RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
सीधे गां* से ,... एक अलग ,...
मेरी देह दर्द, थकान और मजे तीनों से चूर चूर हो रही थी। जाँघे फटी पड़ रही थीं। हिलने की भी हिम्मत नहीं कर रही थी।
बस मैंने गन्ने के खेत में मट्टी पे पड़ी थी ,चुपचाप। आँखे खोलने की भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी , बस सुनील का हाथ अपने उभार पर महसूस कर रही थी , बगल में वो करवट लेटा था ,मुझे हलके से पकड़े।
लेकिन मुंह खोलना पड़ा ,चंदा ने बोला ," हे गुड्डी मुंह खोल न ,बस जरा सा। '
और बिना आँखे खोले जैसे अपने आप मेरे होंठ खुल गए।
मोटा सा सुपाड़ा ,खूब कड़ा ,... फिर तो बिना कुछ कहे मेरे होंठ गोल हो गए ,
सुपाड़ा अंदर गप्प ,... खूब मोटे रसीले गुलाब जामुन की तरह ,रस से लिथड़ा चुपड़ा,
मैं हलके हलके चूसने चुभलाने लगी। चन्दा प्यार से मेरा सर सहला रही थी, मेरी जीभ सुपाड़े के चारो ओर गोल गोल घूम के चाट रही थी ,मजे से स्वाद ले रही थी। लेकिन ,
लेकिन
लेकिन अचानक मुझे लगा की ये स्वाद तो एकदम , ...कैसा ,कैसा ,....फिर ये सुपाड़ा सुनील का तो नहीं है। उसके सुपाड़े का स्वाद तो मैं सपने में भी पहचान सकती थी , और फिर सुनील तो अभी मेरे बगल में लेटा हुआ है।
कैसा लग रहा है स्वाद इसका , ... उप्पस ,,,,इसका मतलब ये दिनेश का , ... और वो तो अभी कुछ देर पहले ही मेरी गांड में ,... तो गांड से सीधे ,...
यक यक ,.... ये ध्यान आते ही न जाने कैसे कैसे होने लगा। मैंने मुंह से उसे बाहर पुश करने को कोशिश की , उठने लगी।
पर चन्दा पहले से ही तैयार थी शायद इस रिएक्शन के लिए , उसने अपने हाथ से कस के मेरा सर पकड़ लिया और एकहाथ से नथुने दबा दिया ,
" घोंट साली चुपचाप , गांड में तो मजे ले ले के घोंट रही थी , तो गांड से निकलने के बाद क्या हो गया। "
दिनेश ने भी मुझे कस के दबोच रखा था , लेकिन मैं कोशिश कर रही थी की मुंह न खोलूँ वर्ना चन्दा ,...उसका बाकी लण्ड भी , जो अभी अभी मेरी कसी गांड चोद कर निकला था ,...
लेकिन मेरे चाहने से क्या होता है , उसने इतने जोर से नथुने दबा रखे थे की सांस के लिए अपने आप झट से मेरे होंठ फ़ैल गए। और अब चन्दा ने मेरे निपल उमेठते हुए हुकुम सुनाया ,
" बस अब अच्छी लड़की की तरह अपनी ये बड़ी बड़ी कजरारी आँखे भी खोल दे , मेरी छिनार रानी , जरा देख तो नजारा , तेरी मस्त गांड से निकलने के बाद दिनेश का लण्ड कैसा मस्त लग रहा है। "
इतनी जोर से वो निपल उमेठ रही थी की आँखे भी खुल गईं , सुपाड़े के अलावा सारा लण्ड तो बाहर ही था।
मेरी गांड के रस से अच्छी तरह लिथड़ा चुपड़ा ,एकदम लण्ड के जड़ तक लगा था , ...
बार बार जो वो मेरी गांड के छल्ले को रगड़ते हुए चोद रहा था उसी का असर था ये और उससे ज्यादा , जब मैं दुबारा झड़ रही थी और उसका सिर्फ सुपाड़ा गांड में घुसा था तो खुद ,चन्दा ने दिनेश के मोटे मूसल को पकड़ के गोल गोल ,गांड में बार बार घुमाया था और बोल भी रही थी ,
" अरे गुड्डी ज़रा तेरी गांड की मलाई लग जाए न तो बस सटासट जाएगा। "
एकदम अच्छी तरह , लण्ड का रंग दिख ही नहीं रहा था।
मेरा मुंह तो कह रहा था किसी तरह बाहर निकालो लेकिन दिनेश की ताकत और चन्दा की चालाकी , नथुने बंद होने से मुंह जो खुला तो दिनेश ने और पेल दिया। लेकिन थोड़ा सा लण्ड घुसा होगा की चन्दा ने रोक दिया ,
" अरे इतना जुलुम मत करो बेचारी पे , शहर का माल है , यहां आने तक एकदम कुँवारी कली थी अभी सोलहवां सावन लगा है , ज़रा थोड़ा थोड़ा ठेलों , पहले उतना चाट चूस के साफ़ कर दे फिर बाकी , और उस को स्वाद का भी मजा मिलेगा और देखने का भी। "
दो तिहाई लण्ड अभी भी बाहर था।
और चन्दा ने मुझे हड़काया ,
" जल्दी से चाट के साफ़ कर देगी तो छुट्टी वरना तो गांड के रस का मजे ले ले के धीमे धीमे स्वाद ले ले के चूसना चाहती है तो तेरी मर्जी , रुकी रह शाम तक यहां। मुझे और दिनेश को भी कोई जल्दी नहीं है। "
क्या करती हलके हलके चाटना शुरू किया , ये जानते हुए भी क्या लगा है , कहाँ से निकला है लण्ड।
ऐसा नहीं है ये पहली बार था। कल सुबह ही तो कामिनी भाभी ने , उन्हों ने भी तो जबरदस्ती ,भैया का लण्ड मेरी गांड से निकलने के बाद मेरे मुंह में , ... और मंजन के नाम पे भी गांड में दो उंगली घुसा के सीधे मुंह में ,... ( बाद में गुलबिया ने समझाया गाँव में तो होली इस के बिना पूरी ही नहीं होती जबतक भौजाई अपनी ननद को ऐसे मंजन नहीं कराती। )
कुछ देर में ही मेरी चूसने चाटने की रफ़्तार तेज हो गयी , और चन्दा भी प्यार से मुझे समझा रही थी ,
" अरे गाँव में आई हो तो हर तरह के मजे लो न , ये तो तेरा ही माल है यार ,तेरी ही गांड का। तू समझ ले , तू क्या सोचती है भौजाइयां क्या तुझे अपनी गांड का रस चखाए बिना यहां से जाने देंगी। "
भौजाई तो छोडिए उन का तो रिश्ता ऐसा है , आखिर पहले दिन से ही बिना नागा हमारे भाई उनकी टाँगे उठा के चढ़ाई कर देते हैं , लेकिन मुझे तो लग रहा था की कहीं मेरी भाभी की माँ भी , ... जिस तरह से बातें वो कर रही थी , उनका इरादा भी।
और दिनेश भी अब उसने कमान अपने हाथ में ले ली थी। लण्ड उसका खूब कड़क हो गया था , और वो हचक हचक के मेरा मुंह चोद रहा था।
सुनील बगल में बैठा उसे मेरा मुंह चोदते ,मुझे उसका लण्ड चूसते देख रहा था और ये देख के अब उसका हथियार भी सुगबुगाने लगा था।
७-८ मिनट की चुसाई के बाद जब दिनेश ने लण्ड बाहर निकाला तो एकदम साफ़ , चिकना , मेरी गांड की मलाई का कहीं पता नहीं और सबसे बढ़के ,एकदम खड़ा तन्नाया ,
मैंने उसे आँख के इशारे से दो मिनट रुकने के लिए बोला और उंगली टेढ़ी कर के सुनील को अपने पास इशारा कर के बुलाया।
सुनील को कुछ समझ में नहीं आया , लेकिन वो एकदम पास में आ गया।
और जब तक वो कुछ समझता समझता ,उसका थोड़ा सोया थोड़ा जागा सा सोना मोना खूंटा मेरे मुंह में ,
मैं प्यार से उसे चुभला रही थी , मेरी एक कोमल कलाई उसके लण्ड के बेस पे कभी हलके से दबाती ,कभी मुठियाती। और दूसरे हाथ की उंगलियां उसके बॉल्स पे ,
चूड़ियों की रुन झुन के साथ साथ मुठियाना , रगड़ा रगड़ी ,चूसना चाटना चल रहा था।
और उस का नतीजा जो होना था वही हुआ ,
बस चार पांच मिनट में ही सुनील का लण्ड फनफनाता चूत की मां बहन एक करने को तैयार ,...
और अब एक बार फिर मैंने दिनेश का मुंह में , ...
बारी बारी से मैं दोनों का लण्ड चूसती चाटती ,
और जब एक को चूसती , तो दूसरा मेरी नरम गरम मुट्टी की पकड़ में होता , कभी मेरा अंगूठा उसके मखमली सुपाड़े को दबा रहा होता तो कभी ऊँगली से मैं उसके पेशाब के छेद को रगड़ती उसमें नाख़ून से सुरसुरी करती , और कुछ नहीं तो जोर जोर से मुठियाती।
दोनों ही लण्ड पागल हो रहे थे। एकदम बेताब ,
चंदा जोर जोर से खिलखिलाई बोली ,
"गुड्डी रानी , लगता है फिर तू दोनों लण्ड एक साथ गटकना चाहती है। "
सच पूछिए तो मन मेरा यही कर रहा था लेकिन चन्दा को चिढ़ाते मैं बोली ,
"ना बाबा न अबकी तेरी बारी एक बार मेरी ऐसी की तैसी तूने करवा दी न बस ,अब तू घोंट , मेरा काम तैयार करना था। "
" तू क्या सोचती है मैंने इन दोनों कोे एक साथ कभी घोंटा नहीं है ,अरे यार मेरी पांच दिन वाली छुट्टी चल रही है इसलिए न , ... वरना तेरे कहने की जरूरत नहीं थी। इसलिए आज तो , ... तूने दोनों को खड़ा किया है तुझे ही झेलना पडेगा। " हंस के चन्दा बोली।
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