने वाला नहीं था।
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