RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
लड़की एक लड़के दो ,
" तू क्या सोचती है मैंने इन दोनों कोे एक साथ कभी घोंटा नहीं है ,अरे यार मेरी पांच दिन वाली छुट्टी चल रही है इसलिए न , ... वरना तेरे कहने की जरूरत नहीं थी। इसलिए आज तो , ... तूने दोनों को खड़ा किया है तुझे ही झेलना पडेगा। " हंस के चन्दा बोली।
लेकिन असली जवाब दिनेश ने दिया।
अबकी जब मैंने उसका खूंटा निकाल के सुनील का मुंह में लिया तो ,
वो सीधे मेरे ऊपर , मैं वहीँ मिटटी ढेले में लेटी और उसने मेरी दोनों टाँगे अपने कंधे पर रह कर वो करारा धक्का मारा ,
दिन में , गन्ने के खेत में तारे नजर आने लगे।
और मैं चीख भी नहीं पा रही थी। सुनील ने अपना लण्ड पूरे हलक तक कस के पेल रखा था। दोनों एक एक चूचियाँ कस के दबा मसल रहे थे।
और मेरी दुबारा गन्ने के खेत में चुदाई चालू हो गयी।
और वो भी तूफानी चुदाई।
बड़ी बड़ी चुदवासी भी दिनेश के नाम से कांपती थी और इसका कारण सिर्फ उसका घोडा मार्का लण्ड नहीं था , बल्कि उसकी तूफानी चुदाई थी।
वैसे तो वो बहुत सीधा सादा शरीफ इंसान था लेकिन जब एक बार लड़की के ऊपर चढ़ गया तो फिर बौराए सांड को भी मात कर देता ,ले धक्के पर धक्का ,और अगर कही लड़की चीखी चिल्लाई तो फिर तो लड़की की और आफत ,चूत के परखच्चे तो उड़ेंगे ही चूंची की भी ऐसी की तैसी हो जायेगी।
और वही गलती मुझसेहो गयी।
और नतीजा भी वही हुआ। फिर आज तो मेरे मुलायम ,कोमल चूतड़ों के नीचे घास भी नहीं थी , सिर्फ मोटे कड़े मिटटी के ढेले ,चुभते ,दबते।
जितनी जोर से दिनेश के धक्के पड़ते उससे भी जोर से नीचे से वो ढेले , कड़ी मिटटी के,...
" आज आ रहा है न गाँव में असली चुदाई का मजा ,गन्ने के खेत का। " और दिनेश को और चढ़ाया ,
" अरे ई पैदायशी छिनार है , खानदानी , रंडी की जनी , इसको ऐसे हलके धक्कों से मजा नहीं आता , इसको तो पाटा बना के घिर्राओ ,... "
( गाँव में पाटा मट्टी को भुरभुरी करने के लिए चलाते हैं , एक लकड़ी के पटरे पर एक या दो लोग खड़े हो जाते हैं और दो लोग रस्सी से उस पाटे को खींचते हैं। उनके भार से मट्टी के ढेले चूर चूर हो जाते हैं। )
फिर क्या था , मेरी दोनों चूंची पकड़ के रगड़ते मसलते , दिनेश ने ऐसे हचक के चोदा ,सच में मेरी गांड के नीचे के ढेले मट्टी में बदल गए।
हर बार वो आलमोस्ट सुपाड़ा बहार निकाल कर ऐसा करारा धक्का मारता की सीधे बच्चेदानी पे मेरे , ( अगर मैंने कामिनी भाभी की दवा न खायी होती तो सच में वो गाभिन कर के छोड़ता ) और फिर जब लण्ड का बस जोर जोर से क्लिट पे रगड़ता ,
तो मैं दर्द से चीख उठती और मजे से सिसक उठती ;लेकिन बिना आवाज निकाले ,
मेरे मुंह में तो सुनील का मोटा लण्ड था जो अब हलके मेरे मुंह को चोद रहा था , इक बार फिर दोनों छेदों का मजा।
पर सच में शायद चन्दा की बात सच थी।
थी मैं छिनार ,पक्की चुदवासी ,... कुछ देर में मैं खुद ही नीचे से चूतड़ उठा के धक्के मारती , जोर से अपनी बुर में दिनेश का लंबा लण्ड निचोड़ लेती ,
और जब सुनील ने मेरे मुंह से अपना करारा लण्ड निकाल लिया तो फिर क्या गालियां दी मैंने ,
गुलबिया और बसंती मात , ( सिखाई भी उन्ही की थीं )
" चोद न ,देखूं क्या सिखाया है तेरी बहनों ने , तेरी मां का भोसडा नहीं है , तालाब पोखर ऐसा जो ऐसे , ... "
आग में घी पड़ गया।
पर कुछ देर में दिनेश ने पोज बदला , हम दोनों अब साइड में थे , धक्के जारी थे लेकिन मेरे पिछवाड़े को कुछ आराम मिल गया।
पर वो आराम टेम्पोरेरी था।
पीछे से सुनील ने सेंध लगा दी। बस गनीमत थी की अबकी बुचो बुच मलाई भरी थी एकदम ऊपर तक।
और सुनील था भी एक्सपर्ट चुदक्कड़ , लेकिन उसका लण्ड इतना मोटा था की तब भी हलकी चीख निकल ही गयी।
पर अब न दिनेश को जल्दी थी न सुनील को , दोनों एक बार झड़ चुके थे , नम्बरी चोदू थे इसलिए मुझे भी मालूम था की दोनों आज बहुत टाइम लेंगे।
दोनों जैसे मुझे सावन का झूला झुला रहे थे।
कभी दिनेश पेंग मारता तो कभी सुनील , और मैंने दोनों के धक्के के साथ दो मस्त मोटे तगड़े खूंटो पर गन्ने के खेत में झूले का मजा लूट रही थी।
झूले में पवन की आई बहार प्यार छलके।
ओ मेरी तान से ऊंचा तेरा झूलना गोरी , तेरा झूलना गोरी।
मेरे झूलने के संग तेरे प्यार की डोरी , तेरे प्यार की डोरी।
झूले में पवन की आई बहार,प्यार छलके , प्यार छलके।
प्यार छलक रहा था , सावन की रुत की मीठी ठंडी बयार बही रही थी।
एक बार फिर काले काले बादल आसमान में छा गए थे, पास में ही कहीं मेड पर से कामग्रस्त मोर की मोरनी को पुकारने की आवाजें आ रही थीं। झूले पर झूलती कुंवारियों की कजरी की ताने भी बीच बीच में गूँज उठती थी।
और गन्ने के खेत में मैं भाभी के गाँव में सोलहवें सावन का जम के मजे लूट रही थी।
दोनों छेदों में सटासट दो मस्त तगड़े लण्ड कभी एक साथ , तो कभी बारी बारी से ,... कभी मैं दर्द से चीखती तो कभी मजे से सिसकती
और चन्दा भी अपने दोनों यारों के साथ , ...कभी मेरे निपल खिंच देती तो कभी क्लिट रगड़ देती ,
नतीजा वही हुआ , मैं दो बार झड़ी ,...उसके बाद दिनेश और सुनील साथ साथ। और उनके साथ मैं भी।
देर तक हम दोनों चिपके रहे , फिर दिनेश ने बाहर निकाला , और फिर हलके हलके सुनील ने।
उसके लण्ड की वही हालत थी जो दिनेश की थी जब वो मेरी गांड से निकला था लिथड़ा ,रस से सना लिपटा ,
लेकिन अब न मुझसे किसी ने कहा , न कोई जबरदस्ती हुयी मैंने खुद ही मुंह में ले लिया और चूम चाट के साफ़।
दिनेश को कहीं जाना था पर थोड़ी देर हम तीनो सुनील , मैं और चन्दा बाते करते रहें।
हाँ कामिनी भाभी की एक सलाह मैंने याद रखा था , जैसे ही दोनों के हथियार बाहर निकले मैंने जोर से अपनी चूत और गांड दोनों भींच ली जिससे एक बूँद भी मलाई बाहर न निकले , और भींचे रही।
भाभी ने बोला था की किसी जवांन होती ;लड़की की चूत और गांड के लिए इससे अच्छा टॉनिक कोई नहीं।
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