RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
मैं ,गुलबिया ,...... एक ओर
गुलबिया एक हाथ में बोतल और दूसरे में कुछ खाने का सामान ले कर निकली ,और मेरी हालत देखकर उसने पाला बदल लिया ,
" हे हमार ननद के अकेली जान के ,अबहीं हम ननद भौजाई मिल के तोहार ,... "
मां ने बस मुस्करा के गुलबिया की ओर देखा जैसे कह रही हों आजा छिनार तुझको भी गटक जाऊंगी आज ,
बोतल और खाने का सामान जमींन पर रखकर , अपनी मजबूत कलाइयों से माँ के दोनों हाथ कस के जकड़ती मुझसे वो बोली ,
" चल पहले नंगी कर इनको ,फिर हम दोनों मिल के इनको झाड़ते हैं ,आज। समझ में आयेगा इन्हें ननद भौजाई की जोड़ी का मजा। "
मेरी तो ख़ुशी दूनी हो गयी ,साडी तो उनकी वैसे ही लथरपथर हो गयी थी ,आसानी से मैंने खींच के उतार दी , फिर पेटीकोट पर मैंने हाथ लगाया ,और ब्लाउज गुलबिया के हिस्से में आया।
लेकिन जो उनका हाथ छूटा तो गुलबिया भी नहीं बची। साडी तो उसकी मैंने पहले ही आते ही घर में उतार के खुद पहन ली थी ,ब्लाउज पेटीकोट बचा था वो भी माँ और उस की कुश्ती में खेत रहा।
अब हम तीनों एक जैसे थे।
" तू नीचे की मंजिल सम्हाल ,ऊपर की मंजिल पर मैं चढ़ाई करती हूँ ,"
गुलबिया ने मुझसे बोला और माँ के सम्हलने के पहले उनके दोनों उभार गुलबिया के हाथों। क्या जबरदस्त उसने रगड़ाई मसलाई शुरू की , और फायदा मेरा हो गया।
मैं झट से उनकी खुली जांघो के बीच आगयी। झांटे थी लेकिन थोड़ी थोड़ी , मेरे होंठ तो सीधे टारगेट पर पहुँच जाते लेकिन गुलबिया ने मुझे बरज दिया। फुसफुसाते हुए वो बोली,
" अरे इतनी जल्दी काहे को है , थोड़ा तड़पा तरसा ,... "
मैं नौसिखिया थी लेकिन इतनी भी नहीं। कन्या रस के ढेर सारे गुर कामिनी भाभी और बसन्ती ने सिखाये थे।
बस ,मेरी चुम्बन यात्रा इनर थाइज से शुरू हुयी लेकिन बस 'प्रेम द्वार' के पास पहुँच कर रुक गयी। मैंने जीभ की नोक से उनके मांसल पपोटों के चारो ओर टहल रही थी ,कभी कस के तो कभी बस सहलाते हुए।
कुछ ही देर में उनकी हालत खराब हो गयी ,चूतड़ पटकने लगीं और जब एक बार मैंने जब जीभ की टिप से उनके क्लिट को बस छू भर लिया तो फिर तो वो पागल हो उठीं।
" अरे चूस न काहे को तड़पा रही है मेरी गुड्डो , अरे बहुत रस है तेरी जीभ में ,इस छिनार गुलबिया की बात मत सुन। चल चाट ले न ,तुझे रॉकी से इसी आंगन में चुदवाऊँगी,आज ही रात। बस एक बार चूस ले मेरी बिन्नो। "
और अबकी मैंने उनकी बात मान ली। सीधे दोनों होंठों के बीच उनके बुर की पुत्तियों को दबा कर जोर जोर से चूसने लगी। थोड़ी देर में ही उनकी बुर पनिया गयी ,बस मैंने दोनों हाथों से उसे पूरी ताकत से फैलाया और अपनी जीभ पेल दी ,जैसे कोई लन्ड ठेल रहा हो।
जोरऔर साथ में गुलबिया ने कचकचा के उनके बड़े बड़े निपल काट लिए।
फिर तो मैंने और गुलबिया ने मिल के उनकी ऐसी की तैसी कर दी ,उनकी बड़ी बड़ी चूंचियां गुलबिया के हवाले थी। खूब जम के रगड़ने मसलने के साथ वो कस कस के काट रही थी।
और मैं चूत चूसने की जो भी ट्रेनिंग मैंने इस गाँव में पायी थी ,सब ट्राई कर रही थी। मेरे होंठ जीभ के साथ मेरी शैतान उँगलियाँ भी मैदान में थीं। जोर जोर से मैं चूसती ,चाटती और जब मेरे होंठ उनकी चौड़ी सुरंग को छोड़ के क्लीट की चुसाई कर रहे होते तो मेरी दो उँगलियाँ चूत मंथन कर रही होतीं।
और फिर जब जीभ वापस उनकी गहरी बुर में होती जिसमें से मेरी प्यारी प्यारी भौजाई निकली थीं , तो मेरी गदोरी उनकी क्लिट की रगड़ाई घिसाई कर रही होती और कभी मेरे दोनों हाथ जोर जोर से बड़े बड़े चूतड़ उठा लेते दबोच देते।
असल में पहली बार मैं भोंसडे का रस ले रही थी।
इस गाँव में मैंने अनचुदी कच्ची चूत को भी झाड़ा था ,बसन्ती और कामिनी भाभी ऐसी शादी शुदा खूब खेली खायी बुरे भी चूसी थी और उनका रस पीया था ,
लेकिन भोंसडे का रस पहली बार ले रही थी ,मतलब जहां से न सिर्फ दो चार बच्चे निकल चुके हों , बल्कि उम्र में भी वो प्रौढा हो और उसकी ओखल में खूब मूसल चले हों।
और सच में एकदम लग रस ,अलग स्वाद ,अलग मजा।
कुछ देर में ही मेरी और गुलबिया की मेहनत का नतीजा सामने आया ,भाभी की माँ के भोसड़े से एक तार की चासनी निकलने लगी ,खूब गाढ़ी ,खूब स्वादिष्ट ,
मैंने सब चाट ली और गुलबिया की ओर देखा ,उसने मस्ती में आँखों ही आँखों में हाई फाइव किया , जैसे कह रही हो ले लो मजा बहुत रस है इनके भोंसडे में ,...
मैं जोर जोर से कभी जीभ से उनका भोंसड़ा चोद रही थी ,कभी ऊँगली से ,रस तो खूब निकल रहा था , वो तड़प और सिसक भी रही थी लेकिन झड़ने के करीब नहीं आ रही थी।
और तभी पासा पलटा , माँ की बुर पर गुलबिया ने कब्जा कर लिया।
वो दोनों लोग 69 की पोजिशन में आ गयी थीं ,गुलबिया की बुर भाभी की माँ चाट चूस रही थी और गुलबिया ने माँ की बुर पर मुंह लगाया , और मेरी कान में मंतर फूंका ,
ई एतानि आसानी से नहीं झड़ेगीं। इनका असली मजा पिछवाडे है जब तक इसकी गांड की ऐसी की तैसी न होगी न,मैं भोंसड़ा सम्हालती हूँ तू गांड में सेंध लगा।
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