RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
यही हो रहा था . जैसे मछली को तैरना नहीं सिखाना पड़ता उसी तरह गांव के लौंडे भी लगता है एकदम बचपन से ही ,...
कुछ देर में जब वो जोर जोर से धक्के मारने लगा तो मैंने एक बार फिर से सुनील को चूसना शुरू कर दिया।
और अब सुनील अपने असली रंग में आ गया था, गालियां , जम कर चूंची रगड़ना मसलना और पहले ही धक्के में ,आधा से ज्यादा अपना मोटा मूसल मेरे मुंह में ठेल दिया।
"घोंट छिनार घोंट , ले चूस कस कस के "
मुझे कहने की जरूरत थोड़ी थी , सुनील का मोटा मस्त लण्ड हो और मैंने चूसने में कंजूसी करीं। मेरे होंठ लण्ड पे रगड़ रहे थे ,नीचे से जीभ चाट रही थी और मेरा मुंह सक करने में वैक्यूम क्लीनर का मुकाबला कर रहा था।
नतीजा वही हुआ जो होना था , सुपाड़ा तक खूंटा बाहर निकाल के जो सुनील ने ठोंका तो एक बार में ही उसका सात इंच मेरे मुंह के अंदर था। मेरे गाल फूले हुए थे ,आँखे उबली पड़ रही थीं और मोटा सुपाड़ा सीधे मेरे हलक से रगड़ खा रहा था।
मैं गों गों कर रही थी , लेकिन सुनील पे कोई फरक नहीं पड़ने वाला था। चाहे मुंह चोदना हो चाहे गांड , उससे ज्यादा बेरहमी मैंने देखा नहीं था और इसलिए मैं उसे इतना चाहती थी।
अगले दो तीन धक्कों में सुनील का बचा हुआ दो इंच भी मेरे मुंह के अंदर था। दर्द से मेरा मुंह फटा जा रहा था , लण्ड एकदम जड़ तक घुसा हुआ था।
और चुन्नू मुंह बाए देख रहा था की कैसे मैंने पूरा ९ इंच घोंट लिया।
मेरी नाचती खुश खुश आँखों ने उसकी ओर देखा और फिर , मैंने उसका हाथ पकड़ के अपनी गुदाज गदराई चूंची पर रख लिया ,फिर क्या दोनों लड़के एक साथ एक एक चूंची मसल रहे थे।
एक जवान होती लड़की और क्या चाहेगी ,लेकिन मेरी निगाह बीच बीच में चुन्नू के औजार की ओर चली जाती थी। जान बूझ के मैं उसे छू भी नहीं रही थी।
पांच मिनट तक सुनील मेरा मुंह हचक के चोदता रहा और चुन्नू का झंडा वैसे ही खड़ा रहा।
मैं समझ गयी भले ही इसकी आज नथ उतर रही हो , लेकिन ये टू मिनट वंडर नहीं है। बस एक बार मैं इसकी शरम लिहाज उतार दूँ , फिर तो ये हचक हचक के , एकदम सुनील और अजय की तरह ही हो जाएगा।
मैंने फिर दल बदल कर लिया और अब 'कच्चा केला ' मेरे मुंह में था।
लेकिन सुनील की हरकत का असर अब उस पे भी पड़ गया था ,, धक्कों की ताकत ,गहराई और तेजी अब बढ़ गयी थी। मैं साथ साथ में हलके हलके चूस भी रही थी ,मजे ले ले के,लेकिन कमान अब मैंने आलमोस्ट पूरी चुन्नू के हाथ में दे दी थी।
लेकिन मुसीबत मेरी थी।
सुनील एक बार फिर मेरी जाँघों के बीच और पूरी ताकत से चूस रहा था ,यही नहीं दोनों लड़के जैसे बाजी लगा के मेरे उभार मसल रहे थे , मुझे लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी। लेकिन मैं बिना चुन्नू के खूंटे को अंदर घोंटे झड़ना नहीं चाहती थी। और वो भी अब पूरे जोश में आ गया ,
मैंने अपने से कहा
," गुड्डी बहुत हुआ अब चोर सिपहिया , चल हो जाय असली कबड्डी इसी नयी नवेली के साथ। "
और मैं हट के अलग हो गयी , पुआल के ढेर पे अपनी दोनों टाँगे फैला के मैंने उसे ऊपर आने का इशारा किया , लेकिन,
वो साल्ला ,एकदम चुप. फिर वही झिझक , लाज ,
" अरे आओ न ," मैंने बुलाया ,लेकिन एकदम से उसने बहाना बनाया ,
" पहले सुनील , ... "
मेरा मन हुआ एक मोटी सी गाली दूँ ,
" साले क्या वो तेरा बहनोई लगता है ,जो पहले सुनील ,पहले सुनील लगा रखा है। " लेकिन अपने उपर कंट्रोल किया।
" अाओ न चलो अा जाओ न सीधे से , अभी मुंह मेे तो कित्ते जोर जोर से धक्के पर धक्का मार् रहे थे।"
बड़ी मुश्किल से वो तैयार हुअा लेकिन जैसे ही वो मेरी जांघों के बीच अाया ,
बस थोड़ी देर मे उसने हार मान ली। नही औजार का इशू नही था वो वैसे ही खड़ा,सख्त , लेकिन बस नौसिखियापन, झिझक और डर,
परेशानी मैने भी कम नही खड़ी की थी , वो कामिनी भाभी की क्रीम का असर फिर उनका मनतर , कितना भी चुदूँ ,चूत एकदम कच्ची कली से भी कसी रहेगी।
उपर से चुन्नू ने अपने सुपाड़े मे कोई तेल क्रीम कुछ तो लगाया नही ,न मेरी बुर मे कुछ ,
तो बस एक दो बार तो वो छेद ही नही ढूंढ पाया उसके बाद घुसाने मे दिक्कत ,
बस वही पुरानी कहावत , अनाड़ी चुदवैया बुर की बर्बादी ,
लेकिन मुझे भी तो अनाड़ी से खिलाड़ी बनाया था , बसंती ,गुलबिया ,कामिनी भाभी ,
तो आज मेरी बारी थी ,
मैंने तय कर लिया क्या करना है।
बिन चोदे उसको छोड़ूंगी नहीं ,भले ही चुन्नू साले को रेप करना पड़े।
वो लगा बहाने बनाने , आज नहीं कल। नहीं पहले सुनील ,
मन उसका पूरा कर रहा था , लण्ड जबरदस्त खड़ा था लेकिन बस वही डर ,झिझक और हिचक की कहीं न घुसेड़ पाया तो ,
मैंने सुनील को आँख मार के इशारा किया और अगले पल वो 'कच्चा केला' पीठ के बल पुआल पर लेटा था।
धक्का मार के मैंने उसे गिरा दिया और सुनील ने उसके दोनों हाथ कस के पकड़ लिए ,
बस जैसे गन्ने के खेत में दो गाँव के लौंडे ,किसी शिकार को , नयी नयी जवान हुयी कच्ची कली को दबोच लेते हैं ,बस उसी तरह से हम दोनों ने दबोच लिया था ,वो हिलडुल भी नहीं सकता था।
मुस्करा के मैंने आँख नचा के उसे देखा , मैं उस के ऊपर बैठ गयी थी. झुक के मैंने जीभ से हलके हलके लण्ड को बेस से ऊपर नीचे तक चाटना , चूसना शुरू कर दिया।
वो तड़प रहा था, कुलबुला रहा था ,छटपटा रहा था , लेकिन सुनील ने जिस जोर से उसके हाथ को पकड़ रखा था ,वो इंच भर भी नहीं हिल सकता था।
तड़पा तड़पा के शिकार करने का मजा ही अलग है।
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