RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
और गांड में सेंध लगाना मैं अच्छी तरह नहीं तो थोड़ा बहुत तो सीख ही गयी थी ,कामिनी भाभी ने न सिर्फ सिखाया समझाया था ,बल्कि अच्छी तरह ट्रेनिंग भी दी थी।
और आज उस ट्रेनिंग को इस्तेमाल करने का दिन था। कुछ मस्ती ,कुछ मौसम और कुछ दारू का असर ,मैं एकदम मूड में थी आज 'हर चीज ट्राई करने के '.
और भाभी के मां चूतड़ थे भी बहुत मस्त, खूब बड़े बड़े,
मांसल गद्देदार लेकिन एकदम कड़े कड़े।
और साथ में गुलबिया के होंठ भले ही भाभी की माँ के भोंसडे से चिपके थे लेकिन उसके दोनों तगड़े हाथों ने भाभी की माँ के गुदाज चूतड़ों को उठा रखा था ,जिससे मेरे लिए सेंध लगाना थोड़ा और आसान होगया था।
मैंने शुरुआत चुम्बनों की बारिश से की और धीरे धीरे मेरे गीले होंठ गांड की दरार पर पहुंच गए ,मैंने एक बड़ा सा थूक का गोला उनके गोल दरवाजे पर फेंका फिर ऊँगली घुसाने की कोशिश की ,लेकिन नाकामयाब रही ,छेद उनका बहुत कसा था। बहुत मुश्किल से एक पोर घुस पाया।
और फिर गुलबिया काम आयी , बिना बोले गुलबिया ने ऊँगली गांड के अंदर से वापस खींच के मेरे मुंह में ठेल दिया। उसका इशारा मैं समझ गयी ,पहले थूक से खूब गीला कर लो। और अब अपनी अंगुली को जो चूस चूस के थूक लगा के एकदम गीला कर के मैंने छेद पर लगाया तो गुलबिया के हाथ मेरी मदद को मौजूद थे।
उसने पूरी ताकत से दोनों हाथों से उनकी गांड को चीयार रखा था , और सिर्फ इतना ही नहीं जैसे ही मैंने ऊँगली अंदर ढकेला,उनकी दायें हाथ ने मेरी कलाई को पकड़ के पूरी ताकत से ,... हम दोनों के मिले जुले जोर से पूरी ऊँगली सूत सूत कर अंदर सरक गयी।
और फिर जैसे पूरी ताकत से माँ की गांड ने मेरी अंदर घुसी तर्जनी को दबोच लिया।
बिना बुर से मुंह हटाये ,गुलबिया ने फुसफुसा के मुझे समझाया ," अरे खूब जोर जोर गोल गोल घुमा ,करोच करोच के। "
मेरी तर्जनी की टिप पे कुछ गूई गूई कुछ लसलसी सी फीलिंग्स हो रही थी ,लेकिन गुलबिया की सलाह मान के गोल गोल घुमाती रही ,करोचती रही। उसके बाद हचक हचक के अंदर बाहर ,जैसे कामिनी भाभी ने मेरे साथ किया था।
और मेरी कलाई वैसे भी गुलबिया की मजबूत पकड़ में थी ,एकदम सँड़सी जैसी।
और दोचार मिनट के बाद उसने मेरी ऊँगली बाहर कर ली और जब तक मैं समझूँ समझूँ ,मेरे मुंह में सीधे और गुलबिया ने अबकी मुंह उठा के बोला ,एक बार फिर से खूब थूक लगाओ और अबकी मंझली वाली भी।
कुछ देर बाद मेरी समझ में की ये ऊँगली ,... कहाँ से ,...
लेकिन मुंह से ऊँगली निकालना मुश्किल था , गुलबिया ने कस के मेरा हाथ पकड़ रखा था ,और जैसे वो मेरी दिल की बात समझ गयी और हड़काती बोली ,
" ज्यादा छिनारपना मत कर , लौंडो से गांड मरवा मरवा के उनका लन्ड मजे से चूसती हो,कामिनी भौजी ने तेरी गांड में ऊँगली कर के मंजन करवाया था , तो अपनी गांड की चटनी तोकितनी बार चाट चुकी हो, फिर ,.... चाट मजे ले ले के '
कोई रास्ता था क्या ?
और उसके बाद मेरी दोनों उँगलियाँ माँ की गांड में ,फिर उसी तरह खूब करोचने के बाद , वहां से सीधे मेरे मुंह में ,सब कुछ लिसड़ा चुपड़ा ,... लेकिन थोड़ी देर में मैं अपने आप , ...
गुलबिया ने मेरी कलाई छोड़ दी थी लेकिन मैं खुद ही ,... और उस का फायदा भी हुआ ,कुछ मेरे थूक का असर ,कुछ उँगलियों की पेलमपेल का ,...दो चार बार दोनों उँगलियों की गांड मराई के बाद उनका पिछवाड़े का छेद काफी खुल गया और अब जब मैंने मुंह लगा के वहां चूसना शुरू किया तो मेरी जीभ आसानी से अंदर चली गयी।
ये ट्रिक मुझे कामिनी भाभी ने ही सिखाई थी ,जीभ से गांड मारने की और आज मैं पहली बार इसका इस्तेमाल कर रही थी , दोनों होंठ गांड के छेद से चिपके और अबतक जो काम मेरी दोनों उंगलियां कर रही थीं बस वही जीभ ,और वही गूई लसलसी सी फीलिंग ,
लेकिन असर तुरंत हुआ , गुलबिया की बात एकदम सही थी।
भाभी की माँ तड़प रही थी ,चूतड़ पटक रही थी ,मेरी जीभ अंदर बाहर हो रही थी ,गोल गोल घूम रही थी ,
गुलबिया उनकी बुर खूब जोर जोर से चूस रही थी ,जीभ बुर के अंदर पेल रही थी , मेरे हाथ भी अब गुलबिया की सहायता को पहुँच गए थे। जोर जोर से मैं माँ के क्लीट को रगड़ मसल रही थी .
इस तिहरे हमले का असर हुआ और वो झड़ने लगीं।
झड़ने के साथ उनकी गांड भी सिकुड़ खुल रही थी मेरी जीभ को दबोच रही थी ,मेरा नाम ले कर वो एक से एक गन्दी गन्दी गालियां दे रही थी।
एक बार झड़ने के बाद फिर दुबारा ,
और अबकी उनके साथ गुलबिया भी ,
फिर तिबारा ,
पांच छह मिनट तक वो और गुलबिया ,बार बार ,... कुछ देर तक ऐसे चिपकी पड़ीं रही मैं भी उनके साथ।
और हटी भी तो एकदम लस्त पस्त,लथर पथर,...
मैं भी उनके साथ पड़ी रही २०-२५ मिनट तक दोनों लोगों की बोलने की हालात नहीं थी , फिर भाभी के माँ ने मुझे इशारे से बुलाया और अपने पास बैठा के दुलारती सहलाती रहीं, बोलीं जमाने के बाद ऐसा मजा आया है।
गुलबिया अभी भी लस्त थी।
भाभी की माँ की ऊँगली अभी भी उसके पिछवाड़े और ,अचानक वहां से सीधे निकल के मेरे मुंह में उन्होंने घुसेड़ दी।
मैंने बुरा सा मुंह बनाया तो बोलीं ,
" अरे अभी मेरा स्वाद तो इते मजे ले ले के लेरही थी ,जरा इसका भी चख ले वरना बुरा मान जायेगी ये छिनार ,अच्छा चल ये भी घोंट ले ,स्वाद बदल जाएगा। "
और पास पड़ी बोतल उठा के मेरे मुंह में लगा दी।
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